💐श्रीराधारमणो विजयते 💐
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
क्रम संख्या 2⃣3⃣
🌿लौकिक सुख 🌿
👷रोग रहित होना
💰ऋण रहित होना
✈परदेश में न रहना
👤सज्जनों के साथ परिचय प्रेम
💼मन एवं योग्यता अनुरूप
व्यापार या नौकरी मिल जाना
😎मन में कोई भय न होना
💥विदुरनीति में मनुष्य लोक के 6 लौकिक सुख बताए हैं ।
लेकिन विचार करने पर प्राय: हम सभी इन सुखों से वंचित हैं।
✨नानक दुखिया सब संसारा
सोई सुखिया जे नाम उचारा
💦अतः श्री हरिनाम का आश्रय लेने से लौकिक सुख तो मिलेगा ही, दुर्लभ परम सुख भी सहज प्राप्त होगा।
🌿 प्रेम 🌿
💛पंचम पुरुषार्थ है प्रेम ।
पुरुष का लक्ष्य क्या है, उसे क्या प्राप्त करना है । उसके जीवन की सफलता क्या है - इसके लिए यह जानना आवश्यक है, कि यह पुरुष या "जीव" है कौन ?
🙏जीवेर स्वरूप हय नित्य कृष्णदास । यह पुरुष श्री कृष्ण का नित्य, सदा-सदा से दास हैं । दास का काम है सेवा । न कि सब समय मांगते ही रहना।
🙌सेवा भी ऐसी जिसमे प्रभु का सुख विधान हो। स्वामी की अनुकूलता हो, स्वामी को आनंद हो। सेवा का नाम ही भक्ति है।
🐚केवल और केवल स्वामी का सुख, स्वामी की अनुकूलता, स्वामी के आनंद को दृष्टि में रखकर की जाने वाली सेवा या भक्ति ही विशुद्ध भक्ति है।
💚प्रेम भी भक्ति का ही पर्याय है या यों कहे कि प्रेम के कारण ही ऐसी भक्ति की जा सकती है।
💢अतः पंचम और सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ है अपने स्वामी भगवान से ' प्रेम ' । पूर्व के चारों पुरुषार्थ का सामंजस्य कुछ - कुछ इस प्रकार भी कर सकते हैं। धर्म पूर्वक अर्थ अर्जित करो, उस अर्थ से अपनी उचित कामनाओं की पूर्ति करके उन कामनाओं से मोक्ष या मुक्ति पा लो।
🎉मन भर लो और अंत में पंचम पुरुषार्थ प्रेम या भक्ति में ही जीवन को लगा लो। तो तुम्हारा पुरुष होना सफल हो जाएगा।
🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻
लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
📕श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन ।
📝 प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
क्रम संख्या 2⃣3⃣
🌿लौकिक सुख 🌿
👷रोग रहित होना
💰ऋण रहित होना
✈परदेश में न रहना
👤सज्जनों के साथ परिचय प्रेम
💼मन एवं योग्यता अनुरूप
व्यापार या नौकरी मिल जाना
😎मन में कोई भय न होना
💥विदुरनीति में मनुष्य लोक के 6 लौकिक सुख बताए हैं ।
लेकिन विचार करने पर प्राय: हम सभी इन सुखों से वंचित हैं।
✨नानक दुखिया सब संसारा
सोई सुखिया जे नाम उचारा
💦अतः श्री हरिनाम का आश्रय लेने से लौकिक सुख तो मिलेगा ही, दुर्लभ परम सुख भी सहज प्राप्त होगा।
🌿 प्रेम 🌿
💛पंचम पुरुषार्थ है प्रेम ।
पुरुष का लक्ष्य क्या है, उसे क्या प्राप्त करना है । उसके जीवन की सफलता क्या है - इसके लिए यह जानना आवश्यक है, कि यह पुरुष या "जीव" है कौन ?
🙏जीवेर स्वरूप हय नित्य कृष्णदास । यह पुरुष श्री कृष्ण का नित्य, सदा-सदा से दास हैं । दास का काम है सेवा । न कि सब समय मांगते ही रहना।
🙌सेवा भी ऐसी जिसमे प्रभु का सुख विधान हो। स्वामी की अनुकूलता हो, स्वामी को आनंद हो। सेवा का नाम ही भक्ति है।
🐚केवल और केवल स्वामी का सुख, स्वामी की अनुकूलता, स्वामी के आनंद को दृष्टि में रखकर की जाने वाली सेवा या भक्ति ही विशुद्ध भक्ति है।
💚प्रेम भी भक्ति का ही पर्याय है या यों कहे कि प्रेम के कारण ही ऐसी भक्ति की जा सकती है।
💢अतः पंचम और सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ है अपने स्वामी भगवान से ' प्रेम ' । पूर्व के चारों पुरुषार्थ का सामंजस्य कुछ - कुछ इस प्रकार भी कर सकते हैं। धर्म पूर्वक अर्थ अर्जित करो, उस अर्थ से अपनी उचित कामनाओं की पूर्ति करके उन कामनाओं से मोक्ष या मुक्ति पा लो।
🎉मन भर लो और अंत में पंचम पुरुषार्थ प्रेम या भक्ति में ही जीवन को लगा लो। तो तुम्हारा पुरुष होना सफल हो जाएगा।
🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻
लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
📕श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन ।
📝 प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
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