✅ श्री राधा जी की सौत ✅
▶ कुछ महिला या कन्या बिहारीजी या अन्य ठाकुर को अपना 'पति' बना देती हैं, यह रिश्ता एकतरफा नहीं हो सकता
▶ ठाकुर कभी भी किसी जीव को पत्नी रूप में स्वीकार नहीं करते न ही जीव का अधिकार है 'पत्नी' बनने का
▶एक जीव सदा ही ठाकुर का सदा-सदा से दास ही है
▶घर की एक बाई = एक सेविका किसी मालिक को बहला फुसला कर
▶अपनी सेवा के बदले में उसे अपना पति बनाना चाहे-ये कुछ ऐसा ही है,
▶ एक तो वह मालिक की पत्नी की कोप-भाजन बनेगी, और धक्का मार कर निकाल दी जायेगी-नौकरी=सेवा=भक्ति से
▶ आज का मालिक शायद बहक जाए, सबका मालिक श्री राधा जी की सौत बनने वाली को एक अपराधी ही मानते है
▶ अपराधी कभी भी भक्त नहीं हो सकता
▶ मीरा जीव नहीं थी, वह सत्यभामा का अवतार थी
▶हम न मीरा है, न सत्यभामा, हम जीव हैं, हमारा काम सेवा करना है,
▶ पत्नी बनना,दुराचार है, व्यभिचार है,अपराध है,
▶ सेवा से वे बहुतो को मिले हैं, पति बनकर आजतक किसी जीव को न
मिले हैं, न मिलेंगे, वे अपनी नित्य पत्नियों के ही पति बनते हैं
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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