[20:48, 12/12/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
गरीब
होना बुरी बात नही ।
भारत में 80 प्रतिशत हम आप गरीब ही हैं ।
अपने आप को अपने से अधिक बड़ा आदमी समझना ही
सब क्लेशों की जड़ है ।
गरीब वो नही
जिसके पास पैसे कम हैं
गरीब वो है जिसके खर्चे आय से
अधिक हैं
चिंतन करो । कोई गरीब नही
[20:48, 12/12/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
द्वापर युग की बात है।
एक बार पाँच पाण्डव वनों में घूमते-घूमते, श्रीनित्यानन्द जी के जन्म स्थान, पश्चिम बंगाल के एकचक्र नामक गाँव में पहुँचे।
पाण्डव स्वभाव से ही सज्जन भक्त थे व लोगों की सेवा में व्यस्त रहते थे।
स्थानीय लोगों के अनुरोध पर भीम ने एक शक्तिशाली राक्षस का वध भी किया था।
युधिष्ठिर एकचक्र के सुन्दर वातावरण, महकते वायु मण्डल को देख अत्यधिक चकित थे।
इतने वनों में वे घूमे पर ऐसा मनमोहक उपवन उन्होंने नहीं देखा था।
उनके मन में रह-रह कर यही बात उठती थी की हो न हो इस स्थान का श्रीकृष्ण से जरूर कुछ सम्बन्ध है अन्यथा इसमें इतनी सुन्दरता होने का कोई कारण नहीं है।
परन्तु फिर वो यह विचार करने लगे कि श्रीकृष्ण ने कभी जिक्र नहीं किया।
उसी उधेड़-बुन में वे सो गये तो रात के समय स्वप्न में उन्हें भगवान बलराम जी ने दर्शन दिये।
भगवान बलराम बोले, -- 'यहाँ से कुछ ही दूरी पर नवद्वीप नामक स्थान है गंगा नदी के किनारे ।
कलियुग के प्रारम्भ में श्रीकृष्ण, एक ब्राह्मण के घर में, नवद्वीप में प्रकट् होंगे, हालांकि वे अपना रूप छिपाये रहेंगे।
उन्हीं की इच्छा से उनके सेवक- भक्त अनेक स्थानों पर जन्म लेंगे।
उन्हीं की इच्छा से मैं यहाँ पर जन्म लूँगा।'
इतना कह कर श्रीबलराम जी अदृश्य हो गये।
महाराज युधिष्ठिर की नींद टूट गयी व उन्होंने, स्वप्न की बात सभी भाईयों को सुनाई।
इधर कलियुग के प्रारम्भ में श्रीबलराम जी जब श्रीनित्यानन्द रूप में आये, उससे पहले ही उनका एकचक्र गाँव बहुत प्रसिद्ध हो चुका था।
इस में बहुत से मन्दिर थे।
एक बहुत ही प्राचीन शिव- पार्वती जी का मन्दिर भी था।
समीप ही एक विशाल नदी प्रभावती बहती थी, जिसमें 12 महीने पानी रहता था।
आसपास के वन में अहिंसक पशुओं की भरमार थी ।
रात-दिन कोयल की कु-कू, भ्रमरों की गुंजार, पक्षियों की चहचहाट होती रहती थी।
किसी को भी नहीं पता था की यह गाँव कहाँ से व कब प्रकट हुआ परन्तु यहाँ के निवासी बहुत ही सुख व आनन्द से रहते थे।
एकचक्र में वैभवशाली लोगों सहित विद्वान पण्डितों का भी वास था।
कुछ भविष्य ज्ञान कहते थे की इस स्थान पर श्रीबलराम प्रकट होंगे, अतः यह स्थान भी मथुरा-अयोध्या की तरह धाम है।
श्रीनित्यानन्द जी की कृपा के बिना पापी और अपराधी जीवों का उद्धार का कोई उपाय नहीं है।
श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु भक्ति लीला करते हुए भी स्वरूपतः भगवत-तत्त्व हैं, उनके पार्षद उनकी कृपा शक्ति का मूर्त- स्वरूप हैं।
श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु परम पतित-पावन हैं फिर उनके अन्तरंग पार्षद परम-परम पतित पावन हैं।
वस्तुतः श्रीमन् नित्यान्द प्रभु भक्तों के माध्यम से ही कृपा करते हैं।
महा-महा वदान्य श्रीनित्यानन्द प्रभु की जय...
[20:48, 12/12/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
ө•|🌿◆♡¡•🌺•¡♡◆🌿|•ө
1⃣2⃣◆1⃣2⃣◆1⃣5⃣
शनिवार मार्गशीर्ष
शुक्लपक्ष प्रतिपदा
6⃣4⃣
❗श्रीवृन्दावन वास❗
🌿 श्री वृन्दावन या ब्रज मण्डल में वास करना अंतिम अंग है l श्री वृन्दावन श्री कृष्ण की परम मधुर दिव्य लीलाओं का नित्य धाम होने से सर्वोत्कृष्ट सर्वोत्तम महिमायुक्त है lश्री वृन्दावनवास में साधन भक्ति के प्रायः समस्त अंगों का अपने आप सहज में आचरण हो जाता है l
🌹6⃣4⃣ में से 5⃣🌹
1⃣ साधु वैष्णवों का संग
2⃣ नाम संकीर्तन
3⃣ श्री मद्भागवत के अर्थो का श्रवण
4⃣ श्री विग्रह की श्रद्धापूर्वक सेवा
5⃣ ब्रजवास
🌿 यदि चौसठ में से उपरोक्त पाँच अंगो का पालन कर लिया जाये तो सम्पूर्ण भक्ति का अनुष्ठान हो जाता है lइसके विपरीत कुछ वृन्दावन में आश्रम में रहते तो है लेकिन न भजन न दर्शन न साधु सेवा न भजन क्रिया अपितु दिन में अनेक बार अपने बच्चों से फोन पर बात करना वृन्दावन वास नहीं है l
🌿 उपरोक्त सार डॉ दासाभास जी द्वारा प्रस्तुत ब्रजभक्ति के चौसठ अंग से लेते हुए हम सबका जीवन भी प्रभु की भक्ति से प्रकाशित हो यही प्रार्थना है राधेश्याम के चरणों में l 👣👣
✏ मालिनी
¥﹏*)•🌺•(*﹏¥
◆\\★//◆
"🌿सुप्रभात 🌿"
◆🌺श्री कृष्णायसमर्पणं🌺◆
"🌿जैश्रीराधेकृष्ण🌿"
◆\\★//◆
¥﹏*)•🌺•(*﹏¥
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गरीब
होना बुरी बात नही ।
भारत में 80 प्रतिशत हम आप गरीब ही हैं ।
अपने आप को अपने से अधिक बड़ा आदमी समझना ही
सब क्लेशों की जड़ है ।
गरीब वो नही
जिसके पास पैसे कम हैं
गरीब वो है जिसके खर्चे आय से
अधिक हैं
चिंतन करो । कोई गरीब नही
[20:48, 12/12/2015] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
द्वापर युग की बात है।
एक बार पाँच पाण्डव वनों में घूमते-घूमते, श्रीनित्यानन्द जी के जन्म स्थान, पश्चिम बंगाल के एकचक्र नामक गाँव में पहुँचे।
पाण्डव स्वभाव से ही सज्जन भक्त थे व लोगों की सेवा में व्यस्त रहते थे।
स्थानीय लोगों के अनुरोध पर भीम ने एक शक्तिशाली राक्षस का वध भी किया था।
युधिष्ठिर एकचक्र के सुन्दर वातावरण, महकते वायु मण्डल को देख अत्यधिक चकित थे।
इतने वनों में वे घूमे पर ऐसा मनमोहक उपवन उन्होंने नहीं देखा था।
उनके मन में रह-रह कर यही बात उठती थी की हो न हो इस स्थान का श्रीकृष्ण से जरूर कुछ सम्बन्ध है अन्यथा इसमें इतनी सुन्दरता होने का कोई कारण नहीं है।
परन्तु फिर वो यह विचार करने लगे कि श्रीकृष्ण ने कभी जिक्र नहीं किया।
उसी उधेड़-बुन में वे सो गये तो रात के समय स्वप्न में उन्हें भगवान बलराम जी ने दर्शन दिये।
भगवान बलराम बोले, -- 'यहाँ से कुछ ही दूरी पर नवद्वीप नामक स्थान है गंगा नदी के किनारे ।
कलियुग के प्रारम्भ में श्रीकृष्ण, एक ब्राह्मण के घर में, नवद्वीप में प्रकट् होंगे, हालांकि वे अपना रूप छिपाये रहेंगे।
उन्हीं की इच्छा से उनके सेवक- भक्त अनेक स्थानों पर जन्म लेंगे।
उन्हीं की इच्छा से मैं यहाँ पर जन्म लूँगा।'
इतना कह कर श्रीबलराम जी अदृश्य हो गये।
महाराज युधिष्ठिर की नींद टूट गयी व उन्होंने, स्वप्न की बात सभी भाईयों को सुनाई।
इधर कलियुग के प्रारम्भ में श्रीबलराम जी जब श्रीनित्यानन्द रूप में आये, उससे पहले ही उनका एकचक्र गाँव बहुत प्रसिद्ध हो चुका था।
इस में बहुत से मन्दिर थे।
एक बहुत ही प्राचीन शिव- पार्वती जी का मन्दिर भी था।
समीप ही एक विशाल नदी प्रभावती बहती थी, जिसमें 12 महीने पानी रहता था।
आसपास के वन में अहिंसक पशुओं की भरमार थी ।
रात-दिन कोयल की कु-कू, भ्रमरों की गुंजार, पक्षियों की चहचहाट होती रहती थी।
किसी को भी नहीं पता था की यह गाँव कहाँ से व कब प्रकट हुआ परन्तु यहाँ के निवासी बहुत ही सुख व आनन्द से रहते थे।
एकचक्र में वैभवशाली लोगों सहित विद्वान पण्डितों का भी वास था।
कुछ भविष्य ज्ञान कहते थे की इस स्थान पर श्रीबलराम प्रकट होंगे, अतः यह स्थान भी मथुरा-अयोध्या की तरह धाम है।
श्रीनित्यानन्द जी की कृपा के बिना पापी और अपराधी जीवों का उद्धार का कोई उपाय नहीं है।
श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु भक्ति लीला करते हुए भी स्वरूपतः भगवत-तत्त्व हैं, उनके पार्षद उनकी कृपा शक्ति का मूर्त- स्वरूप हैं।
श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु परम पतित-पावन हैं फिर उनके अन्तरंग पार्षद परम-परम पतित पावन हैं।
वस्तुतः श्रीमन् नित्यान्द प्रभु भक्तों के माध्यम से ही कृपा करते हैं।
महा-महा वदान्य श्रीनित्यानन्द प्रभु की जय...
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शनिवार मार्गशीर्ष
शुक्लपक्ष प्रतिपदा
6⃣4⃣
❗श्रीवृन्दावन वास❗
🌿 श्री वृन्दावन या ब्रज मण्डल में वास करना अंतिम अंग है l श्री वृन्दावन श्री कृष्ण की परम मधुर दिव्य लीलाओं का नित्य धाम होने से सर्वोत्कृष्ट सर्वोत्तम महिमायुक्त है lश्री वृन्दावनवास में साधन भक्ति के प्रायः समस्त अंगों का अपने आप सहज में आचरण हो जाता है l
🌹6⃣4⃣ में से 5⃣🌹
1⃣ साधु वैष्णवों का संग
2⃣ नाम संकीर्तन
3⃣ श्री मद्भागवत के अर्थो का श्रवण
4⃣ श्री विग्रह की श्रद्धापूर्वक सेवा
5⃣ ब्रजवास
🌿 यदि चौसठ में से उपरोक्त पाँच अंगो का पालन कर लिया जाये तो सम्पूर्ण भक्ति का अनुष्ठान हो जाता है lइसके विपरीत कुछ वृन्दावन में आश्रम में रहते तो है लेकिन न भजन न दर्शन न साधु सेवा न भजन क्रिया अपितु दिन में अनेक बार अपने बच्चों से फोन पर बात करना वृन्दावन वास नहीं है l
🌿 उपरोक्त सार डॉ दासाभास जी द्वारा प्रस्तुत ब्रजभक्ति के चौसठ अंग से लेते हुए हम सबका जीवन भी प्रभु की भक्ति से प्रकाशित हो यही प्रार्थना है राधेश्याम के चरणों में l 👣👣
✏ मालिनी
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"🌿सुप्रभात 🌿"
◆🌺श्री कृष्णायसमर्पणं🌺◆
"🌿जैश्रीराधेकृष्ण🌿"
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