✅ *लौकिक । अलौकिक । लोकवत* ✅
▶ एक होता है लौकिक और दूसरा होता है अलौकिक । लौकिक कार्य में लोक के समस्त नियम चलते हैं
▶ जैसे अच्छा कार्य करने पर पुण्य मिलता है यश मिलता है लोग अच्छा कहते हैं ऐसे ही बुरे कार्य करने पर पाप होता है अपयश होता है आदि
▶ दूसरा जो अलौकिक है वह कार्य ऐसा है जो प्राय लोक में संभव नहीं होता है वह चाहे सौंदर्य हो कोई घटना हो अथवा भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं हो जैसे गोवर्धन धारण
▶ बचपन में ही असुरों का उद्धार पूतना वध आदि-आदि
▶ इन सबके साथ-साथ कृष्ण ने कुछ ऐसी लीलाएं भी की जो देखने में लौकिक लगती है जैसे चोरी करना । मिट्टी खाना । सखियों से दान मांगना आदि आदि
▶ लेकिन कृष्ण क्योंकि भगवान है उनकी लीलाएं या तो अलौकिक है या लोकवत है
▶ लौकिक कदापि नही ।ं चोरी करने पर उन्हें पाप नहीं लगता ह । मटकी फोड़ने पर उन्हें दंड नहीं मिलता है
▶ वह पाप और पुन्य से दूर है और उनकी जो लीला है लौकिक लगती ज़रूर हैं वह लोक की होती नहीं
▶ अलौकिक लगती है उसके लिए एक शब्द है लोकव्त यानी लोक जैसी ।
▶ इस प्रकार से तीन कैटेगरी हो गई
▶ एक अलौकिक
▶ दूसरी अलौकिक
▶ तीसरी लोकवत
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
▶ एक होता है लौकिक और दूसरा होता है अलौकिक । लौकिक कार्य में लोक के समस्त नियम चलते हैं
▶ जैसे अच्छा कार्य करने पर पुण्य मिलता है यश मिलता है लोग अच्छा कहते हैं ऐसे ही बुरे कार्य करने पर पाप होता है अपयश होता है आदि
▶ दूसरा जो अलौकिक है वह कार्य ऐसा है जो प्राय लोक में संभव नहीं होता है वह चाहे सौंदर्य हो कोई घटना हो अथवा भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं हो जैसे गोवर्धन धारण
▶ बचपन में ही असुरों का उद्धार पूतना वध आदि-आदि
▶ इन सबके साथ-साथ कृष्ण ने कुछ ऐसी लीलाएं भी की जो देखने में लौकिक लगती है जैसे चोरी करना । मिट्टी खाना । सखियों से दान मांगना आदि आदि
▶ लेकिन कृष्ण क्योंकि भगवान है उनकी लीलाएं या तो अलौकिक है या लोकवत है
▶ लौकिक कदापि नही ।ं चोरी करने पर उन्हें पाप नहीं लगता ह । मटकी फोड़ने पर उन्हें दंड नहीं मिलता है
▶ वह पाप और पुन्य से दूर है और उनकी जो लीला है लौकिक लगती ज़रूर हैं वह लोक की होती नहीं
▶ अलौकिक लगती है उसके लिए एक शब्द है लोकव्त यानी लोक जैसी ।
▶ इस प्रकार से तीन कैटेगरी हो गई
▶ एक अलौकिक
▶ दूसरी अलौकिक
▶ तीसरी लोकवत
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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