Wednesday 30 August 2017

Deeksha


✔ *दीक्षा* ✔

➡ दीक्षा देने और लेने की अनेक विधियां शास्त्र में प्रचलित है ।

➡ गौड़ीय परंपरा के अनुसार पहले नाम दीक्षा दी जाती है, जिसमें हरे कृष्ण महामंत्र साधक को दिया जाता है ।

➡ वह महामंत्र का जप करता है । जप करते करते उसके चि्त्त की शुद्धि और उसके अंदर योग्यता प्राप्त होती है ।

➡ उसके बाद उसको मंत्रदीक्षा जिसमें गोपाल मंत्र दिया जाता है । बिना किसी ऐसे संत या वैष्णव से सुने हुए यदि हम नाम करते भी हैं तो उसको कच्चा चावल कहा गया है ।

➡ कच्चा चावल नहीं खा सकते हैं । 2। 4 ।10 दाने खा लेंगे, लेकिन भरपेट नहीं खाया जाता है जो वैष्णव, जो साधक स्वयं निष्ठापूर्वक महामंत्र करता है । संख्या पूर्वक नाम का आश्रय लेता है वह एक प्रकार से चावल को पकाता है ।

➡ उसके पास जो चावल होता है, जो मंत्र होता है वह पके हुए उबले हुए चावल की तरह से होता है उसके द्वारा कान में महामंत्र को सुनने के बाद जब महामंत्र का जप किया जाता है, उसका फल तीव्र होता है ।

➡ दीक्षा एक परंपरा से जोड़ने का क्रम है । नाम दीक्षा किसी भी वैष्णव संत से ली जा सकती है ।

➡ उसी वैष्णव संत को महामंत्र की नाम दीक्षा देनी चाहिए जो स्वयं नाम में निष्ठा रखता हो ।

➡ फिर उन्हीं संत, वैष्णव से ही मंत्र दीक्षा लेनी चाहिए । फिर भी ऐसा भी होता है । हो सकता है कि नाम दीक्षा आप अपने शिक्षा गुरु से भी ले सकते हैं । किसी भी संत से ले सकते हैं ।

➡ उसके बाद परिस्थिति यदि अनुकूल न हो तो मंत्र दीक्षा किसी अन्य संत वैष्णव से भी ली जा सकती है ।

➡ यह नाम दीक्षा ऐसे ही है जैसे प्री मेडिकल  की कोचिंग होती है । नाम द्वारा एक वैष्णव आपको दीक्षा के योग्य बना देता है ।

➡ चाहे वह फिर स्वयं दीक्षा दे । अथवा कोई वैष्णव अन्य संत दीक्षा दे दे ।

➡ इसलिए यदि आप अपने आप ही नाम महामंत्र कर रहे हैं बहुत अच्छा है । लेकिन किसी नाम निष्ठ महामंत्र सेवी से यदि नाम ले ले तो उसके प्रभाव और उसकी प्रगति में निश्चित ही अंतर महसूस होगा ।

➡ दीक्षा किसी अन्य वैष्णव । संत । गोस्वामी । आचार्य से बाद में ले सकते हैं । अपनी यजमानी या शिष्य संख्या बढ़ाने वाले धन, यश लोलुप तथाकथित संत, आचार्य तुरंत ही बिना जांचे परखे भी दीक्षा देने लगे हैं ।

➡ समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Friday 18 August 2017

Dasabhas Lekhni Part 3

Dasabhas Lekhni Part 3


🗒🖋🗒🖋🗒🖋🗒🖋🗒🖋🗒
           दासाभास लेखनी
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💎 भाग 3⃣

1⃣ होली के साथ साथ प्रिया प्रियतम की झूलन लीला भी निकुंज में नित्य होती है।

2⃣ जिसके पास एक सौ रुपये की पूंजी नहीं, धन नहीं उसका शनि ग्रह बिगाड़ेगा तो क्या बिगाड़ेगा ऐसे ही जो भजन की एबीसीडी जानता नहीं, भजन करता नहीं, भक्ति का परिचय नहीं, केवल निंदा ही निंदा; तो उसका अपराध बिगाड़ेगा भी तो क्या ? भजन हो तो ही तो कुछ बिगड़ेगा। क्या सोचते हैं आप?

3⃣ विरक्ति या वैराग्य केवल बाबा जी या विरक्तों के लिए नहीं है संसारी, गृहस्थी व्यक्ति को भी धीरे धीरे विरक्ति - वैराग्य का अभ्यास करना चाहिये।

🔔 ।। जय श्री राधे ।। 🔔
🔔 ।। जय निताई  ।। 🔔

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn

Monday 14 August 2017

Gopal ka ghar

gopal ka ghar

✔ *गोपाल का घर* ✔


➡ कल एक मैया को एक व्यक्ति व्हीलचेयर पर बैठा कर ले जा रहा था । हम चार पांच वैष्णव धीर समीर में सड़क के किनारे गार्डन में बैठ कर भगवत चर्चा कर रहे थे ।

➡ मैंने उनसे पूछा यह कौन है मैया । मैया के हाथ में माला झोली थी वह जप कर रही थी । उस नौकर को भी मैने देखा और वह रुक गया ।

➡ मय्या ने भी मेरी तरफ देखा वह जानती नहीं थी लेकिन फिर भी प्रणाम जैसा किया ।

➡ मैंने नौकर से पूछा यह कौन है । नौकर ने कहा यह हमारे बॉस की माता जी हैं । मैंने कहा तुम कहां रहते हो । मुझे बॉस ने इनके साथ रहने का आर्डर दिया है । मैं इनके साथ इनके घर में ही रहता हूं ।

➡ और कौन रहता है । एक महिला बहन जी और रहती हैं जो इन मैया को स्नान आदि कराती हैं इनके ठाकुर के लिए भोजन बनाती हैं उनका ध्यान रखती है

➡ मैं इनको रोज व्हीलचेयर में घुमाता हूं और बाजार से सामान वगैरह ले कर आता हूं इनके घर में ही हम दोनों रहते हैं

➡ तुम कहां खाते-पीते हो मैंने उस नौकर से पूछा । जब मैं सेवा इनकी करता हूं तो खाना पीना भी यही इनके घर में ही करता हूं । यहीं रहता हूं  ।

➡ यही सब कुछ करता हूं मेरा भी यही घर है बहुत अच्छा लगा उनसे बात करने के साथ ही एक भावना मन में आई । बस सब कुछ ऐसा ही रहना है । भाव बदलना है । ये घर गोपाल का है

 ➡ हम कौन हैं । कृष्णदास ।

 ➡  मोटी भाषा में कृष्ण के नौकर । जैसे वह मैया का नौकर था । जो व्हीलचेयर चला रहा था

 ➡ हमारा जो घर जिसे हम अपना घर कहते हैं वह वास्तव में श्रीकृष्ण का घर है । कृष्ण जब उस में विराजमान हैं तो घर उनका ही है ।

➡ हम कृष्ण की सेवा के लिए वहां रहते हैं उनकी सेवा ही हमारा मुख्य कार्य है । सेवा के साथ-साथ हम अपना पेट भी भरते रहते हैं । अपने काम भी करते रहते हैं । नहाते भी हैं  । खाते भी है ।

➡ लेकिन मुख्य काम हमारा अपने मालिक की सेवा करना । अपने मालिक को सुख प्रदान करना । नौकर होता ही मालिक के सुख के लिए है ।

➡ हम दास हैं । हम कृष्ण के सामने एक मच्छर जैसे हैं लेकिन दास का स्वाभाविक कर्म स्वामी की सेवा ही होता है ।

➡ यह नहीं सोचना चाहिए कि हम इतने छोटे दास श्रीकृष्ण को कैसे सुख दे सकते हैं । ठीक वैसे ही जैसे वह एक छोटा मोटा सा नौकर अपनी बॉस की मां को सुख दे रहा है ।

➡ ऐसे ही हम भी अपने कार्यो द्वारा कृष्ण को सुख दे सकते हैं । शुरु से ही यदि यह थीम बनाई जाए यह घर कृष्ण का । इसमें कृष्ण विराजमान रहेंगे और इस घर में रह कर हम कृष्ण की सेवा करेंगे

➡ तो सच मानिए घर में जो कृष्ण का रूम होगा वह एक कोने में 1 फुट बााई 2 फुट का नहीं होगा अपितु पूरा एक रूम कृष्ण का होगा और एक छोटा सा रूम हमारे सोने के लिए होगा ।

➡ थीम यहीं से यदि शुरू हो तो सारा काम बनता जायेगा । हम चाहते तो है कृष्ण का सुख । कहते भी हैं अपने को कृष्ण का दास । लेकिन ऐसी हमारे कमरे में ही लगा हुआ है । कृष्ण तो एक कोने में राधे राधे श्याम मिलादे ।

➡ थीम शुरु से बनेगी तो जीवन पूरा कृष्ण को समर्पित रहेगा बाकी के काम साथ-साथ मुख्य काम कृष्ण की सेवा ।

➡ समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम


🖊 लेखक

दासाभास डा गिरिराज नांगिया

LBW - Lives Born Works at vrindabn

Thursday 10 August 2017

Bhaya Se Bhakti

Bhaya Se Bhakti

​ ✔  *भय से भक्ति*    ✔

▶ भक्ति का जो अर्थ है वह है सेवा । अपने इष्ट की सेवा । श्रीकृष्ण की सेवा ।

▶ कृष्ण भक्ति
देश की सेवा देशभक्ति
पिता की सेवा पिता भक्ति आदि आदि

▶ भक्ति में दो कारणों से हम लोग प्रविष्ट होते हैं पहला कारण तो श्रद्धा और भाव ।

▶ अपने इष्ट के सुख की कामना । कृष्ण को सुख मिले । कृष्ण प्रसन्न हो । इसलिए हम श्री कृष्ण भक्ति में प्रविष्ट होते हैं और हर्दय से तनसे मनसे उस सेवा में जुड़ जाते हैं ।

▶ यही भक्ति वास्तविक भक्ति है

▶ दूसरे प्रकार की भक्ति ।
जिसका कारण भय होता है या जिसका कारण शास्त्र का आदेश होता है ।

▶ शास्त्र का आदेश न पालन करने पर अनिष्ट होगा । पाप लगेगा । नर्क वास होगा । हमें दुख होगा । हमें तकलीफ होगी ।

▶ हम यह काम नहीं करेंगे तो हमारा हानि होगी इस भाव से की गई भक्ति को शास्त्र में वेधी भक्ति या भय भक्ति कहते हैं ।

▶ गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है
भय बिनु प्रीत न होय गोसाई

▶ प्रारंभिक अवस्था में जैसे बालक अपने माता पिता और अध्यापक के भय से पढ़ता है । लिखता है ।

▶ होमवर्क नहीं होगा तो मैडम सीट पर खड़ा कर देंगी । इस भय से वह पढ़ता है । लेकिन धीरे-धीरे धीरे-धीरे जब वह समझदार हो जाता है तो फिर अपने हित के लिए पड़ता है ।

▶ मुझे कुछ बनना है । मुझे जीवन में कुछ प्राप्त करना है । इसलिए वह लग्न से पढ़ता है और अपनी शिक्षा कंप्लीट करता है । इसी प्रकार प्रारंभ में

▶ "गुरु जी कह रहे हैं" शास्त्र कह रहे हैं । दासाभास कह रहा है इसलिए माला में भजन में ग्रंथ अध्ययन में हम लोग लगते हैं ।

▶ यह करते करते एक समय यह आता है कि हमें पता चल जाता है कि हमारा यह जीवन श्री कृष्ण भक्ति के लिए ही प्राप्त हुआ है और कृष्ण को सुख देने का भाव हृदय में उत्पन्न हो जाता है ।

▶ और हम भजन में दृढ़ता पूर्वक प्रविष्ट हो जाते हैं यदि अभी भी हम भय से भक्ति कर रहे हैं तो मन में यह भावना रखनी ही चाहिए के भय की कोई बात नहीं है हमें कृष्ण सुख के लिए यह करना ही है ।

▶ समस्त वैष्णवजन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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Shri Krishan Avtaar

Shri Krishan Avtaar

​ ✔  *श्री कृष्ण अवतार?    ✔

▶ श्रीमद्भागवत में कहा गया है
कृष्णस्तु भगवान स्वयं

▶ श्रीकृष्ण ही स्वयं भगवान है । सृष्टि के नियंता हैं। सर्वोपरि शक्ति हैं । अपितु शक्तिमान हैं । परात्पर ब्रम्ह है । सब कारणों के कारण है । और साथ में हमारे आपके इष्ट हैं ।

▶ मदभक्तानाम विनोदार्थं
करोमि विविधा क्रिया

▶ वैष्णव भक्त जनों को आनंद देने के लिए वह विविध प्रकार की लीलाएं करते हैं । उन लीलाओं के संपादन हेतु वह विविध अवतार भी लेते हैं ।

▶ अपने ऊपर के लोक से पृथ्वी लोक पर नीचे  उतरने का भाव ही अवतार है । उन अवतारों में कैसी आनंददायक लीलाएं करते हैं जिनका गुणगान और स्मरण करते हुए हम साधक लोग उनसे सदैव जुड़े रहते हैं और उनके चरणों की सेवा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं ।

▶ अनेक अवतारों में दो महत्वपूर्ण अवतार है जो हमारे आपके इर्द-गिर्द तो रहते हैं, लेकिन हम उन्हें अवतार की तरह ट्रीट नहीं करते हैं ।

▶ उन दो अवतारों में पहला है अर्चा अवतार ।

▶ अर्थात् वह श्रीविग्रह । जो हमारे घर में विराजमान है, जिसकी हम अर्चना करते हैं । उसे हम विगृह ही मानते हैं । उसमें हमारी यह भावना यदि हो जाए कि साक्षात् श्री कृष्ण अवतार लेकर हमारे घर में विराजमान होकर हमारी सेवा पूजा स्वीकार करके हम पर कृपा करने को यहां विराजमान हैं । यदि यह भावना सिद्ध हो जाए फिर हम यह नहीं पूछेंगे । भइया जी !  हमें कृष्ण के दर्शन कब होंगे । नहीं होंगे क्या ।

▶ अरे भाई कृष्ण के दर्शन तो हम रोज ही करते हैं कृष्ण तो हमारे घर में ही तो विराजमान हैं । फिर कृष्ण दर्शन कब होंगे का प्रश्न समाप्त होना चाहिए ।

▶ दूसरे जो मुख्य अवतार हैं । जो हमारे इर्द-गिर्द हमेशा ही रहते हैं ,  वह है

▶ "नाम रूपे कलि काले कृष्ण अवतार"

▶ यह कृष्ण नाम भी कृष्ण का अवतार ही है जो 24 घंटे हमारी जिव्ह्आ पर नृत्य करता रहता है

▶ कृष्ण नाम को भी कृष्ण का एक अवतार शास्त्र में माना गया है । और कृष्ण नाम के इस अवतार का आसन हमारी जिह्वा पर है ।

▶ वह सिंघासन पर नहीं विराजता । वह भोजन नहीं मांगता । वह शृंगार नहीं मांगता । वह केवल हमारी जिव्या पर नाचना चाहता है ।

▶ यदि यह भाव दृढ़ हो जाए और जब हम नाम प्रारम्भ करें तो कृष्ण से कहे कि "कृष्ण ! अब तुम नाम रूप में आओ और मेरी जिहवा पर नृत्य करो । तो फिर बाकी क्या रह जाएगा ।

▶ हम नाम कर तो रहे हैं । लेकिन आज से विग्रह और श्री नाम में साक्षात श्री कृष्ण की उपस्थिति हमें यदि होने लग जाए तो फिर इसके बाद कुछ पाने को शेष नहीं रहेगा ।

▶ समस्त वैष्णवजन के श्री चरणों में मेरा  प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
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 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Sunday 6 August 2017

Dasabhas Lekhni Part 2

Dasabhas Lekhni Part 2


🗒🖋🗒🖋🗒🖋🗒🖋🗒
       दासाभास लेखनी
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💎 भाग 2⃣

1⃣ निकुंज में प्रियाप्रियतम द्वारा प्रतिदिन होली लीला खेली जाती है होली नित्य है.

2⃣ दुर्वासा ऋषि ने श्रीराधा जू को वरदान दिया था कि तुम अपने हाथ से जो भी भोज्य पदार्थ बनाऔगी उसमें अमृत का अंश आ जायेगा। उस भोजन को करने वाला अतुलित बलशाली हष्ट पुष्ट रहेगा और समस्त रोगों से बचा रहेगा। इसलिए यशोदा की प्रार्थना पर कीर्ति मैया श्रीराधा जू को यशोदा जी के घर प्रतिदिन भेजती हैं और प्रिया जू यशोदा की रसोई में रन्धन करती हैं और यही पदार्थ श्रीकृष्ण रोज आरोगते हैं। प्रतिदिन रसोई बनाकर प्रिया जू वापिस बरसाना आ जाती हैं।

Suksham Sutra Part 49



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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर

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🔮 भाग 4⃣9⃣

💡 एक एम.बी.ए. का शिक्षक छात्रों को पढ़ाता है, पास करके काॅलेज से विदा करता है, जाऔ बेटा धन कमाऔ और स्वधर्म का पालन करो, एम.बी.ए. पढ़कर अनेको छात्र डी.एम,  सी.एम., कंपनी के चेयरमैन और अन्य शीर्ष स्थानो पर पहुँच जाते हैं, परंतु शिक्षक वहीं का वहीं, क्या इससे शिक्षक का महत्व या सम्मान कम हो जाता है? बिल्कुल नहीं. चाहे कितना भी बड़ा अफसर क्यों न बन जाए शिष्य तो शिष्य ही रहेगा. अपने गुरु का सम्मान करेगा ही, ऐसे ही अध्यात्म-गुरु को चाहिए कि शिष्य को ज्ञान देकर भगवद् भक्ति का मार्ग दिखाये और विदा करे. शिष्य से अपना प्रचार न करवाता रह जाये.

💡 श्रीमद्भागवत 8.19.43 में कहा गया है स्त्रियों को प्रसन्न करने के लिए, हास परिहास में, विवाह योग्य कन्या की प्रशंसा करते समय , अपनी जीविका की रक्षा के लिए, प्राण रक्षा के लिए, गौ और ब्राह्मण के हित के लिए तथा किसी को मृत्यु से बचाने के लिए असत्य भाषण उतना निन्दनीय नहीं है.

💡 शास्त्र कल्पतरु हैं : जो बात सिद्ध करना चाहो एक सीमा तक की जा सकती है. अकेले श्रीगीताजी में ही ऐसे दृष्टान्त हैं जिनसे आप ईश्वर को निराकार और साकार दोनों ही सिद्ध कर सकते हैं. इसलिए ये आवश्यक है कि उस विषय का सम्पूर्ण विवेचन हो. विशेषकर इस बात का कि कौन सी बात - कब कही गयी ? किस परिप्रेक्ष्य में कही गयी ? किससे कही गयी ? और क्यों कही गयी ?

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
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🖊 लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
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Svatantrata

Svatantrata

स्वतंत्रता 🚩🚩🚩🚩🚩

🚩स्व माने अपना । तंत्र माने शासन ।
अर्थात अपने ऊपर अपना शासन । जेसे आज 15 अगस्त के दिन भारत से अंग्रेजों का शासन हट कर अपना अर्थात भारतीयों का शासन प्रारम्भ हुआ ।

🚩हमारे भगवान श्री कृष्ण सर्वतंत्र स्वतंत्र हैं । अर्थात उनके ऊपर किसी का भी किसी प्रकार का शासन नहीं है ।

🚩अपितु अपने ऊपर उनका अपना ही शासन है वह जो चाहते हैं कर सकते हैं । यहां तक कि वह कान से खा सकते हैं और मुख  से सुन सकते हैं । उनके ऊपर कोई भी बंधन, नियम, सीमा नहीं है वे परम स्वतंत्र हैं ।

🚩हम जीव उन्ही का ही अंश है । हम परम स्वतंत्र नहीं है । हम अणु स्वतंत्र हैं ।

🚩कुछ ऐसा समझें कि वे अनलिमिटेड स्वतंत्र हैं और हमलोग लिमिटेड स्वतंत्र हैं । हम स्वतंत्र अवश्य हैं ।

🚩यदि हम स्वतंत्र नहीं होते तो हमें कुछ आदेश पालन करने के लिए और कुछ आदेश न करने के लिए नहीं दी जाते ।

🚩जैसे कि पशु । पक्षिओं के पालन करने के लिए पशुओं को कोई आज्ञा नहीं दी जाती ।

Thursday 3 August 2017

Bhakti Kya Hai

Bhakti Kya Hai

​ ✔  *भक्ति क्या है*    ✔

▶ भगवान श्रीकृष्ण में वैसे तो अनंत शक्तियां हैं, लेकिन उनकी समस्त शक्तियां इन तीन शक्तियों के अंतर्गत है ।

▶ पहली है आह्लादिनी शक्ति अर्थात श्री राधाजु, अर्थात आनंद देने वाली शक्ति ।

▶ भगवान का स्वरूप सच्चिदानंद है । उसमें सत चित और आनंद इन तीन शक्तियों में से आह्लादिनी शक्ति आनंद का अंश है ।

Dasabhas Lekhni Part 1

 दासाभास लेखनी

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        दासाभास लेखनी
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💎 भाग 1⃣

1⃣ रुचि एवं आसक्ति का अंतर -   रुचि भजन में होती है और आसक्ति कृष्ण में .

2⃣ रोना सीखना है प्रभु के लिए - कथा गाना नहीं सिखाती रोना सिखाती है, कबिरा हसना बन्द कर रोने से कर प्रीत .

3⃣ प्राय सभी स्तव स्तोत्रों में फल श्रुति होती है कि इसके पाठ से पाप नष्ट हो जाते हैं लेकिन फिर भी व्यक्ति कष्ट क्यों भोगता है। इसमें भाव ये है कि हमारे अनन्तानन्त पाप हैं। अवश्य ही पाठ-स्तव आदि से कुछ हमारे पाप कट ही जाते हैं फिर भी कुछ रह जाते हैं, हमें उन्हें भोगना पड़ता है. पाठ आदि न करें तो इतने पाप हो जाय, भोगने पड़े कि हद हो जाय।

🔔 ।। जय श्री राधे ।। 🔔
🔔 ।। जय निताई  ।। 🔔

🖋 लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
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Tuesday 1 August 2017

Aar Ya Par


​ ✔  *आर या पार*    ✔

▶ एक तो यह आर पार वाली शैली होती है । और दूसरी शैली होती है संतुलन ।

▶ कहीं-कहीं हमें आर या पार वाली शैली को अपनाना पड़ता है और कहीं कहीं संतुलन वाली शैली को अपनाना पड़ता है ।

▶ लेकिन हम लोग संतुलन वाली जगह आर या पार कर देते हैं और आर या पार वाली जगह संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं ।

▶ घर हो ग्रहस्थ हो और भजन हो इन दोनों में संतुलन बनाना है । अपने सांसारिक परिस्थिति के अनुसार संसार का समय और भजन के समय को निश्चित करना है ।

▶ दासाभास जैसा संसार के दायित्वों से मुक्त व्यक्ति को भजन में अधिक समय देना है । संसार में कम समय देना है ।

▶ अभी सांसारिक दायित्व जिन पर हैं उन्हें संसार में अधिक समय देना है, भजन में कम समय देना है । धीरे धीरे बढाना है ।

▶ ऐसे ही सोशल मीडिया पर हमें एक सीमा में समय देना चाहिए । यदि हम अति करते हैं और दिनभर सोशल मीडिया पर लगे रहते हैं ।

▶ तो ऐसा लंबे समय तक नहीं चलता है । एक दिन ऐसा आता है कि हम एकदम छोड़ देते हैं । यहां भी संतुलन बैठाने की जरूरत है ।

▶ सारी परिस्थितियों को देखते हुए सोशल मीडिया पर यदि हम संतुलन से समय देंगे तो हमें ना तो इसमें डूबने की जरूरत पड़ेगी और ना इस से भागने की जरुरत पड़ेगी यहां संतुलन बहुत आवश्यक है ।

▶ और यदि कुछ अन्य व्यस्तताएं हैं तो सोशल मीडिया को एक-दो दिन के लिए इग्नोर भी किया जा सकता है और कम समय देकर इसका आनंद भी लिया जा सकता है ।

▶ अतिवादिता कहीं भी अच्छी नहीं । गीता में भी कहा गया है कि

▶ ना अधिक खाने वाला और
ना अधिक भूखा रहने वाला
ना आलसी और
न अधिक परिश्रमी  ।

▶ अपितु जो संयत है वही लक्ष्य या भगवद्भक्ति को प्राप्त कर सकता है ।

▶ अतिवादी कभी भी किसी भी उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकता है । यदि कदाचित वह कर भी लेता है तो उसकी जो उसको कीमत चुकानी पड़ती है आंख खुलने पर बड़ा पछताता है ।

▶ इसलिए हम चेक करें जहां भी हम अतिवादी हैं उसको कम करें और संसार से, भजन से, सोशल मीडिया से, मित्रों से लंबी लंबी बात करने से अथवा जो भी हो हम अपने बारे में स्वयं जानते हैं । उसमे सन्तुलन लाएं ।

▶ केवल दूसरा व्यक्ति या दासाभास आप को इंगित कर सकता है । आप स्वयं अपने आप को चेक करें और जहां भी

▶ अतिवादिता है या अभाव है
उसको दूर करें ।
संतुलित रहें । मस्त रहें

▶ समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
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 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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