Thursday 14 June 2018

Kaliya Naag ka swbhav | कलिया नाग का स्वभाव


🎲 कलिया नाग का स्वभाव 🎲

🎲 कालिया नाग ने
प्रभु की स्तुति की
और कहा -
प्रभु ये मेरा स्वभाव है,
आपने ही बनाया है
और स्वभाव छूटता
नहीं है ।

🎲 भगवान ने कहा कि
ठीक है, कोई और कहे
जो स्वभावानुकूल
आचरण में लगा हो।
तुम अनेक समय
से धाम में हो !
यमुना के जल में हो !
आज मेरे चरणों का
स्पर्श भी तुम्हे
प्राप्त हो गया ।
फिर भी तुम
अपने स्वभाव का रोना
रो रहे हो तो तुम्हे
धाम में रहने का
अधिकार नहीं ।

🎲 एक साधक भी
यदि इतना सब पाकर
अपना स्वभाव नहीं
बदलता अपितु,
उसकी आड़ लेता है
तो उसे भी धामवास का
अधिकार नहीं ।
भागो यहाँ से !

🙏 समस्त वैष्णव वृंन्द को मेरा सादर प्रणाम

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय  निताई ।। 🐚

🖋 लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज
LBW - Lives Born Works at Vrindabn
समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

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Tuesday 12 June 2018

Bhakti Course - Class ke lakshan | भक्ति कोर्स - क्लास के लक्षण

Bhakti Course - Class ke lakshan | भक्ति कोर्स - क्लास के लक्षण
Bhakti Course - Class ke lakshan | भक्ति कोर्स - क्लास के लक्षण 

🔰 भक्ति कोर्स 🔰
  क्लास के लक्षण

🔰 कक्षा 1⃣ : श्रद्धा
अर्थात मन-बुद्धि हृदय से स्वीकृति

🔰 कक्षा 2⃣ : वैष्णव संग
भजन करने वालों के साथ उठना।बैठना
और भजन। भगवान की बातें । घर
गृहस्थी की नहीं ।

🔰 कक्षा 3⃣ : भजन क्रिया
अर्थात 24 में से कम से कम 6 घंटे या
अधिक एकांत भजन में समय लगाना।

🔰 कक्षा 4⃣ : अनर्थ नाश
घर। परिवार के क्लेश या तो होंगे नहीं ।
होंगे तो हमारे चित्त पर प्रभाव नहीं
होगा उनका ।

🔰 कक्षा 5⃣ : निष्ठा
अर्थात दृढ़ विश्वास । पत्थर छाप।
अविचलित होकर भजन करना । संशय
की एक बूँद नहीं ।

🔰 कक्षा 6⃣ : रुचि
अर्थात घूम फिर कर बार बार भजन।
भक्ति । एडिक्शन ।

🔰 कक्षा 7⃣ : आसक्ति
भीषण एडिक्शन। जी न पाना। खा न
पाना। रह न पाना। भजन। भगवत्
चर्चा के बिना ।

🔰 कक्षा 8⃣ : प्रेम
श्रीकृष्ण के हृदय में विराजने योग्य
विशुद्ध सत्व की प्राप्ति और श्रीकृष्ण का
हृदय में होने का आभास सर्वथा
आभास । दर्शन । अनुभूति ।

🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को मेरा सादर प्रणाम


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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Monday 11 June 2018

Mukhya Baat | मुख्य बात

Mukhya Baat | मुख्य बात


🏅 मुख्य बात 🏅

🎖श्री  रघुनाथ दास गोस्वामी को
उपदेश देते समय कहा था -

🥇अच्छे वस्त्र नहीं पहनना ,
🥈अच्छा भोजन नहीं करना
🥉सांसारिक बातें न करना
न सुनना।  सांसारिक=विशेषकर स्त्री प्रसंग

🎖इतना तो सब को पता है , लेकिन
जो मुख्य बात है , वह है -
'कृष्ण नाम सदा लबे' 

🎖अर्थात सदा , सदैव कृष्ण नाम लेना
कृष्ण नाम होता रहे - ये बात मुख्य है
नाम होता रहे , उसके लिए ये चार बातें हैं
टारगेट नाम है , न की ये चार बातें
समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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Friday 8 June 2018

Kaaran Ya Bhav | कारण या भाव

कारण या भाव

🌀 कारण या भाव 🌀

🌀 किसी भी कार्य के करने में हमारा भाव
ही महत्वपूर्ण है फल का निर्धारण भी
भाव के अनुसार होता है ।
हम भजन को ही ले भजन करते हुए
हम पहचान चाहते हैं तो पहचान
मिलेगी, भगवान नहीं ।
अनेक बार बाहर से एक सी क्रिया
होने पर भी फल भाव के अनुसार
अलग दीखता है ।

🌀 मन्दिर का एक पेड पुजारी
तनखाह के लिए काम करता है ।
उसका सुंदर श्रृंगार करना
उसकी एक्सपर्टता है, भाव नहीं ।
इसलिए वह हजार रुपये अधिक मिलने
पर दूसरे मन्दिर में चला जाता है ।
अतः हमें भी सदा अपने को टटोलते
रहना चाहिए । हम जो कर रहे हैं
वह मूल उद्देश्य के लिए है
जो दिख रहा है या दिल में कोई
छिपा उद्देश्य भी है ।
छिपा उद्देश्य यदि है
तो यह कपट है ।
और कपट चाहे लोक में हो
या भजन में हो कभी भी
सफलता नहीं मिलेगी ।

🌀 अतः शुद्ध मन से कपट
रहित होकर भजन में लगना चाहिए ।
भजन में लगने का कारण
भजन अर्थात श्रीकृष्ण-सुख ही
होना चाहिए । यहाँ तक कि अपने
दुखों की मुक्ति-मोक्ष
को भी कपट ही कहा गया है ।

🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को मेरा सादर प्रणाम

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
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🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज
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Sunday 3 June 2018

Paise wali । पैसे वाली

Paise wali । पैसे वाली


🌲 पैसे वाली 🌲

🌲संसार में सदा अपने समान
या अपने से कम स्तर वाले
लोगों के सम्पर्क में रहो।
बड़े लोगों के सम्पर्क में
आने से आत्म सम्मान
को ठेस लगेगी ।
एक काम होगा कि,
उनके पास जो सुख सुविधा है,
उन्हें प्राप्त करने की
वासना उदित होगी।

🌲मन में कहीं न कहीं
ये भाव घर करेगा कि
'पैसे वाली होगी तो अपने लिए'।
और यदि किसी कारण से
सम्पर्क में आना ही पड़े तो
ईमानदारी से हृदय में
पूरे पक्की तरह
ये भावना बनाकर रखो कि-
ये हमसे अधिक धनवान है,
श्रेष्ठ है, न हम हैं,
न हमें इनकी बराबरी करनी है ।
इनके साथ सदा जूनियर
बनकर ही रहना है ।
ये थोड़ा कठिन भी है ।
ये लौकिक पक्ष है ।

🌲भजन के पक्ष में सदा
अपने से श्रेष्ठतर
वैष्णव का संग करना चाहिए ।
उसके अधिक भजन व भाव को
देखकर हमें भी वैसा भजन या
भाव प्राप्त करने की इच्छा होगी

🌲एक ही भाव :  लोक में हानिकर । भजन में लाभकारी ।

🙏 समस्त वैष्णव वृंद को मेरा सादर प्रणाम

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
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दासाभास डॉ गिरिराज
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Sunday 27 May 2018

Fislan । फिसलन



☑️ फिसलन ☑️

☑️ अड़चानानंद जी ने
लिखा
न मैं कोई आचार्य हूँ,
न गोस्वामी,
न ब्राह्मण, न सन्त,
मैं तो आप सब
जैसा ही एक
साधक हूँ ।
आप फिर भी
सुरक्षित हो

☑️ लोग मुझे
श्रेष्ठ समझने लगे हैं ।
मेरे इर्द गिर्द
बहुत फिसलन है ।
पता नहीं कब
इसमें मैं
फिसल जाऊँ
और स्वयं
अपने हाथ से
निकल जाऊँ ।

☑️ अतः आपकी
सबसे बड़ी सेवा
यही है कि मुझको
संभाले रहें ।
मुझे फिसलने से
बचाते रहें ।
मैं फिसलूँ ही नहीं
यदि एक बार
फिसल गया तो फिर
संभल नहीं पाऊँगा।

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दासाभास डॉ गिरिराज
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Wednesday 23 May 2018

Initiation - A Divine Knowledge । दीक्षा - एक दिव्य ज्ञान


🌎  दीक्षा  -  दिव्य ज्ञान  🌎

🌎 जगत में जिस प्रकार उपनयन ( जनेऊ) के बिना ब्राह्मण को
अपने कर्म, यज्ञ, अध्ययन आदि कर्मों का अधिकार नहीं रहता,
उपनयन के बाद अधिकार होता है, इसी प्रकार अदीक्षित मनुष्यों
का भी भगवत् मंत्र अर्चनादि में अधिकार नहीं है । इसलिए अपने को दीक्षित करना चाहिए ।।

🌎 जो व्यक्ति विष्णु दीक्षा को
प्राप्त नहीं होते, अथवा जो जनार्दन की पूजा नहीं करते, जगत में
उन्हीं को 'पशु' कहा जाता है । उनके जीवन धारण का क्या फल
है ?

🌎 जो दिव्य ज्ञान प्रदान करती है और पापसमूह को नाश करती
है, तत्व - कोविद गुरुजनों ने उसका नाम "दीक्षा" कहा गया ।।

🌎 जिस प्रकार रस ( पारे) के विधान द्वारा कांसा भी सोना बन जाता
है, अर्थात यथा विधि पारे के संयोग से काँसा भी सुवर्ण बन जाता
है। इसी प्रकार दीक्षा- विधि से मनुष्यों में भी द्विजत्व उत्पन्न हो
आता है । दीक्षित व्यक्ति का शरीर भजन के उपयोगी अप्राप्त शरीर
को प्राप्त करता है ।

🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को मेरा सादर प्रणाम

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दासाभास डॉ गिरिराज
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Sunday 6 May 2018

Guru Sharanaagati | गुरु - शरणागति



🍁  गुरु - शरणागति  🍁

🍁 भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जब उनके भक्तजनों का संग
प्राप्त होता है और उनके मुख से भक्ति की महिमा सुनी जाती है,
तो उस भक्ति को प्राप्त करने की अभिलाषा जाग उठती है । उसकी
पूर्ति के लिए मनुष्य को सद्गुरु की शरण ग्रहण करनी चाहिए;
क्योंकि श्री गुरुचरण का आश्रय लेने वाला व्यक्ति ही श्रीभगवान
तथा उनकी भक्ति के तत्व को जान सकता है ।।

🍁 मनुष्य इस लोक में अनेक दुखों का नित्य अनुभव करता है
और शास्त्रों में सुना जाता है कि परलोक स्वर्ग नरकादि लोकों में भी
असहाय यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं। इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को इन
समस्त दुःखों से छुटकारा पाने की इच्छा करनी ही चाहिए ।।

🍁 श्रीदत्तात्रेय जी ने कहा है  ( श्री भा0 11। 9 । 29 ) - बुद्धिमान व्यक्ति
को अनेक जन्मों के बाद अति दुर्लभ मनुष्यतन की प्राप्ति होती है ।
मनुष्य तन ही एक मात्र परमार्थ या भगवत् प्राप्ति का कराने
वाला है । किन्तु यह मनुष्य तन भी नाशवान है । इसलिए जब तक
इस तन की मृत्यु नहीं होती तब तक यत्नपूर्वक संसार के बन्धन
से मुक्त होने का शीघ्र उपाय करना चाहिए । अनेक प्रकार के विषय
भोग तो पशु आदि समस्त योनियो में भी प्राप्त होते हैं ।।

🍁 स्वयं भगवान ने भी कहा है, (श्री भा0 11 । 20 । 17) समस्त
मंगलों का मूल मनुष्य तन अति दुर्लभ है, मेरी कृपा से सहज में
नौका के रूप में यह प्राप्त होता है, गुरु रूप कर्णधार ( केवट )
विद्यमान है, फिर मेरा स्मरणरूप अनुकूल वायु इस नौका को
प्राप्त है, फिर भी जो मनुष्य इन सब साधनो को पाकर संसार
समुद्र से पार नहीं होता, वह आत्मघाती है, अपनी हिंसा करने
वाला है ।।

( श्रीहरिभक्तिविलास ग्रंथ में वर्णित )

🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को मेरा सादर प्रणाम

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
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🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
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Thursday 3 May 2018

Do Aankhe । दो आंखे


☀️  दो आँखें  🌝

🌝 एक वैष्णव हेतु आचार एवं प्रचार
अपनी दो आँखों के समान है ।
किसे बंद करे, किसे खोले ?

☀️ यदि अन्तर्मुखी होकर
भजन करेगा तो
'जीवे दया' कैसे होगी ?
अन्य जीव- जगत का उद्धार
कैसे होगा, करना ही है ।
सन्त का स्वभाव है

🌝 और यदि प्रचार में ही
लग जायेगा तो भजन कब करेगा ।
भजन का आचरण छूट जायेगा ।

☀️ लेकिन शास्त्र सन्त कहते हैं कि
दोनों में संतुलन रखना होगा
यदि प्राथमिक साधक हो तो
आचरण अधिक, प्रचार कम
और जैसे-जैसे अनुभव
मिलता जाए प्रचार भी करो ।

🌝 इतना प्रचार नहीं कि
आचरण-भजन छूट जाय,
एक आँख फूट जाय,

☀️ हमारे पूर्व के सन्तों ने
गोस्वामीपाद ने निष्ठा पूर्वक
भजन आचरण किया और
प्रचार हेतु अनन्त ग्रंथों की
रचना की है जिससे हम
भजन की शिक्षा ले रहे हैं ।

🌝 अतः आचरणशील प्रचारक बनना है,
आचरण हीन नहीं । यदि भजन छूटे
आचरण छूटे तो भले ही प्रचार कम
कर दें। लेकिन भजन बंद तो क्या
कम भी नहीं होना चाहिए ।

🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
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🖋 लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
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दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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Wednesday 2 May 2018

Yogya Guru Nahi Mil Rahe । योग्य गुरु नही मिल रहे


💫 योग्य गुरु नहीं मिल रहे ? 💫

🌈 परोपकारी, समाजसेवी, शरीर धर्मा कुछ जन तो ऐसे हैं,
जो बाह्य शरीर धर्म, पाप से मुक्ति और पुण्य प्राप्ति में
लगे हैं, वे तो यह मानते हैं कि हमें 'गुरु' धारण करने की
आवश्यकता ही नहीं, हम इस पचड़े में नही पड़ते।

🌈 दूसरे कुछ बेहतर जन ऐसे हैं,
जिन्हें इन शरीर धर्मों से ऊपर आत्मधर्म का परिचय
मिला है, उन्हें पता चल गया है कि अध्यात्म में अनेक
मत, पथ हैं, मुझे किसी एक पथ पर अनन्यता से
यदि चलना है तो अवश्य किसी सद्गुरु की
शरण लेनी ही होगी- यह आवश्यक है ।

🌈 ऐसे जन भी फिर यह सोचते हैं कि प्रायः धर्माचार्य,
कथावाचक, आश्रम, मठधारी, हमें तो मायात्याग का
उपदेश दे रहे हैं और स्वयं माया बटोरते हुए विलासी जीवन,
प्रतिष्ठा, रजोगुण में व्यस्त हैं- ये गुरु होने लायक नहीं ।

🌈 इन विचारों के मूल में मुख्य है- हमारी स्वयं की
योग्यता- अयोग्यता। ठीक वैसे, जैसे हम प्रवेश परीक्षाएं
देते हैं और हमारा नम्बर आता है हजारवां, तो हमें अच्छे
काॅलेज में प्रवेश नहीं मिलता, हल्के काॅलेज में भी लाखों
रुपये डोनेशन देकर मुश्किल से मिलता है

🌈 एवम् जिनका दसवां, बीसवॉं नम्बर आता है
उनके पास एक नहीं अनेक काॅलेज के आॅफर आ जाते हैं ।
बिना फीस लिए उनका प्रवेश हो जाता है,
डोनेशन की तो कोई बात ही नहीं ।

🌈 अतएव परिणाम यह निकलता है कि यदि हममें एक अच्छे
शिष्य के गुण हैं योग्यता है तो हमें एक अच्छे संत,
सद्गुरु सहज प्राप्त हो जाते हैं। अन्यथा तो हर एक
अयोग्य शिष्य भी भगवद्प्राप्त सिद्ध सद्गुरु चाहता है ।

🌈 लेकिन ऐसा गुरु मिलेगा कैसे और क्यों ?
सन्तों की, भगवद् प्राप्त वैष्णवों की आज भी कमी नहीं,
डिजर्व कीजिए फिर डिजायर कीजिए ।

🌈 आपकी योग्यता अनुसार आपको गुरुदेव प्राप्त होंगे ही।
बिना गुरु के जो भजन होगा, उसी से पहले
गुरु प्राप्त होंगे, फिर गोविंद ।

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Tuesday 1 May 2018

Dham Vaas। धाम वास


🌺 धाम वास 🌺

🌺 प्रायः देखने में आता है कि
अच्छे निष्ठावान साधको को भी
वृंदावन वास मुश्किल से मिलता है
अनेकानेक अड़चनें आती हैं ।
इससे धैर्य नहीं खोना चाहिए ।
ये धाम निष्ठा को और अधिक
परिपक्व करने के लिए होता है
जैसे- बी.ए, बी.काम सहज में
हो जाता है और इनकी कोई
बखत भी नहीं ।

🌺 सुलभता से प्राप्त होने पर साधक
बार बार घर भागता है ।
कभी गर्मी कभी सर्दी
या अन्य किसी कारण से ।
जिसे यदि बड़ी मुश्किल
से धाम वास मिलता है,
वह फिर सहज धाम
छोड़ता नहीं और धाम निष्ठा पूर्वक
धाम का आनंद लेता है ।

🌺 ठीक वैसे जैसे आई.ए. एस. करना
अत्यधिक कठिन होता है
लेकिन यदि एकबार हो गये तो फिर
जीवन भर की गयी।

🌺 ये जो अड़चने हैं-
ये आई. ए. एस. की प्रतीक हैं ।
अतः इन्हें परीक्षा मानिये
और प्रयास करते रहिये।
बेहद अड़चनो के बाद यदि एकबार
आप आ गए तो फिर वापिस जाने
का नाम नहीं लोगे
और ठाकुर भी यही चाहते हैं
आपसे इसलिए पक्का कर रहे हैं ।

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Saturday 28 April 2018

Bhajan Ka Din | भजन का दिन


⚜ भजन का दिन ⚜

🍓 मुझे तो
कभी - कभी
ऐसा लगता है कि
हर 15 दिन बाद
एकादशी का आना
उन लोगों के लिए है
जिन्हें प्रतिदिन की
 भागदौड़ में
भजन हेतु
पर्याप्त समय
नहीं मिलता ।

🍓 15 दिन में
एक पूरा दिन
भजन के लिए,
आज दुकान,
ऑफिस से छुट्टी
और विशेषकर
 भोजन से छुट्टी ।

🍓 आज यदि
दबाकर भजन
कर लिया जाये
तो आगामी
15 दिन तक
बैटरी चार्ज रहेगी ।

🍓 और सच
 मानिये
बहुत सारे
वैष्णव ऐसा कर रहे हैं,
मेरे टच में हैं ।
आप भी कुछ
प्रयास करिये

समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

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Friday 27 April 2018

Dekh Kar Loutna


देख कर लौटना

✔️ देख कर लौटना ✔️

▶️ कुबेर पुत्र व
अप्सराएं गंगा में
जल केली कर रहे थे।
नारद की ध्वनि सुनकर
अप्सराओं ने तन ढक लिया।
जबकि अप्सरा व
वेश्याएं लज्जा हीन होती हैं ।

▶️ कुबेर पुत्र ऐसे के तैसे
 निर्वस्त्र खड़े रहे । नारद ने
दूर से देखा और लौट गये
 \एकबार, फिर चिंतन किया कि
ये एक तो देवता के पुत्र शिवजी
के भक्त, इनको यदि दण्ड नहीं दिया
गया तो उचित नहीं होगा।

▶️ पुनः आये, वृक्ष होने का श्राप दिया।
 गिड़गिड़ाने पर नंद भवन और श्री कृष्ण
दर्शन का वरदान दिया और चले गए ।

▶️ यदि ' अपना कोई ' गलत रास्ते
 पर हैं उसे सही रास्ते पर लाना
लेकिन इतनी योग्यता होना भी मांगता।

समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम



🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


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Monday 16 April 2018

Bandhan Bhi Sukhkari


✔  *बन्धन भी सुखकारी*    ✔

▶ सामान्यतः बन्धन दुःख व कष्टकारक ही होता है। इसलिए कृष्ण बन्धना नहीं चाहते थे किन्तु जब उन्होंने मैया का परिश्रम व विकलता देखी तो अपना दुःख भूल कर तत्क्षण बंध गये।

▶ बंध गये तो मैया के अपने रसोईघर आदि के काम में जाने पर सखाओं द्वारा उस बंधन को खोलने का प्रयास भी किया। किन्तु प्रेम बंधन था न ! खुला नहीं ।
कृष्ण ने सोचा बंधन में ही आनंद लो ।
ऊखल को इधर उधर खेचना लुड़काना भी उनका खेल बन गया । उनके प्रिय सखा भी वहाँ थे ही।

▶ यही दो दुःख के कारण थे कि वे बंधना नहीं चाह रहे थे
1 - सखाओं के साथ खेल, जो कि बंधन में भी चल रहा है ।
2 - माखन चोरी, उसका भी रास्ता निकाल लिया ।
सखाओं से कहा कि
रोज मैं चोरी करता था, तुम खाते थे। आज तुम चोरी करके लाओ- मैं खाऊँगा। ऐसा ही हुआ ।
फिर तो कृष्ण भी निश्चिंत हो गये।
बंधन से खुलने की छट-पटाहट भी समाप्त हो गई ।
वैसे भी प्रेम बंधन था न, उसमें तो आनंद ही आनंद था ।

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

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Monday 2 April 2018

श्री गुरुदेव हैं श्री कृष्ण के दास



✔  *श्री गुरुदेव हैं श्री कृष्ण के दास*    ✔

▶ ऐसे शास्त्र वाक्य, जिनमें गुरु को साक्षात भगवत्स्वरूप कहा गया है,  समष्टि-गुरु से संबंधित है, व्यष्टि-गुरु से नहीं ।
व्यष्टि गुरु तो स्वरूपतः कृष्ण दास होते हैं। उन्हें स्वयं भगवान या विषय विग्रह मानना भक्ति-शास्त्र और श्रीमन्महाप्रभु द्वारा अनुमोदित भक्ति पथ के विरुद्ध है ।
 ▶ उन्हें भगवान से अभिन्न इसलिए  कहते हैं कि वे भगवान के प्रिय होते हैं और उनमें भगवान की शक्ति का प्रकाश होता है-  शिष्य को शिक्षा-दीक्षादि देने के समय भगवान उनमें अपनी शक्ति संचारित करते हैं ।

▶ गुरु और भगवान स्वरूपतः एक नहीं हैं, यह स्वयं भगवान श्री कृष्ण की अपनी उक्ति से सिद्ध है । उन्होंने कहा है-  "पहले गुरुदेव की पूजा करके फिर मेरी पूजा करनी चाहिए ।
जो इस प्रकार करते हैं वे ही सिद्धि लाभ करते हैं ।"
यदि गुरुदेव भगवान से भिन्न न होते तो आगे-पीछे गुरु और भगवान की पूजा करने का कोई अर्थ न होता।

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