Sunday, 6 December 2015

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💐💐ब्रज की उपासना💐💐

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🌷 निताई गौर हरिबोल🌷

            क्रम संख्या 4

 ✔पाना क्या और कैसे✔

 😔दुख निवृत्ति या सुख😀

तीन अवस्थायें है

1⃣ बैंक में हमारे ऊपर एक लाख रुपए का लोन होना,

2⃣ बैंक में हमारे ऊपर लोन न होना या लोन का चुक जाना,

3⃣तीसरी है -बैंक में हमारी एक लाख की एफडी होना।

😆 दुख- निवृत्ति- लोन चुक जाने वाली अवस्था है।

😷 दुख निवृत्ति का अर्थ सुख प्राप्ति नहीं। लोन चुक जाने का अर्थ   एफडी बनना नहीं है।

😨 अतः अति सूक्ष्मता से अंतर समझना है कि दुख निवृत्ती=सुख प्राप्ति नहीं है।

🌺 ठीक है दुख तो निवृत्त हो गये सुख मिलना अलग चीज है।

😋 आनंद की प्राप्ति दुख निवृत्ती से नहीं होगी।

💎दुख होना
💎दुख समाप्त होना
💎सुख प्राप्त होना।

🌕ये तीन अवस्थाएं हैं।

इसलिए मुक्ति -प्राप्ति पर जीव के दुःख तो समाप्त हो जाते हैं ।

लेकिन जीव को सच्चा आनंद प्राप्त नहीं होता- इसलिए यह भी साध्य -या मनुष्य का प्राप्तव्य  नहीं है।

🌻शास्त्र में मुक्ति की कामना को भी अन्य कामनाओं की भांति पिशाची कहा गया है-

' भुक्ति- मुक्ति-स्पृहा यावत् पिशाची ह्रदि वर्तते'।

🌹आनंद तो चाहिए ही

🔥क्यूँकि जीव आनंदघन स्वरूप भगवान् का अंश है तो आनंद की खोज उसका स्वरूपधर्म है, ठीक वैसे जैसे 'जलाना' -अग्नि का स्वरूप धर्म है।

😝अतः आनंद प्राप्ति को वह छोड़ नहीं सकता लेकिन सच्चा आनंद है कहाँ।

👀मिलेगा कैसे -इस बात की जिज्ञासा में वह लगा रहता है।😏
                       
                             क्रमशः.........

 💐जय श्री राधे
 💐जय निताई

लेखकः
दासाभास डा गिरिराज   श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन

प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠

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