💐श्रीराधारमणो विजयते 💐
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
क्रम संख्या 2⃣4⃣
🌿क्यों तू नाराज है?🌿
🙌 हे परमात्मा !
तुझसे मिलना चाहती है आत्मा । कई जन्मों से तेरी और आ रही है, बेहद छटपटा रही है ।
लेकिन मिल नहीं पा रही है।
😕इसका क्या राज है।
क्या तू इस से नाराज है
🙇हे कविराज ।
कैसा बेतुका प्रश्न करता है आज
😇फिर भी मैं तुझे तेरे प्रश्नों का उत्तर देता हूं।
मैं मनुष्य को देने के सिवाय आखिर उस से क्या लेता हूं।
🐠 फिर भी मनुष्य मुझको नहीं, मुझ से चाहता है।
इसलिए मिल नहीं पाता है। केवल अपनी आत्मा को तड़फाता है।
🌿मेरी अभिलाषा 🌿
न नाकपृष्ठम न च
पारमेष्ठयं न सार्वभौमं
न रसाधिपत्यम्
🌻मैं ब्रहमलोक, स्वर्ग, समस्त पृथ्वी अथवा रसातल का एकछत्र राज्य, योग की सिद्धियां यहां तक कि मोक्ष भी नहीं चाहता ।
👤अपने कर्मों के फलस्वरुप मुझे बार-बार जन्म- मृत्यु के चक्कर में भले ही भटकना पड़े । इसकी भी परवाह नहीं । परंतु मैं जिस - जिस योनि में जन्म लूँ ।
👥वहां आप के प्यारे भक्तों से सदैव मेरी मित्रता बनी रहे। आपकी माया के कारण शरीर- ग्रह - स्त्री- पुत्र आदि में आसक्त जनों के साथ मेरा कभी भी किसी प्रकार का संबंध ना रहे ।
💎 मेरी यही अभिलाषा है।
यह श्रीमद् भागवत का श्लोक है इसमें लौकिक स्त्री । पुत्र । माता । पिता आदि से अनासक्त रहने की प्रार्थना है । साथ ही बार बार जन्म लेने से भी परहेज नही है ।
जीव का लक्ष्य भजन करके कृष्ण की चरण सेवा को प्राप्त करना है । चाहे कितने भी जन्म लेने हों । जन्म मरण कोई खास बात नहीं ।
शास्त्र ये भी कहता है कि उपास्य सदा सर्वदा रहने वाला अनश्वर तत्व ही है । नाशवान वास्तु नही । चाहे शरीर हो । देश हो । माता हो । पिटा हो । पुत्र या अन्य कुछ भी
🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻
📕स्रोत एवम् संकलन
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की खिचड़ी ग्रन्थ से
📝 प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
क्रम संख्या 2⃣4⃣
🌿क्यों तू नाराज है?🌿
🙌 हे परमात्मा !
तुझसे मिलना चाहती है आत्मा । कई जन्मों से तेरी और आ रही है, बेहद छटपटा रही है ।
लेकिन मिल नहीं पा रही है।
😕इसका क्या राज है।
क्या तू इस से नाराज है
🙇हे कविराज ।
कैसा बेतुका प्रश्न करता है आज
😇फिर भी मैं तुझे तेरे प्रश्नों का उत्तर देता हूं।
मैं मनुष्य को देने के सिवाय आखिर उस से क्या लेता हूं।
🐠 फिर भी मनुष्य मुझको नहीं, मुझ से चाहता है।
इसलिए मिल नहीं पाता है। केवल अपनी आत्मा को तड़फाता है।
🌿मेरी अभिलाषा 🌿
न नाकपृष्ठम न च
पारमेष्ठयं न सार्वभौमं
न रसाधिपत्यम्
🌻मैं ब्रहमलोक, स्वर्ग, समस्त पृथ्वी अथवा रसातल का एकछत्र राज्य, योग की सिद्धियां यहां तक कि मोक्ष भी नहीं चाहता ।
👤अपने कर्मों के फलस्वरुप मुझे बार-बार जन्म- मृत्यु के चक्कर में भले ही भटकना पड़े । इसकी भी परवाह नहीं । परंतु मैं जिस - जिस योनि में जन्म लूँ ।
👥वहां आप के प्यारे भक्तों से सदैव मेरी मित्रता बनी रहे। आपकी माया के कारण शरीर- ग्रह - स्त्री- पुत्र आदि में आसक्त जनों के साथ मेरा कभी भी किसी प्रकार का संबंध ना रहे ।
💎 मेरी यही अभिलाषा है।
यह श्रीमद् भागवत का श्लोक है इसमें लौकिक स्त्री । पुत्र । माता । पिता आदि से अनासक्त रहने की प्रार्थना है । साथ ही बार बार जन्म लेने से भी परहेज नही है ।
जीव का लक्ष्य भजन करके कृष्ण की चरण सेवा को प्राप्त करना है । चाहे कितने भी जन्म लेने हों । जन्म मरण कोई खास बात नहीं ।
शास्त्र ये भी कहता है कि उपास्य सदा सर्वदा रहने वाला अनश्वर तत्व ही है । नाशवान वास्तु नही । चाहे शरीर हो । देश हो । माता हो । पिटा हो । पुत्र या अन्य कुछ भी
🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻
📕स्रोत एवम् संकलन
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की खिचड़ी ग्रन्थ से
📝 प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
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