भगवान् ने स्वयं कहा है की मुझे कोई यदि भक्ति से
तुलसीपत्र -जल - फूल अर्पण करता है तो में
उन्हें प्रसन्नता से स्वीकार करता हूँ, प्रसन्न हो जाता हूँ
इसका अर्थ या भाव यह कदापि नहीं है कि
अपने लिए तो तीनो समय का मीनू सैट किया जाय
और भगवान् को जल भोग लगाया जाय!
इसका अर्थ यह भी नहीं है की अपने हर साड़ी-ब्लाउज की
मचिंग की ज्वैलरी हो, और ठाकुर जी वर्षो से एक ही मुकुट
पोशाक पहने हुए है
हाँ! यदि आप भी जल पीकर रह रहे है तो ठाकुर भी जल से
प्रसन्न हो जायेंगे,
उनकी प्रसन्नता भाव में है वस्तु या किसी अन्य की अपेक्षा में नहीं
लेकिन उन्हें उपेक्षा भी पसंद नहीं
अतः चेष्टा सहित अपनी सामर्थ्य के अनुसार सदैव ठाकुर
को लाड लड़ाना चाहिए
JAI SHRI राधे
DASABHAS Dr GIRIRAJ नांगिया
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban
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