Friday 22 September 2017

Suksham Sutra Part 52


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     सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर

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🔮 भाग 5⃣2⃣

💡 जो भारतीय संस्कृति तक से नितांत अनभिज्ञ हैं वह हिन्दू धर्म के बारे में क्या जानें? बड़े बड़े ऋषि मुनि, चिन्तक विद्वान आज तक इसकी थाह नहीं पा सके तो ये सौ दो सौ स्त्री लम्पट फिल्म निर्माता किस खेत की मूली हैं? 'अवहेलना' ऐसे लोगों का सबसे बड़ा दण्ड है.

💡 माता का गर्भ में आने के बाद किसी जीव के इस संसार में आने का समय लगभग तय हो जाता है परंतु संसार से जाने का समय किसी को नहीं पता चल पाता, अतः इस कार्य के लिए हर समय प्रस्तुत रहने में हानि क्या है? इसलिए जहाँ तक हो सके अपने कार्य साथ-साथ समेटते चलें.

💡 दूसरे लोग क्या गलत कर रहे हैं यह देख कर दुःखी मत होओ बल्कि यह देखकर दुःखी होओ कि हमने क्या गलत किया और संकल्प लो कि इसकी पुनरावृत्ति न हो.

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय निताई  ।। 🐚

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn

Sunday 17 September 2017

Apni Prashansa


✔  *अपनी प्रशंसा* ✔

➡ शास्त्र की एक रीति है कि प्रशंसा प्रकट रूप में किसी और की की जाती है, लेकिन वास्तव में होती किसी और की है । जैसे

➡ कंस म् इतना बल था, उतना बल था, इतने हज़ार हाथियों को वश में कर लेता था आदि आदि,

➡ ऐसे परम् बलशाली कंस को श्री कृष्ण ने देखते ही देखते सिंहासन से नीचे पटक दिया और उसको संहार कर दिया ।

➡ यहां कंस की प्रशंसा की गई, कृष्ण के बारे में एक शब्द नहीं बोला, लेकिन अपरोक्ष रूप में ये कृष्ण का ही गुणगान है कि इतने बलशाली कंस को एक झटके में मार दिया तो कृष्ण कितने बलशाली होंगे ।

➡ इसी प्रकार कुछ हम लोग भी करते हैं
आज में बरसाने म् मन्दिर म् दर्शन करके जैसे ही बाहर निकली, एक संत आंख बंद करके भजन कर रहे थे ।

➡ उनके मुख क् तेज, क्या कहने, मेरे साथ 4।5 और भी लोग थे । उन्होंने मुझे इशारा किया, में उनके सामने पहुंची । और भी लोग जाने लगे उन्होंने मना किया, केवल मुझे ही बुलाया ।

➡ दो मिनट वो मुझे देखते रहे और में उनको देखती रही । ओह कितना तेज, भजन का कमाल हो गया । उन्होंने पास बुलाया, मेरे सिर पर हाथ रखा और आशीर्वाद दिया ।

➡ ऐसे सन्त दुर्लभ ही होते हैं, यूंकि कृपा आज भी है मुझ पर, अनेक बार बरसाना गयी, वो फिर कभी दिखे ही नहीं ।

➡ यहां भी सन्त की प्रशंसा के बहाने अपनी प्रशंसा य्या अपने आपको कुछ विशेष कृपा पात्र बताने का प्रयास है । ऐसा हम रोज़ करते हैं ।

➡ दासाभास का वैष्णवजन को प्रणाम


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn 

Jai Shri Radhe


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जय श्री राधे

🌳भगवान श्री कृष्ण सत चित आनंद मय हैं, उनमें जो आनंद है उसका मूर्तिमान विग्रह हैं उनकी आह्लादिनी शक्ति श्री राधा ।

🌺आह्लादिनी माने आनंद देने वाली शक्ति । श्री राधा । जिस प्रकार शक्ति और शक्तिमान मैं अभेद होता है उसी प्रकार श्री राधा और श्रीकृष्ण एक ही है ।

🌸आनंदघन विग्रह होने के कारण उन्होंने श्री राधा को मूर्तिमान रूप में प्रकट किया ।

🌹सर्वाधिक आनंद श्रीकृष्ण को यदि कोई प्रदान करती हैं तो वह श्री राधा ही है । परम आनंद प्रदान करने वाली हमारी स्वामिनी श्री राधा जी के प्राकट्य दिवस पर शत शत वंदन नमन प्रणाम और सभी को अनंत बधाई ।

💐जिस प्रकार जिसमें बल रूपी शक्ति होती है उसे बलवान कहते हैं और यदि बल छिन जाए तो वह बलवान नहीं रहता ।

🌻इसी प्रकार जिसके पास धन रूपी शक्ति होती है वही धनवान कहलाता है धन समाप्त होने पर वह धनवान नहीं रह जाता ।

🌷इसी प्रकार श्रीकृष्ण की आनंद रूपी शक्ति हैं श्री राधा ।  राधा का यदि अभाव हो जाए तो हमारा भगवान भी आधा रह जाता है ।

🥀इसलिए ब्रिज में कहा जाता है राधे बिन आधे ।

समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम
जय श्री राधे जय निताई

Tuesday 12 September 2017

Dasabhas Lekhni Part 5



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             दासाभास लेखनी
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💎 भाग 5⃣

1⃣ जिनकी बात को कोई रद्द न कर सके वे नारद.

2⃣ शरी जगन्नाथ स्नानयात्रा वाले दिन श्री जगन्नाथ जू का जन्मोत्सव भी होता है। अतः जल द्वारा उनका अभिषेक का भी भाव है, जो भक्तजन के समक्ष वर्ष में एक बार होता है।

3⃣ रासलीला में शिव नहीं - श्रीमद्भागवत श्री चैतन्य चरितामृत श्री गोपाल चम्पू एवं अन्य किसी भी प्रमाणिक ग्रंथ में श्री शिव जी द्वारा गोपीवेश धारण एवं रासलीला में भाग लेने का प्रसंग दृष्टि में नहीं पड़ा अभी तक। परम विद्वान पूज्य प्रेमदास जी शास्त्री - सूरमा कुंज भी सहमत है। श्री शिव जी की ये लीलाए दन्तकथा के रूप में प्रचलित हैं और इतना ही है कि शिव जी ने गोपी रूप धारण किया एवं श्रीरासलीला के दर्शन किये। वे गोपीयों के साथ सम्मिलित नही हो पाये । फिर भी शोध बाकी है.

🔔 ।। जय श्री राधे ।। 🔔
🔔 ।। जय निताई  ।। 🔔

🖋लखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn

Monday 11 September 2017

Dasabhas Lekhni Part 4

Dasabhas Lekhni Part 4


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             दासाभास लेखनी
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💎 भाग 4⃣

1⃣ जब जब यह कहा जाता है कि भक्ति अति दुर्लभ है एक कठिन कोर्स है। अभी तो हम पहली दूसरी कक्षा में हैं - इसका आशय निराश करना नहीं, इसका आशय उत्साहित करना है कि हम अच्छा कार्य कर रहे हैं लेकिन बहुत कम है। और आगे बढ़ो। और लगे रहो। धैर्य और उत्साह सहित भजन भक्ति में असंतोष एवं और और और अधिक की कामना सदा बनी रहे .

2⃣ कामगंध हीन स्वाभाविक गोपी प्रेम।
निर्मल उज्ज्वल शुद्ध येन दुग्ध हेम।।
कृष्णेर सहाय, गुरु, बान्धव, प्रेयसी।
गोपिका हयेन प्रिया, शिष्या, सखी, दासी।।
गोपिकाऔं का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम स्वभाव वश ही है। यह स्वसुख की गन्ध से भी रहित है। तपाये हुए शुद्ध सोने की तरह यह निर्मल, उज्ज्वल एवं विशुद्ध है। गोपिकाएं श्रीकृष्ण की रासलीला, निकुंज आदि में सहायता करने से सहायक हैं। प्रेम की शिक्षा देने से वे गुरु हैं। श्रीकृष्ण प्रीति के लिए सब करती हैं तो बांधव हैं। श्रीकृष्ण की सम्पूर्ण समर्पण से सेवा करती हैं शरीर सहित अतः प्रेयसी हैं। वे सदा कृष्ण आज्ञा पालन करती हैं अतः शिष्या हैं। वे हर दुख सुख की संगिनी हैं अतः सखी हैं। सदा श्रीकृष्ण सेवा में रहने से वे उनकी दासी हैं। गोपीप्रेमामृत ग्रंथ में श्रीकृष्ण ने अर्जुन के पूछने पर यही जवाब दिया - सहायाः गुखः शिष्या भुजिष्या बान्धवाः स्त्रियः। सत्यं वदामि ते पार्थः गोप्यः किं न भवन्ति मे।। मेरी सहायक । गुरु। शिष्या। भोग्या। बान्धव। कान्ता। सत्य तो ये है कि मैं नहीं जानता - कि वे मेरी क्या नहीं हैं। मेरी महिमा। मेरी सेवा। मेरा अभीष्ट। एवं मेरे मन की बात को गोपिया यथारूप में बिना कहे जानती हैं। और उन सब गोपी गणों में उत्तम और प्रमुख हैं - श्रीराधा।
   श्री चैतन्य चरितामृत आदि।4। 173 से 176।

🔔 ।। जय श्री राधे ।।🔔
🔔 ।। जय निताई  ।। 🔔

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn

Friday 8 September 2017

Char Prkar ke Vakta


✔ *चार प्रकार के वक्ता* ✔

1⃣ पहले प्रकार के वक्ता वो होते हैं जो कहीं कथा सुनकर या चलते-फिरते टी वी आदि में सुनकर उसको याद कर लेते हैं और श्रोताओं को सुना देते हैं ।

➡ उस विषय का उन्हें ज्ञान नहीं होता है । कोई तर्क करें या पूछें तो वह कुछ बता नहीं पाते हैं या उलटा सीधा बताते हैं ।

2⃣ दूसरे प्रकार के वक्ता हैं जो श्रवण तो करते ही हैं, सुनते  हैं, साथ ही उस विषय का अध्ययन भी करते हैं ।

ग्रंथों में पढ़ते हैं और समझते हैं । सुन कर, समझ कर फिर श्रोताओं को बताते हैं ।

3⃣ तीसरे प्रकार के वक्ता हैं जो पहले तो श्रवण करते हैं, सुनते हैं । फिर ग्रंथों में पढ़ते हैं उसको समझते हैं । उसके बाद स्वयं उस विषय में आचरण करते हैं । आचरण करके फिर श्रोताओं को बताते हैं ।

➡ जो आचरण करने वाले वक्ता होते हैं, वास्तव में वही आचार्य हैं । न कि परंपरा से उत्पन्न हुए या आचार्य का पुत्र आचार्य । ऐसा कदापि नहीं है ।

➡ इनको महत्तर वक्ता कहा गया है । इनके द्वारा इनके श्री मुख से कथा श्रवण करने पर हृदय में थोड़ा-बहुत प्रभाव पड़ता है ।

4⃣ इस से भी ऊपर एक प्रकार के वक्ता होते हैं जो श्रवण भी करते हैं, ग्रंथों में अध्ययन भी करते हैं, उसका आचरण भी करते हैं । और मन वचन कर्म से इस प्रकार आचरण करते हैं कि जो वह कहते हैं उन्हें उसका अनुभव हो जाता है ।

➡ और वह ताल ठोक कर , कॉन्फिडेंस से किसी बात को कहते हैं । क्योंकि उन्हें उस बात का पक्का पक्का अनुभव होता है,  जिसे हम टेक्निकल भाषा में विज्ञान बोलते हैं ।

➡  ज्ञान के साथ साथ अनुभव हो जाना विज्ञान कहलाता है । विज्ञानी वक्ता के मुख से यदि कथा श्रवण की जाए तो वह कथा हृदय में उतर जाती है ।

➡ और उसका एक एक शब्द जीव का बहुत ही शीघ्र कल्याण कर देता है । यही कारण है कि आज-कल कथाएं तो बहुत हो रही हैं, लेकिन वक्ताओं का स्तर आप स्वयं निर्णय करें कि कौन सा है ।

➡  पैसा लेकर कथा करने वाला कभी भी विज्ञानी नहीं हो सकता । कभी भी आचरण शील नहीं हो सकता । धामकी अंगणित महिमा गाने वाला धाम छोड़कर 320 दिन धाम से बाहर रहता है ।

➡ उसकी बातों का हृदय पर क्या असर होना है जप करो, जप करो, नाम करो, नाम करो,  कहने वाले के हाथ में कभी माला झोली नहीं देखी गई उसके कहने से क्या प्रभाव होगा ।

➡  इसलिए जहां भी भगवत कथा सुनने की बात कही गई है महत्तम या कम से कम महत्तर वैष्णव के मुख से कथा श्रवण करने की आज्ञा शास्त्रों ने दी है ।

➡ महत्तम तो मिलना बहुत ही कठिन है । महत्तम कथा वाचक थे श्री शुकदेव ।

➡ उन्होंने परीक्षित को कथा सुनाई और कथा के  वह दृश्य उपस्थित कर दिए और पूरी की पूरी कथा को परीक्षित को हृदयंगम करा दिया ।

➡ ना कोई भेंट मांगी । ना दक्षिण मांगी । न पंडाल बनाया । न संगीत के वादक । ढोलक थी । और वह कथा जीवन में श्री शुकदेव जी ने एक ही बार कही ।

➡ हर तीसरे दिन उनका टेक्सास में कथा नहीं होती थी । अतः चिंतन करें और सावधान रहें ।

➡ नाभि से जो निकले, ह्रदय से जो निकले, वो श्रेष्ठ कथा । नाभि या ह्रदय से भक्तों का चरित भक्तमाल लिखने वाले नाभादास हो गए । इनका पूर्व का नाम नारायण दास था

➡ समस्त वैष्णवजन को दासाभास का  प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚

🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


🖊  लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Monday 4 September 2017

Suksham Sutra Part 50


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     सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर

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🔮 भाग 5⃣0⃣

💡 प्रातःकाल एक रोटी गौ के नाम से बनाकर उसे खिलायें, प्रतिदिन एक रुपया गौ के नाम से अलग निकालें और जब सुविधा हो गौशाला में दान दे, समय निकालकर किसी गौशाला में जाकर गौ दर्शन करें, गौ हत्या रोकने में आपका इतना योगदान भी कम महत्वपूर्ण नहीं.

💡 कुछ साधक भगवान की भक्ति कैसे करें - यह जानने के लिए गुरु की शरण में जाते हैं परंतु वे गुरु भक्ति में ही इतने लीन हो जाते हैं कि उन्हें भगवद भक्ति की विस्मृति हो जाती है, यहाँ तक कि भगवान को भी भूल जाते हैं और गुरु को ही भगवान समझने की भारी भूल कर बैठते हैं.

💡     भजन और भोजन
एकान्त में करने का शास्त्रीय विधान है, विशेषकर नाम जप का प्रदर्शन करना एक अपराध है, वैष्णव लोग माला झोली में माला जपते हैं तो भी उसे छिपा कर रखते हैं, कहते हैं झोली के बिना यदि माला पर जाप किया जाए तो उससे आसुरी शक्तियों को बल मिलता है .

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय निताई  ।। 🐚

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn

Suksham Sutra Part 51


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     सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर

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🔮 भाग 5⃣1⃣

💡 किसी कार्य को कर के यह देखना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है कि जैसा हम चाहते थे वैसा वह हुआ भी है कि नहीं.

💡 सब काम का जिम्मा सरकार पर मत थोपो, एक करोड़ खर्च करके कोठी बनवा सकते हो, कार खरीद सकते हो, विदेश घूम सकते हो तो घर और आॅफिस के सामने की दस गज सड़क भी आप बनवाकर उसकी स्वच्छता का जिम्मा ले लो, उदार बनो - आनंद मिलेगा.

💡 जो कार्य कोई और कर सकता है वह आप भी सीख सकते हो और जो आप नहीं सीख सकते उसे कोई और कैसे कर सकता है? ऐसी विचारधारा मन में रखकर जीवन के अन्तिम क्षण तक कर्मशील रहना चाहिए.

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय निताई  ।। 🐚

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn

Imandaar



✔ *ईमानदार* ✔

➡ वो है जो मन वचन कर्म में एक सा है । कहता है कुछ , करता है कुछ, मन मे है कुछ उसे बोलचाल की भाषा मे बेईमान कह सकते हैं ।

➡ ऐसे ही
आर्त भक्त
जिज्ञासु भक्त
अर्थार्थी भक्त

➡ ये तीनो कहे तो भक्त ही जाते है, लेकिन ये विशुद्ध भक्त नही हैं । विशुद्ध भक्त वे हैं जो प्रिया लाल जु के सुख के अतिरिक्त कुछ नहीं सोचते ।

➡ इसी प्रकार एक बार कृष्ण नाम लेने वाला भी वैष्णव तो है ही, लेकिन वो विशुद्ध वैष्णब नहीं, विशेष कर आज के समय मे हम

➡ बात तो भजन भक्ति की करते हैं,
मन मे है प्रतिष्ठा, और
काम करते है धन उपार्जन के

➡ ऐसे हम जिनकी कोरी बातें हैं, भजन की । हमारा ना तो मन है, ना प्रयास है, ऐसे हम

➡ बेईमान वैष्णव की श्रेणी में आते हैं । सूक्ष्म चिंतन है, साथ ही मेरा स्तर बहुत ही प्राथमिक है, इसलिए अभी इतना ही समझ आया, बहुत ऊंची बात अभी समझ नही आती । सन्त सज्जन कृपा से आने लगेगी ।

➡ दासाभास का वैष्णवजन को प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚

🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚



  लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया  
LBW - Lives Born Works at vrindabn  

Friday 1 September 2017

Guru Parampara Anugatya


✔ *गुरु परंपरा आनुगत्य* ✔

➡ वैष्णव उपासना, विशेषकर गौड़ीय वैष्णव उपासना में आनुगत्य का बहुत अधिक महत्व है । बिना किसी परंपरा के, बिना किसी परंपरा के अंतर्गत संत स्वरूप किसी को गुरुदेव को धारण किए बिना आनुगत्य प्राप्त नहीं होता है ।

➡ और आनुगत्य प्राप्त ना होने पर भजन का मार्ग प्रशस्त नहीं होता है ।

➡ विभिन्न प्रकार की उपासनाएँ हैं । विभिन्न संप्रदाय हैं, अनेक उपास्य हैं, साधक को उसमें से एक परंपरा एक उपासना, एक साधन को चुनना पड़ता है ।

➡ ठीक वैसे, जैसे एक विद्यार्थी को यह चुनना पड़ता है कि वह कॉमर्स में इंटर करेगा, साइंस में करेगा, आर्ट्स में करेगा, मैनेजमेंट में करेगा या किसी अन्य में करेगा ।

 ➡ जब एक साधक गुरु धारण करके किसी एक गुरु परंपरा से जुड़ जाता है तब उस को सम्मान तो सभी का करना है । जीव मात्र का करना है ।

➡ अपमान और आलोचना तो वैष्णव को करनी ही नहीं है लेकिन अपनी निष्ठा । अपना अपना साधन, अपना मंत्र अपना नाम, अपना भजन, अपनी परंपरा के अनुसार करना होता है ।

➡ हम जिस परंपरा में हैं । हमारे गुरुदेव का जो आदेश है वह हम पालन करेंगे । दूसरा जिस परंपरा में है उसकी गुरु परंपरा या गुरुदेव का जो आदेश है वह उसका पालन करेगा ।

➡ यदि यह बात सहजता से मस्तिष्क में बैठ जाए तो कभी भी यह प्रश्न नहीं उठता कि फला व्यक्ति यह बात क्यों बोलता है ।

➡ इस्कॉन वाले सभी हरे कृष्ण बोलते हैं, बृजवासी सभी जय श्री राधे बोलते हैं, कुछ जय निताई बोलते हैं, कुछ जय श्री कृष्ण बोलते हैं । कुछ जय श्री राम बोलते हैं ।

➡ यह सहज ही है । ऐसा होना ही चाहिए । यह उनकी गुरु परंपरा का आदेश है ।

➡ इसी प्रकार तिलक भी अनेको प्रकार के हैं । गुरु परंपरा से जो तिलक प्राप्त हुआ है, उसे वही लगाना है और मुझे वही लगाना है जो मेरी गुरु परंपरा से मुझे प्राप्त है ।

➡ अब एक प्रश्न आता है कि जो गुरु परंपरा से बंधे नहीं है वह निगुरे है । वह या तो तिलक लगाते नहीं है । या उन्हें जो समझ में आ गया जो अच्छा लगा वह लगा लेते हैं ।

 ➡ और ऐसे ही कुछ लोग दूसरे की उपासना भजन और नाम आदि की आलोचना करते हैं । उनको लगभग ऐसा माना जाए कि उन्होंने इंटर में अभी प्रवेश ही नहीं लिया है कम पढ़े लिखे लोग हैं ।

➡ वही कहते हैं कि अरे यह तो साइंस की बात करता है । यह कॉमरस की बात करता है ।यह आर्ट की बात करता है  । अज्ञान के कारण इस प्रकार की बात होती है ।

➡ अतः जो भी जो कुछ कर रहा है, वह यदि अपनी परंपरा से कर रहा है तो ठीक ही है । हम भी अपनी परंपरा के अनुसार अपना साधन भजन नाम करें और यदि हम अभी किसी गुरु परंपरा से नहीं जुड़े हैं तो प्रयास करें कि हम जुड़े ।

➡ यदि नहीं जुड़ना चाहते तो कम से कम हम यह समझे कि जो भी जो कर रहा है, अपने गुरुदेव, गुरु परंपरा के आदेश से कर रहा है ।

➡ गुरु परंपरा का आदेश का पालन करना ही आनुगत्य कहलाता है । आनुगत्य के बिना श्री कृष्ण प्रेम या भजन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है ।

➡ समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn