Monday 31 July 2017

Kripa Kese Ho

Kripa Kese Ho

​ ✔  *कृपा कैसे हो*    ✔

▶ कृपा बहुत ही सामान्य रुप में प्रयोग होने वाला शब्द है । लेकिन यह एक तत्व है ।

▶ कृपा का अर्थ साक्षात राधा रानी । कृपा सर्वतंत्र स्वतंत्र है । यहां तक कि भगवान श्री कृष्ण के वश में भी नहीं है ।

▶ भगवान का मन तो करता है कि मैं अपने अंश स्वरुप सब जीवो सहित दासाभास पर थोक में कृपा कर दूं । लेकिन कृपा भगवान के वश में नहीं है । कृपा सर्वतंत्र स्वतंत्र है ।

▶ जब जीव में भजन साधन द्वारा की गई योग्यता को देखती है तो स्वत उदित होती है ।  कृपा के बिना कृष्ण को पाना , कृष्ण चरण सेवा को पाना असंभव है ।

▶ इसीलिए राधा दास्य या राधा दासी का स्वरूप निर्धारित किया गया कि राधा रानी को प्रसन्न करो ।

▶ राधा रानी बातों से  प्रसन्न नहीं होती है । राधा रानी को प्रसन्न करने के लिए जो विधान है, जो नियम है, जो भजन है, जो आचरण है, वह आप सहित दासाभास को करना ही होगा ।

▶ संत, सदगुरु, वैष्णव के हाथ में तो कृपा बिल्कुल ही नहीं है । क्योंकि कौन गुरु चाहता है कि मेरे सारे चेले एक से वैष्णव न हों ?

▶ गुरु के हाथ में होती तो वह भी रेवड़ी की तरह सबको कृपा बांट देते । गुरुदेव के हाथ में भी नहीं है । जब कृष्ण के हाथ में नहीं तो गुरु संत वैष्णव के हाथ में कहां से आई ।

▶ और राधा रानी के चरण पर पलौटते हुए श्री कृष्ण सदा ही रहते हैं यह हम सब जानते ही हैं ।

▶ बहुत से वैष्णव बात बात में यह कहते हैं ।दासाभास ! आपकी कृपा हो जाए या आप मेरे सिर पर हाथ रख दो आप मुझ पर कृपा करो । संत मुझ पर कृपा करें, धाम मुझ पर कृपा करें, वैष्णव मुझ पर कृपा करें ।

▶ अरे भाई वह सब तो तैयार बैठे हैं । तुम वह योग्यता पैदा करो । जिस दिन दासाभास में वह योग्यता पैदा हो जाएगी उस दिन कृपा बरस जाएगी ।

▶ इस सिद्धांत को यदि हम ध्यान में रखेंगे तो भ्रम नहीं होगा । यह वैसे ही है जैसे पांचवी क्लास पास बच्चा यह कहे कि मुझे इंटर के पेपर में बैठवा दो ।

▶ इंटर के पेपर में बैठने के लिए इंटर की पढ़ाई कर के वहां तक पहुंचना होगा फिर किसी की ताकत नहीं कि आप को इंटर की परीक्षाओं में रोक सके ।

▶ और यदि फॉर्मेलिटी पूरी नहीं है तो अनेकों को रोकते हुए भी देखा है ।

▶ साथ ही कृपा और करुणा के अपवाद भी हैं अकारण कृपा भी होती है । लेकिन नियम यही है कि कृपा की योग्यता साधन और भजन द्वारा प्राप्त करिए ।

▶ कृपा अपने आप ही आएगी । कृपा मांगिए मत, कृपा की योग्यता पैदा करिए । इंग्लिश मैं कहते हैं न

▶ फर्स्ट डिज़र्व देन डिजायर

▶ इसलिए भ्रम से निकलिए और साधन-भजन में लग जाइये । भजन भजन भजन ।

▶ समस्त वैष्णवजन को दासाभास का प्रणाम!

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Sunday 30 July 2017

Suksham Sutra Part 48


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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर

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🔮 भाग 4⃣8⃣

💡 शास्त्र में विधि और निषेध दोनों ही बातों का उल्लेख है केवल एक बात को मानने से काम नहीं बनेगा इसलिए - सत्य बोलो और असत्य मत बोलो, धर्म का पालन करो और अधर्म का त्याग करो, सत्संग करो और असत्संग का त्याग करो, सबसे प्रेम करो और द्वेष मत करो.

💡 भगवान की और मन लगाने से बिना प्रयास के ही संसार के विषयों से अपने आप दूरी बढ़ने लगेगी जैसे जब आप हाइवे पर दिल्ली की ओर चलते हैं तो आगरा से दूरी बढ़ने लगती है उसके लिए आपको कोई विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता,

💡 जिन महान ग्रंथों के आस्वादन से जगद्गुरु, आचार्य और स्वामी बनने की योग्यता प्राप्त की जा सके, ऐसे अनेकानेक ग्रंथों की रचना करने वाले श्रीपाद जीव गोस्वामी रचनाकार के रूप में अपना नाभ लिखते थे - 'जीवकः'। अर्थात कोई एक जीव। कितनी दैन्यता। कोई उपाधि नहीं। एक भी श्री नहीं। जो कहना वह करना। यह है - प्रतिष्ठा शूकरीविष्ठा का सटीक उदाहरण।

🐚 ।। जय श्र राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय निताई ।। 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vindabn

Saturday 29 July 2017

Suksham Sutra Part 47



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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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🔮 भाग 4⃣7⃣

💡 सरलता और सहजता श्रेष्ठ मानवीय गुण हैं, इसे दिखाने के लिए यदि प्रयास करना पड़े तो वह एक प्रकार की नाटकीयता ही है।

Monday 24 July 2017

कितना उचित है अपने ठाकुर जी को टोकरी में लेकर घूमना

क्या अपने ठाकुर जी को तो टोकरी में लेके घूमना चाहिए ?





http://www.youtube.com/user/hemangnangia 
दासाभास डा गिरिराज नांगिया, वृन्दावन धाम द्वारा आध्यत्मिक और भक्ति भाव सम्बन्धी जिज्ञासाओं का जन साधारण की भाषा में समाधान और रसिक भैया कृष्णदास भूटानी (सिरसा वाले) के सुमधुर भजनों का अनमोल संग्रह और लगभग प्रतिदिन अपडेट होने वाला youtube चैनल। आज ही सब्सक्राइब करें और आनंद प्राप्त करें।

Suksham Sutra Part 46

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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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🔮 भाग 4⃣6⃣

💡 भगवान के नाम का उच्चारण
जप - माला - कीर्तन किसी भी रूप में अभी से प्रारंभ करो, क्योंकि जिसका अभ्यास प्रारंभ से रहेगा अन्त समय वही मुख से निकलेगा, जीवन का अन्त कब होगा यह कोई नहीं जानता।

Saturday 22 July 2017

Suksham Sutra Part 45

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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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🔮 भाग 4⃣5⃣

💡 भगवान की कृपा से मनुष्य जन्म प्राप्त होता है और उनकी अति कृपा से भक्ति प्राप्त होती है .

💡 भगवदीय आचरण में संलग्न रहने पर अधिक पूजे जाऔगे, यह ऐसे ही है जैसे हाथी पर भगवान की सवारी निकले और सब लोग उन्हें प्रणाम करें - इस पर हाथी ये समझे कि लोग मुझे प्रणाम कर रहे हैं, यह उसका भ्रम ही तो है, अतः भगवत कृपा को अपना पुरुषार्थ मान अहंकार करना क्या भूल नहीं है?

Friday 21 July 2017

शास्त्र पढ़ने ही पड़ेंगे

शास्त्र पढ़ने ही पड़ेंगे

​ ✔  *शास्त्र पढ़ने ही पड़ेंगे*    ✔

▶ तीन कृपा हैं । गुरु कृपा । शास्त्र कृपा । आत्म कृपा । इसमें से सर्व शुद्ध है ग्रन्थ कृपा ।

▶ ग्रंथ दोष रहित हैं । ग्रन्थ प्रभु के विग्रह हैं । ग्रन्थ हर समय । हर अवस्था में पढ़ सकते हैं ।

▶ ग्रंथ पढ़ते समय जिज्ञासा या प्रश्न भी उठते हैं, जिन्हें गुरुदेव से समझा  जा सकता है ।

▶ शास्त्र भी श्रद्धा सहित पढ़ते पढ़ते कृपा करते हैं
एक बार म् समझ नही आते । अपितु उतना ही समझ आते हैं जितनी साधक की स्तर होता है । दासाभास ने यह अनेक बार अनुभव किया ।

Wednesday 19 July 2017

Youtube Channel



दासाभास डा गिरिराज नांगिया, वृन्दावन धाम द्वारा आध्यत्मिक और भक्ति भाव सम्बन्धी जिज्ञासाओं का जन साधारण की भाषा में समाधान और रसिक भैया कृष्णदास भूटानी (सिरसा वाले) के सुमधुर भजनों का अनमोल संग्रह और लगभग प्रतिदिन अपडेट होने वाला youtube चैनल। आज ही सब्सक्राइब करें और आनंद प्राप्त करें।

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Monday 17 July 2017

Anya Abhilasha Rahit


​ ✔  *अन्य अभिलाषा रहित*    ✔

▶ जो शुद्ध या उत्तम भक्ति है । उसमें पहला लक्षण या पहली शर्त है कि वह भक्ति अन्य अभिलाषा से रहित हो ।

▶ अन्य अभिलाषा से पहले ये पता रहे कि  क्या अभिलाषा रहे । अन्य तो नहीं रहेंगी । रहे क्या

▶ अभिलाषा तो एक ही अभिलाषा है ।
श्रीप्रिया लाल जी का सुख ।
श्री कृष्ण सेवा सुख के अतिरिक्त कुछ भी नहीं ।

▶ कृष्ण का सुख ।
कृष्ण की सेवा ।
कृष्ण की उपासना ।
कृष्ण का नमन ।
कृष्ण का भजन ।
कृष्ण ही कृष्ण ।

▶ अन्य देवी देवता जो हैं उनको प्रणाम करने में कोई मना नहीं है । लोकाचार वर्श अथवा घर की, नगर की, देश की परंपरा वश उनकी पूजा करने में भी कोई मनाही नहीं है ।

▶ लेकिन उनकी भगवद बुद्धि से , भगवान मान कर पूजा करना  अनन्यता में बाधक है । वे भगवान नही । भगवान के दास या प्रकाश हैं

▶ जैसे एक स्त्री एक ही पुरुष को पति रूप में मानती है । साथ ही वह देवर की, ससुर की, सास की, भतीजे की, भाई की भी सेवा करती है लेकिन किसी को पति नहीं मानती । पति एक ही होता है ।

▶ उसी प्रकार अन्य देवी-देवताओं को प्रणाम आदि करने में कोई मनाही नहीं है । वे सब हमारे कृष्ण के ही दास या अंश या प्रकाश हैं । भगवान नहीं

▶ लेकिन हमारे इष्ट हमारे भगवान केवल श्रीकृष्ण ही है यह बुद्धि होने पर भी अन्य अभिलाषा का भाव हो जाता है ।

▶ दूसरा श्री कृष्ण का अनुकूलता पूर्वक सेवन । कंस की तरह नहीं । शिशुपाल की तरह नहीं । दुर्योधन की तरह नहीं ।

▶ वह भक्ति नहीं शत्रुता है । वैसे भी यह परिकर भूत हैं और कृष्ण के आदेश से ही लीला करने के लिए उनके साथ आते हैं ।

▶ इनके साथ जीव की कोई तुलना भी नहीं है ।इसलिए श्री कृष्ण की अनुकूलता पूर्वक, उन्हें जिसमें सुख हो ।

▶ हमें उन्हें देखने में सुख हो यह भाव नहीं, उन्हें जैसे सुख हो और

▶ जीवन में केवल श्रीकृष्ण ही हो ।
कृष्ण स्मृति ।
कृष्ण की बात् ।
कृष्ण की सेवा ।
कृष्ण को चाहना ।
कृष्ण सेवा को पाना ।

▶ कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण और
उनका भजन भजन भजन भजन ।

▶ समस्त वैष्णवजन के चरणों में मेरा सादर प्रणाम


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Saturday 15 July 2017

Aacharya Kaun?

Aacharya Kaun?

​ ✔  *आचार्य कौन*    ✔

▶ आचार्य कहते हैं उसे, जो आचरण करे । जो भक्ति भजन के अंगों का आचरण करेगा वह दीन हो जाएगा । और दीन कभी अभिमानी नहीं होता । दीन और अभिमान विरोधी हैं परस्पर ।

▶ अतः सिद्ध हुआ की यदि अभिमानी है तो वह आचार्य नहीं । हाँ अभिमान का आचार्य हो सकता ह । भक्ति का नहीं ।

▶ और इसका दर्शन गौड़ीय आचार्यों में प्रारम्भ से है । आज भी संस्कार में है । न तो हमारे पूर्वाचार्य, न अभी के आचार्य कोई भी चांदी सोने के सिंघासनो पर न बेठे न उनके साथ ऐश्वर्य होता है ।

Friday 14 July 2017

Jivan me prashan aavashyak

जीवन में प्रश्न आवश्यक

✔  *जीवन में प्रश्न आवश्यक*    ✔

▶ गीता में कहा गया है "तद्विद्धि प्रणिपातेन परि प्रश्नेन सेवया" । ऐसा करने पर साधु संत लोग उपदेश करते हैं । और उनके उपदेश पर आचरण कर के दासाभास साधक का कल्याण होता है ।

▶ प्रश्न का अर्थ जिज्ञासा ।
हम जीव, चाहे लौकिक विषय हो, चाहे पारमार्थिक । पेट से सीखे तो आते नही ।

▶ दासाभास या आप कुछ भी करते हैं तो उस विषय में निश्चित ही हमारे सामने कुछ समस्याएं आती है,  कुछ बाधाएं आती हैं और उनके समाधान के लिए हमारे मन में प्रश्न खड़े होते हैं ।

▶ प्रश्न खड़े होने पर अवश्य ही उनका समाधान करना चाहिए, करवाना चाहिए ।

▶ इस विषय में हम महान गलती करते हैं कि एरे गैरे नत्थू खैरे से उन विषयों पर चर्चा करने लग जाते हैं । दासाभास ये गलती नही करता ।

▶ जबकि जब हमारा इनकम टैक्स का नोटिस आता है तो हम डॉक्टर के पास नहीं जाते, हम ऐरे गैरे नत्थू गैरे से बात नहीं करत, हम इनकम टैक्स के वकील या  C A से ही उस विषय में सलाह करते हैं ।

▶ इसलिए जब हमें भक्ति या भजन में कोई बाधाएं आती हैं । प्रश्न आते हैं तो हमें योग्य आचरण शील संत विद्वान गुरुदेव आदि से ही उनका समाधान कराना चाहिए ।

Thursday 13 July 2017

Nahi Chahiye | Nahi Chahiye


✅   नहीं चाहिए । नही चाहिए  ✅

▶ जीव उस सत चित आनंद का अंश है । जीव में भी शक्ति है सामर्थ्य है । वह यदि चाहे तो बहुत कुछ कर सकता है ।

▶ चांद पर भी पहुंच गया । समुद्र के अंदर भी होटल बना लिए । बात केवल यहीं तक है की उसको समझ आना चाहिए ।

▶ और सबसे बड़ी बात दासाभास को समझने की यह है की जीव श्रीकृष्ण का दास है । प्रिया लाल की चरण सेवा ही उस का मुख्य उद्देश्य है । उसी में ही उसको परम शांति सुख आनंद प्राप्त होगा ।

▶ जब यह बात उसके समझ में आ जाए तभी वह कृष्ण को परम धन मान कर उनके चरण सेवा प्राप्ति हेतु भजन में लगेगा ।

▶ अन्यथा तो भजन एक दैनिक प्रक्रिया है । 10 20 मिनट्स आधा घंटा किया और राधे-राधे

▶ जिसे यह समझ आ जाएगी कि श्री कृष्ण भजन ही हमारा मुख्य कार्य है  । इसी के लिए हम आये हैं , तब वह दासाभास भजन को ही चाहेगा और भजन के अतिरिक्त किसी वस्तु को नहीं चाहेगा ।

▶ जैसे किसी के पास परम धन हो या कोई श्रेष्ठ चीज हो तो वह सामान्य वस्तु के लिए नहीं नहीं करता रहता है ।

Tuesday 11 July 2017

Jeev Dukhi Kyon?

Jeev Dukhi Kyon?

​ ✔  *जीव दुखी क्यों*    ✔

▶ जीव श्रीकृष्ण का ही अंश। है । अपितु श्री कृष्ण की तीन शक्तियों में से एक है ।

▶ स्वरूप शक्ति
माया शक्ति और
जीव शक्ति

▶ शक्ति और शक्तिमान में अभेध है । जब जीव श्रीकृष्ण की शक्ति है तो दुखी क्यों ।

▶ तटस्था कहते हैं तट पर बैठी हुई । उसके एक तरफ श्री कृष्ण हैं और एक तरफ संसार या माया है ।

▶ माया की तरफ आकर्षित होकर श्रीकृष्ण को भूलने से ही यह दासाभास जीव दुखी है । यह अनादि विस्मृति ही उसके दुख का कारण है ।