Tuesday 12 July 2016

दृष्टि और सृष्टि

दृष्टि और सृष्टि


*दृष्टि और सृष्टि*

☺जब हमारी दृष्टि कमजोर हो जाती है तब हमें सारी चीजें धुंधली दिखाई देने लगती हैं

😊क्या वास्तव म चीजें *धुंधली* होती हैं । नही न  । बस एक चश्मा लगाते ही सब धुंधलापन समाप्त हो जाता है ।

😢इसी प्रकार इस संसार के प्रति जब हमारी *दृष्टि* दोषपूर्ण हो जाती है तो इस संसार में । संसार की वस्तुओं में हमे दोष । दुःख दिखाई देने लगता है

👍वस्तु में न तो *सुख* है । न *दुःख* है । ये दोष या *गुण* हमारी दृष्टि में है । यदि वस्तु अच्छी या बुरी होती तो वो साड़ी जो आपको अच्छी लगी और आप खरीद कर ले आये । वह साड़ी अनेक लोगों द्वारा *रिजेक्ट* की जा चुकी होती है ।



👌ऐसे ही जो आपने रिजेक्ट की वह भी किसी के द्वारा पसंद की जाती है । इससे सिद्ध होता है कि *गुण दोष* वस्तु में नहीं है । हमारी दृष्टि में है ।

💐इसलिए ये पक्का है कि संसार और वस्तुए न सुख देती हैं न दुःख । न अच्छी हैं न बुरी ।

🎂हमारी दृष्टि ही इसका कारण है । अतः यदि सुख शान्ति चाहिए तो केवल और केवल *दृष्टि को बदलना* होगा । दृष्टि बदलते ही सृष्टि बदल जायेगी ।

💐हर जगह । हर हाल में । हर बात में आनंद खोजना है । बस । यदि 100 व्यक्ति हमसे अधिक धनवान हैं तो अनेक व्यक्तियों से हम अधिक धनवान हैं ।

💐 *जो प्राप्त है उसमे आनंदित हो*ं । उसमे पूरा संतुष्ट रहें । अभाव अभाव न रोते रहें । मस्त रहें । क्योंकि हमारे पास कुछ भी कितना भी अधिक हो जाय फिर भी अनेकों से कम ही होगा और अनेकों से अधिक ।

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 
LBW - Lives Born Works at vrindabn




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