✅ शरीर और मन ✅
🐿 समय के हिसाब से हमारा शरीर बचपन से किशोर होता है । किशोर से युवा होता है । युवा से प्रौढ़ होता है और प्रौढ़ से बुड्ढा होता है ।
🐿 जैसे जैसे शरीर बचपन से किशोर होता है वैसे वैसे हमारा मन भी किशोर होता है । मन भी युवा होता है । मन भी प्रौढ़ होता है लेकिन अफसोस यह है कि मन बुड्ढा नहीं होता है ।
🐿 मन सदा ही युवा बना रहता है । हमारी इच्छाएं सदैव युवा बनी रहती हैं ।
🕹 हमारी कामनाएं
🕹 हमारी भावनाएं
कभी भी बुड्ढी नहीं होती है । जिस प्रकार शरीर अशक्त हो जाता है । जिस प्रकार शरीर में बचपन किशोर युवा परिस्थिति आती है उसी प्रकार मन में भी यह परिस्थिति उलटी होनी चाहिए ।
♦️हमारा मन भी यदि इन कामना वासना से दूर हटता जाए । अपने शरीर के हिसाब से अपनी कामनाओं वासनाओं अहंकार को यदि कम कर दें । एडजस्ट कर दें । और अपनी आवश्यकताएं को यदि कम करकेे येन केन प्रकारेण शरीर की रक्षा करें और
♦️ अपना मुख्य ध्यान भजन की ओर रखें तो हमारी अंतिम अवस्था में भी कल्याण हो सकता है । इसी के लिए वैदिक संस्कृति में
🏃 25 साल शिक्षा
🏃 25 साल ग्रहस्थ
🏃 25 साल वानप्रस्थ और
🏃 25 वर्ष सन्यास
के लिए थे । आजकल यह व्यवस्था समाप्त हो गई और जीवन की शाम के समय भी हम अपनी कामनाओं वासनाओं शारीरिक सुख सुविधा का। स्वाद का । कर्णप्रिय संगीत । टेलीविजन के दृश्य । घूमना फिरना । स्त्री संग आदि से अपने आपको नहीं रोक पाते हैं
♦️ परिणामतः शरीर की शक्ति के के कारण ना तो भोग ही पाते हैं और न रोक ही पाते हैं । अतः शरीर के साथ-साथ यदि मन भी संयमित हो जाए तो जीवन का कल्याण ही हो जाए
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
📢 ट्विटर पर : https://twitter.com/dasabhas_vbn
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