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⚡⚡ब्रज की उपासना⚡⚡
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🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
🍁🍁छोटी-छोटी बातें🍁🍁
🌻✔ प्रत्येक वैष्णव को तुलसी - कण्ठी, तिलक आदि वैष्णव चिन्हों को अवश्य धारण करना चाहिए।
🌻✔ एकादशी व्रत का पालन अनिवार्य है ,क्योंकि इस व्रत से श्रीकृष्ण में प्रीति उत्पन्न होती है। अन्न- चावल आदि निषिद्ध पदार्थों को छोड़कर दूध्- दही, फलादि के सेवन एवं अधिक नाम करके एकादशी व्रत किया जा सकता है ।
🌻✔ श्रीतुलसी का दर्शन, प्रणाम, जल- सिंचन वैष्णवाचार है।
🌻✔ एकादशीव्रत के दिन भगवान् के लिए भी तुलसी चयन नहीं करनी चाहिए।
🌻✔ किसी भी प्राणी को उद्वेग या उत्तेजना नहीं देना, वैष्णव का मुख्य लक्षण है।
🌻✔ श्रीहरि मंदिर में जाकर एक हाथ से प्रणाम नहीं करना चाहिए। पंचांग प्रणाम (दोनों घुटने, दोनों हाथ, मस्तक, वचन और बुद्धि से) करना चाहिए।
🌻✔ दण्डवत्- प्रणाम करने के लिए कुर्ता- कमीज आदि ऊपर के वस्र उतार देने चाहिए, केवल कमर तक वस्त्र पहनकर दण्डवत्- प्रणाम करना चाहिए ।वस्त्रसहित दण्डवत् प्रणाम करने वाले मूर्खबुद्धि को सात जन्म तक श्वेत कोढ़ की यातना भोगनी पड़ती है- ऐसा शास्त्र का कथन है।
🌻✔ स्त्री जाति के लिए तो दण्डवत् प्रणाम, दण्डवत् परिक्रमा बिल्कुल मना है, इससे उसके समस्त पुण्यों का नाश हो जाता है।
🌻✔ श्री ठाकुर विग्रह को अपने बायीं ओर करके हर प्रकार के प्रणाम का विधान है, सामने बैठ- सोकर, प्रणाम नहीं करना चाहिए।
🌻✔ भगवान् श्रीविष्णु, कृष्ण नाम या इनके स्वरूपों की सदा चार परिक्रमा लगानी चाहिए।
🌻✔ श्री नामजप का नियम संख्या पूर्वक लेना चाहिए। नियिमत संख्या के बाद यथासंभव असंख्य श्रीनाम का जप किया जा सकता है। श्रीनाम जप में श्रीनामी का ध्यान रुप- गुण- लीला का चिन्तन भी करना चाहिए।
🌻✔ सर्वदेवों के अधीश्वर भगवान् श्री कृष्ण ही सर्वोपास्य हैं। अतः उनमें ही ऐकान्तिक भक्ति निष्ठा- बुद्धि का पोषण आवश्यक है, किन्तु अन्यान्य देवी-देवताओं की निंदा- अनादर कभी भी वैष्णव के लिए उचित नहीं है।
🌻✔ कलियुग में कृष्ण प्रेम प्राप्ति का एकमात्र परम उपाय श्रीहरिनाम संकीर्तन है। अतः हर साधक को संसार सागर से पार जाने के लिए उच्चस्वर से श्रीहरिनाम का संकीर्तन अथवा नाम जप यथा संभव अवश्य करना चाहिए।
🌺जय श्री राधे
🌺जय निताई
लेखकः
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन
प्रस्तुति । मीनाक्षी दासी🐠
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⚡⚡ब्रज की उपासना⚡⚡
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🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
🍁🍁छोटी-छोटी बातें🍁🍁
🌻✔ प्रत्येक वैष्णव को तुलसी - कण्ठी, तिलक आदि वैष्णव चिन्हों को अवश्य धारण करना चाहिए।
🌻✔ एकादशी व्रत का पालन अनिवार्य है ,क्योंकि इस व्रत से श्रीकृष्ण में प्रीति उत्पन्न होती है। अन्न- चावल आदि निषिद्ध पदार्थों को छोड़कर दूध्- दही, फलादि के सेवन एवं अधिक नाम करके एकादशी व्रत किया जा सकता है ।
🌻✔ श्रीतुलसी का दर्शन, प्रणाम, जल- सिंचन वैष्णवाचार है।
🌻✔ एकादशीव्रत के दिन भगवान् के लिए भी तुलसी चयन नहीं करनी चाहिए।
🌻✔ किसी भी प्राणी को उद्वेग या उत्तेजना नहीं देना, वैष्णव का मुख्य लक्षण है।
🌻✔ श्रीहरि मंदिर में जाकर एक हाथ से प्रणाम नहीं करना चाहिए। पंचांग प्रणाम (दोनों घुटने, दोनों हाथ, मस्तक, वचन और बुद्धि से) करना चाहिए।
🌻✔ दण्डवत्- प्रणाम करने के लिए कुर्ता- कमीज आदि ऊपर के वस्र उतार देने चाहिए, केवल कमर तक वस्त्र पहनकर दण्डवत्- प्रणाम करना चाहिए ।वस्त्रसहित दण्डवत् प्रणाम करने वाले मूर्खबुद्धि को सात जन्म तक श्वेत कोढ़ की यातना भोगनी पड़ती है- ऐसा शास्त्र का कथन है।
🌻✔ स्त्री जाति के लिए तो दण्डवत् प्रणाम, दण्डवत् परिक्रमा बिल्कुल मना है, इससे उसके समस्त पुण्यों का नाश हो जाता है।
🌻✔ श्री ठाकुर विग्रह को अपने बायीं ओर करके हर प्रकार के प्रणाम का विधान है, सामने बैठ- सोकर, प्रणाम नहीं करना चाहिए।
🌻✔ भगवान् श्रीविष्णु, कृष्ण नाम या इनके स्वरूपों की सदा चार परिक्रमा लगानी चाहिए।
🌻✔ श्री नामजप का नियम संख्या पूर्वक लेना चाहिए। नियिमत संख्या के बाद यथासंभव असंख्य श्रीनाम का जप किया जा सकता है। श्रीनाम जप में श्रीनामी का ध्यान रुप- गुण- लीला का चिन्तन भी करना चाहिए।
🌻✔ सर्वदेवों के अधीश्वर भगवान् श्री कृष्ण ही सर्वोपास्य हैं। अतः उनमें ही ऐकान्तिक भक्ति निष्ठा- बुद्धि का पोषण आवश्यक है, किन्तु अन्यान्य देवी-देवताओं की निंदा- अनादर कभी भी वैष्णव के लिए उचित नहीं है।
🌻✔ कलियुग में कृष्ण प्रेम प्राप्ति का एकमात्र परम उपाय श्रीहरिनाम संकीर्तन है। अतः हर साधक को संसार सागर से पार जाने के लिए उच्चस्वर से श्रीहरिनाम का संकीर्तन अथवा नाम जप यथा संभव अवश्य करना चाहिए।
🌺जय श्री राधे
🌺जय निताई
लेखकः
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन
प्रस्तुति । मीनाक्षी दासी🐠
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