✅ सन्त ह्रदय नवनीत समाना ✅
▶ कल मेरे शिक्षा गुरुदेव को जब यह पता चला कि मैं सूर्योदय के पश्चात सोकर उठता हूं तो उन्होंने मुझे बेहद से बेहद डांट लगाई और अत्यधिक क्रोध किया मुझ पर। शासन भी किया । और कहा कि
▶ एक वैष्णव को सूर्योदय से हर हालत में पहले उठना चाहिए । उनका भाव यह था कि सूर्य भी भगवान का अंश है। सूर्य के आने से पूर्व एक साधक को उठ जाना चाहिए ।
▶ जिस प्रकार हमारे घर कोई अतिथि आने वाला हो और हम सोए रहें । अचानक आ जाए तो भी बात चलती है । लेकिन यदि निश्चित है कि सूर्य भगवान आज प्रातः 5।54 पर पधारने वाले हैं तो 7:00 बजे तक सोए रहने वाली कोई बात नहीं बनती है ।
▶ अतः उन्होंने बहुत डांटा बहुत फटकारा बहुत गुस्सा किया । मैंने भी उनसे अनेक क्षमा मांगी ।
▶ लेकिन मजे की बात यह रही कि इतना अधिक क्रोध डांट शासन के बाद वह किसी दूसरे विषय की बात करते हुए एकदम मक्खन की तरह से कोमल हृदय होकर हंस-हंसकर मेरे से चर्चा करते रहे
▶ मैं उनको अपना शिक्षा गुरुदेव मानता हूँ । वह मुझे एक साधक के साथ-साथ मुझमें सख्य भाव भी रखते हैं । लेकिन एक ही समय में उनका क्रोध और उनका माखन के समान कोमल हृदय को देखकर मुझे वह श्लोक याद आ गया जिसमें कहा गया कि
▶ नारिकेल समाकाराः दृश्यन्ति
▶ भुवि सज्जनाः
▶ सज्जन पुरुष नारियल के समान होते हैं बाहर से बहुत ही कड़े और रूड । अंदर मलाई के समान कोमल और
▶ उनका क्रोध व्यक्ति से नहीं अपितु किसी बात या अपने जन के दोष से होता है और उनका क्रोध इतना क्षणिक होता है कि अगले ही क्षण वह इतने नॉर्मल होकर प्रेम से बात करते हैं कि दो क्षण पहले वह इतने क्रोधित थे । इस बात का भान भी नहीं होता ।
▶ हम सामान्य लोग बात से नही व्यक्ति से क्रोध करके सम्बन्ध में दरार ले आते हैं । जबकि विरोध बात का होना है । व्यक्ति का नही ।
▶ क्योंकि जिस व्यक्ति में 4 दोष हैं । उसी में 4 गुण भी हैं । अतः दोष का विरोध । गुण का सम्मान । व्यक्ति को बीच म नही लाना है ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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▶ कल मेरे शिक्षा गुरुदेव को जब यह पता चला कि मैं सूर्योदय के पश्चात सोकर उठता हूं तो उन्होंने मुझे बेहद से बेहद डांट लगाई और अत्यधिक क्रोध किया मुझ पर। शासन भी किया । और कहा कि
▶ एक वैष्णव को सूर्योदय से हर हालत में पहले उठना चाहिए । उनका भाव यह था कि सूर्य भी भगवान का अंश है। सूर्य के आने से पूर्व एक साधक को उठ जाना चाहिए ।
▶ जिस प्रकार हमारे घर कोई अतिथि आने वाला हो और हम सोए रहें । अचानक आ जाए तो भी बात चलती है । लेकिन यदि निश्चित है कि सूर्य भगवान आज प्रातः 5।54 पर पधारने वाले हैं तो 7:00 बजे तक सोए रहने वाली कोई बात नहीं बनती है ।
▶ अतः उन्होंने बहुत डांटा बहुत फटकारा बहुत गुस्सा किया । मैंने भी उनसे अनेक क्षमा मांगी ।
▶ लेकिन मजे की बात यह रही कि इतना अधिक क्रोध डांट शासन के बाद वह किसी दूसरे विषय की बात करते हुए एकदम मक्खन की तरह से कोमल हृदय होकर हंस-हंसकर मेरे से चर्चा करते रहे
▶ मैं उनको अपना शिक्षा गुरुदेव मानता हूँ । वह मुझे एक साधक के साथ-साथ मुझमें सख्य भाव भी रखते हैं । लेकिन एक ही समय में उनका क्रोध और उनका माखन के समान कोमल हृदय को देखकर मुझे वह श्लोक याद आ गया जिसमें कहा गया कि
▶ नारिकेल समाकाराः दृश्यन्ति
▶ भुवि सज्जनाः
▶ सज्जन पुरुष नारियल के समान होते हैं बाहर से बहुत ही कड़े और रूड । अंदर मलाई के समान कोमल और
▶ उनका क्रोध व्यक्ति से नहीं अपितु किसी बात या अपने जन के दोष से होता है और उनका क्रोध इतना क्षणिक होता है कि अगले ही क्षण वह इतने नॉर्मल होकर प्रेम से बात करते हैं कि दो क्षण पहले वह इतने क्रोधित थे । इस बात का भान भी नहीं होता ।
▶ हम सामान्य लोग बात से नही व्यक्ति से क्रोध करके सम्बन्ध में दरार ले आते हैं । जबकि विरोध बात का होना है । व्यक्ति का नही ।
▶ क्योंकि जिस व्यक्ति में 4 दोष हैं । उसी में 4 गुण भी हैं । अतः दोष का विरोध । गुण का सम्मान । व्यक्ति को बीच म नही लाना है ।
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