Sunday, 9 October 2011

103. असत्संग - नरक का द्वार

✅   असत्संग – नरक का द्वार  ✅  

▶ सत्संग का अपोजिट है असत्संग
▶ सत्संग करते हुए चेष्टा पूर्वक असत्संग का भी त्याग करना चाहिए
▶ आप सत्शास्त्रों का संग कर रहे हैं
▶ भजन कर रहे हैं, चिंतन कर रहे पूर्ण आनंद है
▶साथ ही एक
▶आपका कोई दुष्ट मित्र रोज आपके पास आता है
▶उलटे-सीधे नानवेज चुटकुले सुनाता है
▶ बुरी बुरी बातों में ही श्रेष्ठता स्थापित करता है,
▶ इसी प्रकार के ही समस्त  क्रिया - कर्म असत्संग हैं, इनसे बचना चाहिये
▶ अन्यथा विवेक भ्रमित  होता है और
▶ भटकने  की संभावना जाग्रत हो जाती है और
▶ नरकों का द्वार खुल जाता है
▶ अत: सत्संग के साथ साथ असत्संग - त्याग पर भी केन्द्रित रहना चाहिये
▶ वैसे द्रढ़ भाव से सत्संग करने और
▶असत्संग की अवहेलना करने पर, उससे किनारा करने पर असत्संग
▶ स्वत: ही भाग जाता है, फिर भी ध्यान  रखना आवश्यक है

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया  
LBW - Lives Born Works at vrindabn

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