✅ अपराध लेना ✅
▶ अपराध में दो पक्ष होते हैं ।
▶ एक अपराध करने वाला और
▶ एक अपराध लेने वाला
▶ वैष्णव जगत में चार प्रकार के अपराध है
▶ सेवा अपराध
▶ नाम अपराध
▶ वैष्णव अपराध
▶ भगवत अपराध
▶ इसमें सेवा नाम और भगवान ने अपराध लिया या नहीं लिया इसका अनुमान ही होता है लेकिन वैष्णव ने अपराध लिया या नहीं लिया इसका प्रत्यक्ष दर्शन होता है
▶ मध्यम कोटि के जो वैष्णव होते हैं अभी उनमें मान अपमान यश अपयश के प्रति समभाव नहीं होता है वह भजन तो करते हैं लेकिन वह अपराध ले लेते हैं
▶ अर्थात उनको अपराध करने वाले के प्रति रोश का भाव होता है उनसे अवश्य ही गिड़गिड़ा कर या किसी भी प्रकार अपने अपराध को क्षमा करना ही चाहिए
▶ ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि यह कैसा वैष्णव अभी इसमें मान अपमान के प्रति समान भाव ही नहीं आया
▶ दूसरे कुछ परम वैष्णव टाइप के वैष्णव होते हैं जो मान अपमान में समान रहते हैं अपराध के प्रति उनका किंचित चेष्टा या ध्यान ही नहीं होती अपितु वे इन सब के प्रति उदासीन होते हैं
▶ उन्हें पता ही नहीं होता कि कौन मान दे रहा है और कौन अपमान कर रहा है कौन अपराध कर रहा है लेकिन शास्त्र में कहा गया है कि ऐसे महाभागवत वैष्णवों की चरण रज उनके अपराध को लेती है और अपराधी के भजन में बाधा होती है
▶ अतः ऐसे महाभागवत वैष्णव जन की चरण रज की वंदना करके उनसे उनके प्रति किए गए अपराधों को भी अवश्य ही क्षमा कर आना चाहिए
▶ श्रीमद्भागवत में राजा रहुगणने जड़भरत के प्रति अपराध किया जड़ भरत को अपराध का भान भी नहीं हुआ किंतु फिर भी राजा ने पालकी से उतर कर जड़भरत के चरणों में अपना मस्तक रखकर उनसे अपना अपराध क्षमा करवाया
▶ अतः वैष्णव अपराध में यदि हमसे अपराध हुआ है और हमें उसका भान है तो वैष्णव निम्न कोटि का हो मध्यम कोटि का हो या उच्च कोटि का हो उस वैष्णव से अपना अपराध अवश्य ही क्षमा कर आना चाहिए
▶ अन्यथा भजन में बाधा बनती ही रहेगी
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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🎤 वौइस् नोट्स : http://YourListen.com/Dasabhas
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▶ एक अपराध करने वाला और
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▶ वैष्णव जगत में चार प्रकार के अपराध है
▶ सेवा अपराध
▶ नाम अपराध
▶ वैष्णव अपराध
▶ भगवत अपराध
▶ इसमें सेवा नाम और भगवान ने अपराध लिया या नहीं लिया इसका अनुमान ही होता है लेकिन वैष्णव ने अपराध लिया या नहीं लिया इसका प्रत्यक्ष दर्शन होता है
▶ मध्यम कोटि के जो वैष्णव होते हैं अभी उनमें मान अपमान यश अपयश के प्रति समभाव नहीं होता है वह भजन तो करते हैं लेकिन वह अपराध ले लेते हैं
▶ अर्थात उनको अपराध करने वाले के प्रति रोश का भाव होता है उनसे अवश्य ही गिड़गिड़ा कर या किसी भी प्रकार अपने अपराध को क्षमा करना ही चाहिए
▶ ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि यह कैसा वैष्णव अभी इसमें मान अपमान के प्रति समान भाव ही नहीं आया
▶ दूसरे कुछ परम वैष्णव टाइप के वैष्णव होते हैं जो मान अपमान में समान रहते हैं अपराध के प्रति उनका किंचित चेष्टा या ध्यान ही नहीं होती अपितु वे इन सब के प्रति उदासीन होते हैं
▶ उन्हें पता ही नहीं होता कि कौन मान दे रहा है और कौन अपमान कर रहा है कौन अपराध कर रहा है लेकिन शास्त्र में कहा गया है कि ऐसे महाभागवत वैष्णवों की चरण रज उनके अपराध को लेती है और अपराधी के भजन में बाधा होती है
▶ अतः ऐसे महाभागवत वैष्णव जन की चरण रज की वंदना करके उनसे उनके प्रति किए गए अपराधों को भी अवश्य ही क्षमा कर आना चाहिए
▶ श्रीमद्भागवत में राजा रहुगणने जड़भरत के प्रति अपराध किया जड़ भरत को अपराध का भान भी नहीं हुआ किंतु फिर भी राजा ने पालकी से उतर कर जड़भरत के चरणों में अपना मस्तक रखकर उनसे अपना अपराध क्षमा करवाया
▶ अतः वैष्णव अपराध में यदि हमसे अपराध हुआ है और हमें उसका भान है तो वैष्णव निम्न कोटि का हो मध्यम कोटि का हो या उच्च कोटि का हो उस वैष्णव से अपना अपराध अवश्य ही क्षमा कर आना चाहिए
▶ अन्यथा भजन में बाधा बनती ही रहेगी
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