Friday, 24 June 2016

भक्ति निरपेक्ष है

✅   भक्ति निरपेक्ष है    ✅  

निरपेक्ष का अर्थ है की भक्ति करने के लिए

▶ किसी विशेष स्थान
▶ किसी विशेष समय
▶ देशकाल और
▶ किसी विशेष परिस्थिति
▶ जैसे आयु आदि की अपेक्षा नहीं है



▶ अपितु किसी विशेष विधि निषेध की भी अपेक्षा प्रारंभिक स्तर पर नहीं है

▶ जैसे कोई शराब पीता हो और वह माला करना चाहे तो वह तुरंत उसी क्षण माला प्रारंभ कर सकता है

▶ क्योंकि भक्ति के अनेक अंग है । उनमें एक अंग है ध्रुवानुस्मृति अर्थात हर समय श्रीकृष्ण की स्मृति बने रहना । चाहे जो भी जैसे भी जब भी वह कृष्ण से संबंधित कोई कार्य करता है तो कम-से-कम उसको *कृष्ण की स्मृति* तो होती ही है

▶ यूं तो भक्ति भी एक गंभीर कोर्स है यह ₹30 की मूंगफली नहीं है जो चलते-फिरते खा ली जाए

▶ यह एक गंभीर कोर्स है जिसमें

▶ पूरा ध्यान
▶ पूरा मन
▶ पूरा वृति

▶ को लगाना पड़ता है तब कहीं जाकर कुछ 10 या 20% समझ आती है

▶ पूरे कोर्स को प्राप्त करने में एक जनम तो क्या अनेक जन्म लगते हैं लेकिन फिर भी यदि कोई भी किसी भी प्रकार से टेढ़ा सीधा उल्टा-पुल्टा कैसे भी भक्ति या भजन करता है

▶ तो उसे करने दिया जाता है इसलिए कि किसी भी प्रकार यह भक्ति और भजन में प्रवेश तो करे । प्रवेश करने पर *भजन के ही प्रताप* से इसको मार्ग मिलता जाएगा

▶ और बात फिर वही आती है के भक्ति और भजन निरपेक्ष है कुछ भी अपेक्षा रहित है इसके लिए किसी भी अपेक्षा की आवश्यकता प्राथमिक स्तर पर नहीं है ।

▶ ध्यान रहे प्राथमिक स्तर पर । आगे चलकर इसके नियम आदि का गंभीरता से पालन करने पर ही कुछ प्राप्ति होती दिखती है

▶ और एक बात और भी है आप जो कुछ भी कर रहे हैं उसमें यदि संशय नहीं है । आनंद मिल रहा है । संतुष्टि है । तो उसे करते रहिये ।

▶ यही भक्ति है । और यदि इन तीनों का अभाव है तो फिर आपको गंभीरता से नियमों का पालन करना होगा ।

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया  
LBW - Lives Born Works at vrindabn

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भक्ति निरपेक्ष है

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