Sunday, 31 July 2016

ग्रन्थ परिचय - श्रीचैतन्य चन्द्रोदय

📖   ग्रन्थ  परिचय 9️⃣   📖

💢 ग्रन्थ   नाम : श्रीचैतन्य चन्द्रोदय

💢 लेखक : श्रील कवि कर्णपुर
💢 भाषा : हिंदी | श्री गणेशदास चुघ
💢 साइज़ : 14 x 22   सेमी
💢 पष्ठ : 160 सॉफ्ट बाउंड
💢 मल्य : 100 रूपये

💢 विषय वस्तु :
श्रीचैतन्य का आनंदमय जीवन-चरित्र
नाटक शैली में


💢कोड : M009 – Ed1

प्राप्ति स्थान ।
1⃣ खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2⃣ हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
3⃣ रामा स्टोर्स, लोई बाजार पोस्ट ऑफिस

📬 डाक द्वारा । 09068021415
पोस्टेज फ्री
📗🔸📘🔹📙🔶📔


 श्रीचैतन्य चन्द्रोदय
 श्रीचैतन्य चन्द्रोदय


Saturday, 30 July 2016

ग्रन्थ परिचय - ब्रज की चन्द्रिका –श्रीप्रेमभक्ति चन्द्रिका

 📖   ग्रन्थ  परिचय 8️⃣   📖

💢 ग्रन्थ   नाम :
ब्रज की चन्द्रिका –श्रीप्रेमभक्ति चन्द्रिका 

💢 लेखक : श्री नरोत्तम ठाकुर महाशय
💢 भाषा : मूल प्यार एवं हिन्दी अनुवाद
      व्रज विभूति श्रीश्यामदास
💢 साइज़ : 14 x 22   सेमी
💢 पष्ठ : 160 सॉफ्ट बाउंड
💢 मल्य : 100 रूपये

💢 विषय वस्तु :
श्रीनरोत्तमप्रार्थना, श्रीनरोत्तम चरित्र
श्रीनिवासाचार्य एवं श्रीश्यामानंद प्रभु चरित्र
श्रीचैतन्य चन्द्रामृत, नामापराध, नवधा भक्ति 


💢कोड : M008 – Ed3

प्राप्ति स्थान ।
1⃣ खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2⃣ हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
3⃣ रामा स्टोर्स, लोई बाजार पोस्ट ऑफिस

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 ग्रन्थ  परिचय - ब्रज की चन्द्रिका –श्रीप्रेमभक्ति चन्द्रिका
 ग्रन्थ  परिचय - ब्रज की चन्द्रिका –श्रीप्रेमभक्ति चन्द्रिका

सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर भाग 22

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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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 🔮 भाग 22

💡 दुष्ट व्यक्ति ईमानदार है
वह अपनी दुष्टता
कभी नहीं छोड़ता
ऐसे ही
सज्जन व्यक्ति को भी
अपनी सज्जनता
छोड़नी नहीं चाहिए

💡 भक्ति : सबसे कठिन
यदि वह श्री कृष्ण प्रेम प्राप्ति
के लिए की जाए
भक्ति : सबसे सरल
यदि वह पलायन अथवा
दिखावे के लिए की जाए

💡 साईं इतना दीजिए
जामे कुटुम्ब समाय
मैं भी भूखा ना रहूं
साधु न भूखा जाए
हे प्रभु बस इतना ध्यान दीजिए जिसमें मेरे
परिवार का पालन पोषण हो जाए और
यदि कोई साधु द्वार पर आ जाए तो वह
भी भूखा ना जाए। अतः धन की कामना
सिमित रखे. अत्याधिक धन सब अनर्थो
की जड़ है और भयंकर उत्पातकारी है.

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 
LBW - Lives Born Works at vrindabn



Friday, 29 July 2016

ग्रन्थ परिचय - ब्रज के परिकर-श्रीगौरगणाददेश दीपिका

📖 📖   ग्रन्थ परिचय 7️⃣    📖

💢 ग्रन्थ  नाम :
ब्रज के परिकर-श्रीगौरगणाददेश दीपिका 

💢 लेखक : श्रील  कवि कर्णपूर
💢 भाषा : हिन्दी । दासाभास डा गिरिराज
💢 साइज़ : 14 x 22   सेमी
💢 पृष्ठ : 152 सॉफ्ट बाउंड
💢 मूल्य : 100 रूपये

💢 विषय वस्तु : श्रीकृष्ण या श्रीराम लीला के पात्र श्रीचैतन्य
लीला में किस नाम-रूप से आविर्भूत हुए –
उन दोनों लीलाव का चमत्कारिक चरित्र


💢कोड : M007  – Ed1

प्राप्ति स्थान ।
1⃣ खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2⃣ हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
3⃣ रामा स्टोर्स, लोई बाजार पोस्ट ऑफिस
📬 डाक द्वारा ।  09068021415
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ग्रन्थ परिचय - ब्रज के परिकर-श्रीगौरगणाददेश दीपिका
ग्रन्थ परिचय - ब्रज के परिकर-श्रीगौरगणाददेश दीपिका 


विरोध



👺 विरोध 👺

🤕परत्येक मनुष्य को अपने जीवन में विरोध का सामना करना पड़ता है । यह स्वाभाविक ही है यह मत न मिलने के कारण होता है और सृष्टि तो क्या । नगर तो क्या ।  परिवार तो क्या  । घर के भाई बहन। पति पत्नी भी एकमत बहुत मुश्किल से होते हैं।

😯ऐसे में हम जो कहते हैं उसका, अनुकूलता ना होने पर दूसरा व्यक्ति विरोध करता है ।

👶कोई नया व्यक्ति है हम उसके स्वभाव को नहीं जानते हैं तो हम उसके विरोध स चोंकतेे हैं । यहां तक तो बात ठीक है

👮लकिन यदि मेरा पति या मेरी पत्नी जो बीसियों वर्ष से मेरे साथ रह रहा है और मुझे पता है कि मेरी इन इन बातों का यह विरोध करते हैं या विरोध करना इनका स्वभाव ही है

🎅तो हमें इस बात को हृदय से स्वीकार कर लेना चाहिए और हर समय तैयार रहना चाहिए कि अमुक व्यक्ति को इस बात का विरोध करेगा ही

😳अपितु चौकना तब चाहिए जब वह विरोध ना करें ।

😫विरोध को सहन करना और दुखी होना । क्योंकि सहन करने का अर्थ है कि हम उसको स्वीकार नहीं कर रहे हैं । सहन करने पर दबाव घुटन दुख होना स्वाभाविक है

😱परारंभ में सहन किया जाता है उसके बाद स्वीकार किया जाता है । यदि हम व्यक्ति के स्वभाव को स्वीकार कर ले तो हम कभी भी दुखी नहीं होंगे कभी भी घुटन या दबाव महसूस नहीं करेंगे

💩यह बात यद्यपि लौकिक और लाइफ स्टाइल से संबंधित है लेकिन अपने घर में रहने वाले व्यक्तियों सदस्यों के स्वभाव को यदि हम स्वीकार कर लें

😷और अपनी वृति को भजन में लगा लें तो भजन की चंचलता मन का इधर-उधर भटकना परिवार के लोगों के प्रति द्वेष भाव परिवार के लोगों के प्रति शिकायत हमेशा के लिए दूर हो जाएगी

😾और हम वैष्णव लोग निश्चिंतता से अपने भजन में शांति पूर्वक एकाग्रता पूर्वक लगे रहेंगे और परिवार के लोग अपने स्वभाव के अनुसार जो करना है करते रहेंगे

🤖उससे हमारे चित्त पर कोई भी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा आवश्यकता है जो जैसा है उसको वैसा ही स्वीकार करने की।

😹अजमा कर देखिए अंतर आएगा 😹

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  🐚


🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 
LBW - Lives Born Works at vrindabn


विरोध

Thursday, 28 July 2016

लौकिक । अलौकिक । लोकवत

✅   *लौकिक । अलौकिक । लोकवत* ✅

▶ एक होता है लौकिक और दूसरा होता है अलौकिक । लौकिक कार्य में लोक के समस्त नियम चलते हैं

▶ जैसे अच्छा कार्य करने पर पुण्य मिलता है यश मिलता है लोग अच्छा कहते हैं ऐसे ही बुरे कार्य करने पर पाप होता है अपयश होता है आदि

▶ दूसरा जो अलौकिक है वह कार्य ऐसा है जो प्राय लोक में संभव नहीं होता है वह चाहे सौंदर्य हो कोई घटना हो अथवा भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं हो जैसे गोवर्धन धारण

▶ बचपन में ही असुरों का उद्धार पूतना वध आदि-आदि

▶ इन सबके साथ-साथ कृष्ण ने कुछ ऐसी लीलाएं भी की जो देखने में लौकिक लगती है जैसे चोरी करना । मिट्टी खाना । सखियों से दान मांगना आदि आदि

▶ लेकिन कृष्ण क्योंकि भगवान है उनकी लीलाएं या तो अलौकिक है या लोकवत है

▶ लौकिक कदापि नही ।ं चोरी करने पर उन्हें पाप नहीं लगता ह । मटकी फोड़ने पर उन्हें दंड नहीं मिलता है

▶ वह पाप और पुन्य से दूर है और उनकी जो लीला है लौकिक लगती ज़रूर हैं वह लोक की होती नहीं

▶ अलौकिक लगती है उसके लिए एक शब्द है लोकव्त यानी लोक जैसी ।

▶ इस प्रकार से तीन कैटेगरी हो गई
▶ एक अलौकिक
▶ दूसरी अलौकिक
▶ तीसरी लोकवत




🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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लौकिक । अलौकिक । लोकवत




Wednesday, 27 July 2016

ग्रन्थ परिचय ब्रज की तुलसी

📖 📖   ग्रन्थ परिचय 6️⃣   📖

💢 ग्रन्थ  नाम : ब्रज की तुलसी

💢 लेखक : पंडित बाबा श्री श्यामारमणदास
💢 भाषा : हिन्दी
💢 साइज़ : 14 x 22   सेमी
💢 पृष्ठ : 176 सॉफ्ट बाउंड
💢 मूल्य : 100 रूपये

💢 विषय वस्तु : तुलसी, तिलक, संकीर्तन,
एकादशी व्रत क्यों – कैसे – और कितनी
एवं अन्य विषयों पर प्रमाणिक प्रस्तुति

💢कोड : M006  – Ed1

प्राप्ति स्थान ।
1⃣ खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2⃣ हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
3⃣ रामा स्टोर्स, लोई बाजार पोस्ट ऑफिस
📬 डाक द्वारा । 09068021415
पोस्टेज फ्री
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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर भाग 22

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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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 🔮 भाग 22

💡 शरीर की आसक्ति
तब समाप्त हो जाएगी
जब यह समझ आ
जायेगा कि में
इस शरीर से परे
आत्मा रूप में अवस्थित
हु नित्य हु और 
श्रीभगवान का दास हु


💡 योग माने अप्राप्त की प्राप्ति
और
क्षेम माने प्राप्त की रक्षा.
भक्तो के इस ‘योगक्षेम’ को
प्रभु स्वंय वहन करते है.

💡दीक्षा गुरु ऐसे होते है जैसे
एक पुरोहित कन्या का विवाह पढ़ते है
विवाह करके उसके पति  से मिलते
है और उसे गृहस्थाश्रम में प्रवेश
करा देते है परन्तु शिक्षा गुरु
उन ननद और सास के समान है
जो पग पग पर उस नव वधु को शिक्षा
देती रहती है. इस लौकिक उदाहरण से
शिक्षा गुरु के महत्व को समझना है.


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 
LBW - Lives Born Works at vrindabn


Tuesday, 26 July 2016

भजन आत्मा का विषय है

✅   *भजन आत्मा का विषय है *   ✅

3⃣ तीन विषय हैं

1⃣ आधिदैविक जिसमें देवताओं से संबंधित विषय कार्यकलाप होते हैं

2⃣ आधिभौतिक इसमें भूत । यानी प्राणी । प्राणी यानी मानव । यानी लौकिक विषयों के बारे में वर्णन होता ह

3⃣ तीसरा है आध्यात्मिक । जैसाकि शब्द से ही स्पष्ट है इसमें आत्मा के बारे में कार्यकलाप एवं वर्णन होता है

🚼 चाहे करने वाला शरीर ही होता है और सब कुछ इसी संसार में ही होता है लेकिन होता आत्मा के लिए है

🚺 जो आत्मा विभिन्न शरीर धारण करके विभिन्न योनियों में भटकती है उसके भटकाव को रोककर सदा सदा के लिए उसे कृष्ण चरण सेवा में लगा देने से संबंधित जो भी होता है वह आध्यात्मिक होता है वह भजन होता है

♿️ इसलिए क्योंकि इसका विषय आत्मा है । आत्मा न ब्राह्मण होता है न शूद्र होता है ना वैश्य होता है ना क्षत्रिय होता है आत्मा इन चारों वर्णों का शरीर धारण करता है

❇️ और भजन या आध्यात्मिक शरीर से संबंधित नहीं है इसलिए चैतन्य चरितामृत में कहा गया कृष्ण भजने नहीं जाती कुल आदि विचार

✳️ किसी भी जाति का व्यक्ति भजन कर सकता है साथ ही किवा विप्र किवा शूद्र न्यासी केने न्य जेई श्री कृष्ण तत्ववेत्ता से गुरु हय

☢ गरु भी जरूरी नहीं कि ब्राह्मण हो कोई भी क्यों ना हो श्री कृष्ण तत्व को यदि जानता है तो वह गुरु हो सकता है क्योंकि भजन भजन भजन भक्ति या आत्मा इन सब चीजों से परे है

📛 इसीप्रकार जो पाप है वह शरीर द्वारा किया जाता है और शरीर को भोगना पड़ता है अपराध भजन में होते हैं वह आत्मिक होते हैं आत्मा को कुछ नहीं भोगना पड़ता इसीलिए केवल प्रगति में बाधा बन कर रह जाते हैं और उन्हें दूर करना पड़ता है

💯 अतः हम सब समझे रहे की भजन आत्मा की खुराक है और परोपकार सदाचार आदि यह शरीर की खुराक है

🆎 हम प्रयास करके भजन द्वारा इस आत्मा को सदा सदा के लिए शरीरों के बंधन से छुड़ाकर कृष्ण चरण सेवा के बंधन में बांध दें

⭕️ इसीलिए इस पथ को आध्यात्मिक कहा जाता है


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 
LBW - Lives Born Works at vrindabn


भजन आत्मा का विषय है


Monday, 25 July 2016

निरपेक्ष

🔴 निरपेक्ष 🔴

📍निरपेक्ष न हैले न हय भजन 📍

🍎अर्थात निरपेक्ष हुए बिना भजन नहीं होता है कोई भी अपेक्षा रही तो भजन शुरू ही नहीहोना

अपेक्षा अर्थात

🔴अरे अभी क्या है अभी हम थोड़े बुजुर्ग हो जाए हमारी भजन करने की उमर तो हो तब हम भजन करेंगे यह आयु की अपेक्षा

🔴अरे इस घर में झंझट में भजन थोड़ी होता है थोड़ी शांति हो तब भजन करेंगे

🔴अरे अभी तो हम खाते पीते हैं यह खाना-पीना छूटे तब भजन करेंगे

🔴अरे हम वृंदावन में एक कुटिया बनवाएंगे तब वहां जाकर भजन करेंगे

🔴अरे इस झंझट में कोई भजन थोड़ी होता है भजन तो मन में करना होता है भगवान तो मन में बैठा है

🔴इत्यादि अनेक प्रकार की अपेक्षाओं की अपेक्षा करते रहना और भजन प्रारंभ ना करना यह सब बहाने हम रोज़ बनाते हैं

🔴जबकि यह शास्त्र कहता है कि जब तक हम निरपेक्ष नहीं होंगे तब तक भजन प्रारंभ ही नहीं होगा

🔴विशेषकर भजन प्रारंभ करने के लिए हमें सारी अपेक्षाओं को एक किनारे रख कर भजन को तुरंत किसी भी रुप में प्रारंभ कर देना चाहिए

🔴 भजन के प्रभाव से नाम के प्रभाव से श्रद्धा के प्रभाव से सत्संग के प्रभाव से हमारा भजन बढ़ता ही जाएगा हमें मार्ग मिलता ही जाएगा

🔴घर से यदि हम निकले ही नहीं तो चलेंगे क्या । घर से निकल कर चल पडे । गलत सही रास्ता जो भी होगा चलते-चलते हमें पता चल जाएगा

🔴 इसीलिए भजन प्रारंभ करने के लिए किसी समय की किसी देश की किसी अन्य परिस्थिति की इंतजार न करें जैसी भी स्थिति में है भजन तुरंत शुरू कर दें

🔴इसमें कोई अपराध भी नहीं है । किसी प्रकार के अपराध से भी प्रारंभिक अवस्था में डरना नहीं है आप शुरू तो करिए धीरे धीरे  आपके सारे विघ्न दूर होते जाएंगे धीरे धीरे सारे दुराचार छूट जाएंगे भोजन शुद्ध हो जाएगा

🔴कलेश समाप्त हो जाएंगे मंगलमय वातावरण हो जाएगा लेकिन ईमानदारी से भजन प्रारंभ करिए और कलयुग में सर्वश्रेष्ठ भजन का स्वरुप है नाम जप या नाम संकीर्तन

🔴नाम संकीर्तन से भी सहज है नाम जप वह भी माला द्वारा या काउंटर द्वारा  । अतः सारी अपेक्षाओं को छोड़कर आज ही प्रारंभ करिए

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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
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🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 
LBW - Lives Born Works at vrindabn


 निरपेक्ष


Sunday, 24 July 2016

ग्रन्थ परिचय - श्रीचैतन्य चरितामृत 3 खण्ड


📖   ग्रन्थ परिचय    📖

💢 ग्रन्थ  नाम :
श्रीचैतन्य चरितामृत  3 खण्ड एकसाथ

💢 लेखक : श्रीकृष्णदास कविराज गोस्वामी 
💢 भाषा : बंगला प्यार, हीब=नदी अनुवाद, टीका
💢 साइज़ : 19 x 25 सेमी
💢 पृष्ठ : 1472 हार्ड बाउंड
💢 मूल्य : 1000 रूपये

💢 विषय वस्तु : श्रीचैतन्य महाप्रभु का सम्पूर्ण चरित्र
सम्प्रदाय का सिद्धांत व् दर्शन
श्रीमदवैष्णवसिद्धांतरत्नसंग्रह सहित 

💢कोड : M005 – Ed4

प्राप्ति स्थान ।
1 खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2 हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
📬 डाक द्वारा 09068021415
पोस्टेज फ्री
📗🔸📘🔹📙🔶📔  

 ग्रन्थ परिचय - श्रीचैतन्य चरितामृत  3 खण्ड