Tuesday, 4 October 2011

92. कर्म = पाप और पुण्य

कर्म = पाप और पुण्य


✅   कर्म = पाप और पुण्य  ✅  


'अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभं'

▶ के अनुसार शुभ=पुण्य, अशुभ=पाप का फल भोगना ही पड़ता है

▶ चाहे पाप हो या पुण्य दोनों का आपस में adjestment नहीं होता

▶ जसे १००रु देने हैं और ५०रु लेने हैं तो ५०रु देकर हिसाब बराबर हो जाता है

▶ लेकिन यहाँ  १०० पाप भोगने पड़ेंगे और ५० पुण्य भोगने पड़ेंगे ही-

▶ कुछ इस कुछ अगले जनम में. इन्ही पाप-पुण्य = कर्म के आधार पर ही

▶ हमारी अगली योनी का निर्धारण होता है, इसी आधार पर ही सब कहते हैं की हम

▶ अपने भाग्य के निर्माता खुद ही हैं, विधाता केवल मुनीम है, हिसाब रखता है.

 ▶ हाँ, केवल अनन्य भक्त के पाप-पुण्य भूंज जाते हैं=फल नहीं देते

'भुंजन एवात्मकृतं  विपाकम' लेकिन अनन्य भक्त का तो इस और ध्यान ही नहीं जाता

▶ और यदि चला गया तो अनन्य कहाँ रहा,?????


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚

🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚



 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 
LBW - Lives Born Works at vrindabn

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