Thursday 30 June 2016

सूक्ष्म सूत्र गागर में सागर भाग 14

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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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 🔮 भाग 14

💡 भगवान कृष्ण के सखा
चार प्रकार के हैं
सुहृद-
श्री कृष्ण से उम्र में थोड़े बड़े,
इनमें श्री कृष्ण के प्रति वात्सल्य
भाव रहता है
सखा- उम्र में छोटे,
इनमे दास्य भाव रहता है
प्रिय सखा- उम्र में बराबर, साख्य भाव
प्रियनर्म- श्रृंगार रस की लीलाओ में सहयोगी

💡 भगवान श्री कृष्ण के
चार प्रकार के सखाओं के नाम
सुहृद-
सुभद्र, मण्डलीभद्र, बलभद्र आदि
सखा-
विशाल, ऋषभ, देवप्रस्थ आदि
प्रिय सखा-
श्रीदामा, सुदाम, वसुदाम आदि
प्रियनर्म-
सुबल, सुमंगल, अर्जुन आदि

💡 किसी व्यक्ति की मृत्यु के
पश्चात सभी लोग उसकी
प्रशंसा करते हैं.
उसके गुण ही वह देखते हैं
अवगुणों की कोई चर्चा नहीं करता.
काश! इंसान की यह दोष देखने
की दृष्टि सदा के लिए समाप्त
हो जाए तो फिर कहना ही क्या!

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


🖊  लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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किसकी मानें

 किसकी मानें

✅    किसकी मानें   ✅

▶ किसी भी विषय को समझने या जानने के लिए हमारे पास मुख्य रूप से तीन साधन है

▶ पहला है *शास्त्र*
▶ दूसरे हैं *संत*
▶ तीसरे हैं *श्री गुरुदेव*

▶ लेकिन समय के प्रभाव से इन तीनों ही विधाओं की असलियत वास्तविकता एवं विश्वसनीयता संदेहास्पद है

▶ सर्वप्रथम *शास्त्र* को लेते हैं ।
▶ पहले कोई विरले अनुभव प्राप्त विद्वान या संत ही ग्रंथ लिखते थे और अपने अनेक में से
 ▶ किसी एक अधिकारी शिष्य को उसकी प्रतिलिपि कर के देते थे

श्रीहरिनाम Live! साप्ताहिक सन्देश 29 जून, 2016


✅ श्रीहरिनाम Live! साप्ताहिक सन्देश 29 जून, 2016 ✅
▶ दासाभास डा गिरिराज नांगिया
▶ वृन्दावन द्वारा
▶ साप्ताहिक सन्देश
▶ प्रत्येक बुधवार (रात्रि 9:30 से 10:00 के मध्य )
▶ कल 29 जून,2016 का विषय
▶ भजन के विघ्न

📽 विडियो अवधि : 12: 23

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

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Wednesday 29 June 2016

सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर भाग 13

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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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 🔮 भाग 13

💡 श्रीकृष्ण ने बृज गोपियों के
साथ जो विहार, चीरहरण,
महारासआदि लीलाएं की हैं
वह सब 10 वर्ष 8 माह की उम्र
के अंदर तक की है.
व्रजगोपियों की आयु भी
लगभग इतनी ही समझनी चाहिए.
अतः लीला चिंतन के समय
इस बात का ध्यान रखना परम
आवश्यक है. आधुनिक चित्रकारों
की दूषित तुलिका- चित्रित दृश्य से
उपजे मनोविकारों को स्थान न दें.

💡 जन्म से 5 वर्ष तक : बाल्य
छह से दस वर्ष तक : पौगण्ड
ग्यारह से पंद्रह वर्ष तक : किशोर
और पंद्रह के बाद यौवन अवस्था
मानी जाती है. किन्तु
श्रीकृष्ण के
सन्दर्भ में छोटी उम्र में ही
उनकी व्यस वृद्धि मानी गयी है.
यह एक रहस्य है.

💡 भगवान श्रीकृष्ण की
तीन वर्ष चार महीने तक : कौमार
छह वर्ष आठ महीने तक : पौगण्ड
दस वर्ष आठ महीने तक : किशोर
अवस्था मानी गयी है. और
इतनी ही उम्र तक वे व्रज में रहे.
तथा 125 वर्ष तक पृथ्वी पर
रहते हुए भी वे सदा
किशोर अवस्था में ही रहे.

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚



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नित्य और नैमित्तिक

✅  नित्य और नैमित्तिक  ✅


▶ एक होता ह नित्य
▶ अर्थात होना ही है । होता ही है
▶ जेसे साँस लेना
▶ स्नान करना
▶ ठाकुर की सेवा
▶ भोग
▶ आरती

▶ दूसरा होता है नैमित्तिक
▶ अर्थात निमित्त । करने का कुछ कारण
▶ आज रथयात्रा ह । रथ पर दर्शन
▶ आज होली है गुलाल लगेगा
▶ आदि आदि

▶ इसी प्रकार साधन भी
▶ नित्य एवम् नैमित्तिक होते हैं

▶ नाम जप । संकीर्तन
▶ एकादशी आदि नित्य हैं

साधू भोजन द्वारा सेवा आदि नैमित्तिक

▶ लेकिन साधन श्रेष्ठता की  बात होगी तो
▶ नाम नामी अभिन्न हैं
▶ नाम नामी से भी श्रेष्ठ है
▶ नाम अंगी यानी शरीर है

एकादशी श्रवणपूजन ।अर्चन
▶ आदि अंग है । जेसे शरीर का अंग हाथ

▶ इस दृष्टि से एकादशी व्रत
▶ कभी भी नाम के समान नही है
▶ अतः ध्यान रहे

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚



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नित्य और नैमित्तिक

Tuesday 28 June 2016

सूक्ष्म सूत्र गागर में सागर भाग 12

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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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 🔮 भाग 12

💡 बाबा श्री नीमकरोरी जी से प्रभावित होकर
एक साधक ने कहा आप हमें शिष्य बना लो
वह बोले भैया  जब हम ही किसी के शिष्य
नहीं बने तो हम तुम्हें कैसे शिष्य बना लें
यह योग्यता तो हम में है  नहीं
और अत्यंत विनम्र भाव से शास्त्रीय
सिद्धांत उन्होंने प्रस्तुत किया
अतः सावधान! जिनके गुरु नहीं
उन्हें शिष्य बनाने का भी अधिकार नहीं।

💡 भगवान के विग्रह जहां स्थापित हो
उनकी विधिवत पूजा होनी चाहिए
इन्हें सजावट की तरह प्रयोग करना
बड़ा भारी अपराध है.
ऐसे ही जितना संभव हो सके
भगवान के चित्रों को
अनावश्यक प्रयोग न करें

💡 भगवान की सवारी आने पर
खड़े हो जाना चाहिए और
प्रणाम करना चाहिए. ऐसे ही
गुरूजन और अपने से श्रेष्ठजन
अथवा वैष्णवों के सम्मुख भी खड़े
हो जाना चाहिए और जब भी बैठ जाएं
तब बैठना चाहिए. ऐसा करने से
भक्ति में वृद्धि होती है.

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚



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प्राप्ति क्यों नहीं

✅   प्राप्ति क्यों नहीं  ✅  

▶ आजकल इंटरनेट का जमाना है । whatsapp है । फेसबुक है । दूसरे भी बहुत सारे माध्यम है

भक्ति और भजन एक कोर्स है कोर्स में
▶ पहली क्लास
▶ दूसरी क्लास
▶ चौथी क्लास
▶ हाई स्कूल
▶ ग्रेजुएशन
पोस्ट ग्रेजुएशन अदि यह क्रम होता है

Monday 27 June 2016

सूक्ष्म सूत्र गागर में सागर भाग 11

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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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 🔮 भाग 11

💡 कोई मेरा नियम है, मेरी उपासना पद्धति है
मेरी निष्ठा है, मेरी उसमें कट्टरता है.
ऐसे ही दूसरे की भी
निष्ठा किसी अन्य कार्य, अन्य उपासना
अन्य नियम में हो सकती है
और वह उसमें कट्टर भी हो सकता है.
इसलिए निष्ठा अपनी-अपनी
और आदर सब का.

💡 दोस्त के पिताजी को पिताजी कह
सकते है- वे पिता के समान
हो सकते हैं,उनसे बढ़कर आप पर
कृपा करने वाले भी हो सकते हैं
पर पिता के नाम के स्थान पर किसी
दूसरे का नाम कदापि नहीं लिखा जा
सकता ऐसे ही अपना धर्म अपना है.
दूसरे के धर्म का आदर करो पर
निष्ठा अपने ही धर्म में रहे-
"सवधर्मे निधनं श्रेयों:"

💡 वाचाल का सामान्य अर्थ है अधिक बोलने वाला
किंतु जो भगवान गुणगान में वाचल है
उसका अर्थ है - वाचा लं करोति इति वाचाल
अर्थात जो अपनी वाणी से भगवद गुणगान
को अलंकारों से युक्त करता है वह वाचाल है।
विद्वानों ने टीका में कहा है
"मूकं करोति वाचालं"
में वाचाल का अर्थ यही है।
भागवतप्रवक्ता श्री अशोक शास्त्री जी का कथा-रस सार

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚



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हनुमान जी

✅   हनुमान जी    ✅  



▶ 12 महा भागवत में
▶ ब्रहमा
▶ नारद
▶ शंकर
▶ सनकादिक
▶ कपिल देव
▶ स्वायंभुव मनु
▶ प्रहलाद
▶ जनक
▶ भीष्म
▶ बलि
▶ शुकदेव और
▶ धर्मराज है

▶ यह महा भागवत भागवत धर्मों के ज्ञाता हैं श्री हनुमान जी दास्य भक्ती का उदाहरण है और चिरंजीवी है

▶ अश्वत्थामा
हनुमान
▶ बलि
▶ व्यास
▶ विभीषण
▶ कृपाचार्य
परशुराम और
मार्कंडेय

▶ यह 8 चिरंजीवी हैं

▶ श्री हनुमान जी का नाम महा भागवत में क्यों नहीं है शायद इसका जवाब में नहीं जानता

 🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚



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हनुमान जी

Saturday 25 June 2016

निपटाना क्या



   निपटाना क्या   

जय श्री राधे ।
हम लोग अधिकतर यह कहते हैं कि जल्दी-जल्दी सुबह-सुबह भजन को निपटा लो । जिससे फिर अपने कामों में  लगेंगे

लेकिन जिन लोगों को यह समझ आ गई है कि हमारा यह मनुष्य जीवन भजन करते हुएश्री कृष्ण चरण सेवा को प्राप्त करने के लिए मिला है

वह इसका उल्टा बोलते हैं

जल्दी-जल्दी कामों को निपटा लो फिर जम के भजन करेंगे ।

और वास्तव में भी यही होना चाहिए । हमारा जीवन कामों के लिए नहीं मिला है । काम तो जीवन की रक्षा करने के लिए हैं और जीवन भजन के लिए है

अतः आज से ही हमें अभ्यास करना है कि हम जल्दी जल्दी कामों को निपटा लें जिससे जमकर भजन में लग जाए

निपटाना कामों को है
ना कि भजन को

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  🐚



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 निपटाना क्या

Friday 24 June 2016

सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर भाग 10

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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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 🔮 भाग 10

💡 जो महिलाएं गृहस्थ में हैं उनके लिए
पहला धर्म है- पति का, बच्चों का
और माता पिता का पालन।
घर का कुशलता पूर्वक संचालन।
उसके बाद समय निकालकर
धर्म अध्यात्म और भगवत भक्ति।
आजकल धर्म के नाम पर अधिकतर
महिलाएं वेशधारी गुरु बाबाजीओ
और साधुओं के पीछे भागती फिरती हैं
यह भक्ति नहीं है। यह है फैशन
अथवा घर से पलायन।

भक्ति निरपेक्ष है

✅   भक्ति निरपेक्ष है    ✅  

निरपेक्ष का अर्थ है की भक्ति करने के लिए

▶ किसी विशेष स्थान
▶ किसी विशेष समय
▶ देशकाल और
▶ किसी विशेष परिस्थिति
▶ जैसे आयु आदि की अपेक्षा नहीं है

Thursday 23 June 2016

सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर भाग 9

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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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 🔮 भाग 9

💡भगवान को प्रसन्न करने की
चेष्टा करनी चाहिए, वे तो सदा-
सर्वदा तैयार खड़े रहते हैं
निष्कपट जीवो को अपनाने के लिए
और हम नासमझ है कि
भागते रहते हैं संसार के लोगों को
प्रसन्न करने के लिए
उनकी चाटुकारिता करते हुए.

💡जैसे वायु सर्वत्र है परंतु
उसे अनुभव करने के लिए
पंखा लगाना पड़ता है.
ऐसे ही भगवान सर्वत्र हैं
उनको अनुभव करने के लिए
मंदिर में उनका श्री विग्रह
स्थापित करना पड़ता है.

💡किसी वैष्णव को कोई भी पदार्थ
ठाकुर को भोग रखने के पश्चात ही
ग्रहण करना चाहिए.
बिना तुलसी के ठाकुर कुछ भी
स्वीकार नहीं करते.
ठाकुरजी के सम्मुख रखकर ही
भोग में तुलसी डालने का विधान है.
रसोई से भोग में तुलसी डालकर
ले जाना अनुचित है.

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


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भक्तों का पाप हरण

✅   भक्तों का पाप हरण  ✅   

▶ इस विषय में शास्त्रों में प्रमाण मिलते हैं कि भगवान भक्तों के पाप हरण कर लेते हैं।

▶ गीता में भी कहा है
▶ मैं तेरे समस्त पापों को हर लूंगा । लेकिन जहां जहां यह बात कही गई है । वहां शर्तें लागू हैं ।

▶ तुम पूर्ण रुप से मेरे शरणागत हो जाओ यह शर्त है । ऐसे ही  जिनके पापों का हरण भगवान करते हैं । वह
ऐसे परम वैष्णव भक्त हैं जो

▶ अन्य अभिलाषितात शून्य है
▶ जिनमें अपने सुख की लेशमात्र भी इच्छा नहीं है
▶ जिन में अपने दुख निवृत्ति की इच्छा तो दूर
▶ जिंहें अपने दुख का ज्ञान भी नहीं है
▶ जो हर अवस्था में हर क्षण में केवल श्री गोविंद के सुख विधान करने की तीव्र इच्छा या उत्कंठा में अपना
▶ जीवन दांव पर लगाए हुए हैं जिन्होंने

Wednesday 22 June 2016

सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर भाग 8

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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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 🔮 भाग 8

💡 “तरेरिव सहिष्णुना”
श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि
जीवन के अंतिम क्षण  तक
वृक्ष की भांति सहनशील बनो.
कोई शर्त नही- कोई सीमा नही.
यंहा तक कि मरने कस बाद भी दुसरे
के काम आ सको. वृक्ष की तरह
कटने के बाद भी लकड़ी के रूप में
ईंधन प्रदान करो, बुद्ध भी कहते है
सहनशीलता सबसे बड़ी प्रार्थना है

सांसारिक काम

✅   सांसारिक काम   ✅   

▶ सांसारिक कामो
▶ में अपने से छोटे को
▶ आदर्श बनाओ

▶ भजन विषय में
▶ अपने से श्रेष्ठ जन को

▶ शर्मा जी जब बिना
▶ कार के रह सकते हैं
▶ तो हम क्यों नही

▶ नेह किंकरी जब
▶ एक लाख नाम रोज़
▶ कर सकती ह तो
▶ हम क्यों नहीं

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Tuesday 21 June 2016

अपराध लेना

✅   अपराध लेना    ✅  

▶ अपराध में दो पक्ष होते हैं ।
▶ एक अपराध करने वाला और
▶ एक अपराध लेने वाला

▶ वैष्णव जगत में चार प्रकार के अपराध है
▶ सेवा अपराध
▶ नाम अपराध
▶ वैष्णव अपराध
▶ भगवत अपराध

▶ इसमें सेवा नाम और भगवान ने अपराध लिया या नहीं लिया इसका अनुमान ही होता है लेकिन वैष्णव ने अपराध लिया या नहीं लिया इसका प्रत्यक्ष दर्शन होता है

▶ मध्यम कोटि के जो वैष्णव होते हैं अभी उनमें मान अपमान यश अपयश के प्रति समभाव नहीं होता है वह भजन तो करते हैं लेकिन वह अपराध ले लेते हैं

▶ अर्थात उनको अपराध करने वाले के प्रति रोश का भाव होता है उनसे अवश्य ही गिड़गिड़ा कर या किसी भी प्रकार अपने अपराध को क्षमा करना ही चाहिए

▶ ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि यह कैसा वैष्णव अभी इसमें मान अपमान के प्रति समान भाव ही नहीं आया

▶ दूसरे कुछ परम वैष्णव टाइप के वैष्णव होते हैं जो मान अपमान में समान रहते हैं अपराध के प्रति उनका किंचित चेष्टा या ध्यान ही नहीं होती अपितु वे इन सब के प्रति उदासीन होते हैं

▶ उन्हें पता ही नहीं होता कि कौन मान दे रहा है और कौन अपमान कर रहा है कौन अपराध कर रहा है लेकिन शास्त्र में कहा गया है कि ऐसे महाभागवत वैष्णवों की चरण रज उनके अपराध को लेती है और अपराधी के भजन में बाधा होती है

▶ अतः ऐसे महाभागवत वैष्णव जन की चरण रज की वंदना करके उनसे उनके प्रति किए गए अपराधों को भी अवश्य ही क्षमा कर आना चाहिए

▶ श्रीमद्भागवत में राजा रहुगणने जड़भरत के प्रति अपराध किया जड़ भरत को अपराध का भान भी नहीं हुआ किंतु फिर भी राजा ने पालकी से उतर कर जड़भरत के चरणों में अपना मस्तक रखकर उनसे अपना अपराध क्षमा करवाया

▶  अतः वैष्णव अपराध में यदि हमसे अपराध हुआ है और हमें उसका भान है तो वैष्णव निम्न कोटि का हो मध्यम कोटि का हो या उच्च कोटि का हो उस वैष्णव से अपना अपराध अवश्य ही क्षमा कर आना चाहिए

▶ अन्यथा भजन में बाधा बनती ही रहेगी

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अपराध लेना

Monday 20 June 2016

अपराध

✅   अपराध   ✅  

▶ यह एक ऐसा शब्द है कि हर वैष्णव के मुख पर विराजमान है । लेकिन इसका भाव और अर्थ बहुत कम लोग शायद जानते होंगे ।

▶ अपराध दो शब्दों से बना है

▶ अप एवं राध ।
▶ राध माने संतोष । अप माने बाधा । जिससे भजन के संतोष में बाधा हो उस कार्य क्रिया को अपराध कहते हैं ।

▶ अपराध का शरीर से कोई मतलब नहीं है
▶ अपराध आत्मा का विषय है ।

▶ अपराध से शरीर में कोई कष्ट नहीं होता है
▶ ना अपराध से एक्सीडेंट होता है
▶ ना अपराध से बीमारी होती है
▶ ना अपराध से दुकान की बिक्री कम होती है
▶ ना अपराध से संतान में बाधा होती है

▶ कुल मिलाकर अपराध से लौकिक विषय
▶ में कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है और

▶ ना ही अपराधका फल
▶ भोगने के लिए कोई नर्क बने हुए हैं

▶ इन सब कामों पर पाप पुण्य का प्रभाव पड़ता है पाप पुण्य शरीर से संबंधित हैं और अपराध भजन और आत्मा से संबंधित है ।

▶ अपराध होने एक बहुत बड़ी बात होती है वह होती है भजन में बाधा । भजन में बाधा होने से भजन करने से ▶ जो आनंद और संतोष प्राप्त होता है वह प्राप्त होना बंद हो जाता है ।

▶ साथ ही भजन उसी का बंद होगा ना जो भजन करता होगा । मेरी तरह भजन का नाटक करने वालों का क्या ▶ भजन बंद होगा । भजन तो हो ही नहीं रहा वैसे भी ।

▶ अतः अपराध और पाप के अंतर को हम समझे रहे । पाप यदि किया या हुआ  और उसका फल भोग लिया तो वह समाप्त हो जाता है लेकिन अपराध का एक ही फल है  कि हमारा भजन नहीं बनता है  ।

▶ शायद यह ही जीवन की सबसे बड़ी हानि है  क्योंकि यह जीवन भजन के लिए मिला है  भजन यदि नहीं बना  तो फिर जीवन किस काम का ।

▶ अतः अपराध को  हल्के में नहीं लेना चाहिए  यह एक ऐसा अवरोध है जो हमारे  जीवन के फल भजन को तुरंत बाधित कर देता है । अगले जन्म का भी कोई चक्कर नहीं इसमें । यहीं । अभी । इंस्टेंट असर है इसका । ▶ जबकि पाप तो कुछ अभी । कुछ अगले जन्म में भोगते हैं । कुछ नर्क में भोगते हैं ।

▶ पाप करते हुए भी चैन और मस्ती से पूर्व पुण्यों के कारण जीते हुए रह सकते हैं लेकिन अपराध् यदि हो गया तो चैन छीन गया समझो ।

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अपराध

सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर भाग 7

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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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 🔮 भाग 7

💡 दान देने मात्र से दान का
पुण्य मिलने वाला नही है.
योग्य व्यक्ति को दिया गया दान
नशेडी व् जुआ खेलने वाले व्यक्ति को दिया गया दान
मांस मदिरा सेवन करने वाले को दिया गया दान
भगवत भजन न करने वाले को दिया गया दान 
आवश्यकता न होने पर दिया गया दान
व्यर्थ है. बल्कि उसके पाप के कुछ अंश का
भागीदार दान देने वाला भी बनेगा. सावधान.

💡 यंहा तक की यदि किसी ने
मांसाहारी होटल के लिए
मकान या दुकान
किराये पर दिया है, तो उस
मकान मालिक
को भी पशु हत्या के पाप का
भागीदार निश्चित
बनना पड़ेगा.
यह अटल सत्य है.
   
💡 भक्ति एवं भजन का प्रदर्शन
करना अपराध है.
इसका प्रचार करने से इसमें कमी तो
आती ही है अहंकार भी पुष्ट होता है.
इसलिए जितना हो सके इसे
गोपन करना चाहिए.
वैष्णव लोग झोलीमाला में माला जपते
है तो उसको भी वस्त्र में छिपा कर रखते है.

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚



🖊  लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 
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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर भाग 7

Sunday 19 June 2016

हमारा निर्णय



  हमारा निर्णय   

हमारा पूरा जीवन निर्णयों पर टिका है । और निर्णय हमारे विवेक पर
विवेक हमारे मन पर
मन हमारे विचारों पर
विचार हमारे आचरण पर

आचरण भोजन से
धन से
संग से

ये क्रम उलटा भी हो सकता है
हम शांति चाहें । अशांति के काम करें

अतः अपने धन को शुद्ध रखे । भोजन शुद्ध रखें । सब ठीक होता जाएगा । उल्टा सीधा किसी भी प्रकार से अर्जित धन का प्रभाव जीवन पर पडेगा ही ।

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  🐚


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