Wednesday 5 December 2012

277. krishn mere hn

श्री कृष्ण मेरे हैं 
श्री कृष्ण मेरे हैं -इस भाव को मदीयता भाव कहते हैं 

अर्थात-उनकी सेवा, उनका ध्यान मुझे 
रखना है - इसे भक्ति भी कहते हैं 
= श्री कृष्ण की अनुकूलता पूर्वक उनकी सेवा। 


मैं श्री कृष्ण का हूँ 
इस भाव को तदीयता भाव कहते हैं 

खुद की  जिम्मेदारी भी उन पर डाल  देना  
हर समय अपने दुखों की बात करना 
अपने संकटों को दूर करने वाला एक शक्ति मानना
बस अपने रोने रोते रहना, उनकी सेवा की कोई बात नहीं   

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

Tuesday 4 December 2012

276. JAGADGURU



जगद्गुरु 

जो समस्त जगत का गुरु हो,
वह जगद्गुरु 

और जिसका एक भी शिष्य न हो 
वह भी जगद्गुरु ?

समाधान आमंत्रित है 

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

Friday 16 November 2012

275. SABKE LIYE ALAG - ALAG


SABKE LIYE ALAG - ALAG

सबके लिए अलग-अलग

एक निकम्मे के लिए आदेश है - काम करो

जब काम करने लग गया तो आदेश हुआ -
गलत काम मत करो , अच्छे काम करो

जब काम के साथ कामना को जोड़ने लगा तो
आदेश हुआ- निष्काम कर्म करो

जब निष्काम कर्म करने लगा तो आदेश हुआ-
कर्ता - पन  का अभिमान त्यागो
तुम कर्ता नहीं हो करने वाला तो भगवान् है

अतः स्तर  व योग्यता  व अधिकार के अनुसार आदेश है
एक व्यभिचारी बलात्कार करने के बाद यह कहे की
कर्ता  तो भगवान् है, में कर्ता नहीं हूँ, तो
अनर्थ हो जाएगा

गलत काम- वासना से, सकाम  कर्म - स्वार्थ से
काम का अभिमान - मुर्खता से आता है

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban
http://shriharinam.blogspot.in/2011/08/time-nhi-hai.html

274. TIME NHI HAI-2

TIME NHI HAI-2


टाइम नहीं है

यदि टाइम नहीं होता तो -
1. फेस बुक पर इतने सारे लोग नहीं होते
2. टी वी देखना व बिकना बंद हो गए होते
3. क्रिकेट देखना, विशेषकर स्टेडियम में जाकर देखना बंद हो जाता
4. मोबाईल पर घंटों  इधर की बातें उधर कौन करता
5. घुमने के शहरों के होटल खाली पड़े होते

अतः टाइम तो पूरा का पूरा 24 घंटे है ही
हम जिस काम को करना चाहते हैं, उसके लिए
टाइम है, दुसरे के लिए नहीं।

अतः 'इस काम के लिए टाइम नहीं है' या
'तुम्हारे लिए टाइम नहीं है'-ऐसा कहना उचित होगा।

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

Friday 9 November 2012

273. CHAAR PRAKAR K SHABD


चार प्रकार के शब्द

१. जातिवाचक: 
यह एक मनुष्य है =  मनुष्य वाचक (पशु या पक्षी नहीं ).

२. गुण वाचक: 
यह एक गोरा मनुष्य है. गोरा = गुण 

३. क्रिया युक्त 
यह गोरा मनुष्य भाग रहा है. भागना= क्रिया.

४. यदृच्छा (इच्छा से नाम रखो ): 
यह रमेश (नामक) गोरा मनुष्य भाग रहा है. 

--
JAI SHRI RADHE


DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
made to serve ; GOD  thru  Family  n  Humanity
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

Thursday 8 November 2012

272. BHAKTI AMAR HAI

BHAKTI AMAR HAI


अमृतस्वरूप भक्ति 

नारद भक्ति सूत्र का दूसरा सूत्र है 
जिसके अनुसार भक्ति अमृत स्वरुप है ,अथवा अमृत है

अमृत यानि अ+मृत जो मृत नहीं होती ,जिसका
 नाश नहीं होता ,जो सदेव है ,अमर है
इस जनम मै जितनी भक्ति करोगे ,जितनी सीड़ी 
चड़ोगे , मृत्यु के साथ वह समाप्त नहीं होगी , 
अगले जन्म में अगली सीढी  से प्रारंभ करना होगा 

पिछली सीढीयां  अमर है ,हर जनम मे जुड़ती  जायगी 
भक्ति का नाश नहीं , न ही भक्त का नाश है -'न मे भक्त प्रनश्यति'
बकि  कर्म का फल 
भोग या मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है 

अतः  इस भक्ति अमृत का अवश्य पान करो 
जितना हो उतना करो -यह अमर है -हर जन्म में जुड़ता रहेगा 

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

Wednesday 7 November 2012

271. MARNA




मरना

विशुद्ध प्रेम में मरना तो होता ही नहीं
अपने प्रियतम के सुख के लिए
बस जीना ही जीना

Tuesday 6 November 2012

270. RAADHAAKUND SNAAN




श्री राधाकुंड स्नान

आज श्री राधाकुंड का प्राकट्य-दिवस है
रात्री 1 2  baje  lakhon bhakt aaj कुंड  में  snaan karte hain

jahan laukik logon ki anek mano kamnaa purn
hoti hain वहां

bhakton ko bhakti sahit shree raadhaaraani ki
kripa prapt hoti hai, kyonki

bhagvaan shree krishn ko shree radhakund  raadhaarani
ke samaan hee priya hai

jai shree radhakund !
आज  कनव  अरोरा का भी जन्मदिन है
शत-शत बधाई !!!!

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

Friday 2 November 2012

269. TEEN PRAKAR K ARTH


तीन प्रकार के अर्थ

१. मुख्य या अभिधा : 'यह एक घर है'
स्पष्ट है। कोई अर्थ लगाने की ज़रुरत नहीं 
.
२.लक्षणा  : 'गंगा में घर है'. 
गंगा में, जल में घर नहीं हो सकता 
अतः: अर्थ लगाना  है की गंगा के  किनारे घर है .

३. व्यंजना  : 'गुरूजी संध्या हो गयी'.
अर्थात शाम हो गयी . अब पढ़ना बंद करो 
या शाम को जो काम करते हो वो करो.
इशारे से बात को समझो 

ग्रन्थ या शास्त्र में इन तीनों का प्रयोग हुआ है 
जो जानने वाले हैं, उनसे सही अर्थ समझा जाना चाहिए 
अन्यथा 'गंगा में घर है' के हिसाब से गंगा में दुबकी लगा-लगा 
कर घर ढूंढने वाले को क्या हाथ लगेगा ?

लिखा हुआ तो साफ़-साफ़ है ही  

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia



Thursday 1 November 2012

268. GANDEE BATEN




गंदी गन्दी बातें 

समाचार छपा की फलहा-फलहा सेलेब्रिटी
अपने आपत्तिजनक चित्र
इन- इन वेबसाइट या ट्विट्टर पर अपलोड
करके अश्लीलता फेला रही है - इन्हे तुरंत रोका जाना चाहिए

साथ ही वेबसाइट व ट्विट्टर के पते भी दीए गए थे
उनको रोका गया या नहीं, यह तो पता नहीं चला 
समाचार छपने के दो दिन बाद-
समाचार छापा कि उनके फोलोवेर्स कि  संख्या में दोगोनी वृद्धि  हो गयी है 

आजकल मीडिया द्वारा यह स्टाइल खासी अपनाई जा रही है 
ऊपर से कहेना तो यह कि इन्हें तुरंत रोका जाना चाहिए 
और परिणाम या उद्देश्य उनके प्रचार का । इशे पीत-पत्रकारिता कहते है

अत: प्रचार या समाचार या बात केवल पोजिटिव विषय प़र 
गंदी बाते तो दफनाने के लिये छोर देनी चाहिए , 
उनका वीरोध करने से भी वह बढ़ती ही हैं

जैसा की आजकल भ्रष्टाचार के विषय म हो रहा है 
जितना विरोध हो रहा है, उतना बढह रहा है 
 
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Wednesday 31 October 2012

267. PRASAD CHINMAY




चिन्मय प्रसाद


प्रसाद में चिन्मयता तभी आती है, जब
उसे प्रभु ने स्वीकार कर पा लिया हो !

और स्वीकार तभी होता है, जब
पूर्ण शुद्धता एवं मर्यादा का पालन करते हुए
भाव, श्रद्धा व शास्त्रानुसार बनाया हो

अन्यथा वह भी राजसिक, तामसिक, गुणों
से युक्त एक पदार्थ ही है

प्रसाद चिन्मय है या नहीं, यह पता न होने
पर  प्रसाद का एक कण  लेकर प्रणाम करना चाहिए

चिन्मय है तो ठीक, नहीं तो दुष्प्रभाव
बहुत कम होगा

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban
www.shriharinam.blogspot.com

Saturday 27 October 2012

266. VATAAVARAN KA PRABHAV



वातावरण का प्रभाव 

जीवन में लक्ष्य प्राप्ति हेतु वातावरण का 
क्या योगदान होता है -यह बहुत पढ़ा और लिखा  था 

लेकिन शायद  पहली बार अनुभव भी किया 
जब मैने एक वैष्णव  मित्र के साथ तिन दिन दो रात्रि 
श्री राधाकुंड में वास किया 

265. PREM K PRAKAAR


प्रेम के प्रकार

१. सात्विक 
इस प्रेम में केवल देना ही देना स्वभाव बन जाता है 
उसका सुख, उसकी अनुकूलता ,उसके लिए सब कुछ 

भक्ति यद्यपि त्रिगुणातीत है लेकीन इसे भी भक्ति या शुद्ध प्रेम कह सकते है 

२. राजसिक 
इस प्रेम में लेना व देना दोनों चलते है 
मैने तुमको इतना प्रेम किया - बदले में तुमने मुझे क्या दिया ? 
बस यह दिया ? यही सिला दिया मेरे प्यार का ?

३. तामसिक 
प्रेम के कारण जान  देने या लेने को उतारू हो जाना 
जेसे कि  आतंक वादी  
उसे भी कुछ न कुछ प्रेम हो जाता है की वह उसके लिए 
दुसरे की जान लेने और अपनी जान देने को तैयार रहता है 

सर्वोत्तम :  प्रेम -  भक्ति 
और इन तीनों  से परे श्री कृष्ण की अनुकुलतामयी 
स्वसुख गंध लेश शून्य जो क्रिया  है -वह है भक्ति 

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Thursday 25 October 2012

264. DASHAHRAA


दशहरा 

आज एक फोन आया 
'और दशहरा कैसा मना ?'

मैंने कहा- भाई मेरे इर्द-गिर्द कोई 
रावण है ही नही या शायद मुझे दिखता नहीं 

तो कैसा दशहरा ???

ये तो गोविन्द की नगरी वृन्दाबन  है,
यहाँ तो बस आनंद ही आनंद है 
न रावण है न दशहरा !!! 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Saturday 20 October 2012

263. gopi prem

विशुद्ध प्रेम 

गोपियों को कृष्ण से विशुद्ध प्रेम था

कृष्ण ब्रज में रहे , या मथुरा 
या द्वारका - इस बात से कोई फर्क नहीं पढ़ता है 

श्री कृष्ण को द्वारका में सुख है तो 
गोपियो इसी  में ही प्रसन्न  है 

वे कृष्ण के सुख में सुखी है, उनका अपना कोई  सुख नहीं है 
हमारे प्रियतम कही भी रहे ,कैसे  भी रहे
वे हमारे है उनका सुख एवं आनंद विधान 
ही हमारे प्रेम का आधार है 

यही शुद्ध प्रेम है 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA



gopi prem

263. gopi prem

विशुद्ध प्रेम 

गोपियों को कृष्ण से विशुद्ध प्रेम था

कृष्ण ब्रज में रहे , या मथुरा 
या द्वारका - इस बात से कोई फर्क नहीं पढ़ता है 

श्री कृष्ण को द्वारका में सुख है तो 
गोपियो इसी  में ही प्रसन्न  है 

वे कृष्ण के सुख में सुखी है, उनका अपना कोई  सुख नहीं है 
हमारे प्रियतम कही भी रहे ,कैसे  भी रहे
वे हमारे है उनका सुख एवं आनंद विधान 
ही हमारे प्रेम का आधार है 

यही शुद्ध प्रेम है 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA



gopi prem

263. gopi prem

विशुद्ध प्रेम 

गोपियों को कृष्ण से विशुद्ध प्रेम था

कृष्ण ब्रज में रहे , या मथुरा 
या द्वारका - इस बात से कोई फर्क नहीं पढ़ता है 

श्री कृष्ण को द्वारका में सुख है तो 
गोपियो इसी  में ही प्रसन्न  है 

वे कृष्ण के सुख में सुखी है, उनका अपना कोई  सुख नहीं है 
हमारे प्रियतम कही भी रहे ,कैसे  भी रहे
वे हमारे है उनका सुख एवं आनंद विधान 
ही हमारे प्रेम का आधार है 

यही शुद्ध प्रेम है 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA



gopi prem

Tuesday 16 October 2012

262. vaishnav navraatra



वैष्णव नवरात्र 

नवरात्र में दुर्गा पूजा अति प्रचलित है 
दुर्गा प्रभु की एक शक्ति है। अनेक दुर्गाओं  का वर्णन 
ग्रंथों में प्राप्त होता है .

आदि दुर्गा वैष्णवों के श्री गोपाल-मंत्र की अधिष्ठात्री है 
यह अति-दुर्गम=कठिन श्री कृष्ण भक्ति को देने वाली है।
-इस भाव से की गयी दुर्गा-पूजा भक्ति का एक अंग हो सकती है 
दुर्गा को स्वतंत्र शक्ति मन कर की गयी पूजा शाक्त-पूजा है 

वैसे वैष्णवों को इन 9 दिनों में इन 9 अंगों का श्रद्धा सहित 
विशेष अनुष्ठान पूर्वक पालन करना चाहिए 

1. श्रवण = कथा या ग्रंथ्-पाठ  सुनना
2. कीर्तन = संकीर्तन का आयोजन 
3. स्मरण = जप पूर्वक प्रभु का स्मरण 
4. पाद सेवन = श्री विग्रह की विशेष चरण सेवा व चरण दर्शन 
5. अर्चन = श्री विग्रह की विशेष श्रृंगार आदि से सेवा-अर्चना, आरती  
6. वंदन = पद गान द्वारा प्रभु की आज विशेष वन्दना 
7. दास्य = में प्रभु का नित्य दास हूँ -इस भाव को दृढ़ करते हुए प्रभु-सेवा में लगना 
8. सख्य = प्रभु ही मेरे सच्चे मित्र है - इस भाव को दृढ़ करते हुए प्रभु-सेवा में लगना 
9. आत्म निवेदन = अपने आप को सब प्रकार से प्रभु को समर्पित करना  

इस प्रकार नवरात्र का आयोजन करना वैष्णव नवरात्र है   

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Monday 15 October 2012

261. gopiyon ko kya fark hai

गोपियों को फरक नहीं पड़ता 

ब्रज गोपियों को किसी ने सन्देश दिया की 
आज तो श्री कृष्ण ने मथुरा की कुबड़ी 'कुब्जा ' को 
अपना लिया है , अब  वह तुम्हारे नहीं रहे 

Saturday 13 October 2012

260 heere se kanch


हीरे से कांच काटना 

हीरा एक बहुमूल्य वस्तु  है
इसे प्राप्त कर इससे कोई यदि कान्च काटता  है तो ठीक है 
लेकिन यह इसका सर्व श्रेष्ठ उपयोग नहीं है 

Friday 12 October 2012

259. RASTRAPATI NHI BAN SKTE




राष्ट्रपति नहीं बन सकते 

आज एक आप-हम जैसा साधारण व्यक्ति 
एड़ी छोटी का जोर लगा ले तब भी वह अगले पञ्च वर्षों में 
भारत का राष्ट्रपति नहीं बन सकता 

लेकिन यदि कोई हम -आप जैसा साधारण व्यक्ति 
पांच वर्ष तक एड़ी- छोटी का जोर लगाकर 
भजन में लग जाय तो भगवद भक्ति प्राप्त कर सकता है 

कहाँ सामान्य सा पद और कहाँ परम पद 
लेकिन कितना सहज 

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

 RASTRAPATI NHI BAN SKTE

Thursday 11 October 2012

258. gandee baat


गन्दी बातें 

गन्दी बातों की प्रशंसा करो या विरोध 
दोनों ही स्थितियों में 
नैगाटिव वाईबरेशंस प्रचारित होती है 

भ्रष्टाचार का विरोध तो जो हुआ सो हुआ,
इससे भ्रस्ताचार का प्रचार अधिक हुआ है 

जिन्हें पता नहीं था, उन्हें भी पता चल गया 
और शायद वे भी अब बिना डरे भ्रष्टाचार का आश्रय लेंगे 

अतः केवल व केवल अच्छी बातों के बारे में ही 
बात होनी चाहिए, गंदी बातें सदा से थी , सदा रहेंगी 
इन्हें दफनाते रहना चाहिए  

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Tuesday 9 October 2012

257. MAN DHAN



मन चाहिये या धन ?

किसी लोकिक व्यक्ति  से 
हम कहें  कि -भइया ! मन से हम 
तुम्हारे साथ है , हमारा मन तुम्हारे साथ  है,
तन असमर्थ है ,धन हमारे पास है नहीं 
तो वह आपको अपने पास फटकने  नहीं देगा 

और श्री कृष्ण !
वे तो तन और धन चाहते ही नहीं है 
उन्हे तो केवल और केवल मन ही चाहिए 
मन दिया तो सब दिया , हो गए वे आपके और आप उनके
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Friday 5 October 2012

256. RAS KA PATR

RAS KA PATR


रस का पात्र

'रसो वै सः'
भगवान् रस स्वरुप है

रस के विषय में जाननने के लिए
आवश्यक है कि एक पात्र हो, जिसमे रस 
डाल कर रस के स्वरूप, मात्रा, आनंद आदि का
ज्ञान प्राप्त हो .

Tuesday 2 October 2012

255. SAHAAYATAA KYON NAHI ??



सहायता क्यों नहीं??

एक बालक एक बार अपने पिता के साथ किसी कैदी
से मिलने जेल गया

वहां उसने देखा कि-
१. एक व्यक्ति की पिटाई हो रही है
२. एक व्यक्ति को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा है
३. एक व्यक्ति=कैदी को मिलने वालों से मिलने नहीं दिया गया
आदि...आदि.....

बच्चे ने अपने पिता से कहा-
आप इतनी समाज सेवा करते हो, आप इन लोगिन की सहायता 
क्यों नहीं करते हो ???

पिता ने कहा- बेटे ये अपराधी हैं, इन्होने क़त्ल किया है, चोरी की है
अत्याचार किया है, - ये लोग अपने बुरे कामों की सज़ा काट रहे हैं
इन्हें इसलिए दण्डित किया जा रहा है जिससे ये दुबारा बुरे काम=अपराध न करें

ठीक इसी प्रकार विभिन्न जीव जो दुःख भोग रहे हैं
ये उनके बुरे कामों की सज़ा है, जैसे बालक नहीं जानता
वैसे ही हम नहीं जानते हैं, लेकिन जो शास्त्र हैं, संत हैं, वे त्र्कालाग्य है
वे जानते हैं, वैसे भी भगवान् से तो पाप पुण्य का कोई सम्बन्ध नहीं है
भगवान् तो भक्ति व भक्त से सम्बन्ध रखते है.
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

254. tumhare PAAP KA FAL



तुम्हारे पाप का फल है ये !

एक व्यक्ति का मकान अचानक चकनाचूर हो गया
वह दुबारा मकान बनाने की स्थिति में नहीं था, अतः झल्लाकर
धर्माचार्यों के पास गया और कहा कि-

आप भगवान् के अति निकट हैं, आप भगवान् से
प्रार्थना करके मेरा मकान दुबारा बनवा दीजिये

धर्माचार्यों ने भगवान् से बात की, और असलियत का पता लगाया
और उस बन्दे को बताया कि -

तुम पिछले जन्म में एक बिल्डर थे, तुमने बहुतों को बेघर किया था
तुम्हे उस पाप कि सज़ा मिली है, और अब तुम्हे भी पूरे जीवन
इधर-उधर भटकना होगा, अब तुम्हारे भाग्य में मकान नहीं है

वह बन्दा झल्ला गया, बोला में पिछले जन्म को नहीं मानता हूँ
धर्माचार्यों ने कहा, ठीक है, तो भगवान् को भी मत मानो
पिछ्ला जन्म, भगवान्, धर्म, शास्त्र, कर्म, पाप, पुण्य आदि यह पूरा package है
मानो तो पूरा, न मानो तो पूरा मत मानो,

नहीं मानते तो फिर तुम्हारा मकान गिरा, 
तुम जानो, इससे धर्म का , भगवान् का क्या मतलब ???
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Monday 1 October 2012

253, SHUDDH PREM



शुद्ध प्रेम

कामना, वासना, स्वार्थ, या किसी
मकसद के लिए किया गया प्रेम लौकिक है
यह उद्देश्य-पूर्ती के साथ-साथ समाप्त हो जाता है या ढीला पड़ जाता है

विशुद्ध प्रेम आत्मिक है, आत्मा की वस्तु है
शरीर रहे न रहे, मकसद रहे न रहे, प्रेम  रहता ही है
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Saturday 29 September 2012

252. ARE BABA ! KUCHH KARO !!

ARE BABA ! KUCHH KARO !!

अरे बाबा कुछ करो !

यदि भगवान् चाहते की हम कुछ न करें  तो
हमें एक गोल पत्थर बना कर हिमालय के ऊपर रख देते

हमें आँख, नक्, कान, हाथ, मन, मस्तिष्क 
बुद्धि, वाणी, आदि-आदि देकर सब तरह से लैस 
करके किस लिए भेजा ??

खाली बैठ कर प्रारब्ध-प्रारब्ध रोने के लिए नहीं
अपितु कुछ करने के लिए ये सब दिया है

दिए हुए का उपयोग नहीं करोगे तो अगले जन्म में 
नहिं मिलेगा, मिलेगा भी तो बन्दर की तरह
आँख, नक् आदि सब है, लेकिन किसी काम का नहीं

अतः कुछ करो ! बहुत ही अच्छा हो की भजन करो !!!!!!!!!!
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Thursday 27 September 2012

251. shraddhaa


श्रद्धा 

श्री कृष्ण - प्रेम प्राप्त करने की प्रथम सीढी है श्रद्धा
अनेक प्रकार की श्रद्धा का वर्णन शास्त्र में मिलता है

श्री कृष्ण की पूजा करने से समस्त देवताओं की पूजा 
हो जाती है, किसी और की पूजा की कोई आवश्यकता ही
नहीं रह जाती है

जैसे पेड़ की जड़ में जल देने से उस पेड़ के ताना, शाखा, फूल, फल
सब तृप्त हो जाते हैं, सबको अलग-अलग जल देने की ज़रुरत नहीं है

-ऐसी यह श्रद्धा ही कृष्ण प्रेम प्राप्ति की प्रथम सीढ़ी है
इस श्रद्धा के बाद-
साधुसंग
भजन करना
अनर्थों की समाप्ति
निष्ठा
रूचि
आसक्ति
भाव
एवं अंत में प्रेम की प्राप्ति हो जाती है
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

250. ABHISNEH



अभिस्नेह 

महात्मा में अभिस्नेह नहीं होता
महात्मा तो स्नेह की मूर्ती हैं . स्नेह तो उनके हृदय में है. 
उनके रोम रोम में है. 
जैसे आग के पास जाओ तो आंच मिलेगी और तुम्हारी ठण्ड दूर हो जाएगी , 
यह आग का स्वभाव है.

इसी प्रकार महात्मा के पास जाओ  
तो स्नेह तो उसकी आँखों में से झरता है उसकी जीभ में से झरता है . 
उसके रोम रोम से स्नेह की तन्मात्रा निकलती  है. 
जो शुद्ध ह्रदय से जाएगा वह उसमे डूब जाएगा . 

अगर वहां स्नेह नहीं मिलता है तो समझो की 
तुम्हारे मन  में कोई गाँठ पढ़ गयी है. कोई धारना, कोई पूर्वाग्रह 
आकरके ऐसा बैठ गया है की जिससे तुमको वो स्नेह प्राप्त नहीं  हो रहा है. 

यदि गर्मी नहीं मिल रही हो तो हो सकता है की वह आग हो ही  नहीं . 
ऐसे ही यदि स्नेह नहीं है तो पहला कारन तुम्हारे मन की गाँठ . 
दूसरा कारन हो सकता है की वो महात्मा ही ना हो . केवल महात्मा जैसा हो
परन्तु एक बात अवश्य है, महात्मा में "अभिस्नेह" नहीं होता.
जेसे संसारी लोग अपने पुत्र में अटकते है , 
दुसरे के पुत्र में नहीं. 
अपने रिश्तेदार- नातेदार में अटकते है दुसरे में नहीं 
यही "अभिस्नेह" है .
जो महात्मा है वे एक में नहीं अटकते, सब में सामान रहते हैं 
साभार - आनंद बोध  
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Saturday 22 September 2012

249. SRISHTI K A ADHAAR - BALRAAM



बलराम - सृष्टि के आधार

कल श्री राधा जू का प्राकट्य-दिन : राधाष्टमी है
आज ललिता जू का प्राकट्य-दिन : ललिता-सप्तमी है
कल श्री बलराम जी का प्राकट्य-दिन था

बलराम जू प्रेमा-भक्ति का मूर्तिमान विग्रह हैं
श्री कृष्ण के वस्त्र,अस्त्र,आसन, शैया, पादुका, के रूप में बलराम ही हैं

साथ ही इस समस्त सृष्टि का सीधा संपर्क भी बलराम जू से है
श्री कृष्ण चार रूपों में स्वयं को प्रकट करते हैं
१. वासुदेव. २. बलराम. ३.प्रद्युम्न. ४. अनिरुद्ध

इसमें से बलराम के अंश हैं कारन समुद्र-शाई
कारन समुद्र-शाई के अंश हैं- गर्भोदक शाई
गर्भोदक शाई के अंश है क्षीरोदक शाई विष्णु , ब्रह्मा, महेश
जो श्रृष्टि का पालन, उत्पत्ति व प्रलय करते हैं

सृष्टि के प्रधान तत्व व प्रेमा-भक्ति के मूर्तिमान स्वरूप श्री बलराम जू
को कोटि-कोटि प्रणाम व कृपा की याचना

दाउदयाल  बिरज के राजा , भंग पिये तो ब्रिज में आजा 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

Thursday 20 September 2012

248. KRODH KAISE KAM HO ?

248. KRODH KAISE KAM HO ?


क्रोध या तमोगुण कैसे कम हो ?

मधु मक्खियाँ जिस बाग से मधु एकत्र करती हैं, उस बाग में
यदि नीम के पेड़ अधिक है तो उस मधु में 
नीम के गुण भी आ जाते हैं, मधु के गुण तो होते ही हैं.

इसी प्रकार गुलाब के, गेंदा के, अथवा अन्य किसी के गुण उस मधु म होते हैं
साधारणतया वह मधु ही है, laboratory में इस सूक्ष्मता का पता चलता है.

इसी प्रकार हमारे शरीर में बहने वाला रक्त साधारणतया एक जैसा ही लगता है
लेकिन जो भोजन हम करते हैं, उसका प्रभाव उस रक्त पर पड़ता है, 
अपितु  उसी भोजन का वैसा ही  रक्त बनता है.

यदि भोजन तामसिक है, तो रक्त तामसिक बनेगा, रक्त तामसिक होगा तो
हमारा आचरण, सोच, क्रिया, बर्ताव, सभी कुछ तामसिक होगा.

अतः क्रोध या तमोगुण  कम करना है तो अपने भोजन को ठीक करना ही होगा. 
जैसा अन्न - वैसा मन -बहुत पुराणी कहावत है.
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Wednesday 19 September 2012

247. 6 BHAG

6 bhag


वैराग्य

१. भगवत स्वरुप में 
श्री, विद्या, यश, वीर्य, वैराग्य,ऐश्वर्य 
इन ६ भगों में 'वैराग्य' भी है.

श्री राम ने तुरंत उसी समय मरते पिता को छोड़कर 
राज - काज  परिवार को छोड़कर बनगमन किया, 
यह उनके अनलिमिटिड वैराग्य का उदहारण है.

वनवास तो लेना ही था 
और चौदह वर्ष काबनवास था, आराम से कुछ दिन रुक कर
पिता का और अन्य राज्य की व्यवस्था आदि करवाकर फिर चले जाते, 
लेकिन वैराग्य की पराकाष्ठा इसी में है की 
तुरंत ही पीछे की व्यवस्थाओ की चिंता किये बिना चल दिए.

२. यही बात कृष्ण ने भी की. 
प्राण प्रियतम  नन्द यशोदा ब्रिजवासी तथा श्री राधा आदि
गोपी गण  को छण   में छोड़कर चले गए .

३. यही बात महाप्रभु गौरांग ने भी दिखाई 
विधवा असहाए वृद्ध शची माँ 
नवविवाहिता विष्णुप्रिया को छोड़कर गृह त्याग दिया.  

श्री, विद्या, यश, वीर्य, वैराग्य,ऐश्वर्य  
यह ६ औरों में भी हो सकते हैं, लेकिन भगवान् में 
ये शत-प्रतिशत होते हैं.

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Tuesday 18 September 2012

246. aap kya sochte hn ?

आप क्या सोचते हैं ?

घर के अपने ठाकुर जी या किसी मंदिर से प्राप्त प्रसाद को
चीनी, प्लास्टिक, कांच के बर्तन में पाया जय या परोसा जाय तो

१. प्रसाद अशुद्ध हो जायेगा
२. चीनी, कांच,प्लास्टिक शुद्ध हो जाएगा
३. कोई फरक नहीं पड़ता

अपने विचार प्रस्तुत kare

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Monday 17 September 2012

245. GURU MANGTAA HAI

गुरु 

जो शिष्य से मांगे 
वह कैसा गुरु ?

जो शिष्य को ज्ञान दे
भक्ति दे
प्रभु से शिष्य को मिला दे
वह गुरु !

जो शिक्षा दे
वह शिक्षा गुरु

जो दीक्षा दे
वह दीक्षा गुरु

जो सर पर हाथ रखकर
शिष्य को अपना ले
वह सद्गुरु !!!

जो ले या मांगे
वह कैसा गुरु ???????
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Tuesday 11 September 2012

244. SHRI GURU

 SHRI GURU


श्री गुरु

नामश्रेष्ठं मनुमपी शचीपुत्रमत्र स्वरूपं
रूपं तस्याग्रजमुरुपुरी माथुरी गोष्ठवाटिम |
राधाकुंदम गिरिवरमहो राधिका माधवाशां
प्राप्तो यस्य प्रथितकृपया श्रीगुरुं तं नतोअस्मी ||

श्रील रघुनाथ गोस्वामी कह रहे है - 
सवश्रेष्ठ हरिनाम ,दीक्षा - मंत्र शचिनंदन श्री गोर हरि और उनके परिकर 
श्री  स्वरूप दामोदर गोस्वामी, श्रील रूप गोस्वामी तथा उनके 
ज्येष्ठ - भ्राता श्रील सनातन गोस्वामिका संग, 
सर्वश्रेष्ठ श्री मथुरा पुरी और उससे भी अत्यधिक श्रेष्ठ श्रीवृन्दावनधाम,
उस वृन्दावन धाम मैं क्रमश : श्रेष्ठताको प्राप्त श्री गिरिराज गोवर्धन, श्री राधाकुंड और 
अहो ! वहाँ पर श्रीश्रीराधामाधव की सेवा प्राप्त करने की परम उत्कट आशा - यह सभी जिनकी 
अहैतुकी कृपा से मैंने  प्राप्त किया है, 
उन श्रील गुरुदेव के श्री चरणों में नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ |
JAI SHRI RADHE

Wednesday 5 September 2012

243. GURUDEV

GURUDEV

श्री गुरुदेव

श्री गुरुदेव भगवान् से कम नहीं है लेकिन भगवान् भी नहीं है.

माना की आप गुरुदेव को भगवान मान्ते है 
तो आपके लिए आपके गुरुदेव भगवान् है मेरे लिए नहीं या 
उनके लिए नहीं जो उनके शिष्य नहीं
 .
लेकिन श्री कृष्ण श्री राम आदि सबके लिए भगवान् है.

स्वामी रामसुख्दास जी कहते है की
 जब तक किसी को संतान प्राप्त नै होती तब तक वेह "पिता" 
नहीं कहलाता है.  जब तक शिष्य को भगवद्भक्ति रुपी कल्याण प्राप्त 
नहीं होता तब तक कोई "गुरु" नहीं  कहला सकता.

गुरु वही जो गोविन्द से मिला दे...........
JAI SHRI RADHE

242. ACHINTYA BHADABHED


अचिन्त्य भेदाभेद 

की मान्यता है की जीव ब्रह्म में जो भेद-अभेद है 
वह बुद्धि या तर्क द्वारा समझने की बजाये 
शास्त्र द्वारा समझा जा  सकता है 
अतः केवल बुद्धि द्वारा अचिन्त्य है.

साधारण भेदाभेद दर्शन की मान्यता है की 
जीव ब्रह्म का भेद समझ ही नहीं आ सकता. 

जबकि अचिन्त्य भेदाभेद 
शास्त्र कृपा से इसे समझ में आने की बात करता है. 
अवश्य केवल तर्क या बुद्धि द्वारा ये अचिन्त्य है.
JAI SHRI RADHE

Tuesday 4 September 2012

241. kada, aho, adya

kada, aho, adya


कदा,  अहो,  अद्य 

'कदा' में भक्त की विकलता प्रकट होती है- 
कदा करिश्यसीह माँ कृपा....
हे प्रभु कब ? आखिर कब?? मुझ पर कृपा  होगी??

अहो !
"अहो! बकी यं स्तन कालकूटम" में प्रभु की अपरिमित करुना के दर्शन साधक को होते है. 

अद्य  
में ठाकुर के दर्शन श्रृंगार का अनुपम आनंद साधक को प्राप्त होता. 
"आज बनी सुन्दर अति जोड़ी " 
यानी जेसे आज बनी है वैसी कभी नहीं बनी. 

240. BHGVAAN SBKE SAATH


 BHGVAAN SBKE SAATH

 भगवान  सबके साथ

जब  रजोगुन या   तमोगुण  की वृद्धि सृष्टि  में अपेक्षित होती है
तो भगवान रज-तमोगुण की वृद्धि को  होने देते है 

जब सतोगुण  की वृद्धि की आवश्यकता होती है उसे भी होने देते है.

लेकिन प्रायः देखने में ये आता है की वे देवताओं  के साथ है . सात्विक  लोगो  के साथ है.

सत्वगुण  प्रकाशमय या ट्रांसपरेंट होता है. 
अतः भगवन की उपस्तिथि दिखती है.

तमो-रजो  गुन  आवरनात्मक   होते है अतः भगवन की उपस्थिति  दीखटी  नहीं . 
ठीक वैसे, जैसे-  शीशे के बर्तन मे अन्दर जो है वह दिखता है स्टील या मिटटी के बर्तन में नहीं दिखता. 
  
भगवन पक्षपाती तो नहीं है लेकिन निष्ठुर भी नहीं है .
रजा ह्रियान्यकशिपू ने जब वर मांग कर देवताओं को अपने आधीन कर लिया तो प्रभु शांत रह आये 
उस समय भी हिरान्यकशिपू को असहयोग कर सकते थे,

लेकिन जब अपने भक्त प्रहलाद पर कष्ट आया तो खम्बे से प्रकट हो गए.
JAI SHRI RADHE

Monday 3 September 2012

239. DVESH KISSE



द्वेष किससे  ?



शिव 
दक्ष प्रजापति से नहीं 
उनके अज्ञान से द्वेष करते थे.

दक्ष प्रजापति 
शिव से द्वेष करते थे.

पाप से घृणा में दोष नहीं, 
पापी से घृणा में दोष है.

JAI SHRI RADHE

Wednesday 29 August 2012

238. RAJ - RANI


रज रानी 

एक रानी ही से दूसरी रानी से मिला सकती हैं . 
राधारानी से मिलना है 
तो सहज प्राप्त वृन्दावन  की रज रानी की सेवा उपासना करो.

रज रानी  ही राधारानी से  मिला देंगी . 

JAI SHRI RADHE

Thursday 16 August 2012

237. EK KO CHUNO

 EK KO CHUNO


एक को चुनो

अपनी छोटी बहिन के साथ उसके कॉलेज जाओ 
उसकी कक्षा में बेठो थोडा लिखो पढो और आ जाओ.

दुसरे दिन बड़ी बहिन के साथ जाओ थोडा लिखो पढो और आजाओ

केवल मनोरंजन है तो ठीक हैं
लेकिन यदि आप सेरिअस है और यह कहे की में भी 
तो कीसी न किसी बहिन के साथ रोज़ कॉलेज  जाती हूँ तो आपका भ्रम है 
न आपको रोज़ जाने दिया जाएगा न परीक्षा में बेठने दिया जाएगा ने डिग्री मिलेगी और न नौकरी.

इसी  प्रकार कभी कृष्ण कभी राम कभी शिव कभी माता करोगे तो हाल वही होगा,, 
मनोरंजन ही  होगा बस...

यदि गंभीर हो तो किसी भी एक के हो जाओ एक को पकड़ लो. 
जिस प्रकार पति एक रिश्ते अनेक 

"पति एक" अन्यथा चरित्रहीन कह्लोगी. 
एक को पकड़ो. एक को भजो. एक में निष्ठां.एक की प्रतिस्था 
चुनाव खुद करो सोच समझकर.
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Wednesday 15 August 2012

236. 15th august

स्वतंत्रता दिवस
आज १५ अगस्त को भारत स्वतन्त्र हुआ था
पर-तंत्रता, पर-शासन समाप्त हुआ था
 
सर्वतंत्र - स्वतन्त्र,  परम - स्वतन्त्र भगवान्
श्री कृष्ण के चर्नारविन्द को प्राप्त करने की
इच्छा को लेकर लोभ, मोह, द्वेष, क्रोध, आदि मायिक
लौकिक प्रवृत्तियों से न जाने हम कब स्वतन्त्र होंगे ?
 
इनसे स्वतन्त्र होकर भगवद सेवा प्राप्त होने पर ही
हम वास्तविक स्वतन्त्र होंगे !
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Monday 13 August 2012

235. KHEENCH - TAAN


KHEENCH - TAAN

खींच - तान 

बिल्ली के गले में रस्सी बाँध दो 
और उसके दुसरे छोर को पकड़ लो तो 
बिल्ली निश्चित ही उसे खिचेगी  
फिर हम यह कहते हैं की :  मेने तो केवल पकड़ राखी है, 
खीच तो बिल्ली रही है.

हम यदि संसार की रस्सी पकडे रहगे तो 
खींचतान मची रहेगी 
संसार में  रहो भले  ही  रस्सी को छोड़ दो 
खींचतान समाप्त हो जाएगी
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Friday 10 August 2012

234. JANMASHTAMI

जन्माष्टमी

कन्हैया का जन्म हुया तो 
रोते ही जा रहे थे

साथ खड़े एक जन के पास मेसज आया
उसने मोबाईल में मैसेज पढ़ा

दूर खड़े दूसरे जन ने पूछा-
क्या मैसेज आया

उसने जोर से बोल कर बताया-
जय श्री राधे

क्या ?
जय श्री राधे 

हाँ जय श्री राधे !!!

जानते हैं लाला का रोना बंद हो गया
और लाला जोर-जोर से खिलखिलाने लगे

बोलिए-
जय श्री राधे

दासाभास डा गिरिराज 

Friday 3 August 2012

233. DHRUV KI BHAKTI


 DHRUV KI BHAKTI

ध्रुव की भक्ति

भगवन की भक्ति करते हुए अपने लिए कुछ मांगना 
शत प्रतिशत भक्ति नहीं  है. सकाम भक्ति है. लेकिन सकाम भक्ति करते करते 
एक अवसर ऐसा आता है की भक्त विशुद्ध भक्ति 
तक पहुच कर भगवान् के श्री चरणों की सेवा के अतिरिक्त 
कुछ नहीं  मांगता . 
न करने से बेहतर है सकाम भक्ति ही सही., भक्ति करो.

ध्रुव को जब उनकी सौतेली माँ ने दुत्कार दिया तो 
ध्रुव न्र भगवान् की उपासना शुरू की. 
कामना यह ही थी की मुझे पिता से भी बड़ा राज्य मिले 
और पिता स्वयं मुझे गोदी में बताने के लिए बुलाये. लेकिन भक्ति भजन 
करते करते जब भगवान प्रकट हुए कहा वर मांगो तो 
ध्रुव ने  कहा की जब आपके श्री चरणों के दर्शन होगये तो अब क्या राज्य और क्या गोदी? 
मुझे तो अपने श्री चरनोको सेवा देदीजिए,

प्रभु ने कहा ध्रुव तुम निश्चित हे मेरी सेवा के अधिकारी हो 
लेकिन तुमने जिस कामना के लिए भक्ति प्रारंभ की थी यह भी पूर्ण करूंगा. 
भगवन ने विशाल राज्य दिया. हजारो वर्ष तक ध्रुव ने राज्य सुख भोगा और अंत में 
मृत्यु के सर पर पैर रखकर भगवद धाम को गए और आज भी तारा मंडल में दर्शनीय है. 

सकाम भक्ति वाला विशुद्ध भक्ति तक पहुचता तो है 
लेकिन उसे देर लगती है बीच का समय या अनेक अनेक जनम कामना पूर्ति में नष्ट हो जाते है.

अतः जल्दी प्रभु चरण प्राप्ति हेतु विशुद्ध भक्ति पर केन्द्रित करना चाहिए. 
कामनायो का अंत नहीं है. इन्हें छोड़ना ही पड़ता है...  
छोड़ना चाहिए भी.
JAI SHRI RADHE

Wednesday 1 August 2012

232. SACHCHAA PREM



सच्चा प्रेम 

श्री मद भागवत के अजातपक्षाइव श्लोक में एक चिड़िया के बच्चे का 
उदहारण  दिया गया है 
जिसमे बच्चे के पंख नहीं है 
और गिद्द की दृष्टि उस पर पड़ जाती है वह माँ- माँ पुकार रहा है 

इसमें  माँ को याद करने का उद्देश्य अपने जीवन की रक्षा की चाह है .

दूसरा उदहारण  है बछड़े का. उसे घास दो
 नहीं ले रहा कुछ भी खाने को दो नहीं खा रहा. वह तो केवल माँ माँ पुकार रहा है.

लेकिन इसमें भी अपनी भूक मिटने हेतु माँ माँ करना है 

तीसरा उदहारण  है नवविवाहिता नारी का, 
जो है तो पीयर में लेकिन अपने प्रियतम की स्मृति में छीर्ण  हुई जा रही है 
और चाहती है की में अपने पति के पास जाऊ और उनकी यथोचित सेवा करू. 
मेरे बिना वह कष्ट पा रहे होंगे. 
यह भाव स्वामी सेवा के लिए उपयुक्त है इसमें अपने सुख की कामना नहीं है.

एक साधक की, या एक प्रेमी की यही भावना ही सच्चा प्रेम है
अन्यथा स्वार्थ ही है.
JAI SHRI RADHE

SACHCHAA PREM