Saturday, 19 December 2015

19।12।15 1।24 तक
 12:44, 12/17/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:


💐श्रीराधारमणो विजयते 💐
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻    


📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚

       क्रम संख्या 2⃣5⃣

🌿भक्ति अमर है 🌿

🌻अमृतस्वरूपा 🌻

🌞नारद भक्ति सूत्र का दूसरा सूत्र है । जिसके अनुसार भक्ति अमृत स्वरुप है,  अथवा अमृत है। अमृत यानी अ + मृत जो मृत नहीं होती, जिसका नाश नहीं होता,  जो सदैव है, अमर है ।

🏂इस जन्म में जितनी भक्ति करोगे,  जितनी सीढ़ी चढ़ोगे, मृत्यु के साथ वह समाप्त नहीं होगी,  अगले जन्म में अगले सीढ़ी से प्रारंभ करना होगा।

🔕पिछली सीढ़ियां अमर है,  हर जन्म में जुड़ती जाएंगी। भक्ति का नाश नहीं,  न ही भक्त का नाश है -

🎐'न मे भक्तः प्रणशयति'

💀जबकि कर्म का फल भोग या  मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है ।

🙏अतः इस भक्ति अमृत का अवश्य पान करो । जितना हो उतना करो- यह आगे जुड़ता रहेगा।

 🌿काली और वैष्णव 🌿

🌑काली, महाकाल श्री विष्णु की ही एक शक्ति है - ऐसा सोच कर यदि कोई काली की उपासना करता है तो काली भी अपने स्वामी श्री विष्णु या कृष्ण की और उसे उन्मुख करती है ।

🐃 काली को पशु बलि दे कर स्वतंत्र मान कर जो उनकी उपासना करता है वह वैष्णवता से पतित होकर  तामसिक पूजक ही कहलाता है।

 📌वैष्णव नहीं रह जाता

 🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻

📕स्रोत एवम् संकलन
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की खिचड़ी ग्रन्थ से

📝 प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[12:44, 12/17/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:


✽🌿﹏*)(*🌹*)(*﹏🌿✽

     1⃣7⃣*1⃣2⃣*1⃣5⃣
   
           गुरुवार  मार्गशीर्ष
            शुक्लपक्ष षष्ठी

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               ◆~🌹~◆
       ◆!🌿जयनिताई🌿!◆  
     •🌹 गौरांग महाप्रभु 🌹•
       ◆!🌿 श्री चैतन्य 🌿!◆
                ◆~🌹~◆
                      •ө•

          ❗विद्याध्ययन❗

🌿     श्री गौरांग ने श्री गंगादास पंडित की पाठशाला में विद्या प्रारम्भ की l इनकी असाधरण बुद्धि देखकर सब चकित रह गये और माता पिता चिंतित हो ऊठे कि कहीं विश्वरूप की तरह पढ़ लिख कर यह बीही सन्यासी न हो जाये lअतः इनका पढाई बन्द कर दी l निमाई बहुत दुखी हुए किन्तु माता पिता की आज्ञा का उल्लंघन न कर सके l

🌿     आपने फिर पढाई की एक राह निकाली l एक दिन निमाई कूड़े पर जाकर बैठ गये माता शची यह देखकर अत्यंत दुखी हुई कि ब्राह्मण की सन्तान होकर अचार विचार शुद्ध अशुद्ध का ज्ञान नहीं lनिमाई बोले शुद्ध अशुद्ध अचार विचार तो विद्या पढ़ने से पता लगता है l आपने तो मेरी पढाई बन्द कर दी l तब माता पिता ने पुनः इन्हें विद्याध्ययन के लिए भेजा l

🌿    निमाई विद्या में इतने प्रवीण थे कि गुरुदेव भी आश्चर्यचकित रह जाते l दस वर्ष की आयु में आपके पिता जी का परलोक गमन हो गया lपिता जी के बाद निमाई और अधिक उद्दण्ड हो गए किन्तु फिर समस्त शास्त्रों के आप परम विद्वान के रूप में विख्यात हो गये l

🌿   उपरोक्त सार व्रजविभूति श्रीश्यामदासजी के ग्रंथ से लेते हुए हम भी अपने जीवन को भक्तिमय बनाये यही प्रार्थना है प्रभु के चरणों में l
          क्रमशः........
                      ✏ मालिनी
 
       ¥﹏*)•🌹•(*﹏¥
            •🌿✽🌿•
         •🌹सुप्रभात🌹•
 •|🌿श्रीकृष्णायसमर्पणं🌿|•
     •🌹जैश्रीराधेश्याम🌹•
             •🌿✽🌿•
         ¥﹏*)•🌹•(*﹏¥
   
✽🌿﹏*)(*🌹*)(*﹏🌿✽
[12:44, 12/17/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:


भक्ति या भजन

को कभी भी इगो
या अपनी महानता
या अपनी पहचान
बनाते हुए
जब हम अपने
दायित्वों से
भागते हैं तो
घर गृहस्थी में
क्लेश होता। है

प्रारम्भिक स्तर
पर अपने दायित्वों
के साथ साथ भजन
भक्ति की जानी
चाहिए ।

बाद में परिपक्वता
आने पर
सब छूट जाता है
छोड़ना नही पड़ता

24 में से 10 घंटे
काम नौकरी
6 या 8 घण्टे सोने के
फिर भी 6 घण्टे बचते हैं
3 बीबी बच्चों
माता पिता को देदो
फिर भी 3 बचते हैं

इन 3 घण्टों को
भजन भक्ति में लगाना ह
फालतू चैटिंग
इधर उधर की बातें
तेरी मेरी
राजनीति क्रिकेट
लेना एक न देना दो
वाली बातों को छोड़ कर
भजन करना है
न कि माता पिता
बीबी बच्चों से भागकर

फालतू समय का सदुपयोग
करते करते आनंद
प्राप्त होगा
क्लेश नही होगा ।

समस्त वैष्णवजन को मेरा सादर प्रणाम ।
जय श्रीराधे । जय निताई
[12:44, 12/17/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:


🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
                 
💐💐ब्रज की उपासना💐💐

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻            

🌷 निताई गौर हरिबोल🌷

       क्रम संख्या 10

   🔴सार का सार🔴

🌹किसने स्थापित की🌹

🌷यह जो रमणीक एवं चमत्कारपूर्ण  दुर्लभ उपासना है इसकी शुरुआत कहाँ से हुई ?

🌷तो कहते हैं- 'व्रजवधू' । यानि  व्रज के जो गोप हैं, उनकी वधू यानी पत्नियों द्वारा यह उपासना प्रारंभ की गई ।

🌷 यहाँ यदि 'कृष्ण-वधू' कहा होता तो यह उपासना स्वकीया होती है।

 🌷लेकिन 'व्रज-वधू' से स्पष्ट उद्घोष है कि यह उपासना 'परकीया  भावमयी' उपासना है।

🌷साथ ही 'व्रजवधू' मात्र ही नहीं कहा। साथ में कहा है 'वर्गेण' अर्थात केवल किसी एक गोप की पत्नी ने यह उपासना नहीं की अपितु  'वर्गण'  अर्थात एक पूरा का पूरा झुंड़ या समूह यानि ब्रजवधुओं के एक पूरे समूह ने यह उपासना प्रतिष्ठापित  की ।

🌷अर्थात अष्टसखी सहित श्री राधा एवं अन्य यूथेश्वरी मंजरी गण द्वारा जो उपासना सर्वप्रथम की गई है- वह परकीया भावमयी ब्रजेंद्रनंदन श्रीकृष्ण की  मधुर रागानुगा उपासना ही हमारी उपासना है।

यहाँ ये समझना है कि
उपास्य कृष्ण । राधा नही
धाम वृन्दाबनं । बरसाना नही
उपासना वो जो राधादि ने की
प्रमाण भागवत । अन्य पुराण नही
मत चैतन्य का । माध्व का नही

प्रिया जी वाली उपासना पकड़नी है । इसलिए आनुगत्य प्रिया जी का । उनके धाम का । उनकी सखी वृन्द का। मञ्जरी वृन्द का
लेकिन उपास्य ब्रजेन्द नंदन कृष्ण
     
  क्रमशः.........

 💐जय श्री राधे
 💐जय निताई

📕स्रोत एवम संकलन
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की उपासना ग्रन्थ से

प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠
[20:27, 12/18/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:


सिंधु बिंदु एवम्
माधुर्य कादम्बिनी यदि घोट के पी ली तो फिर साधन भक्ति के लिए कुछ और नही चाहिए । दोनों मेरे प्राण प्रिय ग्रन्थ रत्न मुकेश जी

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