✅ कर्म = पाप और पुण्य ✅
▶ 'अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभं'
▶ के अनुसार शुभ=पुण्य, अशुभ=पाप का फल भोगना ही पड़ता है
▶ चाहे पाप हो या पुण्य दोनों का आपस में adjestment नहीं होता
▶ जसे १००रु देने हैं और ५०रु लेने हैं तो ५०रु देकर हिसाब बराबर हो जाता है
▶ लेकिन यहाँ १०० पाप भोगने पड़ेंगे और ५० पुण्य भोगने पड़ेंगे ही-
▶ कुछ इस कुछ अगले जनम में. इन्ही पाप-पुण्य = कर्म के आधार पर ही
▶ हमारी अगली योनी का निर्धारण होता है, इसी आधार पर ही सब कहते हैं की हम
▶ अपने भाग्य के निर्माता खुद ही हैं, विधाता केवल मुनीम है, हिसाब रखता है.
▶ हाँ, केवल अनन्य भक्त के पाप-पुण्य भूंज जाते हैं=फल नहीं देते
▶ 'भुंजन एवात्मकृतं विपाकम' लेकिन अनन्य भक्त का तो इस और ध्यान ही नहीं जाता
▶ और यदि चला गया तो अनन्य कहाँ रहा,?????
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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