Sunday 9 October 2011

109. सदग्रंथ-संग = सत्संग



सदग्रंथ-संग = सत्संग


सत व्यक्तियों=संत का संग 
सत कार्यो का संग
सत ग्रंथो का संग 
ये तीनो ही सत्संग हैं

एक तो सच्चे संत बहुत कम है, फिर उनमे हमें दोष दिखाई देने लग जाते हैं
संत के वेश में ठग भी बहुत हैं

सत कार्यो के लिए सत-विचार चाहिए
सत विचार मिलेंगे सद्ग्रंथो में अतः सर्वोत्तम है सदग्रंथ 
जिनमे न दोष है न ठगे जाने का भय 

हाँ ग्रन्थ भी प्रामाणिक हों, अपनी प्रशंशा में प्रकाशित उल-जुलूल 
ग्रन्थ पढने से बुद्धि भ्रमित होती है सद्ग्रंथो के पढने से सत्संग प्राप्त होगा
विवेक जागृत होगा और आगे का मार्ग हमेशा के लिए खुल जाएगा.

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
made to serve ; GOD  thru  Family  n  Humanity
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban


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