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विरोध
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🤕परत्येक मनुष्य को अपने जीवन में विरोध
का सामना करना पड़ता है । यह स्वाभाविक ही है यह मत न मिलने के कारण होता है और
सृष्टि तो क्या । नगर तो क्या । परिवार तो
क्या । घर के भाई बहन। पति पत्नी भी एकमत
बहुत मुश्किल से होते हैं।
😯ऐसे में हम जो कहते हैं उसका,
अनुकूलता
ना होने पर दूसरा व्यक्ति विरोध करता है ।
👶कोई नया व्यक्ति है हम उसके स्वभाव को
नहीं जानते हैं तो हम उसके विरोध स चोंकतेे हैं । यहां तक तो बात ठीक है
👮लकिन यदि मेरा पति या मेरी पत्नी जो
बीसियों वर्ष से मेरे साथ रह रहा है और मुझे पता है कि मेरी इन इन बातों का यह
विरोध करते हैं या विरोध करना इनका स्वभाव ही है
🎅तो हमें इस बात को हृदय से स्वीकार कर
लेना चाहिए और हर समय तैयार रहना चाहिए कि अमुक व्यक्ति को इस बात का विरोध करेगा
ही
😳अपितु चौकना तब चाहिए जब वह विरोध ना
करें ।
😫विरोध को सहन करना और दुखी होना ।
क्योंकि सहन करने का अर्थ है कि हम उसको स्वीकार नहीं कर रहे हैं । सहन करने पर
दबाव घुटन दुख होना स्वाभाविक है
😱परारंभ में सहन किया जाता है उसके बाद
स्वीकार किया जाता है । यदि हम व्यक्ति के स्वभाव को स्वीकार कर ले तो हम कभी भी
दुखी नहीं होंगे कभी भी घुटन या दबाव महसूस नहीं करेंगे
💩यह बात यद्यपि लौकिक और लाइफ स्टाइल से
संबंधित है लेकिन अपने घर में रहने वाले व्यक्तियों सदस्यों के स्वभाव को यदि हम स्वीकार
कर लें
😷और अपनी वृति को भजन में लगा लें तो
भजन की चंचलता मन का इधर-उधर भटकना परिवार के लोगों के प्रति द्वेष भाव परिवार के
लोगों के प्रति शिकायत हमेशा के लिए दूर हो जाएगी
😾और हम वैष्णव लोग निश्चिंतता से अपने
भजन में शांति पूर्वक एकाग्रता पूर्वक लगे रहेंगे और परिवार के लोग अपने स्वभाव के
अनुसार जो करना है करते रहेंगे
🤖उससे हमारे चित्त पर कोई भी विपरीत
प्रभाव नहीं पड़ेगा आवश्यकता है जो जैसा है उसको वैसा ही स्वीकार करने की।
😹अजमा कर देखिए अंतर आएगा 😹
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज
नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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