Monday 11 July 2016

सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर भाग 19

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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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 🔮 भाग 19

💡 कर्म का फल अवश्यंभावी है
चाहे कितने ही जन्मों के पश्चात
क्यों ना मिले उसका फल जीव को
अवश्य भोगना होता है। 101 जन्म
पूर्व अनजाने में एक सर्प को
कँटीली झाड़ी में फेंकने और इससे
उसके मर जाने के पाप का फल
महान भक्त भीष्म पितामह को
अंतिम अवस्था में शरशैया
पर पड़े रहकर रुकना पड़ा था

💡 सभी व्रत अपनी मनोकामनाओं
की पूर्ति के लिए होते हैं किंतु
एकादशी व्रत भगवान की प्रीति के
लिए है। इस व्रत का लक्ष्य है
अधिक भजन ।शरीर हल्का रहे.
आलस्य ना आए, निंद्रा ना आए,
इसलिए निराहार रहें या केवल
जल पीकर अथवा फलाहार करके
भजन करना चाहिए। मूल में
भजन है ना कि- क्या खाएं -
क्या न खाएं इसी में उलझे रहें।

💡 श्रीमद्भागवत गीता में
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है
जो भी मेरी पूजा छोड़कर
अन्य अन्य देवी देवताओं की
पूजा करता है, वह भी
एक प्रकार से मेरी ही पूजा करता है
किंतु वह अविधिपूर्वक है

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 
LBW - Lives Born Works at vrindabn




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