Sunday, 9 October 2011

105. अविधिपूर्वक भजन




अविधिपूर्वक भजन 

हे अर्जुन !
यद्यपि  श्रद्धा से युक्त जो सकाम भक्त 
दूसरे - दूसरे देवताओं को पूजते हैं 
वे भी अप्रत्यक्ष रूप से 
मुझको ही पूजते हैं 
लेकिन उनका वह पूजन 
अविधि अर्थात अज्ञान - पूर्वक ही है
गीता ९ - २३
   
JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban



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