Thursday, 17 December 2015

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💐💐ब्रज की उपासना💐💐

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🌷 निताई गौर हरिबोल🌷

            क्रम संख्या 9

   🔴सार का सार🔴

🙏हमारे आराध्य🙏

हमारे आराध्य हैं भगवान् ब्रजेश तनय अर्थात्
ब्रजेंद्रनंदन श्रीकृष्ण ।

⚡वासुदेव-पुत्र श्रीकृष्ण नहीं,

💂द्वारकाधीश श्रीकृष्ण नहीं,

💧केवल एवं केवल ब्रजेंद्रनंदन या नन्द-यशोदा के सुपुत्र जो श्रीकृष्ण है-वे ही हमारे आराध्य है  । वे ही हमारे उपास्य हैं ।

💦हमारा धाम💦

⚡हमें किस धाम की प्राप्ति करनी है । मरने के बाद या उपासना में  । स्वर्ग में जाना है,नरक में, वैकुंठ में, गोलोक में,द्वारका में, अयोध्या में-कहाँ जाना है।

⚡इसके उत्तर में तद् -धाम यानि उन्हीं यानि ब्रजेद्रनंदन के  धाम वृन्दावन को ही जीते जी भी और मरने के बाद भी प्राप्त करना है ।

⚡अर्थात् नित्य गोलोक भी नही । वही भूमि पर स्थित वृन्दावन जहाँ ब्रजेंद्रनंदन के रूप में प्रकट हो कर श्रीकृष्ण ने लीलाएँ की।

⚡अर्थात् हमारा प्राप्तव्य धाम यही वृन्दावन है-जो मथुरा जिला के अन्तर्गत है भूमि पर स्थित है इसलिए शरीर रहते ही ब्रज के वास की इच्छा सभी वैष्णव करते हैं।

💐 हमारी उपासना💐

🍁हमारी उपासना कैसी है।
सर्वप्रथम तो यह 'रम्या' अर्थात् रमणीक है, अर्थात आनंदमय है,तपस्या योग आदि की भांति शरीर को दुःख देने वाली पीड़ा देने वाली नहीं है-आनंदप्रद है।

🍁फिर कहा 'काचित्' यानि चमत्कार पूर्ण है। नित-नव-नव आनंद एवं उल्लासपूर्ण है और 'काचित्' माने 'कदाचित' कभी-कभी ऐसी उपासना किसी-किसी वैष्णव में अति दुर्लभता से दीखती है।

🍁साथ ही एक भाव और भी है कि यह उपासना हर युग में नहीं होती। सृष्टि की सत्ताइसवी चतुर्युगी के द्वापर में स्वयं भगवान् जब ब्रजेद्रनंदन रूप में इस भूमि पर स्थित वृन्दावन में अवतरित होते हैं। तभी इस उपासना का परिचय मिलता है-यह आम-ताम नहीं है।
     
  क्रमशः.........

 💐जय श्री राधे
 💐जय निताई

स्रोत एवम संकलन
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की उपासना ग्रन्थ से

प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠

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