[21:42, 12/10/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
खुले बाल
मनु स्मृति में लिखा है कि
जिस घर में स्त्रियां बाल खुले रखती हैं । उस घर के स्वामी पर सदा ही संकट बने रहते है
यहाँ तक की पति या पिता की मृत्यु । वैधव्य का कारण भी होते हैं खुले बाल । दुःख । बिमारी । संकट तो सदा रहता ही है ।
अतः सावधान
समस्त वैष्णवजन को सादर प्रणाम जय श्री राधे । जय निताई
[21:42, 12/10/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
🙌🙌जय जय श्री राधे 🙌🙌
🌹जब तक नेत्र प्राकृतिक वस्तुओं को देखकर रस ले रहे हैं तब तक भगवद-दर्शन कैसे संभव है? दर्शन के लिये तो नेत्रों को भी पवित्र करने की आवश्यकता है।
🌹पवित्र नेत्र वह हैं जो अपवित्र वस्तुओं को न देखें। और यदि एकमात्र श्रीभगवद-दर्शन की ही ललक हो तो श्रीहरि के विरह में इन नेत्रों से अश्रु बहाते हुए नेत्रों को और अपने-आपको पवित्र करें। दृष्टि-संयम से भी मन को लगाम लगानी चाहिये। जो देखने योग्य है, केवल उसे ही देखा जाये !
🙌🙌जय जय श्री राधे !🙌🙌
[21:42, 12/10/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
💐श्री राधारमणो विजयते 💐
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
क्रम संख्या 1⃣9⃣
🌿 ताकते रहते 🌿
🌸सतोगुण
🍄रजोगुण
🌵तमोगुण
तीनों सदैव ही सभी में रहते हैं । हां ! इन की मात्रा कम अधिक होती रहती है ।साथ ही इन तीनो में भारी कंपटीशन भी रहता है।
👀जिस गुण की मात्रा कम हो जाती है वह ताक में रहता है और मौका मिलते ही हावी होने की कोशिश करता है वह सफल भी हो जाता है
💧सतोगुण को मौका दो, लेकिन रजोगुण और तमोगुण को सिर उठाते ही कुचल दो ।
तुम भी ताक में रहो!!!!!!!!
🌿भगवान तीनो के साथ🌿
🌳जब रजोगुण या तमोगुण की वृद्धि सृष्टि में अपेक्षित होती है तो भगवान -तमोगुण की वृद्धि को होने देते हैं।
🌷जब सतोगुण -की वृद्धि की आवश्यकता होती है उसे भी होने देते हैं ।
लेकिन प्राय: देखने में आता है कि भगवान देवताओं के साथ है।
सात्विक लोगों के साथ है,
सत्वगुण प्रकाशमय या ट्रांसपेरेंट होता है। अतः भगवान की उपस्थिति दिखती है।
🎍 तमो-गुण एवम् रजो-गुण आवरणात्मक होते हैं। अतः भगवान की उपस्थिति दिखती नहीं ।
ठीक वैसे, जैसे- शीशे के बर्तन में अंदर जो है वह दिखता है स्टील या मिट्टी के बर्तन में नहीं दिखता।
🙌भगवान पक्षपाती तो नहीं हैं, लेकिन निष्ठुर भी नहीं है। राजा हिरण्यकश्यप ने जब वत मांग कर देवताओं को अपने अधीन कर लिया तो प्रभु शांत रहे उस समय भी हिरण्यकश्यप को असहयोग कर सकते थे, लेकिन जब अपने भक्त प्रल्हाद पर आई तो खंबे से प्रगट भी हो गए।
🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻
लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
📕श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन ।
🌞प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[21:42, 12/10/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
DON'T CHEAT YOURSELF:
वद्धावस्था में भक्ति करेंगे, गृहस्थी की जिम्मेदारियों से मुक्त होने पर भक्ति करेंगे ।
वृन्दावन में कुटिया बनाकर भक्ति करेंगे, किसी एकान्त स्थान में भक्ति करेंगे, कुछ वर्ष बाद केवल भक्ति ही करेंगे ।
यह सभी बातें हम अपने आप से कपट करने के लिये कहते हैं, सत्य तो यह है कि भोगों में मन रमता है, कुछ और भोग लें, फ़िर मिले न मिले, भक्ति तो कभी भी हो सकती है ।
भक्ति कभी भी हो सकती है ऐसा नहीं है, भक्ति केवल अभी ही हो सकती है जब हम स्वस्थ हैं, यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिये ।
श्वासों का पता नहीं, क्षणभंगुर देह का पता नहीं, तो किस आधार पर हम अपने आप को धोखा देते हैं । हम भोगों को नहीं भोग रहे, भोग ही हमें भोगते हैं ।
⚠संकलित श्री गिरिराज प्रभु द्वारा रचित
[11:42, 12/11/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
चार मिले , चौसठ खिले ,
बीस रहे कर जोड
हरिजन से हरिजन मिले ,
तो बिंहसे सात करोड .
जब दो वैष्णव मिलते है तब सर्व प्रथम उनकी चार आंखे मिलती है तो दोनो के मुखमें से उनके ३२×२=६४ दांत खिल उठते है मतलब मलकते है तो आपो आप हाथ जोडने से १०×२=२० उंगली जोडी जाती है । और जब हरि के जन आपस में मिलने से एक के साडे तीन करोड रोम रोम मिलके दोनो के सात करोड रोम रोम(रुंवाटी) में खुशी व्याप्त हो जाती है ।।
खुले बाल
मनु स्मृति में लिखा है कि
जिस घर में स्त्रियां बाल खुले रखती हैं । उस घर के स्वामी पर सदा ही संकट बने रहते है
यहाँ तक की पति या पिता की मृत्यु । वैधव्य का कारण भी होते हैं खुले बाल । दुःख । बिमारी । संकट तो सदा रहता ही है ।
अतः सावधान
समस्त वैष्णवजन को सादर प्रणाम जय श्री राधे । जय निताई
[21:42, 12/10/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
🙌🙌जय जय श्री राधे 🙌🙌
🌹जब तक नेत्र प्राकृतिक वस्तुओं को देखकर रस ले रहे हैं तब तक भगवद-दर्शन कैसे संभव है? दर्शन के लिये तो नेत्रों को भी पवित्र करने की आवश्यकता है।
🌹पवित्र नेत्र वह हैं जो अपवित्र वस्तुओं को न देखें। और यदि एकमात्र श्रीभगवद-दर्शन की ही ललक हो तो श्रीहरि के विरह में इन नेत्रों से अश्रु बहाते हुए नेत्रों को और अपने-आपको पवित्र करें। दृष्टि-संयम से भी मन को लगाम लगानी चाहिये। जो देखने योग्य है, केवल उसे ही देखा जाये !
🙌🙌जय जय श्री राधे !🙌🙌
[21:42, 12/10/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
💐श्री राधारमणो विजयते 💐
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
क्रम संख्या 1⃣9⃣
🌿 ताकते रहते 🌿
🌸सतोगुण
🍄रजोगुण
🌵तमोगुण
तीनों सदैव ही सभी में रहते हैं । हां ! इन की मात्रा कम अधिक होती रहती है ।साथ ही इन तीनो में भारी कंपटीशन भी रहता है।
👀जिस गुण की मात्रा कम हो जाती है वह ताक में रहता है और मौका मिलते ही हावी होने की कोशिश करता है वह सफल भी हो जाता है
💧सतोगुण को मौका दो, लेकिन रजोगुण और तमोगुण को सिर उठाते ही कुचल दो ।
तुम भी ताक में रहो!!!!!!!!
🌿भगवान तीनो के साथ🌿
🌳जब रजोगुण या तमोगुण की वृद्धि सृष्टि में अपेक्षित होती है तो भगवान -तमोगुण की वृद्धि को होने देते हैं।
🌷जब सतोगुण -की वृद्धि की आवश्यकता होती है उसे भी होने देते हैं ।
लेकिन प्राय: देखने में आता है कि भगवान देवताओं के साथ है।
सात्विक लोगों के साथ है,
सत्वगुण प्रकाशमय या ट्रांसपेरेंट होता है। अतः भगवान की उपस्थिति दिखती है।
🎍 तमो-गुण एवम् रजो-गुण आवरणात्मक होते हैं। अतः भगवान की उपस्थिति दिखती नहीं ।
ठीक वैसे, जैसे- शीशे के बर्तन में अंदर जो है वह दिखता है स्टील या मिट्टी के बर्तन में नहीं दिखता।
🙌भगवान पक्षपाती तो नहीं हैं, लेकिन निष्ठुर भी नहीं है। राजा हिरण्यकश्यप ने जब वत मांग कर देवताओं को अपने अधीन कर लिया तो प्रभु शांत रहे उस समय भी हिरण्यकश्यप को असहयोग कर सकते थे, लेकिन जब अपने भक्त प्रल्हाद पर आई तो खंबे से प्रगट भी हो गए।
🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻
लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
📕श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन ।
🌞प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[21:42, 12/10/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
DON'T CHEAT YOURSELF:
वद्धावस्था में भक्ति करेंगे, गृहस्थी की जिम्मेदारियों से मुक्त होने पर भक्ति करेंगे ।
वृन्दावन में कुटिया बनाकर भक्ति करेंगे, किसी एकान्त स्थान में भक्ति करेंगे, कुछ वर्ष बाद केवल भक्ति ही करेंगे ।
यह सभी बातें हम अपने आप से कपट करने के लिये कहते हैं, सत्य तो यह है कि भोगों में मन रमता है, कुछ और भोग लें, फ़िर मिले न मिले, भक्ति तो कभी भी हो सकती है ।
भक्ति कभी भी हो सकती है ऐसा नहीं है, भक्ति केवल अभी ही हो सकती है जब हम स्वस्थ हैं, यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिये ।
श्वासों का पता नहीं, क्षणभंगुर देह का पता नहीं, तो किस आधार पर हम अपने आप को धोखा देते हैं । हम भोगों को नहीं भोग रहे, भोग ही हमें भोगते हैं ।
⚠संकलित श्री गिरिराज प्रभु द्वारा रचित
[11:42, 12/11/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
चार मिले , चौसठ खिले ,
बीस रहे कर जोड
हरिजन से हरिजन मिले ,
तो बिंहसे सात करोड .
जब दो वैष्णव मिलते है तब सर्व प्रथम उनकी चार आंखे मिलती है तो दोनो के मुखमें से उनके ३२×२=६४ दांत खिल उठते है मतलब मलकते है तो आपो आप हाथ जोडने से १०×२=२० उंगली जोडी जाती है । और जब हरि के जन आपस में मिलने से एक के साडे तीन करोड रोम रोम मिलके दोनो के सात करोड रोम रोम(रुंवाटी) में खुशी व्याप्त हो जाती है ।।
nice
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