Monday, 31 October 2011

129. gyani bhakt


ज्ञानी 
मिश्री की उपासना करके 
मिश्री बनना चाहता है

भक्त 
मिश्री की उपासना करके 
मिश्री का रस आस्वादन करता है

Saturday, 29 October 2011

128. समुद्र - मंथन





१. हलाहल विष - शिव ने पीया

२. कामधेनु - ऋषियों ने ली

३. उच्चैश्रवा घोड़ा - बलि ने लिया

४. ऐरावत हाथी - इन्द्र ने लिया

५. कौस्तुभ मणि - विष्णु ने ह्रदय पर धारण की

६. कल्पवृक्ष - स्वर्ग के नंदनवन में लगाया

७. अप्सराये - दिव्य वस्त्र पहने थीं, देव सभा में मनोरंजन हेतु

८. लक्ष्मी जी - ने श्रीविष्णु का वरन किया

९. वारुनी - कन्या रूप में - दैत्यों ने लिया

१०. अमृत-कलश सहित धन्वन्तरी - भाग दौड़ मच गयी अंततः देवताओं को मिला

JAI SHRI RADHE


DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

127. ऑटो मोड





जो बुद्धि द्वारा मन को
और मन द्वारा इन्द्रियों को वश में कर लेता है
वह ऑटो मोड में आ जाता है
वह राग-द्वेष, हानि-लाभ, दुःख-सुख में सामान भाव वाला हो जाता है

वह खाता भी है, सूँघता भी है, बोलता भी है
त्यागता भी है, ग्रहण भी करता है
देखता भी है, सुनता भी है
यानि उसकी सब इन्द्रियां सब काम करती हैं
और वह इनके प्रभाव से परे रहकर इस प्रकार सोचता हुआ 
शांत रहता है क़ि - 'ये इनका काम है :अतः कर रही हैं
मुझे इनसे क्या लेना - देना ???

ऑटो मोड़ में इस प्रकार आने पर उसकी सम्पूर्ण चेष्टा
प्रभु की अनुकूल्तामयी सेवा में ही लग जाती है
और वह प्रभु की प्रेमा-भक्ति को प्राप्त कर लेता है

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

Friday, 28 October 2011

126. कैसे जीतें ?


कैसे जीतें ?



हमारे इस स्थूल शरीर से श्रेष्ठ हैं, बलवान हैं, सूक्ष्म हैं : 'दस इन्द्रियाँ' 
इन्द्रियों से श्रेष्ठ, बलवान है 'मन'
मन से भी सूक्ष्म है, श्रेष्ठ है, बलवान है : 'बुद्धि'
और बुद्धि से श्रेष्ठ, बलवान, सूक्ष्म है : 'आत्मा' 

आत्मा न तो वशीभूत हो सकती है, न आत्मा का प्रयोग किया जा सकता है
अतः आत्मा को छोड़ने पर 'बुद्धि' ही एक ऐसा तत्त्व है
जिसके द्वारा हम
मन को
मन के द्वारा 
इन्द्रियों को जीत सकते हैं

इन्द्रियों को जीतने पर यह शरीर 'ऑटो-मोड' में आ जाता है
समस्त बढ़ा-व्याधियों, दुःख-सुख से ऊपर उठ जाता है

JAI SHRI RADHE

Wednesday, 26 October 2011

125. diwali annkut



शुभ दीपावली

दिवस महान है
आज दिवाली

कल भगवान् का
है अन्नकूट 

भैया दूज का
पावन  दिन  'गिरि '  
भाई -बहिन  का
प्रेम  अटूट .
  

मंगल  कामना  : JAI श्री राधे

दासाभास डॉ गिरिराज - चन्द्रिका नांगिया  

Tuesday, 25 October 2011

124. DIWALI-PRASAD


आइये ! आइये !!

आपका हार्दिक अभिनन्दन, वंदन, नमन


श्री गणेश जी को अपना नाम नोट कराइए


जी बिलकुल ठीक आपका नाम लिस्ट में है
आप प्रसाद ले सकते हैं

लेकिन पहले चरणामृत ले लीजिये !


DHANYAVAAD ! 

AB AAP PREM PREM POORVAK PRASAD ले SAKTE हैं 






शायद अब एक काफी हो जाय !


आपने बड़ी कृपा की, आनंद आ गया, आपका आगमन अविस्मरनीय रहेगा 

अब एक GINNI YAADGAAR के ROOP में


अनेक अनेक प्रणाम !  जय श्री राधे !!
प्रति वर्ष इसी प्रकार के आयोजन होते रहें : यही मंगल-कामना

दासाभास डा गिरिराज नांगिया   

123. दीपावली की राधे - राधे





जो खुद जले  
औ बहार दे
उस 'दीप' को क्या नाम दूँ ?
जो खुद मिटे 
औ निखार दे उस ढेर को 'गन्दगी' कहूँ ??

दीप ये जलते रहें
मीत यूँ मिलते रहें
में यूँ ही सेवा करूँ 
आप यूँ खिलते रहें

दीप सब जल जायेंगे
सब कमल खिल जायेंगे
कामना मेरी दुआ
काम सब बन जायेंगे

यह दीप पर्व महान हो !
खुशहाल मृदु मधु मान हो !
कुछ भी करो, कुछ भी कहो 
हर बात में भगवान् हो !
यह दीप पर्व महान हो !
'गिरि' दीप पर्व महान हो !

दिवाली की जय श्री राधे !! राधे !!
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Monday, 24 October 2011

122. धन-तेरस




आज धन-तेरस है, आज धन्वन्तरी जी का प्राकट्य-दिवस है
धन्वन्तरी वे है जो समुद्र-मंथन के समय 
अमृत का कलश लेकर आये थे

ये आदि वैद्य, आदि-डॉक्टर हैं, आज के दिन सभी DOCTORS  
को इनकी पूजा करनी चाहिए

ये असली 'धन' अमृत लेकर प्रकट हुए थे
इसलिए आज का दिन धन तेरस कहलाता है
आज के समय में स्वस्थ रहना भी किसी धन से कम नहीं है

मेरी कामना है कि- स्वस्थ रहे, व्यस्त रहे, मस्त रहे,
लेकिन अस्तव्यस्त न रहे. 

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

Sunday, 23 October 2011

121. प्रभु से हमारा रिश्ता





हम सब जीव भगवान् के दास है = सेवक हैं = नौकर हैं  

'जीवेर स्वरुप हय नित्य कृष्ण-दास' - चै. च.

मान लिया की प्रभु हमारी सेवा से प्रसन्न हो गए
जैसे हम अपनी एक बाई की सेवा से प्रसन्न हो गए
और हमने उस बाई से कहा कि- मांग आज तू क्या मांगती है
तुझे क्या कष्ट है , बतादे आज ?

ऐसे में बाई क़ी तरह हमें भी अपनी सीमाओं को हमेशा
ध्यान में रखना होगा, बाई बोले-
'मुझे अपनी पत्नी बनालो'
'मुझे अपने साथ में कुर्सी पर बेठालो'
'मुझे ५-१० लाख रु. दे दो'
तो शायद वह अपनी सीमाओं को लाँघ रही है

और यदि वह कहे कि-
मुझे कुछ और सेवा दे दो, मेरे बेटे कि नौकरी लगवा दो,
मेरी वेतन कुछ बड़ा दो, आदि... आदि..
तो वह सीमा में है और मालिक भी खुश होगा , उसकी सहायता करेगा

सीमा लांघने पर उसे उसकी सेवा समाप्ति का आदेश ही मिलेगा
न घर की - न घाट की रहेगी वह !!!!!!!

देने वाले और मांगने वाले के बीच रिश्ता या सम्बन्ध क्या है
इसे हमेशा याद रखना ही होगा .
भगवान्- भक्त के बीच एक ही रिश्ता है 
स्वामी और सेवक या सेविका का. और कोई रिश्ता नन्ही हो सकता.

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban





120. पत्रं पुष्पं v/s तीन टाइम का मीनू





भगवान् ने स्वयं कहा है की मुझे कोई यदि भक्ति से 
तुलसीपत्र -जल - फूल अर्पण करता है तो में
उन्हें प्रसन्नता से स्वीकार करता हूँ, प्रसन्न हो जाता हूँ

इसका अर्थ या भाव यह कदापि नहीं है कि
अपने लिए तो तीनो समय का मीनू सैट किया जाय
और भगवान् को जल भोग लगाया जाय!

इसका अर्थ यह भी नहीं है की अपने हर साड़ी-ब्लाउज की 
मचिंग की ज्वैलरी हो, और ठाकुर जी वर्षो से एक ही मुकुट
पोशाक पहने हुए है

हाँ! यदि आप भी जल पीकर रह रहे है तो ठाकुर भी जल से 
प्रसन्न हो जायेंगे,
उनकी प्रसन्नता भाव में है वस्तु या किसी अन्य की अपेक्षा में नहीं
लेकिन उन्हें उपेक्षा भी पसंद नहीं

अतः चेष्टा सहित अपनी सामर्थ्य के अनुसार सदैव ठाकुर
को लाड लड़ाना चाहिए 
JAI SHRI राधे

DASABHAS Dr GIRIRAJ नांगिया
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

Saturday, 22 October 2011

119. बंधन तोड़ना नहीं है





बंधन
तोड़ना नहीं, इसका रास्ता मोड़ना है
अब तक बहिन से राखी बंधवाते थे,अब किसी
संत से भी कंठी बंधवानी है

अब तक संसार से बंधे थे,
रिश्तो से बंधे थे, धन से बंधे थे,
माया से बंधे थे

अब

संसार के स्वामी से बंधना है
भक्तो से बंधना है, भजन से बंधना है
माया से नहीं, मायापति की कृपाशक्ती से बंधना है 
बंधन तोड़ना नहीं, कही और, कही अच्छी जगह जोड़ना है

श्री गुरुदेव से कंठी रूपी पट्टा बंधवा लिया तो
'आवारा' से 'पालतू' हो जाओगे
दुनिया के साथ-साथ दुनिया के स्वामी से भी बंध जाओगे

फिर बंधन तोड़ेगा नहीं, उससे जोड़ने का काम करेगा  

JAI SHRI RADHE

Friday, 21 October 2011

118. GALAT PRANAM = KUSHTHA

GALAT PRANAM = KUSHTHA



गलत प्रणाम से कुष्ठ रोग होता है !!!


१.मंदिर में ठाकुर को अपने बाये रखकर प्रणाम करना चाहिए 

२. हमेशा पंचांग प्रणाम करना चाहिए

३. पूरा लेट कर प्रणाम करना हो तो कमर से ऊपर के 
वस्त्र पूरे उतार देने चाहिए

Thursday, 20 October 2011

117. भक्ति - मुक्ति - नरक





१. 'आनुकूल्येन कृष्नानुशीलनम भक्तिरुत्तमा'
अर्थात कृष्ण की अनुकूलता पूर्वक सेवा ही उत्तम भक्ति है
अनुकूलतामयी करोगे तो प्रेम मिल जाएगा

२. प्रतिकूलतामय करोगे तो भी मोक्ष तो मिल ही जाएगा
जैसे 'कंस' को मिला
कंस हर समय शत्रु रूप में कृष्ण का चिंतन,ध्यान, स्मरण करता था
उसे मुक्ति मिली, भक्ति नहीं.

३.'बेन' भी कृष्ण के शत्रु थे, लेकिन
न वे चिंतन, न मनन , न ध्यान करते थे
अतः बेन को नरक मिला 
-- 


JAI SHRI RADHE

Wednesday, 19 October 2011

116. मुझे उबार दो !!!



 मुझे उबार दो !!!


बात कुछ ऐसी बनी
भक्त - इष्ट में ठनी

हम पतित
तुम पतित - पावन
दुष्ट हम
तुम तरन - तारण
राम तुम
हम सदा से रावण
बात क्या है ? क्या है कारण??

तारते हम को नहीं?
उबारते हमको नहीं!
छोटे=मोटे, कच्चे-खोटे
हैं नहीं हम
जोर पड़ता है बड़ा
तुम मानते ये क्यों नहीं ?

तार दो ! प्रभु तार दो !!
मुझे जीत लो , मुझे हार दो !
मेरे दुर्गुणों को मार दो
इस जीव को उबार दो
इस बात को व्यवहार दो
'गिरिराज' को उबार दो !!!!!!!!!!!!!

JAI SHRI RADHE

Tuesday, 18 October 2011

115. स्नेह या प्रेम दो प्रकार का





१. घृत-स्नेह

घी जैसा, घी को अकेला नहीं खाया जा सकता
उसमे बूरा मिलाकर, या घी का परांठा या
हलुआ बनाकर खाया जाता है

२. मधु-स्नेह 

मधु यानी शहद
शहद अपने आप में मीठा होता है
इसमे कुछ मिलाना आवश्यक नहीं, अपने आप में पूर्ण है

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ नांगिया
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

114. कौन क्या चाहता है ?





योगी - 
आत्म स्वरूप का दर्शन 

कर्मी 
स्वर्ग

ज्ञानी - 
ब्रह्म में मिलना 

भक्त - 
प्रभु की सेवा 

jay shri radhe


Monday, 17 October 2011

113. ALLOPATHIC TREATMENT


. ALLOPATHIC TREATMENT



तेज दर्द होने पर PAIN KILLER दे दी जाती है
इससे दर्द दूर नहीं होता है, उसका अहसास होना बंद हो जाता है

इसी प्रकार भगवान् भी माया एवं कर्म के नियमो में दखलंदाज़ी
न करते हुए  हमें गुरुदेव रूप अपनी एक शक्ती से मिला देते हैं, जो हमें 
श्रवण कीर्तन स्मरण आदि भक्ति के अंगों की शिक्षा देते हैं

112. HAMARI SEEMA


हमारी सीमा 


भ्रम - रस्सी को सांप समझना 
प्रमाद - पता तो है लेकिन भूल जाना
विप्रलिप्सा - आलस्य, मन नहीं है AVOIDING attitude
करना-पातव  - आँख होने पर भी प्रकाश के बिना देख नहीं पाना

JAI SHRI RADHE

Sunday, 16 October 2011

111. AARAADHYA KAUN ?



हमारे

आराध्य कौन  - ब्रजेन्द्रनंदन भगवान् श्री कृष्ण
नारायण या वासुदेव या अन्य कोई भी स्वरुप नहीं 
 
धाम कौन सा - श्रीवृन्दाबन
न मथुरा, न द्वारका, न अन्य 

उपासना कैसी  - ब्रजगोपियों के आनुगत्य में
स्वयं ब्रज गोपी  या राधा नहीं , अपितु  ब्रज गोपियों की दासी बन कर 

प्रमाण क्या  - श्रीमदभागवत
कोई भी शंका होने पर भागवत के अनुसार समाधान ही मानना है

पुरुषार्थ क्या  - श्रीकृष्ण-प्रेम
न धर्म, न अर्थ, न काम, न मोक्ष, केवल और केवल कृष्ण-प्रेम ही जीवन का उद्देश्य है  

Saturday, 15 October 2011

110. लौट न आइये !!!




लौट न अइये !!!


चल मन वृन्दावन चल रहिये 


परम पुनीत सो ब्रज की धरणी रज धर शीश जनम - फल लहिये 

मंजुल सघन पुलिन यमुना तट सुन्दर पर्ण - कुटी तहां छइये
संत टूक लहि, पाय यमुना जल मिली रसिकन राधावर गइए
विरहत आवहिं युगललाल जब दर्शन कर मन व्यथा मिटइये 
'श्याम' कृपा ऐसी कब करिये चल वृन्दावन लौट न अइये 


JAI SHRI RADHE


DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia 

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Sunday, 9 October 2011

109. सदग्रंथ-संग = सत्संग



सदग्रंथ-संग = सत्संग


सत व्यक्तियों=संत का संग 
सत कार्यो का संग
सत ग्रंथो का संग 
ये तीनो ही सत्संग हैं

एक तो सच्चे संत बहुत कम है, फिर उनमे हमें दोष दिखाई देने लग जाते हैं
संत के वेश में ठग भी बहुत हैं

सत कार्यो के लिए सत-विचार चाहिए
सत विचार मिलेंगे सद्ग्रंथो में अतः सर्वोत्तम है सदग्रंथ 
जिनमे न दोष है न ठगे जाने का भय 

हाँ ग्रन्थ भी प्रामाणिक हों, अपनी प्रशंशा में प्रकाशित उल-जुलूल 
ग्रन्थ पढने से बुद्धि भ्रमित होती है सद्ग्रंथो के पढने से सत्संग प्राप्त होगा
विवेक जागृत होगा और आगे का मार्ग हमेशा के लिए खुल जाएगा.

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
made to serve ; GOD  thru  Family  n  Humanity
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108. प्रभु कृपा के दर्शन : समीक्षा



प्रभु कृपा के दर्शन : समीक्षा


१. हमारे आस पास जो भी है, हो रहा है, जो भी 
    सुख, श्रेष्ठता है, सभी मै प्रभु की ही कृपा के दर्शन करो 
    समीक्षा करो कि प्रभु ने कितनी कृपा कि है कि हम इस लायक वने है 

२. जो इस प्रकार सदा सर्वदा उनकी कृपा को ही 
    सब कुछ का कारण मानता है, 
    उसके द्वारा किये हुए अगले पिछले जन्मो के पाप भुंज जाते हैं अपना 
    फल नहीं देते - जबकि सिद्धांत है कि " अवश्यमेव भोकन्यं कृतं 
    कर्म शुभाशुभं 

३. ह्रदय से, वाणी से, शरीर से सदैव जो विधिपूर्वक,  
    सिस्टम को फोलो करते हुए सदैव प्रभु को इस भाव से नमस्कार,
    प्रणाम, सेवा करता है 

४. वह स्वत: ही "भक्ति" का उत्तराधिकारी बन जाता है, भक्ति 
    करने कि योग्यता प्राप्त कर उसे भक्ति सहज ही प्राप्त हो जाती है 
    ठीक वैसे, जैसे पिता कि सम्पत्ति स्वत: ही संतान को मिल 
    जाती है - खरीदनी नहीं पड़ती 
JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
made to serve ; GOD  thru  Family  n  Humanity
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107. स्त्रियों के सात गुण



स्त्रियों के सात गुण 

कीर्ति 
श्री
वाक् 
स्मृति
मेधा 
धृति
क्षमा 


ब्राह्मण - सिर स्थानीय हैं
क्षत्रिय - हाथ - रक्षा 
वैश्य - उदर - अर्जन  
शुद्र - चरण - सेवा 

निद्रा को जीतने वाले को 
गुडाकेश कहते है - अर्जुन 

उलटे हाथ से तीर 
चलाने वाले को सव्यसाची  कहते है - अर्जुन

उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय तथा अन्तर्यामी रूप से 
शाशन करने वाले होने से भगवान् को प्रभु कहते है 
  
JAI SHRI RADHE

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