Sunday 10 July 2016

अतिवादिता


अतिवादिता

*अतिवादिता*

यह बात केवल whatsapp पर ही लागू नहीं होती है। यह बात हमारी समस्त क्रियाओं पर लागू होती है ।

हम में से कुछ लोग केवल *धन* धन धन कमाने में ही लगे रहते हैं

कुछ लोग *कर्जा* ले लेकर धन खर्च करने में ही लगे रहते हैं

कुछ लोग मान *प्रतिष्ठा* में लगे रहते हैं कुछ लोग *स्वाद* में लगे रहते हैं

सब करना है कुछ भी मना नहीं है लेकिन सीमा में *अति* सर्वत्र वर्जयेत्

 मशीन या कंप्यूटर या whatsapp या मोबाइल तभी बुरा है जब उसके चक्कर में हम अपने *दैनिक दायित्वों* को भूल जाए

अथवा वह हमारे जीवन पर इतना हावी हो जाए कि हमारा जीवन *अस्तव्यस्त* हो जाए

अतः अति सर्वत्र वर्जयेत्

ना अति भोजन
ना अति शयन

ना अती कार्य
न अति परिश्रम

ना अती घूमना
ना अती अंतरंग

*अति सर्वत्र वर्जयेत*्
संतुलन में यदि सब होता रहेगा तो कोई भी चीज कोई भी परिस्थिति हमें हानि नहीं पहुंचा सकती अपितु उन सब साधनों से हमें लाभ होता रहेगा


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 
LBW - Lives Born Works at vrindabn




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अतिवादिता

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