Thursday, 17 December 2015

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💐💐ब्रज की उपासना💐💐

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🌷 निताई गौर हरिबोल🌷

            क्रम संख्या 5

 ✔पाना क्या और कैसे✔

      💐चार पुरुषार्थ💐

 1⃣ काम-

आंख,कान,जिह्वा
आदि की तृप्ति में लगे रहने से कभी लगता है -बड़ा आनंद है, लेकिन परिणाम सामने है कि काम या कामनाओं की पूर्ति में लगे लोग भी आनंदित नहीं है।

 2⃣अर्थ-

पैसा ही पैसा- कमाना ।उसे खर्च करना। दान करना। यश कमाना आदि में भी आनंद का भ्रम ही है ।

3⃣धर्म -

इस लोक के सुख के साथ- साथ ,स्वर्ग प्राप्ति की कामना से लोग धर्म -यज्ञ -तप-व्रत आदि रखते हैं- उन्हें स्वर्ग प्राप्त हो भी जाए तो फल भोगने के बाद उन्हें फिर मृत्युलोक में आना ही पड़ता है

यहां स्मरण रहे कि -भजन ,भक्ति ,नाम जप। यह भक्ति हैं ।धर्म नहीं धर्म इनसे पृथक् है ।भक्ति परमधर्म है। धर्म नहीं।

 'सा वै पुंसां परोधर्म:यतोभक्तिरधोक्षजे।'

 4⃣मोक्ष -

यानी बार-बार जन्मने एवं मरने के दु:ख से निवृत्त होकर दुख से मुक्ति -जिसकी चर्चा हम पूर्व में कर  आये हैं ।आनंद यहां भी नहीं ।

👳🏻इन चार पुरुषार्थों की एक संत बड़ी अच्छी व्याख्या करते थे, जो हम गृहस्थियोन के लिए बहुत काम की हैं ।

💰वह कहते थे -धर्म यानी न्याय पूर्वक अर्थ यानि धन कमाओ और उस धन से अपनी उचित कामनाओं की पूर्ति करके उन कामनाओं से मुक्त हो जाओ । मोक्ष पा जाओ।

👤इस व्याख्या की मानें तो- हो गए मुक्त ।पा गए मोक्ष। अब आगे क्या करें। अक्षय आनंद कैसे प्राप्त हो। परम आनंद कैसे प्राप्त हो।

🔷 पंचम पुरुषार्थ प्रेम🔷

 🌹जब कामनाओं से मुक्त हो जाओ तो 'प्रेम' नामक पंचम पुरुषार्थ की ओर बढ़ो -यही है जो तुम्हें तुम्हारे मूल अंशी से तुम्हें मिलाएगा और यहां तुम्हारी आनंद की खोज पूर्ण हो जाएगी।

 🌹अपनी इंद्रियों की प्रीति की इच्छा को 'काम' कहते हैं और

 श्रीकृष्ण की प्रीति की इच्छा को 'प्रेम' कहते हैं ।

प्रेम के विषय श्रीकृष्ण ही हैं। प्रेम केवल श्री कृष्ण से ही हो सकता है।

 किसी और से है तो काम या कामना। श्री कृष्ण से है तो प्रेम।

🌹 और शायद यही निश्चित ही श्रीकृष्ण का अंश होने के कारण हमारा जो स्वरूप है -श्री -कृष्ण- सेवा। श्रीकृष्णदासत्व- वह ही श्रीकृष्ण को सुख देने से श्री कृष्ण की प्रीति हेतु प्रयास करने से पूर्ण होगा ।

💎ये प्रेम प्राप्त कैसे हो💎

🌹प्रेम प्राप्ति के स्तर हैं - सीढ़ियां हैं। इनका विवेचन श्रीहरिनाम पत्रिका में विस्तारपूर्वक चल रहा है। यह है।

1.श्रद्धा
2. साधुसंग
3.भजन
4.अनर्थ निवृत्ति
5.निष्ठा
6.रूचि
7.आसक्ति
8.भाव या रति या प्रेम।

🎢भजन करते हुए हम इन सीढ़ियों पर चलते चढ़ेंगे तो प्रेम प्राप्ति होगी ही।हाँ हमारी गति धीमी है; तो भी इस जन्म में यदि हम दो सीढ़ियां चढ़ पाए तो अगला जन्म ऐसी परिस्थिति या कुल में होगा कि हम तीसरी सीढ़ी पर अपने आपको खड़ा पाएंगे ।इस प्रकार से एक-दो-चार-दस-बीस  जन्मों में ही सही,  प्रेम प्राप्ति होकर ही रहेगी।

                             क्रमशः.........

 💐जय श्री राधे
 💐जय निताई

लेखकः
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन

प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠

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