[15:57, 12/3/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
📚🍵बज की खिचडी🍵📚
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
💐श्री राधारमणो विजयते 💐
क्रम संख्या 1⃣1⃣
⚡ 🌿 जन्माष्टमी 🌿⚡
🎈🎈श्री कृष्ण के प्रकट होने के दो कारण-
सामान्य जगत के लिए :
🌸 'अभ्युत्थानम् धर्मस्य'
🌸 'परित्राणाय साधुनाम'
🌸'विनाशाय च दुष्कृताम'
अर्थात
🐚धर्म की स्थापना
👳🏻साधुओं की रक्षा
👹दुष्टों का विनाश
करने के लिए प्रभु प्रकट होते है।
💐अपने भक्तों के लिए
'मद्वक्तानांम विनोदार्थम
करोमि विविदा क्रिया: '
🌺अपने भक्तों को आनंद प्रदान करने के लिए प्रभु प्रकट होते हैं
वास्तव में प्रभु अपने भक्तों के लिए ही प्रकट होते हैं क्योंकि अपने भक्तों को वह स्वयम ही आनंद प्रदान कर सकते हैं बाकी का काम तो उन के चुटकी बजाने मात्र से हो सकता है,
🌺चाहे वह धर्म की स्थापना हो या दुष्टों का विनाश।
⚡🌿शुद्ध प्रेम 🌿⚡
🌻कामना, वासना, स्वार्थ या किसी मक्सद के लिए किया गया प्रेम लौकिक है। यह उद्देश्य - पूर्ति के साथ-साथ समापत हो जाता है। या ढीला पड़ जाता है।
🌻 विशुद्ध प्रेम आत्मिक है।आत्मा की वस्तु है शरीर रहे ना रहे, मकसद रहे ना रहे, प्रेम रहता ही है।
🌟🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻🌟
लेखकः-दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
📕श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन ।
🌞प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[15:57, 12/3/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
$~🌿◆✽◆🌸◆✽◆🌿~$
3⃣◆1⃣2⃣◆1⃣5⃣
गुरुवार मार्गशीर्ष
कृष्णपक्ष अष्टमी
5⃣5⃣
❗वैष्णव सेवा❗
🌸 भगवान श्री कृष्ण श्री राम आदि के भक्तों की सेवा करना l यह साधन भक्ति का एक प्रधान अंग है l क्योकि भक्ति तथा भगवान की प्राप्ति के मूल कारण हैं वैष्णव भक्त l उन्हीं की कृपा से भक्ति की प्राप्ति होती है l
🌸 वैष्णवों की अन्न वस्त्रादि से सेवा करने के साथ ही उन्हें भजनानुकूल उपकरण प्राप्त कराना मुख्य वैष्णवव् सेवा है l वैष्णवों की यह सेवा उस वैष्णव के द्वारा भगवान तक पहुँचेगी lइसमें अत्यधिक सावधानी रखने की आवश्यकता है नहीं तो उल्टा अपराध बनेगा l निरपराध होकर वैष्णव सेवा करने से साक्षात् प्रभु प्रसन्न होते है और हमारा जीवन सफल होता है l
🌸 उपरोक्त सार डॉ दासाभास जी द्वारा प्रस्तुत ब्रजभक्ति के चौसठ अंग से लेते हुए हम सबका जीवन भी प्रभु की भक्ति से प्रकाशित हो यही प्रार्थना है राधेश्याम के चरणों में l 👣👣
क्रमशः........
✏ मालिनी
¥﹏*)•🌸•(*﹏¥
•🌿♡🌿•
"🌸सुप्रभात 🌸"
◆🌿श्री कृष्णायसमर्पणं🌿◆
"🌸जैश्रीराधेकृष्ण🌸"
•🌿♡🌿•
¥﹏*)•🌸•(*﹏¥
$~🌿◆✽◆🌸◆✽◆🌿~$
[15:57, 12/3/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
🌸 ब्रज की वार्ता ग्रन्थ से 🌸
वाल पुट्टी का बेस
💎 किसी कमरे में पेंट कराना हो तो पेंटर पहले पुराने पेंट को घिसता है पुट्टी लगाता है
💎 पुराने वाले रंगों को दबाने के लिए प्राइमर करता है । यदि आपने ध्यान दिया हो तो base बनाने में ही तीन चार दिन लगा देता है
💎 फिर पेंट को फटाफट एक ही दिन में कर देता है और यदि वह बिना बेस बनाए
🍁 ऑरेंज रंग के पुराने पेन्ट पर लाइट क्रीम पेंट कर दे तो करना ना करना बेकार हो जाता है,
💎 इसी प्रकार भगवत प्राप्ति के श्रवण लीला चिंतन आदि कुछ भी अंगों का आश्रय लेने से पहले आवश्यक है कि base बन
💎 अर्थात चित्त शुद्ध हो जिस पर इन का प्रभाव होना है ।। चित शुद्ध होता है केवल और केवल नाम से ही
💎 श्री चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं सत्य कहा है
चेतो दर्पण मार्जनम्
बिना चित्त शुद्धि के वही हाल होगा जो ऑरेंज पेंट पर क्रीम पेंट करने से होता है ।
💎 इससे तात्पर्य यह है कि पहले नाम सिमरन या संकीर्तन द्वारा हम अपने चित्त को शुद्ध करें तभी उस पर भगवत भक्ति के अन्य अंगों का साक्षात्कार होगा।।
😏😏
जय जय श्री राधे । जय निताई
लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
श्री हरिनाम प्रेस । वृन्दाबन
प्रस्तुति । श्यामा किंकरी शालू
[15:57, 12/3/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
🍁जय श्री राधे 🍁
गोवर्धन वासी पूज्य पंडित बाबा
श्री गयाप्रसाद जी महाराज के
🐠 दिव्य वचन 🐠
🌷 1 लक्ष्य
💎 मानव जीवन कौ परम लक्ष्य श्री भगवत प्रेम प्राप्ति ही है
💎 यह दृढ़ निश्चय कर लें कि याही जन्म में श्री भगवत प्रेम प्राप्त करनौ है।
💎 संपूर्ण जीवन श्री भगवत प्रेम प्राप्ति के लिए ही बनै।
💎 श्री भगवत प्रेम प्राप्ति के लिए ही जीवनभर पूर्ण प्रयत्न, अदम्य एवं उत्कट उत्कंठा
💎 शरीर तथा संसार हूं प्रेम प्राप्ति के लिए ही बन्यो है
💎 अपनो मानो भयो जो कछु तुम्हारे पास है । सबकुं श्री प्रेम देव की भेंट चढ़ानो पड़ेगो
💎 धर्म । अर्थ ।काम । मोक्ष । इन चारों कुं बलिदान करके पंचम पुरुषार्थ प्रेम की प्राप्ति होय है ।
जय निताई
संपादक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
श्री हरिनाम प्रेस ।वृन्दाबन
प्रस्तुति । किंकरी प्रिया गुलाटी
[13:14, 12/4/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
🌷 श्री राधारमणो विजयते 🌷
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
क्रम संख्या 1⃣2⃣
⚡ 🌿 अभिस्नेह 🌿⚡
👳🏻 महात्मा में अभिस्नेह नहीं होता । महात्मा तो स्नेह की मूर्ति है स्नेह तो उनके हृदय में है , उनके रोम-रोम में है जैसे आग के पास जाओ तो तपिश मिलेगी और तुम्हारी ठंड दूर हो जाएगी ।यह आग का स्वभाव है ।
💎 इसी प्रकार महात्मा के पास जाओ तो स्नेह तो उसकी आंखों में झरता है, उसकी जीभ से झरता है उसके रोम रोम से स्नेह की तन्मात्रा निकलती है ।
💛जो शुद्ध हृदय से जाएगा वह उसमें डूब जाएगा । अगर वहां स्नेह नहीं मिलता है तो समझो कि तुम्हारे मन में कोई गांठ पड़ गई है। कोई धारणा, कोई पूर्वाग्रह ऐसा बैठ गया है कि जिससे तुमको वह स्नेह प्राप्त नहीं हो रहा है।
🔥 यदि गर्मी नहीं मिल रही तो हो सकता है कि वह आग ही न हो ।ऐसे ही यदि स्नेह नहीं है तो पहला कारण तुम्हारे मन की गांठ, दूसरा कारण हो सकता है कि वो महात्मा ही न हो केवल महात्मा जैसा हो।
💥परंतु एक बात अवश्य है, असली महात्मा में "अभिस्नेह " नहीं होता । अभिस्नेह अर्थात जैसे संसारी लोग अपने पुत्र में अटकते हैं । दूसरे के पुत्र में नही ।
👪 अपने रिश्तेदार - नातेदार में अटकते हैं, दूसरे में नहीं । यही अभिस्नेह है । जो महात्मा है वे एक में नहीं अटकते सब में सामान रहते हैं।
🙌🏻जय श्री राधे ।जय निताई🙌🏻
लेखकः-
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
📕श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन
🌞प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[13:14, 12/4/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
🌷 श्री राधारमणो विजयते 🌷
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
क्रम संख्या 1⃣2⃣
⚡ 🌿 अभिस्नेह 🌿⚡
👳🏻 महात्मा में अभिस्नेह नहीं होता । महात्मा तो स्नेह की मूर्ति है स्नेह तो उनके हृदय में है , उनके रोम-रोम में है जैसे आग के पास जाओ तो तपिश मिलेगी और तुम्हारी ठंड दूर हो जाएगी ।यह आग का स्वभाव है ।
💎 इसी प्रकार महात्मा के पास जाओ तो स्नेह तो उसकी आंखों में झरता है, उसकी जीभ से झरता है उसके रोम रोम से स्नेह की तन्मात्रा निकलती है ।
💛जो शुद्ध हृदय से जाएगा वह उसमें डूब जाएगा । अगर वहां स्नेह नहीं मिलता है तो समझो कि तुम्हारे मन में कोई गांठ पड़ गई है। कोई धारणा, कोई पूर्वाग्रह ऐसा बैठ गया है कि जिससे तुमको वह स्नेह प्राप्त नहीं हो रहा है।
🔥 यदि गर्मी नहीं मिल रही तो हो सकता है कि वह आग ही न हो ।ऐसे ही यदि स्नेह नहीं है तो पहला कारण तुम्हारे मन की गांठ, दूसरा कारण हो सकता है कि वो महात्मा ही न हो केवल महात्मा जैसा हो।
💥परंतु एक बात अवश्य है, असली महात्मा में "अभिस्नेह " नहीं होता । अभिस्नेह अर्थात जैसे संसारी लोग अपने पुत्र में अटकते हैं । दूसरे के पुत्र में नही ।
👪 अपने रिश्तेदार - नातेदार में अटकते हैं, दूसरे में नहीं । यही अभिस्नेह है । जो महात्मा है वे एक में नहीं अटकते सब में सामान रहते हैं।
🙌🏻जय श्री राधे ।जय निताई🙌🏻
लेखकः-
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
📕श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन
🌞प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
📚🍵बज की खिचडी🍵📚
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
💐श्री राधारमणो विजयते 💐
क्रम संख्या 1⃣1⃣
⚡ 🌿 जन्माष्टमी 🌿⚡
🎈🎈श्री कृष्ण के प्रकट होने के दो कारण-
सामान्य जगत के लिए :
🌸 'अभ्युत्थानम् धर्मस्य'
🌸 'परित्राणाय साधुनाम'
🌸'विनाशाय च दुष्कृताम'
अर्थात
🐚धर्म की स्थापना
👳🏻साधुओं की रक्षा
👹दुष्टों का विनाश
करने के लिए प्रभु प्रकट होते है।
💐अपने भक्तों के लिए
'मद्वक्तानांम विनोदार्थम
करोमि विविदा क्रिया: '
🌺अपने भक्तों को आनंद प्रदान करने के लिए प्रभु प्रकट होते हैं
वास्तव में प्रभु अपने भक्तों के लिए ही प्रकट होते हैं क्योंकि अपने भक्तों को वह स्वयम ही आनंद प्रदान कर सकते हैं बाकी का काम तो उन के चुटकी बजाने मात्र से हो सकता है,
🌺चाहे वह धर्म की स्थापना हो या दुष्टों का विनाश।
⚡🌿शुद्ध प्रेम 🌿⚡
🌻कामना, वासना, स्वार्थ या किसी मक्सद के लिए किया गया प्रेम लौकिक है। यह उद्देश्य - पूर्ति के साथ-साथ समापत हो जाता है। या ढीला पड़ जाता है।
🌻 विशुद्ध प्रेम आत्मिक है।आत्मा की वस्तु है शरीर रहे ना रहे, मकसद रहे ना रहे, प्रेम रहता ही है।
🌟🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻🌟
लेखकः-दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
📕श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन ।
🌞प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[15:57, 12/3/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
$~🌿◆✽◆🌸◆✽◆🌿~$
3⃣◆1⃣2⃣◆1⃣5⃣
गुरुवार मार्गशीर्ष
कृष्णपक्ष अष्टमी
5⃣5⃣
❗वैष्णव सेवा❗
🌸 भगवान श्री कृष्ण श्री राम आदि के भक्तों की सेवा करना l यह साधन भक्ति का एक प्रधान अंग है l क्योकि भक्ति तथा भगवान की प्राप्ति के मूल कारण हैं वैष्णव भक्त l उन्हीं की कृपा से भक्ति की प्राप्ति होती है l
🌸 वैष्णवों की अन्न वस्त्रादि से सेवा करने के साथ ही उन्हें भजनानुकूल उपकरण प्राप्त कराना मुख्य वैष्णवव् सेवा है l वैष्णवों की यह सेवा उस वैष्णव के द्वारा भगवान तक पहुँचेगी lइसमें अत्यधिक सावधानी रखने की आवश्यकता है नहीं तो उल्टा अपराध बनेगा l निरपराध होकर वैष्णव सेवा करने से साक्षात् प्रभु प्रसन्न होते है और हमारा जीवन सफल होता है l
🌸 उपरोक्त सार डॉ दासाभास जी द्वारा प्रस्तुत ब्रजभक्ति के चौसठ अंग से लेते हुए हम सबका जीवन भी प्रभु की भक्ति से प्रकाशित हो यही प्रार्थना है राधेश्याम के चरणों में l 👣👣
क्रमशः........
✏ मालिनी
¥﹏*)•🌸•(*﹏¥
•🌿♡🌿•
"🌸सुप्रभात 🌸"
◆🌿श्री कृष्णायसमर्पणं🌿◆
"🌸जैश्रीराधेकृष्ण🌸"
•🌿♡🌿•
¥﹏*)•🌸•(*﹏¥
$~🌿◆✽◆🌸◆✽◆🌿~$
[15:57, 12/3/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
🌸 ब्रज की वार्ता ग्रन्थ से 🌸
वाल पुट्टी का बेस
💎 किसी कमरे में पेंट कराना हो तो पेंटर पहले पुराने पेंट को घिसता है पुट्टी लगाता है
💎 पुराने वाले रंगों को दबाने के लिए प्राइमर करता है । यदि आपने ध्यान दिया हो तो base बनाने में ही तीन चार दिन लगा देता है
💎 फिर पेंट को फटाफट एक ही दिन में कर देता है और यदि वह बिना बेस बनाए
🍁 ऑरेंज रंग के पुराने पेन्ट पर लाइट क्रीम पेंट कर दे तो करना ना करना बेकार हो जाता है,
💎 इसी प्रकार भगवत प्राप्ति के श्रवण लीला चिंतन आदि कुछ भी अंगों का आश्रय लेने से पहले आवश्यक है कि base बन
💎 अर्थात चित्त शुद्ध हो जिस पर इन का प्रभाव होना है ।। चित शुद्ध होता है केवल और केवल नाम से ही
💎 श्री चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं सत्य कहा है
चेतो दर्पण मार्जनम्
बिना चित्त शुद्धि के वही हाल होगा जो ऑरेंज पेंट पर क्रीम पेंट करने से होता है ।
💎 इससे तात्पर्य यह है कि पहले नाम सिमरन या संकीर्तन द्वारा हम अपने चित्त को शुद्ध करें तभी उस पर भगवत भक्ति के अन्य अंगों का साक्षात्कार होगा।।
😏😏
जय जय श्री राधे । जय निताई
लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
श्री हरिनाम प्रेस । वृन्दाबन
प्रस्तुति । श्यामा किंकरी शालू
[15:57, 12/3/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
🍁जय श्री राधे 🍁
गोवर्धन वासी पूज्य पंडित बाबा
श्री गयाप्रसाद जी महाराज के
🐠 दिव्य वचन 🐠
🌷 1 लक्ष्य
💎 मानव जीवन कौ परम लक्ष्य श्री भगवत प्रेम प्राप्ति ही है
💎 यह दृढ़ निश्चय कर लें कि याही जन्म में श्री भगवत प्रेम प्राप्त करनौ है।
💎 संपूर्ण जीवन श्री भगवत प्रेम प्राप्ति के लिए ही बनै।
💎 श्री भगवत प्रेम प्राप्ति के लिए ही जीवनभर पूर्ण प्रयत्न, अदम्य एवं उत्कट उत्कंठा
💎 शरीर तथा संसार हूं प्रेम प्राप्ति के लिए ही बन्यो है
💎 अपनो मानो भयो जो कछु तुम्हारे पास है । सबकुं श्री प्रेम देव की भेंट चढ़ानो पड़ेगो
💎 धर्म । अर्थ ।काम । मोक्ष । इन चारों कुं बलिदान करके पंचम पुरुषार्थ प्रेम की प्राप्ति होय है ।
जय निताई
संपादक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
श्री हरिनाम प्रेस ।वृन्दाबन
प्रस्तुति । किंकरी प्रिया गुलाटी
[13:14, 12/4/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
🌷 श्री राधारमणो विजयते 🌷
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
क्रम संख्या 1⃣2⃣
⚡ 🌿 अभिस्नेह 🌿⚡
👳🏻 महात्मा में अभिस्नेह नहीं होता । महात्मा तो स्नेह की मूर्ति है स्नेह तो उनके हृदय में है , उनके रोम-रोम में है जैसे आग के पास जाओ तो तपिश मिलेगी और तुम्हारी ठंड दूर हो जाएगी ।यह आग का स्वभाव है ।
💎 इसी प्रकार महात्मा के पास जाओ तो स्नेह तो उसकी आंखों में झरता है, उसकी जीभ से झरता है उसके रोम रोम से स्नेह की तन्मात्रा निकलती है ।
💛जो शुद्ध हृदय से जाएगा वह उसमें डूब जाएगा । अगर वहां स्नेह नहीं मिलता है तो समझो कि तुम्हारे मन में कोई गांठ पड़ गई है। कोई धारणा, कोई पूर्वाग्रह ऐसा बैठ गया है कि जिससे तुमको वह स्नेह प्राप्त नहीं हो रहा है।
🔥 यदि गर्मी नहीं मिल रही तो हो सकता है कि वह आग ही न हो ।ऐसे ही यदि स्नेह नहीं है तो पहला कारण तुम्हारे मन की गांठ, दूसरा कारण हो सकता है कि वो महात्मा ही न हो केवल महात्मा जैसा हो।
💥परंतु एक बात अवश्य है, असली महात्मा में "अभिस्नेह " नहीं होता । अभिस्नेह अर्थात जैसे संसारी लोग अपने पुत्र में अटकते हैं । दूसरे के पुत्र में नही ।
👪 अपने रिश्तेदार - नातेदार में अटकते हैं, दूसरे में नहीं । यही अभिस्नेह है । जो महात्मा है वे एक में नहीं अटकते सब में सामान रहते हैं।
🙌🏻जय श्री राधे ।जय निताई🙌🏻
लेखकः-
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
📕श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन
🌞प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[13:14, 12/4/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
🌷 श्री राधारमणो विजयते 🌷
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
क्रम संख्या 1⃣2⃣
⚡ 🌿 अभिस्नेह 🌿⚡
👳🏻 महात्मा में अभिस्नेह नहीं होता । महात्मा तो स्नेह की मूर्ति है स्नेह तो उनके हृदय में है , उनके रोम-रोम में है जैसे आग के पास जाओ तो तपिश मिलेगी और तुम्हारी ठंड दूर हो जाएगी ।यह आग का स्वभाव है ।
💎 इसी प्रकार महात्मा के पास जाओ तो स्नेह तो उसकी आंखों में झरता है, उसकी जीभ से झरता है उसके रोम रोम से स्नेह की तन्मात्रा निकलती है ।
💛जो शुद्ध हृदय से जाएगा वह उसमें डूब जाएगा । अगर वहां स्नेह नहीं मिलता है तो समझो कि तुम्हारे मन में कोई गांठ पड़ गई है। कोई धारणा, कोई पूर्वाग्रह ऐसा बैठ गया है कि जिससे तुमको वह स्नेह प्राप्त नहीं हो रहा है।
🔥 यदि गर्मी नहीं मिल रही तो हो सकता है कि वह आग ही न हो ।ऐसे ही यदि स्नेह नहीं है तो पहला कारण तुम्हारे मन की गांठ, दूसरा कारण हो सकता है कि वो महात्मा ही न हो केवल महात्मा जैसा हो।
💥परंतु एक बात अवश्य है, असली महात्मा में "अभिस्नेह " नहीं होता । अभिस्नेह अर्थात जैसे संसारी लोग अपने पुत्र में अटकते हैं । दूसरे के पुत्र में नही ।
👪 अपने रिश्तेदार - नातेदार में अटकते हैं, दूसरे में नहीं । यही अभिस्नेह है । जो महात्मा है वे एक में नहीं अटकते सब में सामान रहते हैं।
🙌🏻जय श्री राधे ।जय निताई🙌🏻
लेखकः-
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
📕श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन
🌞प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
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