१. 'आनुकूल्येन कृष्नानुशीलनम भक्तिरुत्तमा'
अर्थात कृष्ण की अनुकूलता पूर्वक सेवा ही उत्तम भक्ति है
अनुकूलतामयी करोगे तो प्रेम मिल जाएगा
२. प्रतिकूलतामय करोगे तो भी मोक्ष तो मिल ही जाएगा
जैसे 'कंस' को मिला
कंस हर समय शत्रु रूप में कृष्ण का चिंतन,ध्यान, स्मरण करता था
उसे मुक्ति मिली, भक्ति नहीं.
३.'बेन' भी कृष्ण के शत्रु थे, लेकिन
न वे चिंतन, न मनन , न ध्यान करते थे
अतः बेन को नरक मिला
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JAI SHRI RADHE
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