Thursday, 17 December 2015

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💐💐ब्रज की उपासना💐💐

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🌷 निताई गौर हरिबोल🌷

            क्रम संख्या 8

   🔴सार का सार🔴

आराध्यो
भगवान् ब्रजेश तनयः
तद्धाम वृन्दाबनं
रम्या काचिदुपासना
ब्रजवधु वर्गेण या कल्पिता
श्री मदभागवतम्
प्रमाणममलम
प्रेमा पुमर्थो महान
श्रीचैतन्य महाप्रभोरमतमिदं
तत्रादरो नः परः ।


🌷यह श्लोक श्रीमन्ममहाप्रभु द्वारा स्थापित-प्रचारित गौड़ीय या चैतन्य सम्प्रदाय का  एक आधार या परिचायक श्लोक है।

🌹यह श्लोक श्री श्रीनाथ चक्रवर्ती द्वारा रचित श्रीचैतन्यमत मंजूषा ग्रन्थ से उद्धृतहै।

💐श्रीचैतन्यमत मंजूषा ग्रन्थ श्रीचैतन्य-चरितामृत आदि   के बहुत समय बाद की रचना है। इसलिए यह श्लोक श्रीचैतन्यचरितामृत में नहीं मिलता है।

🌺यह श्लोक वास्तव में श्रीचैतन्यचरितामृत को चार लाइनों में समेट लेता है।

🍀श्रीचैतन्यचरितामृत का परम् सार रूप है एवं हमारे सम्पूर्ण दर्शन एवं उपासना का परिचायक है।

🍁इन चार लाइनों में सम्पूर्ण दर्शन-रस-उपासना-प्रमाण समाहित है।

कल से इस श्लोक की प्रभु कृपा से विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत करने की चेष्टा करेंगे ।

जो वैष्णवजन गौड़ीय सम्प्रदाय को समझना चाहते हैं । वे कृपाकर इस श्लोक के भाव अर्थ को यदि समझ लेंगे तो कुछ समझना शेष नही रह जाएगा ।

                             क्रमशः.........

 💐जय श्री राधे
 💐जय निताई

लेखकः
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन

प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠Tग

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