🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
⚡⚡ब्रज की उपासना⚡⚡
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
🌼पाना क्या और कैसे🌼🌼
👀 मैं कौन हूं ?👀
🍃 🌱प्रायः लौकिक जगत् में 'मैं' का भाव अपने नाम- युक्त इस शरीर से लगाया जाता है। लेकिन दार्शनिक दृष्टि से 'मैं' शब्द- जीव का वाची है। अर्थात् 'मैं' यानि जीव। शरीर बढ़ता है, घटता है ,उत्पन्न होता है, मरता है। लेकिन 'जीव्' या जीवात्मा न मरता है न जन्मता है, न घटता है, न बढ़ता है। यह अनादि है यानि यह प्रारंभ से है ही। नित्य है। शाश्वत है। पुरातन है।🌱🍃
🍃🌱ईश्वर की तीन शक्तियों- स्वरूपशक्ति, तटस्थाशक्ति, माया शक्ति में से तटस्था शक्ति का अंश है जीव । तटस्था यानि यह तट पर विराजमान् है- एक और इसे माया( मैं- मेरा) अपनी और खेंचते हैं। दूसरी और संत- वैष्णव जन इसे प्रभु की और खेंचते हैं।
😎 इसमें इतनी शक्ति । स्वतंत्रता । सामर्थ्य भी है कि जिधर चाहे जा सकता है । लेकिन चित्त की मलिनता के कारण ये मालिन माया की तरफ ही जाता है ।
जीव इश्वर की शक्ति होने से ईश्वर का ही एक अंश है। ईश्वर नहीं है ।यह कमल एवं कमल की सुगंध की भांति है। कमल के बिना सुगंध नहीं। लेकिन सुगंध अलग है- कमल अलग है। इसे गौड़ीय दर्शन में अचिन्त्य भेद-अभेद कहा जाता है।🌱
✔ एक जीव को
करना क्या है?✔
🍃🌱 अब जब यह समझ आ गया कि मैं शरीर नहीं हूँ। मैं ईश्वर की अंशभूत एक शक्ति हूँ; तो प्रश्न उठता है कि मुझे क्या प्राप्त करना है और कैसे? मेरा कार्यक्षेत्र क्या है?
😳 यही सबसे कठिन बात है। इसे समझना ही आवश्यक है। मुझे जो प्राप्त करना है उसे हम कहेंगे-'साध्य'। और उस 'साध्य' को जिसके द्वारा प्राप्त किया जाएगा- उसे कहेंगे 'साधन'।🌱🍃
क्रमशः
🌺जय श्री राधे
🌺जय निताई
लेखकः
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन
प्रस्तुति ।
किंकरी मीनाक्षी दासी🐠🐠
⚡⚡ब्रज की उपासना⚡⚡
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
🌼पाना क्या और कैसे🌼🌼
👀 मैं कौन हूं ?👀
🍃 🌱प्रायः लौकिक जगत् में 'मैं' का भाव अपने नाम- युक्त इस शरीर से लगाया जाता है। लेकिन दार्शनिक दृष्टि से 'मैं' शब्द- जीव का वाची है। अर्थात् 'मैं' यानि जीव। शरीर बढ़ता है, घटता है ,उत्पन्न होता है, मरता है। लेकिन 'जीव्' या जीवात्मा न मरता है न जन्मता है, न घटता है, न बढ़ता है। यह अनादि है यानि यह प्रारंभ से है ही। नित्य है। शाश्वत है। पुरातन है।🌱🍃
🍃🌱ईश्वर की तीन शक्तियों- स्वरूपशक्ति, तटस्थाशक्ति, माया शक्ति में से तटस्था शक्ति का अंश है जीव । तटस्था यानि यह तट पर विराजमान् है- एक और इसे माया( मैं- मेरा) अपनी और खेंचते हैं। दूसरी और संत- वैष्णव जन इसे प्रभु की और खेंचते हैं।
😎 इसमें इतनी शक्ति । स्वतंत्रता । सामर्थ्य भी है कि जिधर चाहे जा सकता है । लेकिन चित्त की मलिनता के कारण ये मालिन माया की तरफ ही जाता है ।
जीव इश्वर की शक्ति होने से ईश्वर का ही एक अंश है। ईश्वर नहीं है ।यह कमल एवं कमल की सुगंध की भांति है। कमल के बिना सुगंध नहीं। लेकिन सुगंध अलग है- कमल अलग है। इसे गौड़ीय दर्शन में अचिन्त्य भेद-अभेद कहा जाता है।🌱
✔ एक जीव को
करना क्या है?✔
🍃🌱 अब जब यह समझ आ गया कि मैं शरीर नहीं हूँ। मैं ईश्वर की अंशभूत एक शक्ति हूँ; तो प्रश्न उठता है कि मुझे क्या प्राप्त करना है और कैसे? मेरा कार्यक्षेत्र क्या है?
😳 यही सबसे कठिन बात है। इसे समझना ही आवश्यक है। मुझे जो प्राप्त करना है उसे हम कहेंगे-'साध्य'। और उस 'साध्य' को जिसके द्वारा प्राप्त किया जाएगा- उसे कहेंगे 'साधन'।🌱🍃
क्रमशः
🌺जय श्री राधे
🌺जय निताई
लेखकः
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन
प्रस्तुति ।
किंकरी मीनाक्षी दासी🐠🐠
No comments:
Post a Comment