🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
💐💐ब्रज की उपासना💐💐
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌷 निताई गौर हरिबोल🌷
क्रम संख्या 3
✔पाना क्या और कैसे✔
🙏🏻 नित्य कृष्णदास🙏🏻
👏 अब जब उस परमब्रह्म का अंश है- यह जीव; तो सामान्य नियमानुसार अंशी (भगवान्) की सेवा ही अंश (जीव) का परम कर्तव्य है ।
🌹'जीवेर स्वरुप हय नित्य कृष्णदास' अर्थात प्रत्येक जीव श्री कृष्ण का दास है।🌹
🙏🏻जीव का स्वभाविक कर्तव्य या स्वरूप निश्चित हो गया कि येन केन प्रकारेण उसे अपने अंशी श्रीकृष्ण की सेवा ही करनी है।
🌳 साध्य 🌳
👳दुनिया के किसी भी व्यक्ति से पूछा जाए कि वह क्या चाहता है? मान लो कोई कहे- पैसा या यश, या संतान या कुछ और।
और उससे पूछा जाए कि यह मिल गया तो क्या होगा? वह बता पाये या न बता पाये- सत्य यह है कि उसे आनन्द होगा।
😀येन- केन प्रकारेण हर कोई आनंद की खोज में लगा है। उसे आनंद मिलता भी है
😒लेकिन उस लौकिक आनन्द के साथ-साथ एक चीज और मिलती है- वह- है- दुख
😀और एक और चीज मिलती है वह है प्राप्त् हुए आनन्द से और अधिक एक आनन्द का परिचय।
🌺साइकिल से स्कूटर 🌺
🚲जैसे एक पैदल व्यक्ति यह सोचता है कि मुझे एक साइकिल मिल जाए तो आनंद आ जाए।
👬 वह पैदल चलने के आनंद को एन्जॉय न करके साइकिल की प्राप्ति में अपना आनंद स्थापित कर लेता है।
😒और एक दिन जब साइकिल मिल जाती है तो उसकी मरम्मत व रखरखाव का एक काम (दुख) उसे मिलता है।
😰 साथ ही उसे यह परिचय भी मिलता है कि इसमें तो परिश्रम भी लगता है।
🚗यदि एक मोपेड या स्कूटर मिल जाए तो बस फिर से पूर्ण आनंद आ जाए।
इस प्रकार वह वर्तमान के आनंद को एंजॉय न कर किसी अगली वस्तु में आनंद को स्थापित करके दुखी होता है और आनंद उसके हाथ पड़ता ही नहीं है।
पड़े भी कैसे? क्योंकि इन भौतिक चीजों में आनंद है ही नहीं। दुख स्वरूप इन दुखों में भटकता हुआ व्यक्ति जब जागता है या उसे समझ आती है तो वह- यह मानता है कि इस मानव जीवन में दुख ही दुख है।
👥 बहुत ही अच्छा हो यदि अगली बार अब और जन्म ही न मिले तो जान छूट जाए। न मनुष्य शरीर। न दुख। इस प्रकार से वास्तविक सुख या आनंद का परिचय न मिल पाने के कारण वह दुख से दुखी होकर 'दुखनिवृत्ती' यानी 'मुक्ति' हेतु प्रयास करने लग जाता है।
लेकिन मुक्ति जीव का लक्ष्य नही है । लक्ष्य है भक्ति अर्थात श्री कृष्ण सेवा ।
क्रमशः.........
💐जय श्री राधे
💐जय निताई
लेखकः
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन
प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠
💐💐ब्रज की उपासना💐💐
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌷 निताई गौर हरिबोल🌷
क्रम संख्या 3
✔पाना क्या और कैसे✔
🙏🏻 नित्य कृष्णदास🙏🏻
👏 अब जब उस परमब्रह्म का अंश है- यह जीव; तो सामान्य नियमानुसार अंशी (भगवान्) की सेवा ही अंश (जीव) का परम कर्तव्य है ।
🌹'जीवेर स्वरुप हय नित्य कृष्णदास' अर्थात प्रत्येक जीव श्री कृष्ण का दास है।🌹
🙏🏻जीव का स्वभाविक कर्तव्य या स्वरूप निश्चित हो गया कि येन केन प्रकारेण उसे अपने अंशी श्रीकृष्ण की सेवा ही करनी है।
🌳 साध्य 🌳
👳दुनिया के किसी भी व्यक्ति से पूछा जाए कि वह क्या चाहता है? मान लो कोई कहे- पैसा या यश, या संतान या कुछ और।
और उससे पूछा जाए कि यह मिल गया तो क्या होगा? वह बता पाये या न बता पाये- सत्य यह है कि उसे आनन्द होगा।
😀येन- केन प्रकारेण हर कोई आनंद की खोज में लगा है। उसे आनंद मिलता भी है
😒लेकिन उस लौकिक आनन्द के साथ-साथ एक चीज और मिलती है- वह- है- दुख
😀और एक और चीज मिलती है वह है प्राप्त् हुए आनन्द से और अधिक एक आनन्द का परिचय।
🌺साइकिल से स्कूटर 🌺
🚲जैसे एक पैदल व्यक्ति यह सोचता है कि मुझे एक साइकिल मिल जाए तो आनंद आ जाए।
👬 वह पैदल चलने के आनंद को एन्जॉय न करके साइकिल की प्राप्ति में अपना आनंद स्थापित कर लेता है।
😒और एक दिन जब साइकिल मिल जाती है तो उसकी मरम्मत व रखरखाव का एक काम (दुख) उसे मिलता है।
😰 साथ ही उसे यह परिचय भी मिलता है कि इसमें तो परिश्रम भी लगता है।
🚗यदि एक मोपेड या स्कूटर मिल जाए तो बस फिर से पूर्ण आनंद आ जाए।
इस प्रकार वह वर्तमान के आनंद को एंजॉय न कर किसी अगली वस्तु में आनंद को स्थापित करके दुखी होता है और आनंद उसके हाथ पड़ता ही नहीं है।
पड़े भी कैसे? क्योंकि इन भौतिक चीजों में आनंद है ही नहीं। दुख स्वरूप इन दुखों में भटकता हुआ व्यक्ति जब जागता है या उसे समझ आती है तो वह- यह मानता है कि इस मानव जीवन में दुख ही दुख है।
👥 बहुत ही अच्छा हो यदि अगली बार अब और जन्म ही न मिले तो जान छूट जाए। न मनुष्य शरीर। न दुख। इस प्रकार से वास्तविक सुख या आनंद का परिचय न मिल पाने के कारण वह दुख से दुखी होकर 'दुखनिवृत्ती' यानी 'मुक्ति' हेतु प्रयास करने लग जाता है।
लेकिन मुक्ति जीव का लक्ष्य नही है । लक्ष्य है भक्ति अर्थात श्री कृष्ण सेवा ।
क्रमशः.........
💐जय श्री राधे
💐जय निताई
लेखकः
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन
प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠
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