Friday 25 May 2012

214. madanmohanji ka vigrah



 मदनमोहन जी का श्री विग्रह 

सत्ययुग मै - 
महाराज अम्बरीश द्वारा सेवित होता था 

त्रेता मैं - 
इन्द्र द्वारा,बाद में रावन द्वारा, रावन के उद्धार के पश्चात्  
महारानी सीता द्वारा इनकी पूजा की जाती थी 

,  - शत्रुघ्न  को ब्रज मैं स्थापित करने हेतु दिया 

कलियुग में-
राजविप्लवों के बाद 
श्री अद्ध्वैताचार्य को - आदित्य टीला के नीचे प्राप्त हुई यह श्री मूर्ति 
श्री अद्वैत ने अपने पुरोहित परशुराम चतुर्वेदी को दी |

परशुराम से श्री सनातन लाये जो आज तक करौली व वृन्दाबन में पूजित है |
शायद यह दुर्लभ मूर्ति है जो चरों युगों में पूजित हो रही है 

-- 
JAI SHRI RADHE


DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

madanmohanji ka vigrah

213. sambandhanuga bhakti



एक है संबंधानुगा भक्ति 
जो सम्बन्ध के अनुसार चलती है 

श्री राम मेरे स्वामी हैं - दास्य (हनुमान)
श्री कृष्ण मेरे सखा हैं - सखी (मधुमंगल) 
श्री कृष्ण मेरे पुत्र हैं - वात्सल्य (यशोदा)
श्री कृष्ण मेरे कान्त है - मधुर (श्रीराधा)

दास्य, सख्य, वात्सल्य वालों की भक्ति मैं 
भक्ति सम्बन्ध के पीछे चलती है - संबंधानुगा 

मधुर भक्ति मैं श्री कृष्ण की सव विध सेवा 
पहले चलती है - सम्बन्ध गौण  है - पीछे चलता है - प्रेमानुराग 

दास्य मैं केवल सेवा है, सुख्य मैं सेवा भी है सखा भाव भी है 
वात्सल्य मैं सेवा है, सख्य है पाल्य लाल्य भाव भी है 
मधुर मैं सेवा है, सख्य है, पाल्य - लाल्य भाव भी है और कांता प्रेम भी है
मधुर रसोपासक को श्री कृष्ण का सर्व विध 
सुख, आनंद विधान करना है - सम्बन्ध की अपेक्षा नहीं है |

sambandhanuga bhakti

Saturday 19 May 2012

212. teen nishtha : dharm, swaroop, neeti





तीन काम : तीन निष्ठा 

धर्म निष्ठ - पुण्य अर्जित 
इनकी धर्म मैं निष्ठा होती है | 
ये धर्म का पालन करते हुए पुण्य अर्जित करते हैं 
और इस लोक में आगामी जन्म में सुख भोग करते हैं | 
अधिक से अधिक स्वर्ग प्राप्त कर वहां दिव्य सुख भोगते हैं | 

स्वरूप निष्ठ - भक्ति  की ओर 
इन्हें अपने स्वरूप का ज्ञान होता है की में नित्य श्री कृष्ण का दास हूँ | 
उनकी सेवा, उनकी भक्ति ही मेरा मुख्य काम है,जीवन का उद्देश्य है | 
अत: ये भगवतभक्ति में सम्पूर्ण रूप से लगकर 
भगवान् की चरणों की सेवा प्राप्त कर लेते है |

निति निपुण - व्यवहार कुशल 
इन्हें नीति यानी उचित - अनुचीत का ज्ञान होता है 
लोग कैसे प्रसन्न होते हैं | ये भली प्रकार जानते हैं | 
अत : ये कुशल व्यापारी होते हैं | 
सभी से प्रेम सोहार्द पूर्ण व्यवहार करते हुए इसी लोक में 
यश व सम्मान को प्राप्त करते हैं |

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

 teen nishtha : dharm, swaroop, neeti

Friday 18 May 2012

211. kitna dabte hn ?





कितना दबते हैं

अभद्र या शालीनता रहित अहंकार पूर्ण दुर्व्यव्हारी 
व्यक्ति से लोग इसलिए दूर दूर रहते हैं या बात 
नहीं करते हैं या कम बात करते हैं कि क्यों 
इस घटिया बन्दे के मुंह लगा जाय | 

लेकिन वह अभद्र यह समझता है देखो ! 
लोग मुझसे कितना दबते हैं कितना भय खाते है 

उसकी यह दुष्टता पूर्ण सोच उसे और अधिक अव्यव्हारी 
एवं दुष्ट बना देती है 
और वह अपने सर्वनाश कि ओर अग्रसर होता रहता है |  

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Wednesday 16 May 2012

210. chhipa vyakti



छिपा व्यक्ति



हमारा 
व्यवहार या स्वभाव या हमारी पोस्ट व चित्र 
ही हमारे 
व्यक्तित्व या हममें छिपे हुए 
व्यक्ति से मिलवाता  हैं
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Thursday 10 May 2012

209. chaitanya-charitamrit jayanti

आज चैतन्य चरितामृत जयंती है 

श्री चैतन्य चरितामृत गौडीय सम्प्रदाए  का आधार ग्रन्थ  है !
श्री कृष्णदास  कविराज गोस्वामी रचित यह ग्रन्थ महाप्रभु श्री चैतन्य एवं  नित्यानंद प्रभु की 
जीवन लीला एवं सिद्धांत तथा दर्शन का ग्रन्थ है ! 
अध्यन मनन  के साथ साथ यह विग्रह स्वरुप होकर अनेक गृह मंदिरों में पूजित भी होता है !

यदि पूरण मनोयोग से इस ग्रन्थ को पढ़ और समझ लिया तो लोकिक एवं 
जीव जगत माया एवं दैनिक संशैयों का निवारण हो जाता है !
दो तीन चार बार पढने से यह ह्रदय में स्थापित हो जाता है! फिर कोई संशय नहीं,
भ्रम नहीं, दुःख नहीं| रहता है आनंद ही आनंद !

यह ग्रन्थ मूल रूप में बंगला में लिखित है! 
श्री श्यामदास जी द्वारा इसका हिंदी अनुवाद किया गया! श्री नित्यानान्दिनी टीका लिखी!
यह ग्रन्थ विशाल रूप में मूल पयार सहित हिंदी में उपलब्ध है!
यह संभवत एक मात्र संस्करण हैं ,जो सम्पूरण विश्व में हिंदी में उपलब्ध हैं !
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Wednesday 9 May 2012

208. granth, vigrah, sant



ग्रन्थ : श्री विग्रह : संत - मेरे तीन स्वरूप 

तीनों ही मेरे स्वरूप हैं इन तीनों में मेरा आविर्भाव है 
१ ग्रन्थ - शास्त्र 
२ श्री विग्रह मूर्ति 
३ संत 

मेरा  अपराधी बच सकता है पर मेरे भक्त का अपराधी नहीं बचेगा |
मेरे भक्तअम्बरीश का अपराध करने पर दुर्वाषा तीनों लोकों मैं भागते रहे 
अन्ततः अम्बरीश से अपराध क्षमा करने पहुंचे तो परम भक्त परम दैन्य 
अम्बरीश ने  ही उन्हें निर्भय किया और कहा की आपने तो मरे प्रति अपराध किया ही नहीं |

संत और भक्त भी वास्तविक हो 
भक्ति का मुख्य लक्षण है - दैन्य या दीनता 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

granth, vigrah, sant

Saturday 5 May 2012

207. PEEPAL KA PED


पीपल का वृक्ष कैसे लगेगा ?

'वृक्षनाम अश्वत्थोअहं'-गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है. वृक्षों में, मैं पीपल हूँ. 
आम , नीम  या अन्य वृक्ष  बीज-खाद-जल  डालकर लगाये जाते हैं. लेकिन 
पीपल इस प्रकार नहीं लगता. कभी नहीं लगता.

-पीपल के वृक्ष पर कौआ बैठकर उसके बीज या फल को खता है
 और फिर "बीठ" (मल त्याग) करता है. जहाँ वह बार-बार बीठ करता है
 उसकी बीठ एवं उस खाये हुए बीज के कारण पीपल वृक्ष स्वतः लग जाता है.

-एक बार स्वतः लग जाने के बाद थोड़ा बड़ा होने पर 
भले ही फिर माली उसे वहां से उठाकर खुले स्थान पर दुबारा से लगा देते हैं.

-जिस प्रकार पीपल का बीज भी है और कौवे की "बीठ" भी है. 
लेकिन कौवे के बिनाइ पीपल का फलित होना संभव नहीं है. उसी प्रकार ग्रंथो में विभिन्न मंत्र है. 
उनकी विधि है. सब कुछ है, लेकिन 
श्रीगुरुदेव द्वारा उसे विधिवत काम में फूके बिना, वह मंत्र फलदायी नहीं होता है.

-श्रीनामदेव परम संत थे. प्रभु से साक्षात बात करते थे. लेकिन एक दिन परीक्षा के समय उन्हें
 'कच्चा घड़ा' निर्धारित किया गया. 
क्योंकि सब कुछ  होते हुए वे 'अदीक्षित' थे. यह ज्ञान होने पर उन्होंने तुरंत दीक्षा प्राप्त की.

-अतः भक्ति पथ में आने पर गंभीरता से यदि कुछ  पाना है तो संत-सद्गुरु से दीक्षा परम  आवश्यक  है.
 हमारा भजन व्यर्थ तो नहीं जायेगा लेकिन पूर्ण  फल भी नहीं देगा.
JAI SHRI राधे
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

संत नामदेव

Thursday 3 May 2012

206. praarabdh



प्रारब्ध 

१. हानि
२. लाभ 
३. जीवन 
४. मरण 
५. यश 
६. अपयश 
-ये ६ प्रारब्ध के वश में हैं. प्रारब्ध क्या है? पिछले जन्म 
में किये गये अच्छे-बुरे कर्मों के फल का इस जन्म में मिलना ही प्रारब्ध है.

-'दैव-दैव आलसी पुकारा'-सब कुछ प्रारब्ध या दैव के अधीन है-ऐसा आलसी कहते हैं.
-यदि ये मान ही लिया जाए कि पूरा जीवन प्रारब्ध के वशीभूत है 
और पिछले जन्म के कर्मों के फल का नाम प्रारब्ध है तो आगामी जन्म का 
प्रारब्ध बनाने के लिये भी तो इस जन्म में कर्म करने चाहिए.

-अतः अवश्य ही कर्म-कार्यों में परिश्रम से अवश्य लगे रहना चाहिए.
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

praarabdh

Wednesday 2 May 2012

205. PAP KA FAL


परिवार नहीं भोगेगा ?

वाल्मीकि एक व्याध  या बहेलिया थे. वृक्षों पर बैठने वाले पक्षियों का शिकार करना-
उसे पकाकर खाना, बेचना यह उनका स्वाभाविक  कर्म  था. इसी से वे परिवार का पालन पोषण  करते थे.

एक दिन वहां से गुजरते समय नारद ने देखा तो पूछा कि तुम जो यह काम करते हो-यह जीव हिंसी है और यह पाप है.
यद्यपि उनकी समझ में बात कहाँ आनी थी लेकिन भगवान के 'मन' नारद जब किसी को समझाना चाहें, 
और समझ न आये-ऐसा हो नहीं सकता. अतः क्षण भर में यह समझ आ गया कि यह पाप है. 

वाल्मीकि ने कहा कि यह पाप मैं केवल अपने पेट के लिए नहीं करता हूँ. मेरे माता-पिता, पत्नि पुत्र 
आदि हैं-वे सभी थोड़ा थोड़ा फल  भोगेंगे. नारद ने कहा-जरा तुम पूछलो-क्या वे तैयार हैं. 
नारद ने जब पूछा तो सभी बोले-हम क्यों भोगेंगे. तुम पाप करते हो तुम भोगोगे.

वाल्मीकि की आँखें  खुल  गयीं. प्रभु कृपा करें हमारी भी खुल जांये. भले ही परिवार-पालन के लिए सही, 
जो भी झूंठ फरेब, छल, कपट, मक्कारी, अन्याय हम करते हैं, उसका फल हमें ही भोगना है-दूसरा नहीं भोगेगा. 
यह निश्चित है. अतः आज से ही सावधान होने की आवश्यकता है.

तब दूसरे के लिए पाप कमाने में तो समझदारी नहीं है. 
वाल्मीकि के समझ आने पर पाप से मुक्ति का उपाय पूछने पर नारद ने कहा-'राम' 'राम' जपो.
वाल्मीकि ने कहा-मैंने तो जीवन भर 'मरा' 'मरा' सुना है और मारा ही है. नारद बोले-'मरा' 'मरा' ही जपो.

इनका नाम कुछ और था. इन्होने अन्न, जल त्याग कर लगातार हजारों वर्ष तक एक आसन पर 
इतना जप किया कि इनके शरीर के इर्द गिर्द मिट्टी की एक परत जम गयी और उस पर दीमक चींटियाँ लग गयीं.
उस एक ढ़ेर को 'वाल्मीकि' कहते हैं. इसी से इनका नाम वाल्मीकि हुआ.

इन्होंने संस्कृत में रामायण की रचना की. 
पुनः दूसरे जन्म में तुलसी बनकर रामचरित मानस की हिंदी में रचना की, जो जग पूज्य है.
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

pap ka fal परिवार नहीं भोगेगा