Thursday, 17 December 2015

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
                 
💐💐ब्रज की उपासना💐💐

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻            
🌷 निताई गौर हरिबोल🌷

            क्रम संख्या 6

 ✔पाना क्या और कैसे✔

 🌷 प्रेम या भक्ति है क्या🌷

1⃣
अन्य किसी भी अभिलाषा से रहित ज्ञान(अहं ब्रह्मास्मि) कर्म (पाप पुण्य) से बिना ढकी हुई श्री कृष्ण की अनुकूलता मयी सेवा ही विशुद्ध भक्ति ह । प्रेम है।

2⃣
अन्यथा तो कामनापूर्ति के लिये भी भक्ति होती है।वह सम्पूर्ण भक्ति नहीं।

जैसे देश के लिए पूर्णतः समर्पित व्यक्ति ही देश-भक्त कहलाता है,माता पिता के लिये पूर्णतः समर्पित श्रवण कुमार जैसे ही पितृभक्त कहलाता है।

 ऐसे ही श्री भगवान की अनुकूलता- मयी सेवा  में पूर्णतः समर्पित व्यक्ति ही 'भक्त' कहलाता है।

3⃣
सकामी तो भिखारी है। भेंट देकर कामनापूर्ति करने वाले व्यापारी है। व्यापार करते है- करें- कोई हानि नहीं- लेकिन समझे रहें -हम व्यापार कर रहे हैं- भक्ति नहीं।

   ⚡रसों की विविधिता⚡

1⃣
शान्त -दास्य -सख्य वात्सल्य - मधुर- इन पांच रस या भावों के अनुसार साधक इन रसों के परिकरों के आनुगत्य में भगवान की सेवा कर प्रभु को रिझाता है।

2⃣
लेकिन जीव स्वयं परिकर नहीं हो सकता। यशोदा ,राधा, श्रीदामा, हनुमान नहीं हो सकता। इन परिकरों की दासी या मंजरी या अनुगत होकर सेवा की जा सकती है।

🍀रागात्मिका - रागानुगा🍀

🙏इन परिकरो की सेवा को, भक्ति को रागात्मिका व् इनके आनुगत्य में  की गई सेवा को रागनुगा कहा जाता है।

🙏रागनुगा भक्ति वह है- जो प्रेम के वशीभूत  होकर की जाय और वैधी भक्ति- वह जो शास्त्र के आदेश का पालन करके की जाय।


📚शास्त्र में 64 प्रकार के भक्ति अंगों का वर्णन है।

           6⃣4⃣ में से 9⃣

1. श्रवण
2. कीर्तन
3. स्मरण
4.पादसेवन
5. वंदन
6. दास्य
7.सख्य
8.आत्मनिवेदन
9.श्री विग्रह सेवा,

इनका पालन करने से भक्ति पुष्ट होती है।


            5⃣ या 1⃣

इन पांच अंगों से भी भक्ति साधित हो जाती है-

1 श्री विग्रह सेवा
2 रसिकों के साथ श्रीमदभागवत के अर्थो का आस्वादन
3 सजातीय- सिनग्ध -श्रेष्ठ साधु संग
4 नाम संकीर्तन
5 श्रीवृन्दावन वास।

श्रीवृंदावन वास करने से  उपरोक्त चार तो स्वाभाविक प्राप्त होते ही है। इन पांचों से और भी सुगम है-

'कलौ केशव कीर्तनात्' कलियुग में भगवान (केशव) के  नाम  संकीर्तन से भक्ति सहज प्राप्त होती है।

'कलियुग केवल  नाम आधार'
'हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलं' आदि।

   👏 शुरू कहाँ से करें👏

👤जीव का स्वरुप भी पता चल गया।

🌹प्रेम का स्वरुप भी पता चल गया।

😃जीवन का उद्देशय भी पता चल गया।

📖64अंग भक्ति का  भी पता चल गया

❓अब शुरू कहा से करें।
यह प्रश्न है

 👳🏻प्रारम्भ करना होगा -'श्रीगुरुपाद आश्रय' से।अर्थात् श्री गुरुदेव धारण करके ,उनको पूर्ण समर्पण करते हुए उनकी सेवापूर्वक, उनके बातये मार्ग पर चलते हुए उनसे भजन की रीति के बारे में जिज्ञासा  करनी होगी।

 🍒लौकिक विषय भोगों का त्याग करते हुए केवल शरीर निर्वाह के लिए वस्त्र- भोजन स्वीकार करना होगा।

💐एकादशी व्रत करने होगा ,तुलसी- ब्राह्मण का सम्मान करना होगा असाधु- असजज्न लोगो का त्याग।

 📚नये -नये प्रकल्पों का त्याग। शास्त्र  या धर्म  के विषय में वाद -विवाद, तर्क का त्याग।अन्य देवताओं की निन्दा का त्याग ।

 🌳तिलक आदि धारण करते हुए नाम जप या संकीर्तन का भाव व् प्रेमपूर्वक आश्रय लेने पर प्रेम- पथ की सीढ़ियों पर हम चढ़ते हुए जीवन के साध्य भगवान श्रीकृष्ण के सेवा -आनंद को जब हम प्राप्त कर लेंगे तब और किसी अभिलाषा की स्वतः समाप्त हो जाएगी।


                       क्रमशः.........

 💐जय श्री राधे
 💐जय निताई

लेखकः
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन

प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠

No comments:

Post a Comment