Wednesday 31 October 2012

267. PRASAD CHINMAY




चिन्मय प्रसाद


प्रसाद में चिन्मयता तभी आती है, जब
उसे प्रभु ने स्वीकार कर पा लिया हो !

और स्वीकार तभी होता है, जब
पूर्ण शुद्धता एवं मर्यादा का पालन करते हुए
भाव, श्रद्धा व शास्त्रानुसार बनाया हो

अन्यथा वह भी राजसिक, तामसिक, गुणों
से युक्त एक पदार्थ ही है

प्रसाद चिन्मय है या नहीं, यह पता न होने
पर  प्रसाद का एक कण  लेकर प्रणाम करना चाहिए

चिन्मय है तो ठीक, नहीं तो दुष्प्रभाव
बहुत कम होगा

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban
www.shriharinam.blogspot.com

Saturday 27 October 2012

266. VATAAVARAN KA PRABHAV



वातावरण का प्रभाव 

जीवन में लक्ष्य प्राप्ति हेतु वातावरण का 
क्या योगदान होता है -यह बहुत पढ़ा और लिखा  था 

लेकिन शायद  पहली बार अनुभव भी किया 
जब मैने एक वैष्णव  मित्र के साथ तिन दिन दो रात्रि 
श्री राधाकुंड में वास किया 

265. PREM K PRAKAAR


प्रेम के प्रकार

१. सात्विक 
इस प्रेम में केवल देना ही देना स्वभाव बन जाता है 
उसका सुख, उसकी अनुकूलता ,उसके लिए सब कुछ 

भक्ति यद्यपि त्रिगुणातीत है लेकीन इसे भी भक्ति या शुद्ध प्रेम कह सकते है 

२. राजसिक 
इस प्रेम में लेना व देना दोनों चलते है 
मैने तुमको इतना प्रेम किया - बदले में तुमने मुझे क्या दिया ? 
बस यह दिया ? यही सिला दिया मेरे प्यार का ?

३. तामसिक 
प्रेम के कारण जान  देने या लेने को उतारू हो जाना 
जेसे कि  आतंक वादी  
उसे भी कुछ न कुछ प्रेम हो जाता है की वह उसके लिए 
दुसरे की जान लेने और अपनी जान देने को तैयार रहता है 

सर्वोत्तम :  प्रेम -  भक्ति 
और इन तीनों  से परे श्री कृष्ण की अनुकुलतामयी 
स्वसुख गंध लेश शून्य जो क्रिया  है -वह है भक्ति 

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Thursday 25 October 2012

264. DASHAHRAA


दशहरा 

आज एक फोन आया 
'और दशहरा कैसा मना ?'

मैंने कहा- भाई मेरे इर्द-गिर्द कोई 
रावण है ही नही या शायद मुझे दिखता नहीं 

तो कैसा दशहरा ???

ये तो गोविन्द की नगरी वृन्दाबन  है,
यहाँ तो बस आनंद ही आनंद है 
न रावण है न दशहरा !!! 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Saturday 20 October 2012

263. gopi prem

विशुद्ध प्रेम 

गोपियों को कृष्ण से विशुद्ध प्रेम था

कृष्ण ब्रज में रहे , या मथुरा 
या द्वारका - इस बात से कोई फर्क नहीं पढ़ता है 

श्री कृष्ण को द्वारका में सुख है तो 
गोपियो इसी  में ही प्रसन्न  है 

वे कृष्ण के सुख में सुखी है, उनका अपना कोई  सुख नहीं है 
हमारे प्रियतम कही भी रहे ,कैसे  भी रहे
वे हमारे है उनका सुख एवं आनंद विधान 
ही हमारे प्रेम का आधार है 

यही शुद्ध प्रेम है 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA



gopi prem

263. gopi prem

विशुद्ध प्रेम 

गोपियों को कृष्ण से विशुद्ध प्रेम था

कृष्ण ब्रज में रहे , या मथुरा 
या द्वारका - इस बात से कोई फर्क नहीं पढ़ता है 

श्री कृष्ण को द्वारका में सुख है तो 
गोपियो इसी  में ही प्रसन्न  है 

वे कृष्ण के सुख में सुखी है, उनका अपना कोई  सुख नहीं है 
हमारे प्रियतम कही भी रहे ,कैसे  भी रहे
वे हमारे है उनका सुख एवं आनंद विधान 
ही हमारे प्रेम का आधार है 

यही शुद्ध प्रेम है 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA



gopi prem

263. gopi prem

विशुद्ध प्रेम 

गोपियों को कृष्ण से विशुद्ध प्रेम था

कृष्ण ब्रज में रहे , या मथुरा 
या द्वारका - इस बात से कोई फर्क नहीं पढ़ता है 

श्री कृष्ण को द्वारका में सुख है तो 
गोपियो इसी  में ही प्रसन्न  है 

वे कृष्ण के सुख में सुखी है, उनका अपना कोई  सुख नहीं है 
हमारे प्रियतम कही भी रहे ,कैसे  भी रहे
वे हमारे है उनका सुख एवं आनंद विधान 
ही हमारे प्रेम का आधार है 

यही शुद्ध प्रेम है 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA



gopi prem

Tuesday 16 October 2012

262. vaishnav navraatra



वैष्णव नवरात्र 

नवरात्र में दुर्गा पूजा अति प्रचलित है 
दुर्गा प्रभु की एक शक्ति है। अनेक दुर्गाओं  का वर्णन 
ग्रंथों में प्राप्त होता है .

आदि दुर्गा वैष्णवों के श्री गोपाल-मंत्र की अधिष्ठात्री है 
यह अति-दुर्गम=कठिन श्री कृष्ण भक्ति को देने वाली है।
-इस भाव से की गयी दुर्गा-पूजा भक्ति का एक अंग हो सकती है 
दुर्गा को स्वतंत्र शक्ति मन कर की गयी पूजा शाक्त-पूजा है 

वैसे वैष्णवों को इन 9 दिनों में इन 9 अंगों का श्रद्धा सहित 
विशेष अनुष्ठान पूर्वक पालन करना चाहिए 

1. श्रवण = कथा या ग्रंथ्-पाठ  सुनना
2. कीर्तन = संकीर्तन का आयोजन 
3. स्मरण = जप पूर्वक प्रभु का स्मरण 
4. पाद सेवन = श्री विग्रह की विशेष चरण सेवा व चरण दर्शन 
5. अर्चन = श्री विग्रह की विशेष श्रृंगार आदि से सेवा-अर्चना, आरती  
6. वंदन = पद गान द्वारा प्रभु की आज विशेष वन्दना 
7. दास्य = में प्रभु का नित्य दास हूँ -इस भाव को दृढ़ करते हुए प्रभु-सेवा में लगना 
8. सख्य = प्रभु ही मेरे सच्चे मित्र है - इस भाव को दृढ़ करते हुए प्रभु-सेवा में लगना 
9. आत्म निवेदन = अपने आप को सब प्रकार से प्रभु को समर्पित करना  

इस प्रकार नवरात्र का आयोजन करना वैष्णव नवरात्र है   

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Monday 15 October 2012

261. gopiyon ko kya fark hai

गोपियों को फरक नहीं पड़ता 

ब्रज गोपियों को किसी ने सन्देश दिया की 
आज तो श्री कृष्ण ने मथुरा की कुबड़ी 'कुब्जा ' को 
अपना लिया है , अब  वह तुम्हारे नहीं रहे 

Saturday 13 October 2012

260 heere se kanch


हीरे से कांच काटना 

हीरा एक बहुमूल्य वस्तु  है
इसे प्राप्त कर इससे कोई यदि कान्च काटता  है तो ठीक है 
लेकिन यह इसका सर्व श्रेष्ठ उपयोग नहीं है 

Friday 12 October 2012

259. RASTRAPATI NHI BAN SKTE




राष्ट्रपति नहीं बन सकते 

आज एक आप-हम जैसा साधारण व्यक्ति 
एड़ी छोटी का जोर लगा ले तब भी वह अगले पञ्च वर्षों में 
भारत का राष्ट्रपति नहीं बन सकता 

लेकिन यदि कोई हम -आप जैसा साधारण व्यक्ति 
पांच वर्ष तक एड़ी- छोटी का जोर लगाकर 
भजन में लग जाय तो भगवद भक्ति प्राप्त कर सकता है 

कहाँ सामान्य सा पद और कहाँ परम पद 
लेकिन कितना सहज 

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

 RASTRAPATI NHI BAN SKTE

Thursday 11 October 2012

258. gandee baat


गन्दी बातें 

गन्दी बातों की प्रशंसा करो या विरोध 
दोनों ही स्थितियों में 
नैगाटिव वाईबरेशंस प्रचारित होती है 

भ्रष्टाचार का विरोध तो जो हुआ सो हुआ,
इससे भ्रस्ताचार का प्रचार अधिक हुआ है 

जिन्हें पता नहीं था, उन्हें भी पता चल गया 
और शायद वे भी अब बिना डरे भ्रष्टाचार का आश्रय लेंगे 

अतः केवल व केवल अच्छी बातों के बारे में ही 
बात होनी चाहिए, गंदी बातें सदा से थी , सदा रहेंगी 
इन्हें दफनाते रहना चाहिए  

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Tuesday 9 October 2012

257. MAN DHAN



मन चाहिये या धन ?

किसी लोकिक व्यक्ति  से 
हम कहें  कि -भइया ! मन से हम 
तुम्हारे साथ है , हमारा मन तुम्हारे साथ  है,
तन असमर्थ है ,धन हमारे पास है नहीं 
तो वह आपको अपने पास फटकने  नहीं देगा 

और श्री कृष्ण !
वे तो तन और धन चाहते ही नहीं है 
उन्हे तो केवल और केवल मन ही चाहिए 
मन दिया तो सब दिया , हो गए वे आपके और आप उनके
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Friday 5 October 2012

256. RAS KA PATR

RAS KA PATR


रस का पात्र

'रसो वै सः'
भगवान् रस स्वरुप है

रस के विषय में जाननने के लिए
आवश्यक है कि एक पात्र हो, जिसमे रस 
डाल कर रस के स्वरूप, मात्रा, आनंद आदि का
ज्ञान प्राप्त हो .

Tuesday 2 October 2012

255. SAHAAYATAA KYON NAHI ??



सहायता क्यों नहीं??

एक बालक एक बार अपने पिता के साथ किसी कैदी
से मिलने जेल गया

वहां उसने देखा कि-
१. एक व्यक्ति की पिटाई हो रही है
२. एक व्यक्ति को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा है
३. एक व्यक्ति=कैदी को मिलने वालों से मिलने नहीं दिया गया
आदि...आदि.....

बच्चे ने अपने पिता से कहा-
आप इतनी समाज सेवा करते हो, आप इन लोगिन की सहायता 
क्यों नहीं करते हो ???

पिता ने कहा- बेटे ये अपराधी हैं, इन्होने क़त्ल किया है, चोरी की है
अत्याचार किया है, - ये लोग अपने बुरे कामों की सज़ा काट रहे हैं
इन्हें इसलिए दण्डित किया जा रहा है जिससे ये दुबारा बुरे काम=अपराध न करें

ठीक इसी प्रकार विभिन्न जीव जो दुःख भोग रहे हैं
ये उनके बुरे कामों की सज़ा है, जैसे बालक नहीं जानता
वैसे ही हम नहीं जानते हैं, लेकिन जो शास्त्र हैं, संत हैं, वे त्र्कालाग्य है
वे जानते हैं, वैसे भी भगवान् से तो पाप पुण्य का कोई सम्बन्ध नहीं है
भगवान् तो भक्ति व भक्त से सम्बन्ध रखते है.
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

254. tumhare PAAP KA FAL



तुम्हारे पाप का फल है ये !

एक व्यक्ति का मकान अचानक चकनाचूर हो गया
वह दुबारा मकान बनाने की स्थिति में नहीं था, अतः झल्लाकर
धर्माचार्यों के पास गया और कहा कि-

आप भगवान् के अति निकट हैं, आप भगवान् से
प्रार्थना करके मेरा मकान दुबारा बनवा दीजिये

धर्माचार्यों ने भगवान् से बात की, और असलियत का पता लगाया
और उस बन्दे को बताया कि -

तुम पिछले जन्म में एक बिल्डर थे, तुमने बहुतों को बेघर किया था
तुम्हे उस पाप कि सज़ा मिली है, और अब तुम्हे भी पूरे जीवन
इधर-उधर भटकना होगा, अब तुम्हारे भाग्य में मकान नहीं है

वह बन्दा झल्ला गया, बोला में पिछले जन्म को नहीं मानता हूँ
धर्माचार्यों ने कहा, ठीक है, तो भगवान् को भी मत मानो
पिछ्ला जन्म, भगवान्, धर्म, शास्त्र, कर्म, पाप, पुण्य आदि यह पूरा package है
मानो तो पूरा, न मानो तो पूरा मत मानो,

नहीं मानते तो फिर तुम्हारा मकान गिरा, 
तुम जानो, इससे धर्म का , भगवान् का क्या मतलब ???
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Monday 1 October 2012

253, SHUDDH PREM



शुद्ध प्रेम

कामना, वासना, स्वार्थ, या किसी
मकसद के लिए किया गया प्रेम लौकिक है
यह उद्देश्य-पूर्ती के साथ-साथ समाप्त हो जाता है या ढीला पड़ जाता है

विशुद्ध प्रेम आत्मिक है, आत्मा की वस्तु है
शरीर रहे न रहे, मकसद रहे न रहे, प्रेम  रहता ही है
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA