Saturday 1 October 2011

86. श्री राधा जी की सौत

श्री राधा जी की सौत



✅  श्री राधा जी की सौत  ✅

▶ कुछ महिला या कन्या बिहारीजी या अन्य ठाकुर को अपना 'पति' बना देती हैं, यह रिश्ता एकतरफा नहीं हो सकता

▶ ठाकुर कभी भी किसी जीव को पत्नी रूप में स्वीकार नहीं करते न ही जीव का अधिकार है 'पत्नी' बनने का

▶एक जीव सदा ही ठाकुर का सदा-सदा से दास ही है

▶घर की एक बाई = एक सेविका किसी मालिक को बहला फुसला कर

▶अपनी सेवा के बदले में उसे अपना पति बनाना चाहे-ये कुछ ऐसा ही है,

▶ एक तो वह मालिक की पत्नी की कोप-भाजन बनेगी, और धक्का मार कर निकाल दी जायेगी-नौकरी=सेवा=भक्ति से


▶ आज का मालिक शायद बहक जाए, सबका मालिक श्री राधा जी की सौत बनने वाली को एक अपराधी ही मानते है

▶ अपराधी कभी भी भक्त नहीं हो सकता


▶ मीरा  जीव नहीं थी, वह सत्यभामा का अवतार थी

▶हम न मीरा है, न सत्यभामा, हम जीव हैं, हमारा काम सेवा करना है,

▶ पत्नी बनना,दुराचार है, व्यभिचार है,अपराध है,


▶ सेवा से वे बहुतो को मिले हैं, पति बनकर आजतक किसी जीव को न

मिले हैं, न मिलेंगे, वे अपनी नित्य पत्नियों के ही पति बनते हैं

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚

🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊  लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 

LBW - Lives Born Works at vrindabn

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