🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
💐💐ब्रज की उपासना💐💐
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌷 निताई गौर हरिबोल🌷
क्रम संख्या 4
✔पाना क्या और कैसे✔
😔दुख निवृत्ति या सुख😀
तीन अवस्थायें है
1⃣ बैंक में हमारे ऊपर एक लाख रुपए का लोन होना,
2⃣ बैंक में हमारे ऊपर लोन न होना या लोन का चुक जाना,
3⃣तीसरी है -बैंक में हमारी एक लाख की एफडी होना।
😆 दुख- निवृत्ति- लोन चुक जाने वाली अवस्था है।
😷 दुख निवृत्ति का अर्थ सुख प्राप्ति नहीं। लोन चुक जाने का अर्थ एफडी बनना नहीं है।
😨 अतः अति सूक्ष्मता से अंतर समझना है कि दुख निवृत्ती=सुख प्राप्ति नहीं है।
🌺 ठीक है दुख तो निवृत्त हो गये सुख मिलना अलग चीज है।
😋 आनंद की प्राप्ति दुख निवृत्ती से नहीं होगी।
💎दुख होना
💎दुख समाप्त होना
💎सुख प्राप्त होना।
🌕ये तीन अवस्थाएं हैं।
इसलिए मुक्ति -प्राप्ति पर जीव के दुःख तो समाप्त हो जाते हैं ।
लेकिन जीव को सच्चा आनंद प्राप्त नहीं होता- इसलिए यह भी साध्य -या मनुष्य का प्राप्तव्य नहीं है।
🌻शास्त्र में मुक्ति की कामना को भी अन्य कामनाओं की भांति पिशाची कहा गया है-
' भुक्ति- मुक्ति-स्पृहा यावत् पिशाची ह्रदि वर्तते'।
🌹आनंद तो चाहिए ही
🔥क्यूँकि जीव आनंदघन स्वरूप भगवान् का अंश है तो आनंद की खोज उसका स्वरूपधर्म है, ठीक वैसे जैसे 'जलाना' -अग्नि का स्वरूप धर्म है।
😝अतः आनंद प्राप्ति को वह छोड़ नहीं सकता लेकिन सच्चा आनंद है कहाँ।
👀मिलेगा कैसे -इस बात की जिज्ञासा में वह लगा रहता है।😏
क्रमशः.........
💐जय श्री राधे
💐जय निताई
लेखकः
दासाभास डा गिरिराज श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन
प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠
💐💐ब्रज की उपासना💐💐
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌷 निताई गौर हरिबोल🌷
क्रम संख्या 4
✔पाना क्या और कैसे✔
😔दुख निवृत्ति या सुख😀
तीन अवस्थायें है
1⃣ बैंक में हमारे ऊपर एक लाख रुपए का लोन होना,
2⃣ बैंक में हमारे ऊपर लोन न होना या लोन का चुक जाना,
3⃣तीसरी है -बैंक में हमारी एक लाख की एफडी होना।
😆 दुख- निवृत्ति- लोन चुक जाने वाली अवस्था है।
😷 दुख निवृत्ति का अर्थ सुख प्राप्ति नहीं। लोन चुक जाने का अर्थ एफडी बनना नहीं है।
😨 अतः अति सूक्ष्मता से अंतर समझना है कि दुख निवृत्ती=सुख प्राप्ति नहीं है।
🌺 ठीक है दुख तो निवृत्त हो गये सुख मिलना अलग चीज है।
😋 आनंद की प्राप्ति दुख निवृत्ती से नहीं होगी।
💎दुख होना
💎दुख समाप्त होना
💎सुख प्राप्त होना।
🌕ये तीन अवस्थाएं हैं।
इसलिए मुक्ति -प्राप्ति पर जीव के दुःख तो समाप्त हो जाते हैं ।
लेकिन जीव को सच्चा आनंद प्राप्त नहीं होता- इसलिए यह भी साध्य -या मनुष्य का प्राप्तव्य नहीं है।
🌻शास्त्र में मुक्ति की कामना को भी अन्य कामनाओं की भांति पिशाची कहा गया है-
' भुक्ति- मुक्ति-स्पृहा यावत् पिशाची ह्रदि वर्तते'।
🌹आनंद तो चाहिए ही
🔥क्यूँकि जीव आनंदघन स्वरूप भगवान् का अंश है तो आनंद की खोज उसका स्वरूपधर्म है, ठीक वैसे जैसे 'जलाना' -अग्नि का स्वरूप धर्म है।
😝अतः आनंद प्राप्ति को वह छोड़ नहीं सकता लेकिन सच्चा आनंद है कहाँ।
👀मिलेगा कैसे -इस बात की जिज्ञासा में वह लगा रहता है।😏
क्रमशः.........
💐जय श्री राधे
💐जय निताई
लेखकः
दासाभास डा गिरिराज श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन
प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠
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