Sunday, 6 December 2015

📚🍵ब्रज की खिचडी🍵📚

🌷 श्री राधारमणो विजयते 🌷

  🌻 निताई गौर हरिबोल🌻

       क्रम संख्या 1⃣2⃣

   ⚡ 🌿 अभिस्नेह 🌿⚡

👳🏻 महात्मा में अभिस्नेह नहीं होता । महात्मा तो स्नेह की मूर्ति है स्नेह तो उनके हृदय में है , उनके रोम-रोम में है जैसे आग के पास जाओ तो तपिश मिलेगी और तुम्हारी ठंड दूर हो जाएगी ।यह आग का स्वभाव है ।

💎 इसी प्रकार महात्मा के पास जाओ तो स्नेह तो उसकी आंखों में झरता  है, उसकी जीभ से झरता  है  उसके रोम रोम से स्नेह की तन्मात्रा निकलती है ।

💛जो शुद्ध हृदय से जाएगा वह उसमें डूब जाएगा । अगर वहां स्नेह नहीं मिलता है तो समझो कि तुम्हारे मन में कोई गांठ पड़ गई है। कोई धारणा,  कोई पूर्वाग्रह ऐसा बैठ गया है कि जिससे तुमको वह स्नेह प्राप्त नहीं हो रहा है।

🔥 यदि गर्मी नहीं मिल रही तो हो सकता है कि वह आग ही न हो ।ऐसे ही यदि स्नेह नहीं है तो पहला कारण तुम्हारे मन की गांठ, दूसरा कारण हो सकता है कि वो  महात्मा ही न  हो केवल महात्मा जैसा हो।

💥परंतु एक बात अवश्य है, असली महात्मा में "अभिस्नेह " नहीं होता । अभिस्नेह अर्थात जैसे संसारी लोग अपने पुत्र में अटकते हैं । दूसरे के पुत्र में नही ।

👪 अपने रिश्तेदार - नातेदार में अटकते हैं, दूसरे में नहीं । यही अभिस्नेह है । जो महात्मा है वे एक में नहीं अटकते  सब में सामान रहते हैं।

 🙌🏻जय श्री राधे ।जय निताई🙌🏻

लेखकः-
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
📕श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन

🌞प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू

No comments:

Post a Comment