✅ किसकी मानें ✅
▶ किसी भी विषय को समझने या जानने के लिए हमारे पास मुख्य रूप से तीन साधन है
▶ पहला है *शास्त्र*
▶ दूसरे हैं *संत*
▶ तीसरे हैं *श्री गुरुदेव*
▶ लेकिन समय के प्रभाव से इन तीनों ही विधाओं की असलियत वास्तविकता एवं विश्वसनीयता संदेहास्पद है
▶ सर्वप्रथम *शास्त्र* को लेते हैं ।
▶ पहले कोई विरले अनुभव प्राप्त विद्वान या संत ही ग्रंथ लिखते थे और अपने अनेक में से
▶ किसी एक अधिकारी शिष्य को उसकी प्रतिलिपि कर के देते थे
▶ आज मुझ जैसे ऐरे गैरे कोई भी कुछ भी ग्रंथ लिख रहे हैं और लाख 50 हजार रुपए में छपा के बांट रहे हैं या बेच रहे हैं
▶ इसलिए साधकों को चाहिए के विश्वसनीय एवं प्राचीन शास्त्रों को अथवा जो लेखक स्थापित हैं उनके ही ग्रंथों को पढ़ा जाए
▶ दूसरे हैं *संत*
▶ संतो की स्थिति भी आज पब्लिक से छुपी नहीं है । बड़ा सा तिलक लगाया धोती बांधी कुर्ता पहना गले में माला झोली और हरे कृष्णा हरे राम कहकर बन गए संत ।
▶ अगल बगल में चेलियाँ चेले गाड़ियां आश्रम विलासिता और अनेकानेक राजसिकता और भौतिकता के साधन समेटे हुए संत आज गली गली में हैं यह वास्तव में संत वेशधारी है ।
▶ पब्लिक से धन बटोरना ही मुख्य उद्देश्य है इनका । साधन उन्होंने बनाया है भगवान की कथा भगवान की बातों को
▶ ऐसा नहीं कि सभी ऐसे हैं । आज भी हजारों की संख्या में वास्तविक संत हैं लेकिन वह छुपे हुए हैं उनको कोशिश करके ही कोई व्यक्ति प्राप्त कर सकता है
▶ तीसरे हैं श्री *गुरुदेव*
▶ गुरुदेव की स्थिति भी कुल मिलाकर कम ज्यादा यही है । अधिक-से-अधिक शिष्य बनाकर उनसे धन प्राप्ति की कामना रखना और उनके उस धन से घर गृहस्थी चलाना । विलासितापूर्ण जीवन जीना । ऐश्वर्य भोगना । देश विदेश में जाना और इसका *उपाय* वह बना लेते हैं धर्म धार्मिक या भजन की शिक्षा को ।
▶ जबकि उद्देश्य होना चाहिए *भजन की शिक्षा* । आनुषंगिक रूप में जो धन दक्षिणा आदि मिल जाए उससेे जीवन निर्वाह करना चाहिए । लेकिन युग एवं समय के प्रभाव से यह सब हो रहा है
▶ ऐसे में शास्त्र हो या संत हो या गुरुदेव हो । कभी-कभी इन के वचनों पर *संदेह* होता है या विश्वास नहीं बैठता । ऐसे में शास्त्रीय मत यह है कि यह तीनों एक प्रकार से *खंडपीठ* है। किसी एक की बातों को अन्य दो लोगों से प्रमाणित करा लेना चाहिए और *तीन में से दो* जो बात कहें उस पर विश्वास और आचरण करना चाहिए
▶ यह तीन लोगों की खंडपीठ में शास्त्र है । संत है। सद्गुरु है । और यदि शास्त्र संत सदगुरु *प्रामाणिक* है आचरण शील है वास्तविक है भजन शील है वास्तविक लक्षणों से युक्त है तब भी यदि संदेह होता है तो अपने आप में सुधार करके अपनी *श्रद्धा* को मज़बूत करना चाहिए
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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