Monday, 6 June 2016

टटोलिये ह्रदय को

✅  टटोलिये ह्रदय को  ✅ 

▶ जब में ये लिखता हूँ कि
▶ में तो एक सामान्य सा इंसान हूँ । सब आप की कृपा है । भजन साधन तो में न कुछ जानता हूँ । न करता हूँ । ▶ माया में फंसा एक पापी तापी प्राणी हूँ।

▶ तो कम से कम मेरे कान या आँखें उत्सुक होती हैं ये देखने सुनने को कि

▶ "*नहीं । नहीं । आप तो बहुत सज्जन हैं* । ऐसा क्यों कहते हो । आप तो ये । आप तो वो । आदि आदि ।

▶ आप भी चेक करिये आपने आप को कि आपके ह्रदय में क्या आता है ।

▶ में सोचता हूँ ।
▶ यदि किसी ने ये कहा

▶ कि । ठीक ही कहा आपने । अब ये नाटक बन्द करो । बहुत हो गया । में तो पहले से ही समझता था । अच्छा ▶ हुआ जो आज खुद तुमको भी पता चल गया । तो मुझे कैसा लगेगा क्या बुरा ही लगेगा ।

▶ अतः दैन्य दिखाने या लिखने के लिए नही है । धारण करने की वास्तु है । दिखाने और लिखने से तो और अहम ▶ बढ़ता है । अपितु अपने दीं होने का भी अहम हो जाता है ।

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

टटोलिये ह्रदय को

1 comment:

  1. यही सच्चाई शायद कुछ वो भी समझ जाते जो शास्त्रो की बाते करते और शास्त्रों को ही भृम समझते। सबसे खतरनाक वो है जो कहता कुछ और करता कुछ है।
    आप के लेख अच्छा है।
    किन्तु कुछ आपके लोग भी इस सच्चाई को समझ जाते । जो ज्योतिष, धर्म, शास्त्र को ही भृम कहते हैं। 🙏🏻

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