Sunday, 23 October 2011

121. प्रभु से हमारा रिश्ता





हम सब जीव भगवान् के दास है = सेवक हैं = नौकर हैं  

'जीवेर स्वरुप हय नित्य कृष्ण-दास' - चै. च.

मान लिया की प्रभु हमारी सेवा से प्रसन्न हो गए
जैसे हम अपनी एक बाई की सेवा से प्रसन्न हो गए
और हमने उस बाई से कहा कि- मांग आज तू क्या मांगती है
तुझे क्या कष्ट है , बतादे आज ?

ऐसे में बाई क़ी तरह हमें भी अपनी सीमाओं को हमेशा
ध्यान में रखना होगा, बाई बोले-
'मुझे अपनी पत्नी बनालो'
'मुझे अपने साथ में कुर्सी पर बेठालो'
'मुझे ५-१० लाख रु. दे दो'
तो शायद वह अपनी सीमाओं को लाँघ रही है

और यदि वह कहे कि-
मुझे कुछ और सेवा दे दो, मेरे बेटे कि नौकरी लगवा दो,
मेरी वेतन कुछ बड़ा दो, आदि... आदि..
तो वह सीमा में है और मालिक भी खुश होगा , उसकी सहायता करेगा

सीमा लांघने पर उसे उसकी सेवा समाप्ति का आदेश ही मिलेगा
न घर की - न घाट की रहेगी वह !!!!!!!

देने वाले और मांगने वाले के बीच रिश्ता या सम्बन्ध क्या है
इसे हमेशा याद रखना ही होगा .
भगवान्- भक्त के बीच एक ही रिश्ता है 
स्वामी और सेवक या सेविका का. और कोई रिश्ता नन्ही हो सकता.

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban





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