Thursday 21 July 2016

सुखालय एवम् दुखालय

😂 सुखालय एवम्  दुखालय 😩

जय श्री राधे । शरीर माद्यम खलु धर्म साधनम । इस शरीर से ही धर्म और परम धर्म का साधन होता है और यह शरीर इस संसार में रहता है ।

☺️जो लोग इस संसार के अनश्वर सुखों के लिए इस शरीर और इस संसार का उपयोग करना चाहते हैं उन्हें सुखों का आभास ही प्राप्त होता है



😞उन्हें वास्तविक सुख प्राप्त नहीं होता इसलिए इस संसार को वह दुखालय कहते हैं और उनके लिए वास्तव में यह संसार दुखालय ही है

😏सबसे बड़ी बात यह है कि उंहें अलौकिक भौतिक सुख प्राप्त ना होने के कारण दुख ही प्राप्त होता है और संसार का अनुभव ही दुखालाया के रूप में ही करते हैं

😄दूसरे कुछ ऐसे वैष्णव जन है जिन्हें यह पता है के यह संसार भगवान के भजन के लिए । यह शरीर भगवान के भजन के लिए । यह सब कुछ भगवान के भजन के लिए ही मिला है और वह संसार के साथ-साथ भजन में लगे रहते हैं संसार के सुखों में उनको सुख का भान नहीं होता है

😄वास्तविक सुख भगवान के भजन में उनको सुख मिलता है तो उन्हें यह संसार सुखालय लगता है

🍎वास्तव में यह संसार सुखालय ही है । सुख स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण की सृष्टि सुख मई ही है दुख मई कैसे हो सकती है । दुख तो इसलिए होता है कि हम शरीर का संसार का अथवा किसी भी वस्तु का दुरूपयोग करते हैं ।

😂अतः सृष्टि और संसार यही रहेगा हम अपनी दृष्टि यदि बदल लेंगे तो यह संसार दुखालय के स्थान पर सुखालय हो जाएगा । और हो क्या जाएगा यह सुखालय ही है ।

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 
LBW - Lives Born Works at vrindabn


सुखालय एवम्  दुखालय

No comments:

Post a Comment