Friday 30 September 2016

अनर्थ निवृत्ति

​✔  *अनर्थ निवृत्ति*    ✔

▶ भक्ति के क्रम विकास में चौथे नंबर पर
अनर्थ निवृत्ति का वर्णन है

▶ अर्थात पहले श्रद्धा होती है
भजन आनंदी वैष्णवों का संग होता है
उसके बाद भजन करना प्रारंभ होता है
उसके बाद अनर्थों की निवृत्ति होती है
इसके बाद फिर 5 से 8 तक है

▶ अनर्थ निवृत्ति का जहां माधुर्य कादंबिनी में वर्णन किया गया है । वहाँ समस्त प्रकार के पाप अमंगल के नष्ट होने की बात कही गई है

▶ लेकिन इसमें सूक्ष्मता यही है कि जो पाप, जो अड़चनें भगवान की भक्ति में होती हैं  । वही अनर्थ है और उनको ही दूर किया जाता है । अथवा दूर होती हैं

▶ कुछ ऐसी अड़चने जो दिखने में तो पाप का फल लगती हैं लेकिन वह भक्ति में कदापि बाधा नहीं करते । अपितु देखा जाए तो सहायक होती है । वे दूर नही होती ।

▶ उदाहरण के लिए । कोई संत हैं । अच्छे संत है। वह यदि बिस्तर पर हैं और चल फिर नहीं सकते हैं । हम लोगों को तो यह अनर्थ दिखता है।

▶ लेकिन वास्तव में यह उन संत के भजन में सहायक है । हम सोचे यदि वह संत चल फिर सकते । तो आज मेरे घर मुख्य अतिथि बनकर । कल दिल्ली में । परसों पुरी में । अगले दिन इलाहाबाद में । अगले दिन उड़ीसा में । वह आते रहते जाते रहते । भाषण देते रहते । लोगों से मिलते ।

▶ और उनका जो एक बिस्तर पर रहते हुए अंतरंग भजन हो रहा है वह कदापि नहीं होता । बाह्य वृत्तियों में लगने के कारण उनकी भोजन में अशुद्धि होती । वृत्ति में चंचलता होती । धाम छूटता और भी न जाने कितने कितने क्लेश राग-द्वेष उनकी जान  खाते ।

▶ अतः उनका यह बिस्तर पर लेटे रहना अनर्थ नहीं है अपितु भजन में सहायता ही है । तो ऐसी चीजों को, ऐसे दोषों को, जो लगते तो दोष हैं लेकिन वह दोष नहीं है । भजन में सहायक हैं, ऐसे अनर्थ लगने वाले स्थितियोंको जानबूझकर भजन नष्ट नहीं करता है ।

▶ क्योंकि यह वास्तव में भजन जगत के अनर्थ है ही नहीं । हमें यह अनर्थ लगते हैं  । यह भजन के सहायक हैं ।

▶ और भजन के विरोधी जो अनर्थ होते हैं, उनको भजन से अनर्थ निवृत्ति के अंतर्गत भजन क्रिया नष्ट कर देती है  । बहुत सूक्ष्म चिंतन है । दीखता क्या है होता क्या है । वाह । जय जय ।



🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
 
अनर्थ निवृत्ति
 

Tuesday 27 September 2016

भक्ति अर्थात ??

​ ✔  *भक्ति अर्थात ??*    ✔


▶ जो देश के लिए समर्पित हो जाये
वह देश भक्त

▶ जो पिता के लिए समर्पित हो जाये
वह पितृ भक्त

▶ जो माता के लिए समर्पित हो जाये
वह माता भक्त

Monday 26 September 2016

​पेट में चाक़ू


​पेट में चाक़ू

✔  *​पेट में चाक़ू*    ✔


▶ कारण या भाव ही मुख्य होता है । देखने में या करने में एक सा लगने वाला कार्य पर निर्भर करता है कि उसमें कारण क्या है या भाव क्या है

▶ हम अपनी बेटी । अपनी मां । अपनी पत्नी । तीनों से आलिंगनबद्ध होकर मिलते हैं
देखने में क्रियाएं एक ही हैं । लेकिन मिलने के भाव में जमीन आसमान का अंतर होता है

▶ बेटी को वात्सल्य देने का भाव होता है
माता से वात्सल्य लेने का भाव होता है और
पत्नी से माधुर्य भाव रहता है

Sunday 25 September 2016

एक्सपार्ट = गुरु

​✔  *एक्सपार्ट = गुरु*    ✔

▶ र्जिस प्रकार
आप जिससे डांस सीख रहे हो,
वह डांस का जानने वाला या एक्सपर्ट
होना चाहिए,

Saturday 24 September 2016

​साधु वैष्णव सेवा

​✔  *​साधु वैष्णव सेवा*    ✔

▶ 2 या 4 या 10 वैष्णवों को घर पर बुला लेना उन्हें खीर पूरी हलवा सब्जी रायता का प्रसाद खिला देना । 50 । 100 रूपय दक्षिणा देना वस्त्र  देना । प्रणाम कर लेना ।

▶ अथवा किसी आश्रम में ही 25 या 50 वैष्णवों की प्रसाद सेवा आदि कर देना और एक मुश्त राशि आश्रम में दे देना बहुत ही अच्छी बात है।

▶ बहुत सुंदर है । ऐसा करना ही चाहिए । यह भक्ति अंग के वैष्णव सेवा के अंतर्गत आता है

Thursday 22 September 2016

अर्थ और अनर्थ

​​✔  *​अर्थ और अनर्थ*    ✔ 

▶ धर्म अर्थ काम मोक्ष
यह चार मनुष्य के पुरुषार्थ हैं । पुरुषार्थ माने इन चारों को अथवा चार में से किसी एक को प्राप्त करने के लिए पुरुष का, जन्म हुआ है ।

▶ यह लौकिक हैं इसके अतिरिक्त एक गुप्त एवं गोपनीय पुरुषार्थ भी है जिसे कहते हैं पंचम पुरुषार्थ प्रेम । अर्थात भगवान से प्रेम, भगवान के चरणों की सेवा ।

▶ आज अर्थ की बात करते हैं

▶ मेहनत, ईमानदारी एवं नीति पूर्ण कार्यों से अपनी आवश्यकता के अनुसार धन कमाना ही अर्थ है ।

Wednesday 21 September 2016

प्रेम भक्ति यानि उनका सुख

✔  *प्रेम भक्ति यानि उनका सुख*    ✔

▶ अरे भाई । आजकल तो बहुत बरसात हो रही है फिर आप तुलसी जी में जल क्यों दे रहे हो

▶ अरे वाह । कोई में आज जल थोड़ी दे रहा हूं मेरा तो पिछले जब से होश संभाला है तबसे तुलसी जी में जल देने का नियम है उस नियम को कैसे तोड़ दूं

▶ अरे भाई । तो यह नियम तुमने क्यों बनाया था

▶ अरे वाह । नियम तो नियम है । जीवन में नियम बनाने से जीवन व्यवस्थित होता है । और तुलसी जी को जल देने से पाप कटते हैं । भगवत भक्ति प्राप्त होती है । उनकी कृपा प्राप्त होती है । रोग निवृत्त होते हैं । कोई एक बात थोड़े ही है

▶ अरे भाई । यह सब तो ठीक है लेकिन तुलसी जी का भी कुछ ध्यान करोगे या अपना अपना करते रहोगे

▶ अरे वाह । तुलसी जी का ही ध्यान तो है ये ।

▶ अरे भाई । यदि इतना बरसात का शुद्ध जल मिलने पर भी तुम अधिक जल दोगे तो हो सकता है तुलसी जी को हानि पहुंचे और तुलसी जी रम जाएं या उनका विकास ना हो

▶ अरे वाह । यह सब बातें हम सोचेंगे तो हमारे नियम का क्या होगा । बरसात तो 4 महीने पड़ती है तो क्या हम 4 महीने नियम छोड़ दें । और नियम तोड़ने से क्या हमें पाप नहीं लगेगा हमारे नियम का क्या होगा ।

▶ अरे भाई । तुम अपने नियम की बात कर रहे हो अपनी अपनी बात कर रहे हो ।

🌹अपना कल्याण
🌹अपना पाप कटना
🌹अपना नियम

▶ यह उचित नहीं है । इसका साफ-साफ अर्थ है कि तुम अपने लिए कुछ कर रहे हो । यह स्वार्थ है यह प्रेम नहीं भक्ति नहीं है । यह मेरा नियम । मेरा कल्याण । मेरे पाप कटे । मेरा नियम । मेरा मेरा मेरा मेरा । जो संसार में लगाया वही भजन पथ में भी शुरू हो गए

▶ जबकि जिसे प्रेम कहते हैं , उसमें देना ही देना होता है , उसमें प्रेमी का , जिसके प्रति हम प्रेम कर रहे हैं , उसका सुख देखा जाता है , उसके सुख में ही सुखी रहा जाता है

▶ अरे भाई । तुमको यह सोचना चाहिए कि में जो तुलसी जी में जल देता हूं , उससे तुलसी जी को सुख मिलता है । और तुलसी जी को सुख मिले वही काम मुझे करना है

▶ यदि तुलसी जी को दुख हो , हानि हो वह काम मुझे नहीं करना है । यही प्रेम है । आप गोपियों को देखो ।

▶ भगवान कृष्ण 125 वर्ष धरा पर रहे । लेकिन गोपियों के पास केवल 10।11 वर्ष रहे ।

▶ गोपियों ने कभी शिकायत नहीं की । गोपियों को जब किसी ने बताया कि कृष्ण ने कुब्जा को पत्नी बना लिया है । तो गोपियां प्रसन्न हुई चलो अच्छा है कृष्ण को सुख मिल रहा है ना

▶ ऐसे ही द्वारका की 16108 रानियों का जब पता चला तब भी गोपियों ने यही कहा कि यह तो बहुत अच्छी बात है श्रीकृष्ण को आनंद मिल रहा है

▶ अन्यथा सौत  की खबर सुनकर कोई महिला आजतक प्रसन्न हुई है क्या ।

▶ इस प्रसन्नता का कारण केवल कृष्ण सुख । कृष्ण में सच्चा प्रेम ।

▶ यही एक वैष्णव को ध्यान रखना है । अपने नियम । अपने कल्याण । अपनी जो बात करता है वह सकाम भक्ति है । वह प्रेम नहीं है

▶ प्रेम भक्ति तो वही है , और प्रेम भी वही है जिसमें सामने वाले के सुख का,  उसके आनंद का , उस की भलाई का । उस की सुविधा का । उसकी इच्छा का । उसका ही ध्यान रखा जाए ।

▶ और आप सोचिए प्रेम में सदा दो लोग होते हैं यदि दोनों लोगों में यही भाव रहे तो हम उसका ध्यान रखेंगे और वह हमारा ध्यान रखेगा

🌹यदि हम श्रीकृष्ण के शरणागत हैं तो
🌹कष्ण भी भक्त पराधीन हैं

▶ नुकसान कुछ होने वाला नहीं है । केवल भावों का अंतर है । अतः कृष्ण भक्ति का अर्थ कृष्ण सुख । कृष्ण प्रेम का अर्थ कृष्ण सुख । और प्रेम का अर्थ ही है कृष्ण का सुख । सामने वाले का सुख । प्रेमी का सुख ।

▶ और तुलसी जी में जल देने का भाव तुलसी जी का आनद । तुलसी जी का सुख ।

🌹नियम तुलसी जी के सुख का लें ।
🌹न कि रोज़ जल देने का ।

▶ हम चिंतन करें कि हम कितने पानी में है

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn



Tuesday 20 September 2016

सुख-दुख में समान रहना

​​​​​​✔  *सुख-दुख में समान रहना*    ✔

▶ प्राय हम लोग इस विषय में बात करते हैं कि सुख हो दुख या कैसी भी परिस्थिति हो हमें चेष्टा करके समान रहना चाहिए

▶ यह बात बिल्कुल ठीक है लेकिन केवल बात से तो काम नहीं चलता । संसार में यदि हम देखें तो जिस से हमारा मतलब है उसमें हमारी वृति और चेष्टा रहती है

▶ जिससे हमारा मतलब नहीं है उसके प्रति हम अपेक्षा रहित रहते हैं और शायद सहज भी रहते हैं

▶ अभी कोई हमसे कहे के बस के दो कंडक्टर आपस में लड़ रहे थे तो हम कहेंगे लड़ने दो ना हमें क्या करना है । हमारा लेना एक न देना दो हमें बस के कंडक्टरों की लड़ाई से क्या मतलब

▶ हम तो शॉपिंग करने आए हैं जल्दी-जल्दी शॉपिंग कर लो । यहां पर केंद्र शॉपिंग पर है और कंडक्टरों की लड़ाई से कोई मतलब नहीं है मतलब इसलिए नहीं है कि हमारा केंद्र शॉपिंग है

▶ इसी प्रकार जीवन में यदि हम अपना एक केंद्र निश्चित कर लेंगे तो दूसरी बातों के प्रति हम समान हो जाएंगे

▶ जिसे धन कमाना होता है जो धन के पीछे पागल होता है वह दूसरी बातों को छोड़ देता है

▶ एक वैष्णव को भजन के पीछे पागल हो जाना चाहिए किसी भी बात को वह तभी रुचि ले जब उसके भजन में लाभ हो अथवा भजन में हानि हो

▶ भजन से कोई लेना-देना यदि ना हो तो उसमें उसकी सामान बुद्धि हो जाती है चाहे वह भोजन हो चाहे भर स्वस्थ रहो चाहे वस्त्र हो या मान अपमान अथवा कोई भी सांसारिक स्थिति परिस्थिति

▶ कस  कर जब तक हम भजन को नहीं पकड़ेगे और हर बात में भजन को मानदंड नहीं बनाएंगे तो समता भी नहीं आएगी

▶ उपेक्षा से भी समता प्राप्त होती है जैसे हमारे पडोसी का लड़का कुछ भी करें हम समान रहते हैं क्योंकि हमें अपने पडोसी से कोई लेना देना नहीं है

▶ लेकिन हमारा लड़का यदि बदमाशी करें और तब भी हम समान रहें यह है समता और इस समता का केंद्र है भजन

▶ हमारा भजन बनता रहे या भजन की हानि ना हो उसके अतिरिक्त जो होता रहे उसमें हम समान रहे

▶ लेकिन यह है बहुत कठिन । तीन परिस्थितियां होती हैं मन वचन कर्म । तो कर्म में यदि अभी आ पाए तो मन में धारण का प्रयास, बैठाने का प्रयास करना चाहिए

▶ मन में यदि बैठ जाएगा तो यह हमारी वाणी में आ जाएगा वाणी में आने से धीरे धीरे हमारी क्रिया में भी आ जाएगा

▶ 1 दिन में कुछ भी नहीं होने वाला है धीरे धीरे प्रयास से सब होगा । इतिहास गवाह है लोग सम हुए हैं । अनेक हुए हैं तो हम क्यों नहीं हो सकते ?


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn


सुख-दुख में समान रहना

Monday 19 September 2016

श्री कृष्ण की स्टाइल

 ​​​​​​✔  *श्री कृष्ण की स्टाइल*    ✔

▶ श्री कृष्ण ने कहा है 'अहम भक्त पराधीनो' ।अर्थात मैं भक्तों के आधीन हूं । और आगे भी कहा है कि जो भक्त पूर्ण रुप से मेरे शरणागत हो जाता है मैं तुरंत ही उसके वशीभूत हो जाता हूं

▶ इसका साफ-साफ मतलब यह हुआ कि कृष्ण को वशीभूत करना है तो उनकी भक्ति करो ।

▶ भक्ति माने उनकी सेवा, उनका सुख संपादन, उनकी प्रार्थना, उनकी पूजा, उनकी हां में हां, उनके सुख में सुखी ।

▶ ऐसा यदि हम करेंगे तो कृष्ण हमारे वशीभूत हो जाएंगे । वशीभूत होने का अर्थ तो हम आप सब समझते ही हैं

▶ अपने जीवन में भी यही स्टाइल अपनानी है हमें । जिसको हमे वशीभूत करना है उसकी चेला गिरी शुरु कर दें । उसके सुख में सुखी हो, उसका ध्यान रखें, उसकी बात माने, उस की सुविधा का ध्यान रखें, उस को सम्मान दें, तो वह व्यक्ति भी हमारे वशीभूत हो जाएगा

▶ फिर वह चाहे पति हो, पत्नी हो, पिता हो, पुत्र हो हम करते उलटा है जिसको वशीभूत करना हो उसको डांट के रखते हैं ।

▶ तभी यह सारे झंझट हो रहे हैं । अतः आज से यह श्रीकृष्ण की स्टाइल अपना कर देखिए । क्योंकि यह कृष्ण की स्टाइल है इसलिए गलत तो हो नहीं सकती । पक्का है । पूरी तरह पक्का है कि

▶ हम होंगे कामयाब

▶ और जब हमारे आसपास के लोग हम से प्रसन्न रहेगे, हमारे वशीभूत रहेंगे तो हमें भजन में भक्ति में किसी भी प्रकार की बाधा पहुंचाना तो दूर हमारा सहयोग करेंगे

▶ और हम आनंदपूर्वक भजन भक्ति में लगकर अपने मानव जीवन को सफल करते हुए एक ना एक दिन होंगे कामयाब
और श्री कृष्ण चरण सेवा को प्राप्त कर लेंगे

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
 
श्री कृष्ण की स्टाइल
 

Friday 16 September 2016

टाट की बोरी में डीजल

​​​​​​​✔  *टाट की बोरी में डीजल *    ✔

▶ कुछ दिन पूर्व यू एस ए से एक परिवार मेरे पास आया । उनके साथ एक साथ 8 साल का बालक भी था । बैठे रहे चर्चा होती रही

▶ जाते जाते उसकी मैया बोली । भइया जी यह लाला पूछता है के कृष्णा मेरे से आमने सामने आ कर बात क्यों नहीं करता है

▶ आप इसको बताओ । मैंने बालक को अपने पास बिठाया उसको समझाया

▶ जिस तरह हवा नहीं दिखती है लेकिन होती है और फील करनी पड़ती है

▶ जिस तरह मोबाइल का नेटवर्क नहीं दिखता है लेकिन होता है

▶ जिस तरह wifi का नेटवर्क दिखता नहीं है लेकिन होता है और कनकट करना पड़ता है

▶ वह u.s.a. का इलेक्ट्रॉनिक फैमिली बालक था एक क्षण में उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई और वह इस बात को समझ गया

▶ मैंने उससे कहा कृष्णा है तुमको फील होता है या नहीं । तो वह झट से बोला अंकल फील तो होता है । तो मैंने उससे कहा यह फील ही होगा । तुम उसको आंख से नहीं देख सकते हो

▶ बोला क्यों नहीं देख सकते हैं
मैंने उससे कहा कि वह चिन्मय तत्व है । हमारी आंखें पंच भौतिक हैं । पंच भौतिक आंखों से चिन्मय तत्व को नहीं देखा जा सकता

▶ और क्लियर किया कि जैसे एलिजिबिलिटी या पात्रता होने पर ही उस पात्र में वस्तु का समावेश होता है

▶ थोड़ा और क्लियर किया कि यदि हमें डीजल लेना है तो टाट की बोरी में हम डीजल नहीं ले सकते उसके लिए हमें केन चाहिए

▶ ठीक उसी प्रकार श्री कृष्ण आंखों से नहीं देखे जा सकते हैं वह केवल हृदय में महसूस किए जा सकते हैं

▶ यदि हृदय में महसूस हो जाते हैं तो यह पक्का मान लेना चाहिए कि आपने कृष्ण को देख लिया या महसूस किया

▶ बालक संतुष्ट हो गया  । मैं भी संतुष्ट हो गया । इस प्रकार चिन्मय विग्रह श्रीकृष्ण को चिन्मय हृदय द्वारा ही महसूस किया जा सकता है

▶ आंखों स भीे देखा जा सकता है तब जबकि श्री गुरुदेव या संत द्वारा आंखों को भी चिन्मयत्व प्रदान कर दिया जाए

▶ गहरी बात है फिर कभी चर्चा करेंगे


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn


की बोरी में डीजल

Thursday 15 September 2016

क्या करना । क्या नही करना

​​​​✔  *क्या करना । क्या नही करना *    ✔

▶ भक्ति रसामृत सिंधू बिंदु में भक्ति के 64 अंग बताए गए हैं । जिनमें से पहले 10 अंग ऐसे हैं जो करने हैं

▶ पहला है गुरु पादआश्रय अर्थात शिक्षा और दीक्षा गुरु धारण करना ।

▶ दूसरा है इन गुरुदेव से भजन की शिक्षा प्राप्त करना

▶ तीसरा है गुरुदेव की सेवा करना ।

▶ चौथा है जिन साधनों से हमारे पूर्ववर्ती आचार्य ने भक्ति की है उन्ही साधनो का पालन करना मनमानी नहीं करना

▶ पांचवा है भजन के बारे में गुरुजनों से एवं श्रेष्ठ सजातीय वैष्णवों से प्रश्न करना

▶ छठा है कृष्ण भजन के लिए सुख सुविधा जिव्हा का रस आदि का त्याग करना

▶ सातवां है धार्मिक एवं सात्विक नगरों में वास करना

▶ आठवां है भजन बनता रहे इसके लिए भोजन आदि स्वीकार करना

▶ नोवां है एकादशी व्रत और दसवां है
आवला तुलसी पीपल आदि गो  ब्राह्मण का सम्मान

▶ यह दस अंग भक्ति के द्वार कहे हैं । यह  स्वयं सिद्ध भक्ति नहीं है ।

▶ इन से होकर भक्ति तक जाना पड़ता है । इसके बाद 10 ऐसी चीजें कहीं हैं जो एक भक्त को नहीं करनी है

▶ पहला है असाधु संग त्याग

▶ दूसरा है अधिक शिष्य करण त्याग । अर्थात बहुत शिष्य या बहुत बड़ा अपना फेन फॉलोवर्स नहीं बनाना

▶ तीसरा है सांसारिक आरंभों का त्याग । कोई नया सांसारिक प्रोजेक्ट शुरू नहीं करना

▶ चौथा है शास्त्रों की व्याख्या और विवाद का त्याग

▶ पांचवा है व्यवहार में कंजूसी का त्याग

▶ छथा है शोक और क्रोध का त्याग

▶ सातवां है अन्य अन्य देवताओं की निंदा का त्याग

▶ आठवां है प्राणी मात्र के प्रति हिंसा या उद्वेग का त्याग

▶ 9वां है सेवा अपराध एवं नाम अपराधों का त्याग

▶ और 10 वां है गुरु । कृष्ण । भक्त । शास्त्र की निंदा के सहन का त्याग ।

▶ अर्थात हमारी कोई निंदा करे तो दैन्य दिखाना भी है और सहन करना भी है । लेकिन यदि कोई हमारे गुरुदेव । हमारे शास्त्र । हमारे इष्ट की निंदा करें तो सहन नहीं करना है

▶ देश काल परिस्थिति के अनुसार उसका विरोध
करना ही ह ।

▶ इस प्रकार भक्ति के भवन में प्रवेश करने के बाद इन 10 बातों का त्याग होने के पश्चात ही भक्ति का आचरण शुरू होता है

▶ यदि इन बातों पर लापरवाही हुई तो भक्ति प्रारंभ होने में अभी देर लगेगी ओर ये भी ध्यान रहे ये सब साक्षात भक्ति नहीं हैं । ये भक्ति के लिए योग्यताएं एलिजिबिलिटी हैं । इतना हम यदि कर रहे हैं तो अभी प्री एंट्रेन्स चल रहा है ।

▶ अतः आत्म निरीक्षण करते रहें हम लोग

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

क्या करना । क्या नही करना

Wednesday 14 September 2016

ग्रन्थ परिचय : नवधा भक्ति

​📖 ग्रन्थ परिचय 3⃣9⃣ 📖

💢 ग्रन्थ  नाम : नवधा  भक्ति
💢 लेखक  : ब्रजविभूति श्रीश्यामदास
💢 भाषा :  हिंदी
💢 साइज़ : 12 x 18  सेमी
💢 पृष्ठ : 40   सॉफ्ट  बाउंड
💢 मूल्य : 10   रूपये

अंतरंग या साक्षात भजन ही श्रेष्ठ लक्ष्य

​✔  *अंतरंग या साक्षात भजन ही श्रेष्ठ लक्ष्य*    ✔

▶ एक है साक्षात भजन । अर्थात नवविधा भक्ति । और नवविधा भक्ति पूर्ण नाम हैत हैय ।

▶ नाम जप या नाम संकीर्तन ही देखा जाए तो कलयुग का साक्षात भजन है ।क्योंकि नाम और नामी अभिन्न है । अपितु हरि से बड़ा हरि का नाम । कलौ केशव कीर्तनात ।

▶ कुल मिलाकर नाम में निष्ठा । नाम जप । नाम संकीर्तन और यदि प्रभु कृपा करें तो धाम का वास । यह दो चीज हमे  यदि प्राप्त हो गई तो समझिए बहुत कुछ प्राप्त हो गया

Tuesday 13 September 2016

ग्रन्थ परिचय : श्रीकृष्ण भक्ति

📖 ग्रन्थ परिचय 3⃣8⃣ 📖

💢 ग्रन्थ  नाम : श्रीकृष्ण भक्ति
💢 लेखक  : ब्रजविभूति श्रीश्यामदास
💢 भाषा :  हिंदी
💢 साइज़ : 14 x 22  सेमी
💢 पृष्ठ : 152   सॉफ्ट  बाउंड
💢 मूल्य : 15   रूपये

शास्त्र आदेश आपके लिए

​​✔  *शास्त्र आदेश आपके लिए*    ✔

▶ हम लोग प्रतिदिन कोई ना कोई ग्रंथ पढ़ते हैं । टेलीग्राम पर भी पढ़ते हैं । कथा में भी सुनते हैं । संतों से भी सुनते हैं ।

▶ शास्त्रों में साधक के लिए अनेक बातें जो बताई गई हैं, वह हम सुनते हैं,  समझते हैं

▶ बस एक गड़बड़ी कर जाते हैं। वह गड़बड़ी यह है के उन शास्त्र की बातों को हम स्वयं पालन न करते हुए दूसरों पर घटाने लग जाते हैं

▶ प्रभु जी । ठाकुर जी को बिना तुलसी दिए कोई भोग नहीं लगाना चाहिए ना लेकिन वह मिसेज वर्मा जो है वह तो बिना तुलसी के भोग लगाती हे । प्रभु जी वह ऐसा क्यों करती हे

▶ प्रभु जी प्रभु जी वस्त्र पहनकर साष्टांग प्रणाम नहीं करना चाहिए ना प्रभु जी बहुत सारे लोग करते हैं मंदिर में ऐसा क्यों करते हैं

▶ प्रभु जी एक वैष्णव को झूठा नहीं खाना चाहिए ना वह मिसेज वर्मा तो एक ही थाली में दो-तीन लोग खा लेते हैं प्रभु जी ऐसा क्यों करते हैं ऐसा नहीं करना चाहिए ना

▶ बस यही हम मात खा जाते हैं । अरे भाई शास्त्र के जो आदेश या उपदेश तुमने पढ़े तुमने समझे वो तुम्हारे लिए हैं मिसेज वर्मा को बताने के लिए नहीं ।

 ▶ तुम उन्हें अपने ऊपर लागू करो ना । दूसरों के ऊपर लागू क्यों करना चाहते हो । यह शास्त्र आदेश आपके लिए हैं  । जी हां आपके लिए । पक्का आपके लिए । आप उनको आज से अपने जीवन में पालन करना शुरू कर दो ।

▶ दूसरा कोई करे या न करे दूसरों से पालन करवाने के लिए आचार्य हैं गुरुदेव हैं श्रेष्ठ संत जन हैं वह करवाएंगे

▶ और आप देखें वह तो करवाते नहीं है और हम जो हैं दूसरों को डंडा करते रहते हैं । अतः आज से दूसरे की तरफ देखना बंद ।

▶ आदेश अपने लिए । अपने ऊपर लागू । दूसरा जैसा करेगा सो भरेगा । पूछे तो उसे बता दीजिए माने तो खुश ना माने तो खुश । आप अपने पर हम अपने पर केंद्रित रहे बस इतना ही ध्यान रखना है


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
 
शास्त्र आदेश आपके लिए

Monday 12 September 2016

ग्रन्थ परिचय : श्रीकृष्णकर्णामृत-श्रीगोविन्ददामोदरस्तोत्र

📖 ग्रन्थ परिचय 3⃣7⃣ 📖

💢 ग्रन्थ  नाम : श्रीकृष्णकर्णामृत-श्रीगोविन्ददामोदरस्तोत्र
💢 लेखक :श्री बिल्वमंगलजी
💢 भाषा : संस्कृत-हिंदी । ब्रजविभूति श्रीश्यामदास
💢 साइज़ : 12  x 18  सेमी
💢 पृष्ठ : 64   सॉफ्ट  बाउंड
💢 मूल्य : 15   रूपये

हमारी औकात


​​​✔  *हमारी औकात*    ✔

▶ जीवन में जिस प्रकार हम अपनी योग्यता अपनी शक्ति, अपने धन, अपनी शिक्षा, अपने परिवार के आधार पर ही कामनाएं करते हैं । इच्छाएं करते हैं, कार्य करते हैं । सुख साधन विलासिता जुटाते हैं

▶ उसी प्रकार भजन के क्षेत्र में भी अपनी योग्यता और अपनी परिस्थिति के अनुसार प्रवेश होता है और प्रवेश करने का आदेश है

▶ आजकल सोशल मीडिया पर भगवान की निकुंज लीलाओं को तमाशा बना दिया गया है । यह तमाशा इसलिए बना है के नाम तो भगवान की लीलाओं का और उद्देश्य अपना विषय सुख प्राप्त करने का

▶ हम अभी पहली दूसरी कक्षा के साधक हैं । निकुंज लीला एकदम अल्टीमेट क्लास है । निकुंज लीला के लिए हमें सर्वप्रथम स्त्री-पुरुष के भेद से रहित होना है ।

▶ हम यह भूल जाएं हम स्त्री है या पुरुष है  । यह पहली योग्यता जो कि सोशल मीडिया पर रहने वाले एक भी व्यक्ति में नहीं है

▶ मेरी यह गारंटी है यदि यह योग्यता आ जाएगी तो वह सोशल मीडिया पर नहीं मिलेगा निश्चित निश्चित निश्चित

▶ दूसरी योग्यता दीक्षा

▶ तीसरी योग्यता कम से कम 100000 नामजप

▶ चौथी योग्यता गुरुदेव द्वारा प्रणाली प्रदान करते हुए साधक को चिन्मय देह प्रदान करना

▶ पांचवीं योग्यता साधक को अपने स्वरूप अपने देह अपनी वयस् और अपनी सेवा का ज्ञान होना

▶ इत्यादि अनेक बातें हैं जो शायद मुझे भी अभी पूरी तरह से पता नहीं है

▶ इसको एक गंदे से  उदाहरण से समझता हूं
आपकी माता जब वस्त्र बदलती है तो शायद पिता को भी कमरे से बाहर निकाल देती है और पुत्र होते हुए भी हम उस कक्षा में प्रवेश नहीं कर सकते हैं

▶ लेकिन जब उसका ऑपरेशन होता है तो थिएटर में सारे वस्त्र उतार कर एक गाउन में उसे ले जाया जाता है और थिएटर में डॉक्टर नर्स आदि उसके गाउन को इधर-उधर करके उसका ऑपरेशन करते हैं

▶ तो यह जो है यह उस डॉक्टर और नर्सों की विशेष योग्यता है जो की पुत्र में भी नहीं है । यह उदाहरण बिलकुल भी उपयुक्त नही ।

▶ इसी प्रकार प्रिया प्रीतम की जो निकुंज लीलाएं है वहां उनके निकुंज में आलिंगन चुम्बन मिलन मान राग अनुराग की लीलाएं हैं उनमें हर किसी का प्रवेश कदापि नहीं है

▶ यहां तक कि हमारे सिद्ध स्वरूप गोस्वामी पाद भी यही प्रार्थना करते नजर आते हैं कि आपकी इन लीलाओं का दर्शन कब में किसी निकुंज के झरोखे से करूंगा

▶ तो आप हम किस खेत की मूली है और हमारी औकात क्या है कि हम ठाकुर के निकुंज की अंतरंग लीलाओं की खुले में चर्चा करें साथ ही

▶ उनका सोशल मीडिया पर चिंतन करें उनके निकुंज के चित्रों को यहां प्रकाशित करें आप सच मानिए अपने हृदय को टटोल कर देखिए कहीं न कहीं इस प्रकार की चर्चा से हम अपनी विषय सुखों को पुष्ट करते हैं

▶ मेरी गारंटी है कि हम में से किसी को भी वहां प्रवेश करने की औकात नहीं है । नहीं है । नहीं है ठाकुर की निकुंज लीलाएं केवल श्री गुरुदेव के साथ बैठकर, सिद्ध संतो के साथ बैठकर या मानसिक लीला में एकांत में बैठ कर की जाती है

▶ जहां तक पहुंचने में अभी बहुत देर हे अनेक जन्म लगेंगे अतः सावधान सावधान सावधान

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

हमारी औकात

Sunday 11 September 2016

बल बुद्धि विद्या

✔  *बल बुद्धि विद्या*    ✔

▶ सामर्थ्य या उपलब्धि या कुछ पाने के लिए या जीवन म कुछ बनने के लिए तीन विधा हैं

1। बल
अर्थात परिश्रम । मेहनत ।
यदि अपने सम्पूर्ण बल से कोई लग जाय तो वह स्फलता प्राप्त कर लेता है

2। बुद्धि
अर्थात । विचार द्वारा  । सोच द्वारा । योजना द्वारा भी अपेक्षाकृत कम परिश्रम करके भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता ह ।

▶ कम्पनियों म पालिसी मेकर इसी श्रेणी के होते हैं
व् खुद नही भागते हैं । उनकी बुद्धि भागती है ।

3। विद्या
का सामान्य अर्थ ह शिक्षा । लेकिन यहाँ है । विशेष योग्यता यानी प्रोफ़ेस्सिनल्स । जेसे डॉक्टर । वकील । कोई एक्सपर्ट । जो अपने हुनर म माहिर होता है ।

▶ तुलसीदास जी ने हनुमान जी से तीनो ही मांगे हैं

बल बुद्धि विद्या देहु मोहि
करहु क्लेश विकार ।

▶ अर्थात हे हनुमान जी । आप मुझे ये तीनो विधा प्रदान करो , जिससे म बल से, बुद्धि से, विद्या से अपने प्रभु राम की सेवा में आपकी भांति लगा रहूँ ।

▶ विदित हो कि हनुमान जी म
बल
बुद्धि
विद्या
तीनों ही अनलिमिटेड मात्रा में हैं और इनका प्रयोग वे श्री राम सेवा म करते हैं ।

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

बल बुद्धि विद्या

Saturday 10 September 2016

ग्रन्थ परिचय :महाभावस्वरूपाश्रीराधानाम


📖 ग्रन्थ परिचय 3️⃣5️⃣ 📖


💢 ग्रन्थ  नाम :महाभावस्वरूपाश्रीराधानाम
💢 लेखक :श्रीनित्यान्न्द भट्ट
💢 भाषा :संस्कृत-हिंदी
💢 साइज़ : 14 x 22 सेमी
💢 पृष्ठ : 102 सॉफ्ट  बाउंड
💢 मूल्य : 10  रूपये


💢 विषय वस्तु :
     श्रीमदभागवत में 'श्रीराधा' नाम के
    उल्लेख वाले श्लोको का
    आस्वादन

💢 कोड : M035 -Ed2

💢 प्राप्ति   स्थान

1️⃣ खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2️⃣ हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
3️⃣ रामा स्टोर्स, लोई बाजार पोस्ट ऑफिस

📬 डाक द्वारा । 09068021415
पोस्टेज फ्री

📗🔸📘🔹📙🔶📔
महाभावस्वरूपाश्रीराधानाम
महाभावस्वरूपाश्रीराधानाम

गज़ब का अनुपम उपहार

✔  *गज़ब का अनुपम उपहार*    ✔

▶ हम कलयुग के जीव न तो शुद्धि अशुद्धि का ज्ञान रखते हैं न विचार रखते हैं । और ज्ञान हे भी तो उसका पालन नहीं कर पाते हैं ।

▶ ऐसे में गुरु मंत्र स्तोत्र पाठ पूजा अर्चना विग्रह सेवा इत्यादि का कर पाना निषेध होता है ।

▶ विशेषकर शुद्धि अशुद्धि के अभाव में । महिलाओं के निषेध काल में भी कुछ नहीं हो पाता

▶ जीवन में अनेकों बार अस्वस्थता के कारण स्नान नहीं हो पाता

▶ अनेकों बार असाध्य रोगों  क कारण हॉस्पिटल में काफी दिन बिताने पड़ते हैं और हमारी पंजाबी बहिनों का तो शुद्धि अशुद्धि का गज़ब का ही विचार है

▶ एक दिन एक मेरी वैष्णव महिला बहन अपना पूरा प्रसाद अपनी थाली में खा जाने के बाद मेरे से बोली भइया जी यह मेरी थाली में जो राजभोग रखा है यह आप ले लीजिए यह सुच्चा है । मैंने इसे जूठा नहीं किया

▶ ऐसे हम लोगों के लिए, जो शुद्धि अशुद्धि के विषय में अविवेकी हैं , अशक्त हैं । उनको यदि श्री हरिनाम संकीर्तन रूपसे , हरिनाम जप रूपसे , हरिनाम का उपहार यदि नहीं मिला होता तो हम लोग क्या करते

▶ गुरु मंत्र , स्तोत्र पाठ कर नहीं पाते । नाम होता नहीं तो हमारा कल्याण कैसे होता ।। कृपा हो महाप्रभु जी की । कृपा हो वेद शास्त्र उपनिषद की जिन्होंने नाम का उद्घोष किया और श्री नित्यानंद महाप्रभु एवं श्री चैतन्य महाप्रभु ने संकीर्तन के पिता बन कर उन्होंने संकीर्तन को नामको आत्मसात किया और नाम का विश्व में प्रचार किया

▶ हम कलयुग के जीवो को नाम तो दिया, साथ ही यह परिचय भी दिया कि सोते, खाते, पीते, बैठते उठते,  शुद्धि में अशुद्धि में , अस्नान में , ट्रेन में, मासिक धर्म में  ,

▶ कैसे भी हो तुलसी माला से या काउंटर से नाम जप करते रहो  । नाम जप करते रहो । और अपने जीवन को सफल करते रहो

▶ यह नाम नामी से अभिन्न है । यह नाम साध्य भी है साधन भी है । इस नाम के द्वारा नाम को ही प्राप्त करना है ।

▶ इसमें किसी प्रकार की शुद्धि अशुद्धि का विचार भी नहीं है यह निश्चित ही हम जीवो के लिए एक इतना बड़ा उपहार है जिसको वाणी में और शब्दों में नहीं कहा जा सकता

▶ फिर भी दुर्दैव । फिर भी हमारा दुर्भाग्य कि हमारी इस नाम के प्रति रुचि नहीं बन पा रही है हम उस नाम का उतना आश्रय से नहीं ले पा रहे हैं जितना हम ले सकते हैं

▶ संत सदगुरु वैष्णव कृपा करें और हम नाम के महत्व को समझते हुए नाम के आश्रित हो पाए तो जीवन में इससे बड़ी उपलब्धि कोई नहीं होगी और इससे बेहतर गज़ब का उपहार नही होगा हमारे लिए ।

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

गज़ब का अनुपम उपहार

Friday 9 September 2016

अजीब बात है

✔  *अजीब बात है*    ✔

▶ भक्ति के विकास में अनेक बाधाओं के साथ साथ गोस्वामी पादने एक विशेष कारण का भी उल्लेख किया है वह है । विनियम आग्रह ।

▶ विनियम बोलते हैं नियम ना होना, अर्थात नियम न होने में आग्रह । आग्रह माने पक्ष लेना, अर्थात कोई भी नियम ना होने का पक्ष लेना ।

▶ इस शब्द को नियमअनाग्रह भी लिख सकते थे अर्थात नियम में आग्रह ना होना । नियम में आग्रह या नियम में भूल या नियम में लापरवाही तो होती ही है

▶ लेकिन नियम के प्रति हमारा निष्ठा आग्रह फेेवर होता है यहां पर इसकी उल्टी बात कही गई है कि नियम में आग्रह की बजाए अनियम, विनियम में किसी भी प्रकार के कोई नियम में आग्रह ना होना

▶ जैसे जप से भजन में नियम से कुछ नहीं होता है ठाकुर जी तो बड़े दयालु हैं इनको कोई फर्क नहीं पड़ता, मुझे जब टाइम मिलता तब इनको खिला देती, पिला देती

▶ यह तो संसार के मालिक हैं इन को भला कौन खिला सकता । अब देखो घर है गिरस्ती है 50 काम है । जब टाइम मिले या ना मिले तब इनको खुश कर दो । यह तो ऐसे ही खुश हो जामें ।

▶ दूसरा इन्होंने तो अनगिनत सुख-सुविधा हमें दी हुई है इनको क्या गिन गिन के नाम करो और गिन गिन के सुनाओ, गिन गिन के भजन करो, यह सब ना होता हमसे । और इसकी कोई जरुरत भी नहीं ।

▶ किताब लेकर बैठना, माला लेकर बैठना और हरे कृष्ण हरे राम करना, नहाना-धोना शुद्ध होना यह सब बेकार की बातें हैं ।

▶ भगवान तो हमारे हृदय में है । मैं तो हर समय चलते-फिरते उनका नाम लेती रहती हूं भला माला से ही क्या हो जाना है

▶ भगवान का तो स्मरण रहना चाहिए, भगवान तो घट घट वासी है । मैं तो चलते-फिरते हर समय उनका नाम लेती हूं

▶ लो भला भगवान का नाम लेने का भी कोई टाइम होवे है ।

▶ इस प्रकार का विनियम, इस प्रकार की बातों का विश्वास, इस प्रकार की बातों का मन में बैठ जाना ही विनियम आग्रह कहलाता है

▶ कुल मिलाकर भजन में, चिंतन में यहां तक कि ठाकुर सेवा में भजन में राग में शरीर शुद्धि में किसी भी प्रकार के अनुशासन में अपने आप को न बांधना ही विनियम आग्रह कहलाता है

▶ जिसे गोस्वामी पादने भक्ति की एक बहुत बड़ी बाधा कहा गया है । ऊपर ऊपर की बातों से तो यह हम आप जैसे साधारण साधक से ऊंचा भाव दिखता है

▶ लेकिन यह ऊंचा भाव नहीं है मेरे भाई । यह भक्ति की एक बाधा है , जो हमें भक्ति की ओर बढ़ने नहीं देती ।

▶ इस से निकलकर एक साधक को भले ही थोड़ा सा सही , छोटा सा सही,  तिनके जितना सही भजन का नियम, भजन का अनुशासन अवश्य लेना चाहिए

▶ और भजन की कृपा से ही हम अनेक बार देखते हैं कि यह तिनका वृक्ष का रूप धारण कर लेता है और हमारे भजन के पथ को प्रशस्त करता है ।

समस्त वैष्णवजन को मेरा सादर प्रणाम



🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn


ग्रन्थ परिचय : श्रीबृहदभाग्वातामृत

​📖 ग्रन्थ परिचय 3⃣4⃣ 📖

💢 ग्रन्थ  नाम :श्रीबृहदभाग्वातामृत
💢 लेखक : श्रीसनातन गोस्वामिपाद
💢 भाषा :संस्कृत-हिंदी अनुवाद
टीका| ब्रजविभूति श्रीश्यामदास
💢 साइज़ : 14 x 22 सेमी
💢 पृष्ठ : 51२ हार्ड  बाउंड
💢 मूल्य : 300 रूपये

💢 विषय वस्तु :
     विभिन्न साधनों से विभिन्न
     भागवतस्वरूपों के लोको की प्राप्ति
     विषयक आख्यानात्मक सरस रचना

💢 कोड : M034 -Ed3

💢 प्राप्ति   स्थान

1⃣ खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2⃣ हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
3⃣ रामा स्टोर्स, लोई बाजार पोस्ट ऑफिस

📬 डाक द्वारा । 09068021415
पोस्टेज फ्री

📗🔸📘🔹📙🔶📔
श्रीबृहदभाग्वातामृत
श्रीबृहदभाग्वातामृत

Thursday 8 September 2016

ग्रन्थ परिचय: श्रीभक्तिरसामृतसिंधुबिंदु

📖 ग्रन्थ परिचय 3⃣2⃣ 📖

💢 ग्रब्थ नाम : श्रीभक्तिरसामृतसिंधुबिंदु
💢 लेखक : श्रीविश्वनाथ चक्रवर्तीपाद
💢 भाषा :संस्कृत-हिंदी अनुवाद
टीका| ब्रजविभूति श्रीश्यामदास
💢 साइज़ : 14 x 22 सेमी
💢 पृष्ठ : 128 सॉफ्ट बाउंड
💢 मूल्य : 10 0 रूपये

पाप क्यों करते हैं हम

🦀 पाप क्यों करते हैं हम 🦀

🐌 पराय हम सभी लोग इस संसार में रहते हुए पाप करते ही हैं । पाप भी अनेक प्रकार के हैं

कुछ पाप मन से होते हैं
कुछ वाणी से होते हैं
कुछ शरीर से होते हैं
कुछ धन से होते हैं

Wednesday 7 September 2016

ग्रन्थ परिचय : श्रीचैतन्य-सम्प्रदाय

📖 ग्रन्थ  परिचय 3⃣1⃣ 📖

💢 ग्रन्थ  नाम :  श्रीचैतन्य-सम्प्रदाय
💢 लेखक  : श्रीराधागोविन्दनाथ
💢 भाषा :हिंदी
💢 साइज़ : 14 x 22 सेमी
💢 पृष्ठ  : 52  सॉफ्ट बाउंड
💢 मूल्य : 30 रूपये

💢 विषय वस्तु :
      माध्व, माध्वगौड़ीय तथा चैतन्य-
      सम्प्रदाय का सप्रमाण विवेचन
      भ्रमनिवारक ग्रन्थ

💢 कोड : M031  -Ed1

💢 प्राप्ति स्थान

1⃣ खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2⃣ हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
3⃣ रामा स्टोर्स, लोई बाजार पोस्ट ऑफिस

📬 डाक द्वारा । 09068021415
पोस्टेज फ्री

📗🔸📘🔹📙🔶📔

श्रीचैतन्य-सम्प्रदाय
श्रीचैतन्य-सम्प्रदाय

भजन से पाप नाश

​​✔  *भजन से पाप नाश*    ✔

▶ यह बहुत ही गूढ़ विषय है । इस पर पहले भी अनेक बार चर्चा हुई है और शास्त्रों में दोनों प्रकार के पर्याप्त प्रमाण हैं

▶ एक कृष्ण नाम करे सर्व पाप नाश

▶ यह बात चैतन्य चरितामृत में कही गई ह ।  साथ ही यह भी कहा गया है कि अपराधों के कारण  कृष्ण नाम  में पाप क्षय करने जितनी पावर नहीं आ पाती है

▶ इसीलिए जीव को पाप भोगने पड़ते हैं । यह कुछ कुछ ऐसा है जैसे बिजली के करंट की शक्ति और दस्ताने पहनने पर रबड़ की शक्ति ।

▶ रबड़ की शक्ति करंट नहीं लगने देती और बिजली की शक्ति करंट लगाती है । एक कमजोर है एक बलवान है । ऐसा नहीं सोचना है । अपितु दोनों की अपनी-अपनी शक्तियां हैं

▶ जहां नाम की शक्ति है कि वह पाप क्षय करता है वहां कर्म की भी अपनी शक्ति है कि

▶ अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतम कर्म शुभाशुभम

▶ दोनों ही बातों में सामंजस्य बैठाना पड़ेगा । केवल एक बात कि भजन करो कर्म नाश हो जाएगा यह भी अधूरी है

▶ और यह बात के भजन से कुछ नहीं होगा कर्म तो भोगने ही पड़ेगे यह भी अधूरी है

▶ जिस प्रकार हमारा जीवन प्रारब्ध और प्रयास का मिलाजुला रूप है । उसी प्रकार एक वैष्णव का जीवन नाम के द्वारा पाप कटने और कर्म के पाप भोगने का मिलाजुला स्वरूप है

▶ यह जो बात है इसे अदृष्ट भी कहा गया है और अदृष्ट के विषय में ज्यादा चर्चा करने की अनुमति शास्त्र नहीं देता है

▶ हम यदि अनुमान लगाएं तो मेरे 4000 पाप थे और मैं जो नाम करता हूं उससे मेरे 1000 पाप कट गए और 3000 को मुझे भोगना पड़ा अथवा 3,000 कट गए 1000 को मुझे भोगना पड़ा

▶ लेकिन यह अदृष्ट है । यह किसने देखा इसका हिसाब किताब है तो सही लेकिन उपलब्ध नहीं है इसलिए इस पर अधिक चर्चा नहीं करनी चाहिए

▶ यह निश्चित ही है के नाम करने से, भजन करने से पाप कटते हैं । लेकिन भजन का ये मुख्य फल भी नही है । भजन का मुख्य फल भजन म वृद्धि है

▶ एकदम कटके जीरो हो जाते हैं ऐसा नहीं है और यह भी निश्चित है कि हमें अपने बुरे अच्छे कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है चाहे हम कितना ही भजन क्यों न करें

▶ इसके लिए दोनों तरह के उदाहरण है । अपितु संसार में ऐसे उदाहरण अधिक है के परम भजन आनंदी वैष्णवों ने भी शारीरिक कष्ट पाया है और किसी का कष्ट यदि दूर हो गया मृत्यु भी टल गई नाम के बल पर तो वह जिसे पता है उसे पता है

▶ अतः कर्म के विषय में कभी भी बहस में नहीं जाना है और सत्य शास्त्रीय बात यही है कि दोनों का सामंजस्य करते हुए चलना होगा तभी हम शांत और आनंदित रह सकेंगे

▶ एकपक्षीय विचार कभी भी उचित नहीं रहेगा

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

भजन से पाप नाश

Tuesday 6 September 2016

वचन कर्म ओर मन

✔  *वचन कर्म  ओर मन  *    ✔


🔴श्री राधा रस सुधा निधि के रचनाकार
श्री प्रबोधानंद सरस्वती रचित
श्रीवृन्दाबन महिमामृत की रसमय कथा कहें
🔴 बरज रज की अद्भुत महिमा बखान करें

ये हो गया वचन

🔴 बरज रज को सदा मस्तक पर पोते रहें
🔴 बरज को छोड़कर कहीं न जाएँ
🔴 बरजरज म कभी चप्पल न पहने

ये हो गया कर्म

🔴 हरदय सदा ब्रज की रज रानी की कृपा से
      पूरित रहे ।
🔴 आखें डबडबाई रहें सदा

ये हो गया मन । जिसका मन वचन कर्म एक सा वही साधू । वही सन्त । अन्यथा तो

खूब चटपटी वृन्दाबन की कथा कहने वाले
🔵 न तो वृन्दाबन म रहें
🔵 न रज मस्तक पर लगाएं
🔵 और मर्सीडीज़ में चलें

केवल बातें ही बातें । कोरी बातें । न मन म भाव । न आचरण । ऐसे लोगों से श्रवण का उतना असर नही होता जितना मन वचन कर्म वाले साधू क मुख से श्रवण से ।

चिंतन कीजिये


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
 
वचन कर्म  ओर मन


​​ग्रन्थ ​ परिचय : श्रीवृन्दावनमहिमामृताम

� ​​ग्रन्थ ​ परिचय 3⃣3⃣ �

� ग्रन्थ नाम : श्रीवृन्दावनमहिमामृताम
17 शतक सम्पूर्ण
�लेखक : श्रीप्रबोधानन्द सरस्वतिपाद
� भाषा : मूल संस्कृत-हिन्दी-अनुवाद-
टीका ब्रजविभूति श्रीश्यामदास
� साइज़ : 14 x 22 सेमी
� ​​पृष्ठ : 430 सॉफ्ट बाउंड
� ​​मूल्य : 300 रूपये

� विषय वस्तु :
श्रीवृन्दावन-निष्ठा एवं महिमा का
अद्वितीय ग्रन्थ, श्रीप्रबोधानंद जी का
चमत्कारिक प्रमाणिक जीवन चरित्र


� कोड : M033 -Ed7

� प्राप्ति  स्थान

1⃣ खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2⃣ हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
3⃣ रामा स्टोर्स, लोई बाजार पोस्ट ऑफिस

� डाक द्वारा । 09068021415
पोस्टेज फ्री

�������

श्रीवृन्दावनमहिमामृताम
श्रीवृन्दावनमहिमामृताम

Monday 5 September 2016

ग्रन्थ परिचय : श्रीमानसी सेवा

📖 ग्रन्थ   परिचय 3⃣0⃣  📖

💢 ग्रन्थ    नाम : श्रीमानसी सेवा
💢 लेखक  : सिद्ध बाबा श्रीकृष्णदास       सचित्र
💢 भाषा : संस्कृत-हिंदी  ब्रजविभूति श्रीश्यामदास
  
💢 साइज़ : 14 x 22  सेमी
💢 पृष्ठ  : 222 सॉफ्ट बाउंड
💢 मूल्य   : 100 रूपये

💢 विषय वस्तु :
     श्रीनवद्वीप लीला तथा श्रीवृंदावन
     लीला का मानसिक
    अष्टयाम लीला चिंतन

💢 कोड : M030-Ed2

💢 पराप्ति  स्थान

1⃣ खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2⃣ हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
3⃣ रामा स्टोर्स, लोई बाजार पोस्ट ऑफिस

📬 डाक द्वारा । 09068021415
पोस्टेज फ्री

📗🔸📘🔹📙🔶📔

श्रीमानसी सेवा
श्रीमानसी सेवा

श्री राधाष्टमी

​✔     *श्री राधाष्टमी की पूर्व संध्या पर*    ✔

▶ हमारो धन राधा श्री राधा श्री राधा

▶ राधाष्टमी निकट है । श्री राधा जू के बारे में आज कुछ चर्चा की जाए ।

▶ एक होता है विषय । एक होता है आश्रय ।
जैसे यह मोबाइल की डिवाइस है, यह आश्रय है टेलीग्राम या वॉट्सएप्प का  ।

▶ यदि टेलीग्राम का प्रयोग करना है तो यह मोबाइल लेना ही पड़ेगा और केवल इसी मोबाइल को ही हम लक्ष्य मान लें । उसमें कोई सॉफ्टवेयर ना डलवाएं तो मोबाइल का पूर्ण सदु प्रयोग नहीं माना जाएगा ।

▶ यह यद्यपि बहुत निकृष्ट सा उदाहरण है फिर भी समझने में सहायता देता है ।

▶ हमारे आराध्य, हमारे उपास्य, हमारा टारगेट श्री कृष्ण या श्री कृष्ण चरण सेवा है । श्री कृष्ण हमारे विषय हैं । और कृष्ण का आश्रय है श्री राधा रानी ।

▶ यदि हमें श्री कृष्ण चरण सेवा प्राप्त करनी है तो हमें श्री राधा रानी का भजन,  राधा रानी की सेवा, राधारानी की प्रसन्नता विधान करनी पड़ेगी ।

▶ वैसे भी श्री कृष्ण चरण सेवा करने वाली  सर्वोपरि यदि कोई पात्र हैं तो वह राधा रानी है । हमें भी श्री कृष्ण चरण सेवा प्राप्त करनी है तो क्यों ना हम भी उस श्री राधारानी की प्रसन्नता का विधान करें जिससे वह शीघ्र ही हमें श्री कृष्ण चरण सेवा प्राप्त करा दें ।

▶ राधारानी आश्रय तत्व है ।
▶ राधारानी उपास्य तत्व नहीं है ।

▶ इसलिए उपास्य तत्व ब्रजेंद्रनंदन कृष्ण और
प्राप्तव्य धाम श्री वृंदावन
उपासना वहीं जो राधा जी ने की और
प्रमाण श्रीमद् भागवत

▶ इन चारों का आश्रय लेते हुए हम श्री राधा रानी की सखी श्री ललिता विशाखा ।

▶ ललिता विशाखा के आनुगत्य में हमारी संप्रदाय के आचार्य ।

▶ हमारी संप्रदाय के आचार्य के आनुगत्य में हमारे गुरुदेव

और गुरुदेव के आनुगत्य में हम

▶ इस प्रॉपर चैनल से हम श्री कृष्ण की कृपा श्रीकृष्ण की चरण सेवा प्राप्त कर सकते हैं।

▶ राधारानी क्योंकि कृष्ण को सर्वाधिक प्रिय है। प्रिय क्या, राधा रानी श्री कृष्ण ही है , एक प्रकार से कृष्ण में निहित अनंत शक्तियां में से सर्वोपरि जो शक्ति है वह है आल्हादिनी शक्ति ।

▶ श्रीकृष्ण को आनंद देने वाली शक्ति । और वह है हमारी श्री राधा रानी । श्रीकृष्ण अपना नाम सुनकर भी उतना प्रसन्न नहीं होते हैं, जितना वह श्री राधा का नाम सुनकर प्रसन्न होते हैं ।

▶ श्री राधा के जन्मोत्सव में जब हम नाचते हैं तो कृष्ण इतने प्रसन्न होते हैं, इतने प्रसन्न होते हैं कि अपने जन्मोत्सव जन्माष्टमी पर नाचने में भी नहीं होते ।

▶ श्रीराधा का जन्मोत्सव निकट है  । हम राधा जी का अभिषेक करें । राधे राधे की ध्वनि करें । राधा का नाम ले तो शीघ्र ही हमें श्री कृष्ण चरण सेवा प्राप्त हो जाएगी । इसलिए किे कृष्ण प्रसन्न होते हैं ।

▶ इस तात्विक दृष्टि को ध्यान में रखते हुए श्री राधा की उपासना । श्री राधा का आनुगत्य ।  श्री राधा नाम करते करते हम कृष्णचरण सेवा प्राप्त कर लेंगे ।

▶ वृंदावन में अनेक संप्रदायी कोई जय निताई बोलता है । कोई जय हरिदास बोलता है । कोई जय बिहारी जी बोलता है । कोई जय दामोदर बोलता है । कोई जय गौर बोलता है ।

▶ लेकिन जय श्री राधे सभी बोलते हैं । आइए हम भी बोलें । जय जय श्री राधे ।

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
 
श्री राधाष्टमी

Sunday 4 September 2016

ग्रन्थ परिचय: श्रीराधारससुधानिधि

📖 ग्रन्थ परिचय 2⃣9⃣ 📖

💢 ग्रन्थ नाम : श्रीराधारससुधानिधि
💢 लेखक : श्रीप्रबोधानन्द सरस्वतिपाद
💢 भाषा : संस्कृत-हिन्दी-अनुवाद-टीका
ब्रजविभूति श्रीश्यामदास
💢 साइज़ : 19 x 25 सेमी
💢 पृष्ठ : 200 हार्ड बाउंड
💢 मूल्य : 300 रूपये

💢 विषय वस्तु :
श्रीराधादास्यनिष्ठां का प्रकाशक
अद्भुत रसोपासना ग्रन्थ
अनेक लीलाओं के साथ

💢 कोड : M029 -Ed2

💢 प्राप्ति स्थान

1⃣ खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2⃣ हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
3⃣ रामा स्टोर्स, लोई बाजार पोस्ट ऑफिस

📬 डाक द्वारा । 09068021415
पोस्टेज फ्री

📗🔸📘🔹📙🔶📔

श्रीराधारससुधानिधि

18 कैरेट सोना

🔴 18 कैरेट सोना 🔴

🚗 जिस प्रकार सोना 18 कैरेट का भी होता है 20 कैरेट का भी होता है 22 का भी होता है और 24 का भी होता है

🚕 उसी प्रकार भगवान की भक्ति भी है तो सोना ही कम महत्वपूर्ण नहीं है । 18 केरेट का भी आभूषण हो तो कीमत तो है ही चमक भी है ही लेकिन वह शुद्ध सोना नहीं माना जाता है । जब बेचने जाओ तो काफी पैसे कट कर मिलते हैं

 🚙 उसी प्रकार अपने सुख के लिए की गई भक्ति भी 18 16 12 केरेट है । है वह भी भक्ति । लेकिन वह विशुद्ध भक्ति नहीं है

🚌 विशुद्ध भक्ति वह है जो कृष्ण के सुख के लिए की जाए कृष्ण चरण सेवा प्राप्ति के लिए की जाए

🚎 एक महिला मुझे मिली । वह बोलती है कि मुझ पर तो ठाकुर की बड़ी कृपा है मैंने जो चाहा मेरे चाहने के साथ-साथ मुझे प्राप्त हो जाता है

🚓 मरे पास सब सुख हैं ठाकुर मुझे बहुत सुख प्रदान करते हैं । मैंने उससे कहा की बहुत अच्छी बात है । तुम ठाकुर को क्या सुख प्रदान करती हो और

🚑 ठाकुर ना तो तुम्हारा सुंदर तन चाहता है ना तुम्हारा धन चाहता है केवल मन से अपना नाम स्वयं अपनी गुण लीला चिंतन चाहता है

🚒 तो बोली हम ठाकुर को सुख दे भी कैसे सकते हैं ठाकुर के पास तो पहले से ही अनंत सुख है

🚐 मने कहा कि आप वैसे ही सुख दे सकते हो जैसे एक अरबपति सेठ को एक 10 या 5000 महीने का नौकर सुख देता है

 🚘 कयोंकि बेसिकली हम लोग श्री कृष्ण के दास हैं कृष्ण ने हमें इस संसार में अपने गुणगान के लिए अपॉइंट किया है । उसके बदले में उसने हमें सूर्य चंद्र धूप नदी मानव जीवन आदि अनेक उपहार दिए हैं

🚐 और हम फिर भी उनसे और और और सुख मांग रहे हैं । एक कर्मचारी एक दास एक सेवक के रूप में क्या हम यह ठीक कर रहे हैं । शायद नहीं

🚜 सवक का प्रधान कार्य है कि स्वामी को सुख प्रदान करना । और स्वामी निश्चित ही सेवक से करोड़ गुना अधिक समृद्धि शाली सुखवान होता ही है फिर भी सेवक की सब को आवश्यकता होती है

🚚 जितना बड़ा आदमी है उतने अधिक सेवक और वे सेवक यदि स्वामी की सेवा न करें तो इसका अर्थ हुआ कि वह अपने दायित्व से च्युत हो गए

🚛 इसलिए 16 कैरेट ठीक है 18 कैरट भी ठीक है 22 कैरेट भी ठीक है 24 कैरेट भी ठीक है । हम लोग 24 तो शायद नहीं बन सकते । लेकिन 22 के लिए हमेशा कोशिश की जाए

🚨 सदैव कृष्ण चरण सेवा प्राप्ति के लिए प्रयास किए जाएं । सुख दुख तो आते रहेंगे जाते रहेंगे और ईश्वर समाधान करता भी रहेगा

🙏🏻 समस्त वैष्णव जन के चरणों में सादर प्रणाम


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

18 कैरेट सोना


Saturday 3 September 2016

ग्रन्थ परिचय~श्रीललितमाधव नाटक

📖 ग्रन्थ  परिचय 2⃣7⃣  📖

💢 ग्रन्थ   नाम : श्रीललितमाधव नाटक
💢 लेखक : श्रीमद रूपगोस्वामिपाद
💢 भाषा : हिन्दी| ब्रजविभूति श्रीश्यामदास
   
💢 साइज़ : 19 x 25 सेमी
💢 पृष्ठ : 140 सॉफ्ट बाउंड
💢 मूल्य  : 100 रूपये

💢 विषय वस्तु :
     मथुरा-द्वारका-लीलामय
     आश्चर्यपूर्ण आनंदमय नाटक

💢 कोड : M027-Ed2

💢 प्राप्ति  स्थान

1⃣ खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2⃣ हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
3⃣ रामा स्टोर्स, लोई बाजार पोस्ट ऑफिस

📬 डाक द्वारा । 09068021415
पोस्टेज फ्री

📗🔸📘🔹📙🔶📔

श्रीललितमाधव नाटक
श्रीललितमाधव नाटक

इसे प्रेम का नाम न दो

 🌹  इसे प्रेम का नाम न दो 🌹

🍎प्रेम  के विषय श्री कृष्ण है । प्रेम केवल श्रीकृष्ण से ही हो सकता है । किसी अन्य से यदि हमारा प्रेम है तो वह निश्चित ही स्वार्थ के कारण है

🌷माता का प्रेम जो छोटे बालक के प्रति होता है वह वात्सल्य के का रण होता है बड़े होने पर 50 मौके ऐसे हैं जो माता पिता । माता पुत्र के झगड़े के हैं

🍉भाई बहन  । भाई भाई । पिता पुत्र । यहां तक कि प्रेमी-प्रेमिका । पति पत्नी । रोज ब्रेकअप हो रहे हैं ।  रोज तलाक हो रहे ।