✅ अपराध ✅
▶ यह एक ऐसा शब्द है कि हर वैष्णव के मुख पर विराजमान है । लेकिन इसका भाव और अर्थ बहुत कम लोग शायद जानते होंगे ।
▶ अपराध दो शब्दों से बना है
▶ अप एवं राध ।
▶ राध माने संतोष । अप माने बाधा । जिससे भजन के संतोष में बाधा हो उस कार्य क्रिया को अपराध कहते हैं ।
▶ अपराध का शरीर से कोई मतलब नहीं है
▶ अपराध आत्मा का विषय है ।
▶ अपराध से शरीर में कोई कष्ट नहीं होता है
▶ ना अपराध से एक्सीडेंट होता है
▶ ना अपराध से बीमारी होती है
▶ ना अपराध से दुकान की बिक्री कम होती है
▶ ना अपराध से संतान में बाधा होती है
▶ कुल मिलाकर अपराध से लौकिक विषय
▶ में कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है और
▶ ना ही अपराधका फल
▶ भोगने के लिए कोई नर्क बने हुए हैं
▶ इन सब कामों पर पाप पुण्य का प्रभाव पड़ता है पाप पुण्य शरीर से संबंधित हैं और अपराध भजन और आत्मा से संबंधित है ।
▶ अपराध होने एक बहुत बड़ी बात होती है वह होती है भजन में बाधा । भजन में बाधा होने से भजन करने से ▶ जो आनंद और संतोष प्राप्त होता है वह प्राप्त होना बंद हो जाता है ।
▶ साथ ही भजन उसी का बंद होगा ना जो भजन करता होगा । मेरी तरह भजन का नाटक करने वालों का क्या ▶ भजन बंद होगा । भजन तो हो ही नहीं रहा वैसे भी ।
▶ अतः अपराध और पाप के अंतर को हम समझे रहे । पाप यदि किया या हुआ और उसका फल भोग लिया तो वह समाप्त हो जाता है लेकिन अपराध का एक ही फल है कि हमारा भजन नहीं बनता है ।
▶ शायद यह ही जीवन की सबसे बड़ी हानि है क्योंकि यह जीवन भजन के लिए मिला है भजन यदि नहीं बना तो फिर जीवन किस काम का ।
▶ अतः अपराध को हल्के में नहीं लेना चाहिए यह एक ऐसा अवरोध है जो हमारे जीवन के फल भजन को तुरंत बाधित कर देता है । अगले जन्म का भी कोई चक्कर नहीं इसमें । यहीं । अभी । इंस्टेंट असर है इसका । ▶ जबकि पाप तो कुछ अभी । कुछ अगले जन्म में भोगते हैं । कुछ नर्क में भोगते हैं ।
▶ पाप करते हुए भी चैन और मस्ती से पूर्व पुण्यों के कारण जीते हुए रह सकते हैं लेकिन अपराध् यदि हो गया तो चैन छीन गया समझो ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
💬 फेसबुक पर https://www.facebook.com/dasabhasgirirajnangia
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🎤 वौइस् नोट्स : http://YourListen.com/Dasabhas
▶ यह एक ऐसा शब्द है कि हर वैष्णव के मुख पर विराजमान है । लेकिन इसका भाव और अर्थ बहुत कम लोग शायद जानते होंगे ।
▶ अपराध दो शब्दों से बना है
▶ अप एवं राध ।
▶ राध माने संतोष । अप माने बाधा । जिससे भजन के संतोष में बाधा हो उस कार्य क्रिया को अपराध कहते हैं ।
▶ अपराध का शरीर से कोई मतलब नहीं है
▶ अपराध आत्मा का विषय है ।
▶ अपराध से शरीर में कोई कष्ट नहीं होता है
▶ ना अपराध से एक्सीडेंट होता है
▶ ना अपराध से बीमारी होती है
▶ ना अपराध से दुकान की बिक्री कम होती है
▶ ना अपराध से संतान में बाधा होती है
▶ कुल मिलाकर अपराध से लौकिक विषय
▶ में कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है और
▶ ना ही अपराधका फल
▶ भोगने के लिए कोई नर्क बने हुए हैं
▶ इन सब कामों पर पाप पुण्य का प्रभाव पड़ता है पाप पुण्य शरीर से संबंधित हैं और अपराध भजन और आत्मा से संबंधित है ।
▶ अपराध होने एक बहुत बड़ी बात होती है वह होती है भजन में बाधा । भजन में बाधा होने से भजन करने से ▶ जो आनंद और संतोष प्राप्त होता है वह प्राप्त होना बंद हो जाता है ।
▶ साथ ही भजन उसी का बंद होगा ना जो भजन करता होगा । मेरी तरह भजन का नाटक करने वालों का क्या ▶ भजन बंद होगा । भजन तो हो ही नहीं रहा वैसे भी ।
▶ अतः अपराध और पाप के अंतर को हम समझे रहे । पाप यदि किया या हुआ और उसका फल भोग लिया तो वह समाप्त हो जाता है लेकिन अपराध का एक ही फल है कि हमारा भजन नहीं बनता है ।
▶ शायद यह ही जीवन की सबसे बड़ी हानि है क्योंकि यह जीवन भजन के लिए मिला है भजन यदि नहीं बना तो फिर जीवन किस काम का ।
▶ अतः अपराध को हल्के में नहीं लेना चाहिए यह एक ऐसा अवरोध है जो हमारे जीवन के फल भजन को तुरंत बाधित कर देता है । अगले जन्म का भी कोई चक्कर नहीं इसमें । यहीं । अभी । इंस्टेंट असर है इसका । ▶ जबकि पाप तो कुछ अभी । कुछ अगले जन्म में भोगते हैं । कुछ नर्क में भोगते हैं ।
▶ पाप करते हुए भी चैन और मस्ती से पूर्व पुण्यों के कारण जीते हुए रह सकते हैं लेकिन अपराध् यदि हो गया तो चैन छीन गया समझो ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
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