Wednesday, 5 October 2011

95. मनमानी से भी ज़रूर मिलेगा

✅   मनमानी से भी ज़रूर मिलेगा   ✅ 

▶ भक्ति को शास्त्र में निरपेक्ष कहा गया है,
▶ यानी यह किसी की अपेक्षा नहीं रखती, यह भगवान् की ही तरह परम स्वतंत्र है,
▶ न शास्त्र, न विधि, न निषेध, न मंत्र, न नियम, न साधन, न ज्ञान,
▶ इस बात के प्रमाण में ऐसे अनेक संत हुए हैं,
▶ एक संत ने भोग न लगाने पर प्रभु को पहले तो खूब हडकाया,
▶ न मानने पर डंडा उठा लिया, - प्रभु प्रकट हो गए और भोग लगाया.
▶ ठाकुर को डंडा मारना शास्त्रीय नहीं है, न भक्ति के ६४ अंगों में आता है
▶ इसी प्रकार हम जो कर रहे हैं, उलटा-सीधा, उचित-अनुचित,
▶ अशास्त्रीय,
▶ हमें यदि आत्मिक आनंद मिल रहा है,प्रभु का अहसास हो रहा है, हम गदगद हैं,
▶ तो इससे बढ़कर कुछ भी नहीं, न शास्त्र, न साधू, न संत, न विद्वान.
▶ और यदि संतुष्टि है नहीं, भटकन बनी हुयी है, अहसास हो नहीं रहा, आनंद का लेश भी
▶ नहीं है, तर्क-कुतर्क, हार-जीत का सिलसिला, राग द्वेष, अहंकार, बना है तो हम भटक रहे हैं
▶ और यह भटकन शास्त्र विधि का अनुसरण करने पर ही दूर होगी. मनमानी बंद करनी ही होगी.
▶ आत्म- निरीक्षण से स्वयं को नापना होगा, दुसरा कोई कुछ भी कहे, कहता रहे

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚



 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 
LBW - Lives Born Works at vrindabn

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