Saturday 28 April 2018

Bhajan Ka Din | भजन का दिन


⚜ भजन का दिन ⚜

🍓 मुझे तो
कभी - कभी
ऐसा लगता है कि
हर 15 दिन बाद
एकादशी का आना
उन लोगों के लिए है
जिन्हें प्रतिदिन की
 भागदौड़ में
भजन हेतु
पर्याप्त समय
नहीं मिलता ।

🍓 15 दिन में
एक पूरा दिन
भजन के लिए,
आज दुकान,
ऑफिस से छुट्टी
और विशेषकर
 भोजन से छुट्टी ।

🍓 आज यदि
दबाकर भजन
कर लिया जाये
तो आगामी
15 दिन तक
बैटरी चार्ज रहेगी ।

🍓 और सच
 मानिये
बहुत सारे
वैष्णव ऐसा कर रहे हैं,
मेरे टच में हैं ।
आप भी कुछ
प्रयास करिये

समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय  निताई ।। 🐚

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn

धन्यवाद!!
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Friday 27 April 2018

Dekh Kar Loutna


देख कर लौटना

✔️ देख कर लौटना ✔️

▶️ कुबेर पुत्र व
अप्सराएं गंगा में
जल केली कर रहे थे।
नारद की ध्वनि सुनकर
अप्सराओं ने तन ढक लिया।
जबकि अप्सरा व
वेश्याएं लज्जा हीन होती हैं ।

▶️ कुबेर पुत्र ऐसे के तैसे
 निर्वस्त्र खड़े रहे । नारद ने
दूर से देखा और लौट गये
 \एकबार, फिर चिंतन किया कि
ये एक तो देवता के पुत्र शिवजी
के भक्त, इनको यदि दण्ड नहीं दिया
गया तो उचित नहीं होगा।

▶️ पुनः आये, वृक्ष होने का श्राप दिया।
 गिड़गिड़ाने पर नंद भवन और श्री कृष्ण
दर्शन का वरदान दिया और चले गए ।

▶️ यदि ' अपना कोई ' गलत रास्ते
 पर हैं उसे सही रास्ते पर लाना
लेकिन इतनी योग्यता होना भी मांगता।

समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम



🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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Monday 16 April 2018

Bandhan Bhi Sukhkari


✔  *बन्धन भी सुखकारी*    ✔

▶ सामान्यतः बन्धन दुःख व कष्टकारक ही होता है। इसलिए कृष्ण बन्धना नहीं चाहते थे किन्तु जब उन्होंने मैया का परिश्रम व विकलता देखी तो अपना दुःख भूल कर तत्क्षण बंध गये।

▶ बंध गये तो मैया के अपने रसोईघर आदि के काम में जाने पर सखाओं द्वारा उस बंधन को खोलने का प्रयास भी किया। किन्तु प्रेम बंधन था न ! खुला नहीं ।
कृष्ण ने सोचा बंधन में ही आनंद लो ।
ऊखल को इधर उधर खेचना लुड़काना भी उनका खेल बन गया । उनके प्रिय सखा भी वहाँ थे ही।

▶ यही दो दुःख के कारण थे कि वे बंधना नहीं चाह रहे थे
1 - सखाओं के साथ खेल, जो कि बंधन में भी चल रहा है ।
2 - माखन चोरी, उसका भी रास्ता निकाल लिया ।
सखाओं से कहा कि
रोज मैं चोरी करता था, तुम खाते थे। आज तुम चोरी करके लाओ- मैं खाऊँगा। ऐसा ही हुआ ।
फिर तो कृष्ण भी निश्चिंत हो गये।
बंधन से खुलने की छट-पटाहट भी समाप्त हो गई ।
वैसे भी प्रेम बंधन था न, उसमें तो आनंद ही आनंद था ।

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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Monday 2 April 2018

श्री गुरुदेव हैं श्री कृष्ण के दास



✔  *श्री गुरुदेव हैं श्री कृष्ण के दास*    ✔

▶ ऐसे शास्त्र वाक्य, जिनमें गुरु को साक्षात भगवत्स्वरूप कहा गया है,  समष्टि-गुरु से संबंधित है, व्यष्टि-गुरु से नहीं ।
व्यष्टि गुरु तो स्वरूपतः कृष्ण दास होते हैं। उन्हें स्वयं भगवान या विषय विग्रह मानना भक्ति-शास्त्र और श्रीमन्महाप्रभु द्वारा अनुमोदित भक्ति पथ के विरुद्ध है ।
 ▶ उन्हें भगवान से अभिन्न इसलिए  कहते हैं कि वे भगवान के प्रिय होते हैं और उनमें भगवान की शक्ति का प्रकाश होता है-  शिष्य को शिक्षा-दीक्षादि देने के समय भगवान उनमें अपनी शक्ति संचारित करते हैं ।

▶ गुरु और भगवान स्वरूपतः एक नहीं हैं, यह स्वयं भगवान श्री कृष्ण की अपनी उक्ति से सिद्ध है । उन्होंने कहा है-  "पहले गुरुदेव की पूजा करके फिर मेरी पूजा करनी चाहिए ।
जो इस प्रकार करते हैं वे ही सिद्धि लाभ करते हैं ।"
यदि गुरुदेव भगवान से भिन्न न होते तो आगे-पीछे गुरु और भगवान की पूजा करने का कोई अर्थ न होता।

समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज
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