✅ प्राप्ति क्यों नहीं ✅
▶ आजकल इंटरनेट का जमाना है । whatsapp है । फेसबुक है । दूसरे भी बहुत सारे माध्यम है
▶ भक्ति और भजन एक कोर्स है कोर्स में
▶ पहली क्लास
▶ दूसरी क्लास
▶ चौथी क्लास
▶ हाई स्कूल
▶ ग्रेजुएशन
▶ पोस्ट ग्रेजुएशन अदि यह क्रम होता है
▶ और पहले भक्ति ग्रंथ जितने भी होते थे वह अधिकारी को हाथ से कॉपी करक प्रदान किए जाते थे । आमने-सामने बैठकर गुरुकुल में साधकों को उनके अधिकार एवं योग्यता से शिक्षा दी जाती थी ।
▶ अभी सभी क्लासेस की पुस्तकें और ग्रंथ छप गए 1000 ₹500 में बाजार में मिलते हैं और अब तो वह सारी चीजें whatsapp पर अपने बेडरुम में बैठकर फ्री में मिलती है
▶ भक्ति ग्रंथों के ऊपर यह कहीं नहीं लिखा रहता कि यह किस क्लास के साधक का ग्रंथ है परिणाम यह हो रहा है कि हम पहली दूसरी क्लास के विद्यार्थी ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट के विषय को पढ़ रहे हैं
▶ आप हम अच्छी तरह समझ सकते हैं कि उसमें से कुछ भी समझ नही आना है । केवल संशय ही संशय होना है
▶ क्योंकि ग्रंथ या पोस्ट है पोस्ट ग्रेजुएट की और हम है तीसरी क्लास के विद्यार्थी इसलिए परिणाम सामने है की प्राप्ति कुछ भी नहीं हो रही ।
▶ बहुत सारे ऐसे ऊंचे ऊंचे स्तर के भावों को *रेवड़ी की तरह* से बांटे जाने पर उस भाव की योग्यता तो है नहीं अतः कुछ प्राप्त नहीं हो रहा
▶ इसलिए हम अपने स्तर को पहचान कर केवल और केवल साधन भक्ति में लगे साधन भक्ति की पहली सीढी है
▶ *नामजप*
▶ *नाम संकीर्तन*
▶ *योग्य वक्ता से कथा श्रवण*
▶ वक्ता यदि *अयोग्य* होगा और मनमानी कथा कहेगा तो 50 साल तक कथा सुनने से भी ना के बराबर प्राप्ति होगी
▶ कथा के साथ-साथ *वैष्णव संग* एवम्
▶ *भजन* करने की और चेष्टा भी करनी होगी
▶ कोरी बातें बनाने से कुछ नहीं होगा
▶ 6।6 घंटे whatsapp पर लगे रहने वाले लोगों से जब कहा जाता है की नाम जप करो तो वह कहते हैं कि समय नहीं मिलता ।
▶ कितने दुख की बात है बातों के लिए समय है भजन के लिए नहीं । अतः
▶ श्रद्धा
▶ साधु संग
▶ भजन क्रिया
▶ उसके बाद सारे अनर्थ निवृत्त होते हैं
▶ कम से कम मैं स्वयं तो अपने आप को दो क्लास मैं भटकता हुआ तीसरी क्लास में थोड़े से प्रवेश के स्तर का ही मानता हूं क्योंकि मैं भी उतना भजन नहीं करता हूं जितना करना चाहिए
▶ और सभी को अपनी स्थिति स्वयं अपने आप देखनी चाहिए ।
▶ बहुत ऊंची ऊंची निकुंज की बातें ।
▶ राधाजी की गोद की बातें ।
▶ शरणागति की बातें
▶ यह सब अभी हमारे लेवल से बहुत ऊंची है इन बातों को करने से कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है
▶ और यदि हम वास्तव में कुछ प्राप्त करना चाहते हैं तो whatsapp के साथ साथ अच्छे आचरण शील भजन शील साधू और वैष्णवों का संग राग द्वेष से रहित होकर हमें करना होगा यह दूसरी क्लास है
▶ तब जाकर तीसरी क्लास भजन में । भजन क्रिया में । भजन करने में । हम प्रवेश पा पाएंगे । और कुछ प्राप्त होता सा लगेगा ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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▶ आजकल इंटरनेट का जमाना है । whatsapp है । फेसबुक है । दूसरे भी बहुत सारे माध्यम है
▶ भक्ति और भजन एक कोर्स है कोर्स में
▶ पहली क्लास
▶ दूसरी क्लास
▶ चौथी क्लास
▶ हाई स्कूल
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▶ पोस्ट ग्रेजुएशन अदि यह क्रम होता है
▶ और पहले भक्ति ग्रंथ जितने भी होते थे वह अधिकारी को हाथ से कॉपी करक प्रदान किए जाते थे । आमने-सामने बैठकर गुरुकुल में साधकों को उनके अधिकार एवं योग्यता से शिक्षा दी जाती थी ।
▶ अभी सभी क्लासेस की पुस्तकें और ग्रंथ छप गए 1000 ₹500 में बाजार में मिलते हैं और अब तो वह सारी चीजें whatsapp पर अपने बेडरुम में बैठकर फ्री में मिलती है
▶ भक्ति ग्रंथों के ऊपर यह कहीं नहीं लिखा रहता कि यह किस क्लास के साधक का ग्रंथ है परिणाम यह हो रहा है कि हम पहली दूसरी क्लास के विद्यार्थी ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट के विषय को पढ़ रहे हैं
▶ आप हम अच्छी तरह समझ सकते हैं कि उसमें से कुछ भी समझ नही आना है । केवल संशय ही संशय होना है
▶ क्योंकि ग्रंथ या पोस्ट है पोस्ट ग्रेजुएट की और हम है तीसरी क्लास के विद्यार्थी इसलिए परिणाम सामने है की प्राप्ति कुछ भी नहीं हो रही ।
▶ बहुत सारे ऐसे ऊंचे ऊंचे स्तर के भावों को *रेवड़ी की तरह* से बांटे जाने पर उस भाव की योग्यता तो है नहीं अतः कुछ प्राप्त नहीं हो रहा
▶ इसलिए हम अपने स्तर को पहचान कर केवल और केवल साधन भक्ति में लगे साधन भक्ति की पहली सीढी है
▶ *नामजप*
▶ *नाम संकीर्तन*
▶ *योग्य वक्ता से कथा श्रवण*
▶ वक्ता यदि *अयोग्य* होगा और मनमानी कथा कहेगा तो 50 साल तक कथा सुनने से भी ना के बराबर प्राप्ति होगी
▶ कथा के साथ-साथ *वैष्णव संग* एवम्
▶ *भजन* करने की और चेष्टा भी करनी होगी
▶ कोरी बातें बनाने से कुछ नहीं होगा
▶ 6।6 घंटे whatsapp पर लगे रहने वाले लोगों से जब कहा जाता है की नाम जप करो तो वह कहते हैं कि समय नहीं मिलता ।
▶ कितने दुख की बात है बातों के लिए समय है भजन के लिए नहीं । अतः
▶ श्रद्धा
▶ साधु संग
▶ भजन क्रिया
▶ उसके बाद सारे अनर्थ निवृत्त होते हैं
▶ कम से कम मैं स्वयं तो अपने आप को दो क्लास मैं भटकता हुआ तीसरी क्लास में थोड़े से प्रवेश के स्तर का ही मानता हूं क्योंकि मैं भी उतना भजन नहीं करता हूं जितना करना चाहिए
▶ और सभी को अपनी स्थिति स्वयं अपने आप देखनी चाहिए ।
▶ बहुत ऊंची ऊंची निकुंज की बातें ।
▶ राधाजी की गोद की बातें ।
▶ शरणागति की बातें
▶ यह सब अभी हमारे लेवल से बहुत ऊंची है इन बातों को करने से कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है
▶ और यदि हम वास्तव में कुछ प्राप्त करना चाहते हैं तो whatsapp के साथ साथ अच्छे आचरण शील भजन शील साधू और वैष्णवों का संग राग द्वेष से रहित होकर हमें करना होगा यह दूसरी क्लास है
▶ तब जाकर तीसरी क्लास भजन में । भजन क्रिया में । भजन करने में । हम प्रवेश पा पाएंगे । और कुछ प्राप्त होता सा लगेगा ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
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दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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